चीन का मुखौटा है पंचशील

-प्रमोद भार्गव-
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जिस वक्त पंचशील की साठवीं वर्षगांठ चीन में समारोहपूर्वक मनाई जा रही थी, भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी चीन में अतिथि के तौर पर अमंत्रित थे, ठीक उसी समय पंचशील की मूल अवधारणा को ठेंगा दिखाते हुए चीन ने एक ऐसा नक्शा जारी किया, जिसमें अरूणाचल प्रदेश और कश्मीर के एक बड़े भाग को अपना हिस्सा बताया। इसी समय पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में रेल लाइन बिछाने की तैयारी शुरू कर दी। और लद्दाख की पैन्गोंग झील में चीन सैनिकों ने भारतीय सीमा में घुसने की कोशिश की। यह अलग बात है कि भारतीय सैनिकों द्वारा आखें दिखाने से वे पीछे हट गए। इन हरकतों से साफ है कि चीन की नीयत में खोट है। उससे सवधान रहने की जरूरत है। लेकिन यह हैरानी की बात है कि इन हरकतों पर न तो बींजिंग में उपस्थित रहे उपराष्ट्रपति ने चीन से कोई जबाव तलाब किया और न ही केंद्र की उस भाजपा सरकार ने विरोध दर्ज कराया जो मजबूत विदेश नीति का विपक्ष में रहते हुए दंभ भरती रही है।

पंचशील मसलन शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए ऐसे पांच सिद्धांतों पर सहमति जिसमें शामिल देश अमल के लिए वचनबद्ध हैं। पंचशील की शुरूआत पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाउ एनलाई ने 28 जून 1954 में की थी। बाद में म्यांमार ने भी इन सिद्धातों को स्वीकार लिया था। ये पांच सिद्धांत थे, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का परस्पर सम्मान करना, परस्पर रूप से आक्रामक नहीं होना, एक दूसरे के आंतरिक मामलों ने हस्तक्षेप नहीं करना और परस्पर लाभ एवं शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के अवसर बनाए रखना। लेकिन चीन परस्पर लाभ के सिद्धातों को छोड़ सब सिद्धातों को नकारता रहा है। लाभ में भी उसकी सीमाएं भारत में अपने उत्पाद बेचकर आर्थिक हित साधना है।

चीन सबसे ज्यादा उस सिद्धांत को चुनौती दे रहा है, जो भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता से जुड़ा है। इस चुनौती में उसकी आक्रामकता भी झलकती है। चीन ने अपने देश का जो नया नक्षा जारी किया है, उसमें अरूणाचल, अक्साई चिन और काराकोरम को अपना हिस्सा बताया है। हालांकि चीन की यह हरकत कोई नहीं बात नहीं है, वह अपनी ऑनलाइन मानचित्र सेवा में यही दर्शाता रहा है। विश्व मानचित्र खंड में इसे चीन की मंदारिन भाशा में दर्शाते हुए अरूणाचल को दक्षिणी तिब्बत का भाग बताया है। तिब्बत पर चीन का निरकुंश कब्जा पहले से ही है। इसी करण वह अरूणाचलवासियों को चीनी नागरिक मानता है। गोया चीन अरूणाचल के लोगों को नत्थी बीजा देने का हठ जारी रखे हुए है। नत्थी वीजा देने के कारण व्यक्ति की चीन-यात्रा भारतीय पासपोर्ट पर दर्ज नहीं की जाती। इसके बजाय, एक सादा कागज के प्रारूप पर जानकारी दर्ज करके, उसे पारपत्र के साथ नत्थी कर दिया जाता है। भारत इस मनमानी पर कई मर्तबा ऐतराज जता चुका है, लेकिन चीन के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती।

ताजा जानकारी के मुताबिक चीन ने पीओके से होते हुए दुर्गम रेललाइन बिछाने का काम शुरू कर दिया है। जबकि पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। यह रेललाइन चीन के सीमावर्ती प्रांत शिंजियांग के कशगर से पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक जाएगी। इस बंदरगाह के निर्माण का ठेका भी चीन के पास है। यह खाड़ी देशों से आने वाले तेल टैंकरों के मुख्य मार्ग पर स्थित है। यह रेललाइन पामीर के पठार और कराकोरम पहाड़ियों से होते हुए पाकिस्तान पहुंचेगी। इसकी लंबाई करीब 1800 किलोमीटर है। यह रेल इस्लामबाद और कराची होकर भी गुजरेगी। इस क्षेत्र में सड़क बनाने के बाद रेल मार्ग विकसित करना चीन की एक नई ऐसी कूटनीतिक चाल है, जो भारत को पराजय के भाव जैसे षूल की तरह चुभने वाली है।
दरअसल पाकिस्तान ने 1963 में पीओके का 5180 वर्ग किमी क्षेत्र चीन को भेंट कर दिया था। तब से चीन पाक का मददगार है। चीन ने इस क्षेत्र में कुछ दिनों के भीतर ही 80 हजार डॉलर की पूंजी निवेश किया है। ये गतिविधियां सामरिक दृष्टि से चीन के लिए हितकारी हैं। यहां से वह अरब सागर पहुंचने की जुगाड़ में है। इसी क्षेत्र में चीन से सीधे इस्लामाबाद पहुंचने के लिए कराकोरम सड़क मार्ग भी बना लिया है। इस दखल के बाद ही चीन पीओके क्षेत्र को पाक का हिस्सा मानने लगा है। यही नहीं चीन ने भारत की सीमा तक सड़क बनाने की राह में आ रही आखिरी बाधा पर भी कामयाबी हासिल कर ली है। चीन ने समुद्र तल से 3750 मीटर की उंचाई पर बर्फ से ढंके गैलोंग्ला पर्वत पर 3.3 किमी लंबी सुरंग बनाकर इस चुनौती पर विजय प्राप्त कर ली है। यह सड़क सामरिक नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण है। क्योंकि तिब्बत में मोशुओ काउंटी अरूणाचल का अंतिम छोर है। अभी तक यहां कोई सड़क मार्ग नहीं था। अब तो इसी के समानातंर पीओके होती हुई रेल पटरी बिछाने का सिलसिला षुरू हो रहा है। इसे अंतरराष्ट्रीय रेल लिंक परियोजना के तहत शुरू किया जा रहा है।

