विकास कुमार
भारत के आंतरिक सुरक्षा को लेकर केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच आम सहमति हमेशा से संदेहास्पद रहा है। केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों की सुरक्षा-व्यवस्था को लेकर आयोजित लगभग हरेक सम्मेलनों या बैठकों का नतीजा अपने मूल मुद्दे को त्याग कर राजनीति का रंग ले लेता है। पिछ्ले कुछ महिनों से राज्यों की सुरक्षा-व्यवस्था(खासकर नक्सल प्रभावित राज्यों) को लेकर केन्द्र सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं को बल तो दिया गया है मगर इन योजनाओं को सुचारु ढंग से स्थापित करने में केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोग और सही तालमेल का अभाव देखने को मिला है।
हाल ही में आंतरिक सुरक्षा को लेकर केन्द्र सरकार द्वारा बुलाये गये मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में राज्यों की सुरक्षा-व्यवस्था को दुरुस्त करने के कारगर उपायों को बैकफुट पर रखकर केंद्र सरकार,मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों के बीच आपसी भिड़ंत सम्मेलन को सही दिशा देने में बाधक साबित हुई है। हालांकि मंत्रियों के बीच आपसी भिड़ंत की यह पहली घटना नहीं है। मगर इस तरह के मुद्दे पर आरोप-प्रत्यारोप की राजनिति को दबाकर रखने में ही देश और राज्य की भलाई है। एक तरफ देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मुख्यमंत्रियों से आंतकवाद से साहस के साथ मुकाबला करने की अपील की वहीं गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में अहम मुद्दे को भूलकर सरकार के दावों की धज्जियाँ उड़ाने में लगे हुए थे। इस क्रम में जिन्हे भी मौका मिला वो बोलने से चुके नहीं। अप्रत्यक्ष रुप से भाजपा और संघ परिवार को निशाना बनाते हुए केन्द्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि कुछ नए आंतकवादी संगठन और गुट सामने आ रहे हैं। मंत्री जी का यह इशारा हाल में संघ परिवार के कुछ लोगों का अपराधिक गतिविधियों में संलिप्त होने की ओर था। सम्मेलन में बिहार की तरफ से मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने केन्द्र सरकार के सामने मंहगाई को सबसे बड़ा मुद्दा बताया वहीं बिहार में कानून व्यवस्था के क्षेत्र में एक मिसाल कायम करने पर भी बल दिया। बिहार में महिला मतों की संख्या में 32 लाख से अधिक की बढोतरी आंतरिक सुरक्षा के क्षेत्र में प्रगति को दर्शाता है। साथ ही उन्होने राज्य में आगामी पंचायत चुनाव के मध्यनज़र केंद्रीय पुलिस बलों की 400 कंपनियों की आवश्यकता को दुहराया।
आंतरिक सुरक्षा को लेकर बुलाये गये इस सम्मेलन में भ्रष्टाचार और काले धन को राष्ट्रिय सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा बताते हुए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य में विशेष अदालत बनवाने की नई नीति को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सामने पेश किया। राज्य की सुरक्षा-व्यवस्था को लेकर सबसे गंभीर दिखने वाले शिवराज सिंह चौहान ने नक्सली और उग्रवाद की समस्या से निपटने के लिये केंद्र में लंबित अपराध नियंत्रण विधेयक 2010 को जल्द से जल्द लागू करने पर जोर दिया।
सुरक्षा-व्यवस्था को शख्त और प्रभावी बनाने के लिये उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती की तरफ से संसदीय कार्य मंत्री लालजी वर्मा ने केंद्र सरकार से पुलिस बजट का आधा हिस्सा वहन करने की अपील की है। साथ ही उत्तर प्रदेश पुलिस की समस्या को केंद्र के सामने रखकर इस दिशा में किसी भी तरह की कोई मदद को नकारा है।
कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि आंतरिक सुरक्षा को लेकर बुलाये गये राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने पिछ्ले बैठकों की तुलना में ज्यादा गंभीरता तो दिखाई है। मगर ऐसे प्रस्तावों और नीतियों को लागू होने में काफी समय लग जाते हैं। इन प्रस्तावों,वादों और आश्वासन की गूंज सम्मेलन के बाद सुस्त पड़ जाती है और आरोप-प्रत्यारोप से ओत-प्रोत सम्मेलन हरेक प्रकार से विकास के क्षेत्र में बाधक बन जाते हैं। खासकर आंतरिक सुरक्षा के मामलों में सरकार और राज्यों के मुख्यमंत्रियों को और ज्यादा गंभीर होने की जरुरत मालूम पड़ती है।