पूनम
राजस्थान
भाई की पत्नी को समय पर चिकित्सा सुविधा और सही दवा नही मिली जिस कारण उसकी मौत हो गई”। ये वाक्य है राजस्थान की तहसील लुनकरनसर के कालू गांव मे रहने वाली 45 वर्षीय भंवरी देवी के। जिन्हे इस बात का बेहद दुख है कि आजादी के इतने वर्षो बाद भी महिलाओं खास कर गांव मे महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए उत्तम सुविधाएं उपलब्ध नही कराई जा रही हैं। कारणवश गर्भवास्था के दौरान उनकी सही देखभाल नही हो पाती और महिलाएं मौत का शिकार हो रही हैं। यूं तो कालू गांव मे और भी कई समस्याएं हैं पर उन सबके बीच गर्भवती महिलाओं के लिए सही चिकित्सा सुविधा न होना चिंताजनक विषय है।
यहां के ग्रामीणो से बात करने पर पता चला कि कालू गांव के प्रत्येक मुहल्ले मे स्वास्थ्य केंद्र नही है और जहां है भी वहां पर अच्छे डॉक्टर और नर्से मौजुद नही होती, और जो होते हैं, आपातकालिन स्थिति मे वो भी घर पर आने के लिए तैयार नही होते। ऐसी दयनीय स्थिति मे अक्सर लोगो को परेशानीयों का सामना करना पड़ता है। भंवरी देवी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ इस बारे मे वो बताती है ” मेरी भाभी गर्भवती थी लेकिन समय पर चिकित्सा सुविधा और सही दवा नही मिलने के कारण उसकी मौत हो गई। आखिरी समय मे उसकी हालत इतनी बिगड़ गई थी कि उसे बिकानेर के अस्पताल मे रेफर कर दिया गया था पर वहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। और प्राइवेट अस्पताल मे ले जाने के लिए हमारे पास पैसे नही थे। ऐसा सिर्फ मेरी भाभी के साथ नही हुआ बल्कि अबतक गांव की कई महिलाओं के साथ हो चुका है”।
नाम न लिखे जाने की शर्त पर गांव की एक दुसरी महिला ने बताया कि “यहां आंगनबाड़ी का भी बुरा हाल है। बच्चे के जन्म से लेकर जन्म होने तक गर्भवती महिलाओं को खास व्यवस्था उपलब्ध नही कराई जाती। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता बच्चों का वजन तो तौल लेती है परंतु जो बच्चे कुपोषण का शिकार होते हैं उनके लिए पोषक तत्व उपलब्ध नही कराया जाता। और बच्चो के लिए भेजा जाने वाला भोजन बच्चों मे कम और जान पहचान वाले लोगो के बीच बांट दिया जाता है। कोई बाहर वाला अगर भोजन लेना चाहे तो उसे उसकी किमत चुकानी पड़ती है”।
खराब स्वास्थ्य सुविधा और आंगनबाड़ी की बुरी स्थिति के बारे मे भंवरी देवी ने बताया “मेरी बहू जब गर्भवती थी तो स्वास्थय केंद्र जाकर उसने टिकाकरण तो करा लिया था परंतु वहां से उसे टिकाकरण का कोई कार्ड नही दिया गया। बार बार पूछे जाने पर कहा गया कि आंगनबाड़ी आकर कार्ड प्राप्त किया जा सकता है लेकिन आंगनबाड़ी केंद्र हमेशा बंद मिलता है। स्वास्थ्य केंद्र मे भी केवल टिकाकरण किया जाता है प्रसव के लिए वहां पर कोई सुविधा उपलब्ध नही है। और नर्सो को बुलाने पर वह घर पर नही आती, यहां तक की दवा भी मुफ्त मे नही बल्कि पैसे देने पर ही मिलती है। ऐसे मे गरीब व्यक्ति इस मंहगाई मे न तो पैसे दे सकता है न ही शहर जाकर इलाज करवा सकता है। मजबुरी मे गांव मे ही इलाज करवाना पड़ता है। भंवरी देवी आगे कहती है “गर्भवती महिला का इलाज यहां के स्वास्थ्य केंद्र मे सही से नही होता और अन्य बिमारीयों के इलाज के लिए जितने भी मरीज आते हैं उन सबको लगभग एक ही दवा दी जाती है। प्रसव की सही सुविधा न मिलने के कारण कितनी गर्भवती महिलाओं की अब तक मौत हो चुकी है, और कितने बच्चों की भी।
मालुम हो कि जननी सुरक्षा योजना राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत एक सुरक्षित मातृत्व कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य गरीब गर्भवती महिलाओं के संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देते हुए मातृ एंव नवजात मृत्यु दर को कम करना है।
इसके बावजुद राजस्थान के कालू गांव की यह स्थिति और दूसरी ओर राजस्थान जननी सुरक्षा योजना की वेबसाईट पर मौजुद आंकड़े चौंकाने वाले हैं। आंकड़े बताते हैं कि भारत मे गर्भावस्था संबधी जटिलताओं के कारण हर साल करीब 67000 महिलाएं दम तोड़ देती हैं। इसी तरह जन्म के एक वर्ष के भीतर करीब 13 लाख बच्चे दम तोड़ देते हैं। विशेष रुप से बात आगर राजस्थान की करें तो मालुम होता है कि प्रतिवर्ष 5300 महिलाओं की मृत्यु गर्भावस्था संबधी जटिलताओं के कारण होती है। इसी तरह लगभग 98500 शिशुओं की मृत्यु जन्म के एक वर्ष के भीतर ही हो जाती है।
आंकड़े अपने आप मे सवाल खड़ा करते हैं जिसकी गंभीरता को समझ कर जल्द से जल्द इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि भारत की प्रत्येक मां और बच्चे को सुरक्षा प्रदान की जा सके और जननी-शिशु सुरक्षा जैसी योजनाओं को सफलता प्राप्त हो।