अंतरराष्ट्रीय सड़क और रेल मार्ग विकसित करने के क्रम में चीन प्राचीन समुद्री सिल्क गलियारे को भी पुनर्जीवित करना चाहता है। यह मार्ग बांग्लादेश, चीन, भारत और म्यांमार के बीच आर्थिक गलियारे के रूप में तैयार होगा। जिससे एशिया समेत विश्व में आयात-निर्यात आसान हो जाए। पंचशील देशों की बैठक में यह प्रस्ताव चीनी राष्ट्रपति सी जिनपिंग ने पंचशील के उंचे आदर्शों और परस्पर सहयोग के लक्ष्य को मजबूत करने की दुष्टि से रखा है। इसे चीन ने ‘एक गलियारा, एक मार्ग‘, रूपरेखा के तहत प्रस्तुत किया है।

लेकिन चीन का अब तक का जो व्यवहार रहा है, वह पंचशील सिद्धांतों के विपरीत है। वह हमेशा अपने राष्ट्रीय हित और पड़ोसियों पर दादागिरी थोपने की मंशा पाले रहता है। जिससे उसकी कथनी और करनी का अंतर उजागर होता है। चीन के राष्ट्रपति, पड़ोसी देशों की सहमती से जब समुद्री मार्ग बनाने का प्रस्ताव रख रहे थे, तभी लेह से 168 किमी दूर पूर्वी लद्दाख में पैन्गोंग झील में चीनी सैनिक घुसपैठ को अंजाम दे रहे थे। इस झील का 45 किमी तट भारतीय सीमा में है और 90 किमी तट चीन में है। हालांकि झील में गश्त कर रहीं, भारतीय सैनिको की अत्याधुनिक अस्त्र शास्त्रों से लैस नौकाओं ने चीनियों को वापस जाने को विवश कर दिया था। लेकिन इन हरकतों से मंशा पर शंका तो पैदा होती ही है। इस इलाके में चीन ने बीते साल मई में दोलता बैग ओल्डी में 3 सप्ताह डेरा डालकर रखा था। इस घटना के बाद घुसपैठ की घटनाओं में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है।

दरअसल, पंचशील जैसी लोकतंत्रिक अवधारणाएं चीन के लिए उस सिंह की तरह हैं, जो गाय का मुखौटा ओढ़कर धूर्तता से दूसरे पाणियों का शिकार करते हैं। चेकोस्लोवाकिया, तिब्बत और नेपाल को ऐसे ही मुखौटे लगाकर चीन जैसे साम्यवादी देशों ने बरबाद किया है। पाक आतंकियों को भी चीन, भारत के खिलाफ छायायुद्ध के लिए उकसाता है। दरअसल, चीन के साथ दोहरी मुश्किल है, वह बहुध्रुवीय वैश्विक मंच पर तो अमेरिका से लोहा लेना चाहता है। किंतु एशिया महाद्वीप में चीन एक ध्रुवीय वर्चस्व का पक्षधर है। इसलिए जापान और भारत को जब-तब उकसाने की हरकतें करता रहता है। उसकी ताजा हरकतें शायद इसलिए भी सामने आई हों, जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूझान का अंदाजा लगाया जा सके ? इस परिप्रेक्ष्य में मोदी की गुम हुई दहाड़ हैरानी में डालने वाली है। विदेश सचिव सुजाता सिंह का भी यह कहना है कि ‘नक्शे में परिवार्तित स्थिति दिखाने से जमीनी हकीकत नहीं बदल जाती‘ इससे साफ होता है कि मोदी फिलहाल विवादास्पद मुद्दों पर टकराने के मूड में नहीं हैं। लेकिन मनस्थिति का यही सथायी भाव रहता है तो मनमोहन और मोदी कार्यषेली में अंतर क्या शेष रह जाता है ? मोदी से तो लोग कठोर रूप अपनाने की इच्छा रखे हुए हैं। क्या आम चुनाव के दौरान चुनावी सभाओं में मोदी महज गीदड़ भवकी देने का काम कर रहे थे ?

1 COMMENT

  1. हम ही हैं जो पंचशील पंचशील को रोते हैं , उसकी समझोता तिथि पर साथ बैठ जश्न मानते हैं चीन उस दिन उसकी धज्जियाँ उड़ाता है चीन ने तो जब समझोता किया था तब से यही उसका कयास रहा है कि यह एक कमजोर राष्ट्र की स्वरक्षा हेतु बनाई जाने वाली दिवार है जिसे वह (चीन ) अपना लाभ उठाने के लिए स्वीकार कर रहा है , भारत कभी भी न समझा कि मित्रता चीन के डी एन ए में ही नहीं है और हम उस समझोते को अभी भी सर पर ढो रहे हैं , अभी एक बार फिर धोखा खाना शेष है

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