भारत में सत्ता परिवर्तन, पाकिस्तान में हलचल

-अंकुर विजयवर्गीय-
Pakistan

भारत में आम चुनाव के बाद सत्ता परिवर्तन की संभावना के मद्देनजर पाकिस्तान में असमंजस का माहौल है और शीर्ष स्तर पर बैठे लोग भारत के समर्थन तथा विरोध में अनर्गल बयान दे रहे हैं। पाकिस्तान में सबसे ताकतवर सेना है और उसकी ताकत का आधार भारत विरोध है, इसलिए सेना प्रमुख कश्मीर का राग अलाप रहे हैं। सरकार लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई है, इसलिए राजनयिक स्तर पर उसके लिए भारत के समर्थन की बाध्यता है। नरेन्द्र मोदी की सत्ता में आने की संभावना से पाकिस्तानी गृह मंत्री भारतीय मुसलमानों की चिंता जताकर लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश में हैं, लेकिन वहां के सांसद भारत में सत्ता परिवर्तन से परस्पर सहयोग बढ़ने की उम्मीद लगाए हैं।

पाकिस्तान-इंडिया पार्लियामेंटरी फ्रेंडशिप ग्रुप ने ‘भारतीय चुनाव परिणामों का पाकिस्तान पर असर’ विषय पर एक कार्यक्रम आयोजित किया। इस कार्यक्रम में 142 से अधिक सांसदों ने भाग लिया। कार्यक्रम में उम्मीद जताई गई है कि भारतीय जनता पार्टी का पाकिस्तान के प्रति सकारात्मक रुख रहा है और अटल विहारी बाजपेयी के नेतृत्व में दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने में अभूतपूर्व पहल हुई है। ग्रुप के अध्यक्ष अविस अहमद खान ने कहा है कि भाजपा का संबंधों को बेहतर बनाने का रिकॉर्ड रहा है। वाजपेयी के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी पाकिस्तान के साथ लचीला रुख अपनाया और यदि नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बनते हैं, तो उम्मीद की जानी चाहिए कि वह पिछले ट्रैक से हटकर नहीं चलेंगे।

इससे पहले पाकिस्तान के गृह मंत्री चौधरी निसार अली खान ने मोदी के खिलाफ कड़ा बयान दिया और कहा कि मोदी के आने से उपमहाद्वीप में अस्थिरता और अशांति का माहौल बनेगा। मोदी पाकिस्तान से और मुसलमानों से अपनी दुश्मनी की सभी सीमाएं लांघ चुके हैं। वह 1993 के बंबई बम धमाकों के आरोप में दाउद इब्राहिम को भारत को सौंपने की बात कर रहे हैं, लेकिन वह पहले तय करें कि दाउद कहां है। चौधरी यही नहीं रुके और उन्होंने मोदी के बयान को शर्मनाक करार दिया। भारत में सभी दलों ने चौधरी की टिप्पणी पर कड़ा रुख अपनाया और पाकिस्तान को भारत के आंतरिक मुद्दों पर हस्तक्षेप करने से बाज आने की सलाह दी। कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने यहां तक कहा कि पाकिस्तान को भारतीय मुसलमानों की चिंता करने की बजाए अपने यहां मंदिरों, गुरुद्वारों तथा चर्चों पर हो रहे हमलों को रोकने के लिए प्रयास करने चाहिए।

पाकिस्तान विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता तसनीम असलम ने पश्चिम एशियाई देशों के राजनयिकों के सम्मेलन में कहा कि उनका देश भारत के साथ सभी विवादित मुद्दों को सुलझाना चाहता है। इन मुद्दों में कश्मीर भी शामिल हैं। वह कहती हैं कि पड़ोसी मुल्क के साथ संबंध बेहतर होने से क्षेत्र में शांति रहेगी और विकास के दरवाजे खुलेंगे। उन्होंने कहा कि दक्षिण एशिया में शांति के लिए दोनों मुल्कों के बीच के विवादित मुद्दे बातचीत के जरिए सुलझाने जरूरी है और उनका देश इसके लिए बातचीत की प्रक्रिया शुरू करना चाहता है। जानकार कहते हैं कि पाकिस्तान पश्चिम एशियाई देशों के साथ ही भारत से भी अच्छे संबंधों की बात करके अपनी व्यावहारिक और संतुलित छवि पेश करना चाहता है।

