चीन और पाकिस्तान की भारतीय सीमा पर नापाक हरकतें

china and pakistanडा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

कुछ दिन पहले तक चीन के सैनिक लद्दाख में घुसपैठ कर रहे थे और अब कुछ दिनों से पाकिस्तान भारतीय सीमा पर भयंकर गोलीबारी कर रहा है , जिससे कई नागरिकों की मृत्यु हो गई है और अनेकों घायल हो गये हैं । गोलीबारी इतनी भयंकर और सतत है कि सीमा समीप को गाँवों के लोगों ने पलायन करना शुरु कर दिया है । इसी प्रकार कुछ दिन पहले तक चीन के सैनिक भी भारतीय सीमा का अतिक्रमण कर लद्दाख के भीतर तक घुस आये थे । चीन और पाकिस्तान की इस हरकत की व्याख्या मीडिया में विशेषज्ञों द्वारा दो प्रकार से की जा रही है । एक वही परम्परागत व्याख्या है कि पाकिस्तान में सिविल सरकार का सेना पर नियंत्रण नहीं है और सेना के उग्रवादी व आतंक समर्थक तत्व भारत-पाक सम्बंधों को पटरी से उतारने के लिये यह हरकत करते हैं । भाव कुछ इस प्रकार का रहता है कि भारत सरकार को इस प्रकार की हरकत से उत्तेजित नहीं होना चाहिये । बल्कि इसके विपरीत धैर्य धारण कर वहाँ की सिविल सरकार की सहायता करनी चाहिये । पाक की हरकतों के प्रति भारत का अनेक साल से यह रवैया देखते हुये , इस बार चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बीजिंग में चीन की सेना को सम्बोधित करते हुये यह कह कि सेना को सिविल सरकार के आदेशों को मानना चाहिये । दिल्ली में लाल बुझक्कडों ने क़यास लगाने शुरु कर दिये कि शायद लद्दाख में चीन के सैनिकों की घुसपैठ के पीछे भी चीन की सरकार का हाथ नहीं है । लेकिन चीन और पाकिस्तान के दुर्भाग्य से दिल्ली में अब इन तथाकथित विशेषज्ञों के इन निष्कर्षों को ख़रीदने वाला कोई नहीं है । इस के विपरीत जो सवाल पूछा जा रहा है कि भारत में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार स्थापित हो जाने के बाद अचानक ही सीमा पर चीन और पाकिस्तान की गतिविधियाँ इस प्रकार से क्यों बढ़ गईं हैं ? इसमें तो कोई शक नहीं कि पाकिस्तान और चीन समेत अमेरिका-एंगलो धुरी भारत में भारतीय जनता पार्टी की सरकार स्थापित हो जाने के पक्ष में नहीं थी । अमेरिका तो नरेन्द्र मोदी के बारे में अन्तर्राष्ट्रीय रपटें प्रसारित कर उसकी अग्रगामी यात्रा को रोकने का सक्रिय प्रयास ही नहीं कर रहा था बल्कि उन्हें वीज़ा देने से इन्कार कर भारत के मुसलमानों को बार बार चेतावनी भी दे रहा था कि नरेन्द्र मोदी के सरकार बन जाने से उनके लिये विपरीत परिणाम हो सकते हैं । चीन को भी भारत में साँझा सरकारें ही अनुकूल पड़ती थीं , जो चीन के प्रति के.एम .पण्णिकर युग की नीति ही अपनाए रहे । लेकिन भारत की जनता ने साँझा सरकारों की नीतिगत दुर्बलताओं को देखते हुये तीस साल बाद , भारतीय जनता पार्टी को अपने ही बलबूते सरकार बनाने का जनादेश दिया ।
दरअसल भारतीय जनता पार्टी के बारे में आम जन के मन में विश्वास है कि वह चीन और पाकिस्तान द्वारा समय समय पर भारत को किसी न किसी रुप में धमकाने के मामले में नर्म रुख़ अख़्तियार नहीं करेगी । सोनिया गान्धी की सरकार लम्बे अरसे से ऐसा करती आ रही है , जिससे आम भारतीय अपने आप को अपमानित महसूस करता है । अब यदि किसी तरीक़े से यह सिद्ध किया जा सके कि नरेन्द्र मोदी भी चीन और पाकिस्तान की ज़्यादतियों को रोक नहीं सकते तो ज़ाहिर हाँ भारतीय जनता पार्टी समेत नरेन्द्र मोदी की छवि विखंडित होगी और उनके शासन