शिक्षा के मंदिरों में यौन उत्पीड़न से बिलखता बचपन

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शिक्षा के मंदिरों स्कूलों में दिनोदिन बढ़ते बच्चों के यौन शोषण के मामले सभ्य समाज के माथे पर कलंक हैं। पिछले माह 4 मार्च को उड़ीसा के नवरंगपुर ज़िले के कोशामगुडा ब्लॉक के बोडा-आमडा सेवाश्रम स्कूल के हैडमास्टर और एक अध्यापक द्वारा चार छात्राओं का यौन शोषण किए जाने का मामला सामने आया। मामला उस वक्त उजागर हुआ जब छात्राओं के गर्भवती होने के लक्षण सामने आने लगे। यह स्कूल राज्य के अजा-जजा कल्याण विभाग के अंतर्गत है। स्कूल में यौन शोषण का यह कोई इकलौता मामला नहीं है। आए दिन देश के किसी न किसी हिस्से से ऐसी खबरें आती ही रहती हैं, जिन्होंने सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है। स्कूलों में बच्चों का यौन शोषण गंभीर चिंता का विषय है। बच्चों के शोषण में वही लोग शामिल होते हैं, जिन पर उनकी सुरक्षा का दायित्व है।

बच्चों के यौन शोषण पर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में चार में से एक बच्चा यौन शोषण का शिकार है। हर 155वें मिनट में एक बच्ची के साथ दुष्कर्म होता है। यूनिसेफ़ की एक रिपोर्ट के मुताबिक 65 फ़ीसदी बच्चे स्कूलों में यौन शोषण का शिकार होते हैं। 12 से कम उम्र के 41.17 फ़ीसदी बच्चे यौन उत्पीड़न से जूझ रहे हैं, जबकि 13 से 14 साल के 25.73 फ़ीसदी और 15 से 18 साल के 33.10 फ़ीसदी बच्चों को यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। एक अन्य सर्वे के मुताबिक़ 15 से 12 साल के 35.49 फ़ीसदी बच्चों को अंग दिखाने पर मजबूर किया गया। 48.17 बच्चों के नग्न फोटो खींचे गए। 41.17 फ़ीसदी बच्चों का जबरन चुंबन लिया गया और 34.86 फ़ीसदी बच्चों को अश्लील सामग्री दिखाई गई। 13 से 14 साल के 25.86 फ़ीसदी बच्चों को अंग दिखाने पर मजबूर किया गया। 23.81 बच्चों के नग्न फोटो खींचे गए। 25.73 फ़ीसदीबच्चों को जबरन चूमा गया और 26.12 फ़ीसदी बच्चों को अश्लील सामग्री दिखाई गई। इसी तरह 15 से 18 साल के 38.66 फ़ीसदी किशोरों को अंग दिखाने पर मजबूर किया गया। 28.02 फ़ीसदी किशोरों की नग्न तस्वीरें उतारी गईं। 33.10 फ़ीसदी किशोरों के चुंबन लिए गए और 39. 02 फीसदी किशोरों को अश्लील सामग्री दिखाई गई। यौन शोषण के शिकार अधिकांश बच्चे खौफ के चलते चुप्पी साधे रहते हैं और किसी से इसका जिक्र तक नहीं करते।

बच्चों के यौन शोषण के मामले में बिहार सबसे आगे है। यहां बच्चों के शोषण के 56 फ़ीसदी मामले दर्ज किए गए हैं, जबकि महाराष्ट्र में 53 फ़ीसदी और उत्तर प्रदेश में 50 फ़ीसदी ऐसे मामले दर्ज किए गए। देशभर में 55.02 फ़ीसदी लडक़ियां और 44.98 फ़ीसदी लडक़े जबरन चूमे जाने से यौन उत्पीड़न की त्रासदी झेलते हैं। इस संबंध में मिजोरम में 86.18 फ़ीसदी, गुजरात में 79.81 फ़ीसदी और मध्य प्रदेश में 79.10 फ़ीसदी मामले दर्ज किए गए। लड़कों के शोषण के मामले में दिल्ली में 68.88 फ़ीसदी, गोवा में 64 फ़ीसदी और राजस्थान में 55.45 फ़ीसदी मामले रिकॉर्ड किए गए।

एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया था कि बच्चों के ख़िलाफ़ अपराध के मामलों में देश के दस और दुनिया के 35 बडे शहरों में दिल्ली पहले स्थान पर है। देश की बात करें तो हर 35वें मिनट में बाल यौन उत्पीड़न का एक मामला दर्ज होता है। सरकारी आंकड़ों में 2005 में बच्चों के ख़िलाफ़ अपराध का राष्ट्रीय औसत 1.4 फीसदी था। इस दौरान देशभर में 14975 मामले दर्ज हुए थे, जो पिछले साल की तुलना में 3.8 फ़ीसदी ज़्यादा थे। बच्चों के अपहरण के इस अवधि में कुल 3518 मामले ही दर्ज हुए, जबकि 2004 में इनकी तादाद 3196 और 2003 में 2551 थी। बाल उत्पीड़न के मामले में दिल्ली (6.5), चंडीगढ (5.7) और मध्य प्रदेश (5.6) राष्ट्रीय औसत से आगे रहे। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों की सुरक्षा के लिए कोई कारगर क़दम नहीं उठाए गए हैं।

एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक शिक्षण संस्थाओं में यौन शोषण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। पहले जहां स्कूल और कॉलेजों में यौन प्रताड़ना व यौन शोषण की घटनाएं गिनी-चुनी होती थीं, लेकिन अब शिक्षकों का छात्राओं को अच्छे अंक या अन्य सुविधाएं मुहैया कराने के नाम पर शारीरिक संबंध बनाने की मांग करना आम हो गया है।

केंद्रीय महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री रेणुका चौधरी ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए बच्चों की सुरक्षा को राष्ट्रीय एजेंडे में रखे जाने की जरूरत पर जोर दिया है। वहीं मनोरोग विशेषज्ञों का मानना है कि यौन शोषण के कारण बच्चों में असुरक्षा की भावना पैदा होती है। बच्चे अकेलेपन के आदी हो जाते हैं। वे लोगों से मिलने-जुलने से डरते हैं। वे अकसर सहमे-सहमे रहते हैं। उन्हें भूख कम लगती है और वे कई प्रकार के मानसिक रोगों की चपेट में आ जाते हैं। मन में पल रहे आक्रोश के चलते ऐसे बच्चों के अपराधी बनने की संभावना भी बढ ज़ाती है। बच्चों का यौन शोषण उन्हें दीर्घकाल में यौन रोगों और मनोविकारों का शिकार बना देता है।

समाज सेविका इंदु प्रभा कहती हैं कि भारत में बढ़ते यौन अपराध के लिए यहां की रूढ़िवादी मानसिकता भी काफी हद तक जिम्मेदार है। यहां पर यौन पीड़ित को घृणा की दृष्टि से देखा जाता है, जबकि बलात्कारी के प्रति लोगों की मानसिकता ऐसी नहीं होती। बलात्कारी समाज में ‘शान’ के साथ रहता है, जबकि पीड़ित का पूरा जीवन ही नारकीय हो जाता है। इसलिए भी माता-पिता अपने बच्चों के यौन शोषण पर शिकायत करने से गुरेज करते हैं और बच्चों को भी यही हिदायत दी जाती है कि वे इस बात का जिक्र किसी से न करें। ऐसे में बलात्कारी के हौंसले बुलंद हो जाते हैं और वो मनमानी करने लगता है। यौन प्रताड़ना से तंग आकर कुछ बच्चे अपना मानसिक संतुलन खो देते हैं तो कुछ आत्महत्या तक कर लेते हैं।