इससे कुछ दिन पहले सेना प्रमुख जनरल राहिल शरीफ ने कहा कि कश्मीर पाकिस्तान के लिए गले की नस की तरह है, जिसके बिना पाकिस्तान का कोई अस्तित्व नहीं है। कश्मीर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवादित मुद्दा माना गया है और जब तक यह मुद्दा हल नहीं होता, दोनों देशों के बीच संबंध अच्छे नहीं हो सकते। पाकिस्तानी जनरल के इस बयान पर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया की है और कहा है कि कश्मीर को इस्लामाबाद भूल जाए। पाकिस्तान में इस साल मार्च में हिंदुओं के साथ सबसे ज्यादा अन्याय हुआ है। मार्च में ही पांच मंदिरों को क्षतिग्रस्त किया गया। पिछले दो दशक में यह हिंदुओं के मंदिरों पर एक माह में हुई सबसे बड़ी हमले की घटनाएं हैं। पिछल वर्ष हिंदुओं के नौ मंदिरों पर हमले हुए। ईश्वर के विरोध में बयान देने को अपराध बताने वाले कानून के तहत पाकिस्तान में कई निर्दोष अल्पसंख्यक बेवजह से जेलों में सड़ रहे हैं और उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। ईश निंदा पाकिस्तान में दूसरे धर्मावलंबियों से बदला लेने का सबसे बड़ा हथियार बन गया है। किसी अल्पसंख्यक से बदला लेना है, तो उस पर ईश निंदा का आरोप मढ़ दीजिए और पूरी व्यवस्था उसके खिलाफ हो जाएगी।

भाजपा की प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी ने यही सवाल उठाया और कहा कि जो पाकिस्तान अपने यहां अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा नहीं कर सकता है, उसे भारत के बारे में बोलने का अधिकार नहीं है। इसी तरह कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने भी कहा कि पाकिस्तान को भारतीय मुसलमानों की चिंता छोड़ देनी चाहिए और उसे समझ लेना चाहिए कि उसकी तुलना में ज्यादा मुसलमान भारत में हैं और सभी सुरक्षित तथा सुखी हैं।

Previous articleधर्म क्या है?
Next articleविदेशी नहीं चाहेंगे कि तेजवंत, गुणवंत, बलवंत बनें केंद्र सरकार
अंकुर विजयवर्गीय
टाइम्स ऑफ इंडिया से रिपोर्टर के तौर पर पत्रकारिता की विधिवत शुरुआत। वहां से दूरदर्शन पहुंचे ओर उसके बाद जी न्यूज और जी नेटवर्क के क्षेत्रीय चैनल जी 24 घंटे छत्तीसगढ़ के भोपाल संवाददाता के तौर पर कार्य। इसी बीच होशंगाबाद के पास बांद्राभान में नर्मदा बचाओ आंदोलन में मेधा पाटकर के साथ कुछ समय तक काम किया। दिल्ली और अखबार का प्रेम एक बार फिर से दिल्ली ले आया। फिर पांच साल हिन्दुस्तान टाइम्स के लिए काम किया। अपने जुदा अंदाज की रिपोर्टिंग के चलते भोपाल और दिल्ली के राजनीतिक हलकों में खास पहचान। लिखने का शौक पत्रकारिता में ले आया और अब पत्रकारिता में इस लिखने के शौक को जिंदा रखे हुए है। साहित्य से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं, लेकिन फिर भी साहित्य और खास तौर पर हिन्दी सहित्य को युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाने की उत्कट इच्छा। पत्रकार एवं संस्कृतिकर्मी संजय द्विवेदी पर एकाग्र पुस्तक “कुछ तो लोग कहेंगे” का संपादन। विभिन्न सामाजिक संगठनों से संबंद्वता। संप्रति – सहायक संपादक (डिजिटल), दिल्ली प्रेस समूह, ई-3, रानी झांसी मार्ग, झंडेवालान एस्टेट, नई दिल्ली-110055

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here