को लेकर जनमानस के मन में निराशा उत्पन्न होगी । उस निराशा के वातावरण में हो सकता है भारतीय जनता पार्टी के प्रति लोगों का मोह भंग हो जाये और उसका लाभ वही लोग उठायें जिन की सरकार चीन व अमेरिका के अनुकूल है । कहीं ऐसा तो नहीं है कि चीन व पाकिस्तान की सेना की भारत की सीमा पर की जा रही हरकतें विदेशी ताक़तों की उस रणनीति का हिस्सा ही हों , जिसके तहत वे किसी भी तरीक़े से मोदी सरकार के प्रति जनता के मन का भाव बदलना चाहती हों ? सीमा पर हो रही हलचल पर इस दृष्टिकोण से विचार किया जाना भी बहुत जरुरी है । ख़ास कर उस समय जब राहुल गान्धी जैसा व्यक्ति भी शरे आम कहने लगे कि पाकिस्तान तो सीमा पर लोगों को मार रहा है , मोदी चुपचाप क्यों बैठे हैं , जाकर रोकते क्यों नहीं । भाव कुछ ऐसा है कि हमें तो वोटों से हरा दिया , अब शुरु हुई है असली लडाई । अब यह नया पट्ठा मैदान में उतरा है , इससे भिड़ कर दिखाओ तो मानें । राहुल गान्धी इस लड़ाई में किसके साथ हैं ? आश्चर्य है कि विदेशी हमलेनुमा स्थिति में भी , कल तक राज्य कर रही पार्टी का उपाध्यक्ष इस प्रकार का बचकाना व्यवहार कर रहा है । जब पाकिस्तान हिन्दुस्तान के नागरिकों को मार रहा हो तब तो सोनिया कांग्रेस को देश के स्वर में स्वर मिला कर बोलना चाहिये । या कम से कम इसे घरेलू राजनीति का मुद्दा तो नहीं बनाना चाहिये ।
लेकिन यदि सचमुच चीन-पाक की इन हरकतों के पीछे की रणनीति मोदी के प्रति भारत के आम जनमानस में निराशा का भाव उत्पन्न करना ही रही हो तब भी उनकी यह रणनीति विफल होती ही दिखाई देती है । क्योंकि मोदी सरकार का प्रत्युत्तर निर्बलता वाला नहीं रहा बल्कि जैसे को तैसा के भाव वाला ही रहा । उन लोगों को भी , जो पूछ रहे हैं कि अब मोदी चुप क्यों हैं , मोदी ने करारा उत्तर दे दिया है । उन्होंने कहा ऐसी स्थिति में बोला नहीं जाता बल्कि जबाव दिया जाता है । गोली का जबाव गोली से दिया जाता है और वह भारत की सेना के जवान दे रहे हैं । दरअसल कश्मीर घाटी में बाढ़ के रुप में आई विपदा के दिनों में आतंकवादी गिरोहों के व्यवहार से कश्मीर घाटी की आम जनता को बहुत निराशा हुई है । जब सेना के ज़बान कश्मीरियों को बचाने के लिये अपनी जान जोखिम में डाल रहे थे , उस समय पाकिस्तान का गुणगान करने वाले आतंकी संगठन अपने घरों या आश्रय स्थलों में छिपे बैठे थे । उन्हें अपनी जान ही प्यारी थी , घाटी के अवाम के जान और माल की इन्हें कोई चिन्ता न थी । उन आतंकी गिरोहों का मनोबल बनाये रखने के लिये भी पाकिस्तान के लिये सीमा पर हलचल करना लाज़िमी हो गया था । यदि पाकिस्तान की इस कार्यवाही से सचमुच घाटी के आतंकियों में आशा जगती है तो समझ लीजिए कि उसी अनुपात में देश की बाक़ी जनता के मन में मोदी को लेकर उपजे हुये विश्वास और आशा में कमी आ जायेगी । यह साधारण मनोवैज्ञानिक पाकिस्तान की सरकार समझती ही होगा । इस पृष्ठभूमि में पाकिस्तान द्वारा भारतीय सीमा पर की जा रही हरकतों को समझना ज़्यादा आसान हो जायेगा । लेकिन केवल समझ मात्र लेने से काम नहीं चलेगा क्योंकि उसका उत्तर भी तलाशना होगा । ऐसा उत्तर जो सीमा पर शत्रु देश को दिया जा सके और देश के भीतर उन लोगों को जो शत्रु द्वारा किये जा रहे आक्रमण को भी अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेंकने के लिये हथियार के रुप इस्तेमाल करना चाहते हैं ।

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