हमारी केंद्र और राज्य सरकारों शिक्षण संस्थाओं में बच्चों का यौन शोषण रोकने में नाकाम साबित हुई हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह लापरवाही और भ्रष्टाचार है। भ्रष्टाचार के चलते आरोपी को या तो सजा नहीं मिलती और अगर मिलती भी है तो बहुत ही मामूली। देश के नवनिर्माण और स्वस्थ समाज के लिए यह बेहद जरूरी है कि राष्ट्र के भावी कर्णधारों का बचपन अच्छा हो और उन्हें सही माहौल मिले। इसके लिए बाल यौन उत्पीड़न को रोकना होगा। और यह तभी मुमकिन है जब लोग सजग रहें और अपराध होने की स्थिति में अपराधी को सख्त से सख्त सजा मिले, जिससे दूसरे भी इबरत हासिल कर सकें। इसके अलावा न्याय प्रक्रिया को भी आसान बनाए जाने की जरूरत है, ताकि पीडितों को वक्त पर इंसाफ मिल सके। कहावत है कि देर से मिला न्याय भी अन्याय के समान होता है। इसके बावजूद हमारे देश की लचर कानून व्यवस्था और पुलिस मकहमे में व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते लोग इंसाफ़ के लिए पुलिस में जाने से डरते हैं। रूचिका गिरहोत्रा छेड़छाड़ और मौत के मामले को ही लीजिए। यह मामला क़रीब दो दशक से अदालत में चल रहा है और पिछले दिसंबर में अदालत ने आरोपी हरियाणा पुलिस के पूर्व डीजीपी और लोन टेनिस एसोसिएशन के अध्यक्ष शंभू प्रताप सिंह राठौर को महज छह माह क़ैद और एक हज़ार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। इस पर देश में बवाल मच गया कि 19 साल की प्रताड़ना के बाद महज छह साल की क़ैद?

इस पर राष्ट्रीय महिला आयोग ने हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को पत्र लिखकर कहा था कि राठौर को सुनाई गई महज छह माह की सज़ा के ख़िलाफ़ राज्य सरकार ऊपरी अदालत में अपील करे। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष गिरिजा व्यास का कहना था कि हम रूचिका को वापस तो नहीं ले सकते, लेकिन अभियुक्त को वाजिब सजा दिलाकर उन लोगों को कुछ राहत प्रदान कर सकते हैं, जो पिछले 19 वर्षों से अन्याय के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहे हैं।

केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने भी राठौर को मिली सजा पर प्रतिक्रिया ज़ाहिर करते हुए कहा था कि ”बतौर गृहमंत्री मैं कोई फ़ैसला तो नहीं दे सकता, लेकिन जिस तरह से इस मामले में आरोप निर्धारित हुए और आरोपी को सज़ा सुनाई गई, उससे मैं बहुत नाखुश हूं”

रूचिका कांड एक नज़र में

हरियाणा पुलिस के पूर्व पुलिस महानिदेशक और लोन टेनिस एसोसिएशन के अध्यक्ष शंभू प्रताप सिंह राठौर द्वारा हरियाणा की उभरती हुई टेनिस खिलाड़ी रूचिका गिरहोत्रा से छेड़छाड़ और मौत का मामला करीब दो दशक से चंडीगढ़ की विशेष सीबीआई अदालत में चल रहा है। पंचकुला में 14 वर्षीय रूचिका के साथ 12 अगस्त 1990 को उस समय के पुलिस महानिदेशक व लॉन टेनिस एसोसिएशन के अध्यक्ष एसपीएस राठौर ने छेड़छाड़ की थी।

इस संबंध में 16 अगस्त को गृह सचिव व मुख्यमंत्री सहित विभिन्न आलाधिकारियों को शिकायत की गई। उस समय प्रदेश में चौधरी हुकम सिंह मुख्यमंत्री थे। उन्होंने 17 अगस्त को डीजीपी आरआर सिंह से मामले की जांच करने को कहा। इस मामले में पुलिस के पास 18 अगस्त 1990 को रपट रोजनामचा डीडीआर नंबर-12 दर्ज की गई।

मामले की जांच करने के बाद डीजीपी आरआर सिंह ने 3 सितम्बरए 1990 को कहा कि प्रारम्भिक तौर पर राठौर के खिलाफ मामला बनता है और इस मामले में एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए। बाद में बने डीजीपी आरके हुड्डा व उस समय के गृह सचिव ने एफआईआर की बजाय राठौर को चार्जशीट किए जाने की सिफारिश की। उस समय के गृह मंत्री ने 12 मार्चए 1991 को और मुख्यमंत्री हुकम सिंह ने 13 मार्चए 1991 को इससे सहमति जता दी।

