बदल रहा है हिन्दुस्तान!

-फखरे आलम- ChangeIndia
हां, चुनाव से पूर्व हिन्दुस्तान बदलने लगा है और मतदान के पूर्व तक जनता और उनका मन सबकुछ बदल जाएगा एवं आम चुनाव और उसका परिणाम पूरी तरह से बदल जाने के संदेश हमें देगा। भारत का भविष्य आगामी पांच वर्षों पर टिकी रहेगी। मगर अभी से देश और देश की जनता वर्तमान तस्वीकर बदलने के लिए तत्त्पर और तैयार दिखाई पड़ने लगे हैं। चुनाव परिणाम कैसी तस्वीर पेश करने वाली है यह अभी किसी को पता नहीं। मगर देश का मूड परिवर्तन चाहता है। बदलाव चाहता है। अर्थात् सभी अर्थों में देश वर्तमान से बेहतर भविष्य की कल्पना मन में पाले बैठी है। देश और जनता के मन में यही चल रहा है कि सरकार किसी उफर्जावान, देशभक्त और मजबूत नेता के नेतृत्व में बने। देश का राजधनी दिल्ली जैसी स्थिति पैदा न हो, जनता पर बार-बार चुनाव का बोझ नहीं लादा जाना चाहिए। कोई ऐसा नेता जो देश और समाज को एक सूत्र में बांधे और सबको साथ लेकर विकास और प्रगति के मार्ग पर देश की प्रतिनिधित्व प्रदान करे। पिछड़े देश को विकास की गति चाहिए। जातिगत राजनीति और संप्रदायिकता का दौर लदने लगा है और सेकूलर और संप्रदायिकता के नाम पर देश की जनता को अब उल्लू नहीं बनाया जा सकता। जिस प्रकार से चुनाव आयुक्त और चुनाव प्रणाली से जुड़े लोगों और अधिकारियों ने तत्परता और ईमानदारी दिखानी शुरू की है। इस प्रकार अगर देश की जनता ने तत्पड़ता और ईमानदारी एवं देशभक्ति दिखाई तो सारे उल्लू बनाने वाली पार्टियां और उनके नेताओं की दुकान बन्द हो सकती है।
अब धर्मिक नेताओं से राजनीति पार्टियों के साठगांठ कमजोर पड़ते दिखाई देने लगे हैं। मगर जाति और धर्म की राजनीति अभी भी मजबूत स्थिति में है? सभी दावपेंच के मध्य यह तो निश्चित है कि लोकसभा परिणाम के पश्चात केन्द्र में एनडीए अथवा यूपीए के ही नेतृत्व में नए सरकार का गठन होगा। सहयोगी दलों में कुछ इधर से उधर जाएंगे। सरकार किसी एक पार्टी नहीं बना पाऐगी। सरकार क्षेत्रीय अथवा गठबंधन के मिजाज से चलेगी। अगर देश की जनता ने किसी एक पक्ष में ऐतिहासिक मतदान किया तो भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का चेहरा अबकी बार बदल जाएंगे। ऐसा लगता है कि भारतीय जनता का मिजाज किसी एक व्यक्ति विशेष को आगामी पांच वर्षों के लिए आजमाना चाहते हैं और इस संदर्भ में कोई बुराई नहीं है कि जनता किसी व्यक्ति विशेष को अवसर प्रदान करके कुछ नया देखना चाहती है। हां, दो-दो अवसरों के बाद उन्हें एक मौका अवश्य ही दिया जाना चाहिए। सत्ता के नशेरी परेशान है। देश के टुकड़े होने, समाज के बंटने और सांप्रदायिक सौहार्द की बात कर के किसी एक जाति विशेष के मतदाताओं को न सिर्फ डराने की काम कर रही है, बल्कि अपने परास्त से पूर्व की हताशा उनसे झलक रहा है। हां, हो सकता है जनता वनगभावे में आ जाए। फिर से भ्रष्टाचारियों और बेइमानों का राज बन जाए। जाति और धर्म के साथ-साथ क्षेत्रवाद फिर से विकास, शांति, प्रगति, सुरक्षा, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर भारी पड़ने लगे, मगर 2014 का आम-चुनाव मतदान से पूर्व और मतदान से पहले एक संदेशा अवश्य ही दे रहा है। बदलाव दिखता है। तस्वीरें बदलने लगी है। बदलते अनेक रंगों की तस्वीरों का सापफ और स्वस्थ रूप दिखाई देने वाला है। एक नए सवेरा भारत के भविष्य में दस्तक देने वाला है। बस थोड़ा प्रतिक्षा और करना है-
देश के हमदर्द जाग उठे कि उमड़ा आफताब!
ओढ़ ली हर रहजन ने रहनुमाई की नकाब!!
अब कई खुद्दाम इस साचे में ढाले जाएंगे!
आस्तीन देश में कुछ सांप पाले जाएंगे!!
ऐ गरीबों पफसल ए गुल लूट लो!
पिफर कहां यह रहनुमा उनके नसेमन लूट लो!!
यह सब बंजारे हैं, वह जिनका लहू व्यापार है!
उनमें हर सिपास अपने वक्त का गद्दार है!!
ऐ गरीबों अब संभल जाओ खुदा के वास्ते!
उनका दामन फाड़ दो अपनी रिदा के वास्ते!!
ख्यालों में लहू भड़ता रहूंगा!
कलम की आबरु करता रहूंगा।

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