हुकम सिंह 22 मार्चए 1991 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और उसके बाद 22 मार्चए 1991 से 6 अप्रैलए 1991 तक सिर्फ दो हफ्तों के लिए ओमप्रकाश चौटाला प्रदेश के मुख्यमन्त्री बने लेकिन इस दौरान यह मामला उनके पास नहीं आया।

6 अप्रैलए 1991 से 22 जुलाईए 1991 तक प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू रहा और राष्ट्रपति शासन के दौरान ही प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए। इस दौरान 28 मई 1991 को एसपीएस राठौर को दी जाने वाली चार्जशीट अप्रूव कर दी गई।

चुनाव के बाद प्रदेश में भजनलाल के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार बनी। यह सरकार 23 जुलाई 1991 से 9 मई 1996 तक रही। इस दौरान राठौर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को लेकर मामला फिर आया और इस संबंध में उस समय के एलआर से कानूनी राय ली गई। उस समय के एलआर आरके नेहरू ने 30 जूनए 1992 को दी गई कानूनी राय में यह बात कही कि यह एफआईआर तो वैसे भी एसएचओ द्वारा दर्ज कर दी जानी चाहिए थी, क्योंकि इस सम्बन्ध में रपट रोजनामचा 18 अगस्तए 1990 को पहले से ही दर्ज है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर पहले एफआईआर दर्ज नहीं की गई तो इस एफआईआर को तुरंत बिना देरी के दर्ज कर लिया जाना चाहिए और अदालत में ट्रायल के दौरान यह बात स्पष्ट की जा सकती है। एलआर की कानूनी राय के बावजूद भी एफआईआर दर्ज नहीं की गई और उस समय भजनलाल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी।

भजनलाल की सरकार के दौरान रूचिका के भाई आशु के ख़िलाफ़ चोरी की छह एफआईआर दर्ज की गई। 6 अक्तूबरए 1992 को एफआईआर नंबर-39ए 30 मार्च 1993 को एफआईआर नंबर-473ए 10 मई 1993 को एफआईआर नंबर-57ए 12 जून 1993 को एफआईआर नंबर-96ए 30 जुलाई 1993 को एफआईआर नंबर-127 और 4 सितम्बर 1993 को एफआईआर नंबर-147 दर्ज की गई। ये सभी एफआईआर धारा 379 के अन्तर्गत दर्ज की गई।

23 अक्तूबर 1993 को हरियाणा पुलिस ने रूचिका के भाई आशु को घर से उठा लिया और दो महीने तक अवैध हिरासत में रखा गया और उस पर कार चोरी के 11 मामले बनाए गए। उस समय प्रदेश में भजनलाल की सरकार थी। आखिर तंग आकर 28 दिसम्बर 1993 को रूचिका ने आत्महत्या कर ली और 29 दिसम्बर को पुलिस ने आशु को छोड़ दिया। यह घटना भी भजनलाल सरकार में घटी।

इसके बाद अप्रैल 1994 में भजनलाल सरकार ने रूचिका छेड़छाड़ के मामले में एसपीएस राठौर के खिलाफ चल रही चार्जशीट को चुपचाप तरीके से खत्म कर दिया और 4 नवम्बर 1994 को भजनलाल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने राठौर को पदोन्नत करके आईजी से अतिरिक्त डीजीपी बना दिया।

11 मई 1996 को प्रदेश में बंसीलाल के नेतृत्व में हरियाणा विकास पार्टी की सरकार बन गई जो कि 23 जुलाई 1999 तक रही। बंसीलाल की सरकार में राठौर एडिशनल डीजीपी जेल के पद पर थे और एक कैदी की पेरोल के मामले को लेकर उन्हें 5 जून 1998 को निलंबित किया गया और कैदी के पेरोल के मामले की विभागीय जांच के आदेश दिए गए। बंसीलाल सरकार ने ही 3 मार्चा 1999 को राठौर को वापस बहाल कर दिया।

इसी बीच 21 अगस्त 1998 को सीबीआई ने रूचिका छेड़छाड़ मामले की जांच सीबीआई से कराए जाने के आदेश दिए।

20 मई 1999 को बंसीलाल सरकार के समय ही राठौर व एसके सेठी को डीजीपी बनाने के लिए विभागीय पदोन्नति कमेटी (डीपीसी) की बैठक हुई और एसके सेठी को डीजीपी बना दिया गया और बैठक में कहा गया कि राठौर के खिलाफ कैदी की पेरोल के मामले को लेकर विभागीय जांच अभी लम्बित है इसलिए विभागीय जांच रिपोर्ट आने तक पदोन्नति न दी जाए। 30 सितम्बर को विभागीय जांच रिपोर्ट में उनके खिलाफ कैदी के पेरोल मामले में आरोपों की पुष्टि न होने पर उन्हें भी 20 मई 1999 से पदोन्नति मिल गई।

दिसम्बर 2000 में सीबीआई ने राठौर को रूचिका छेड़छाड़ मामले में दोषी ठहराते हुए उन्हें चार्जशीट कर दिया और इनेलो की सरकार ने उन्हें तुरन्त डीजीपी पद से हटा दिया। उसके बाद अदालत में मामले की सुनवाई चली। इसी दौरान राठौर 2002 में रिटायर हो गए और 21 दिसंबर को अदालत ने राठौर को छह महीने की क़ैद और एक हज़ार रुपये जुर्माने की सज़ा सुनाई।

-फ़िरदौस ख़ान

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फ़िरदौस ख़ान
फ़िरदौस ख़ान युवा पत्रकार, शायरा और कहानीकार हैं. आपने दूरदर्शन केन्द्र और देश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों दैनिक भास्कर, अमर उजाला और हरिभूमि में कई वर्षों तक सेवाएं दीं हैं. अनेक साप्ताहिक समाचार-पत्रों का सम्पादन भी किया है. ऑल इंडिया रेडियो, दूरदर्शन केन्द्र से समय-समय पर कार्यक्रमों का प्रसारण होता रहता है. आपने ऑल इंडिया रेडियो और न्यूज़ चैनल के लिए एंकरिंग भी की है. देश-विदेश के विभिन्न समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं के लिए लेखन भी जारी है. आपकी 'गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत' नामक एक किताब प्रकाशित हो चुकी है, जिसे काफ़ी सराहा गया है. इसके अलावा डिस्कवरी चैनल सहित अन्य टेलीविज़न चैनलों के लिए स्क्रिप्ट लेखन भी कर रही हैं. उत्कृष्ट पत्रकारिता, कुशल संपादन और लेखन के लिए आपको कई पुरस्कारों ने नवाज़ा जा चुका है. इसके अलावा कवि सम्मेलनों और मुशायरों में भी शिरकत करती रही हैं. कई बरसों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की तालीम भी ली है. आप कई भाषों में लिखती हैं. उर्दू, पंजाबी, अंग्रेज़ी और रशियन अदब (साहित्य) में ख़ास दिलचस्पी रखती हैं. फ़िलहाल एक न्यूज़ और फ़ीचर्स एजेंसी में महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत हैं.

2 COMMENTS

  1. बोए पेड़ बबूल के आम कहाँ से खाए. दिन-रात मीडिया पर वासना परोसने के बाद यही सब होना है. जो हो रहा है उसका एक प्रतिशत भी तो सामने नहीं आरहा. इसे रोकना है तो मीडिया पर साद- संस्कार देने होंगे, कुछ आदर्श सामने रखने होंगे. पर यह सब तो पिछड़े पन की निशानी लगता है ना? तो ठीक है, आधुनिक बनने के नाम पर पग- पग पर विष परोसो और अपनी दुर्दशा अपननी समझदारियों (?) से करो.
    बुधी पर पड़े इस परदे का कारण अपनी संकृति पर अनास्था और पश्चिमी विकृति पर आस्था है. उसे बदलना होगा, तभी हालात बदलेंगे. बरहाल सही समस्या पर लेखनी उठाने के लिए फिरदोस जी का अभिनन्दन.

  2. मदरसों मैं हो रहे शोषण पर आपका क्या ख्याल है…

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