चीनी ड्रेगन फिर जागा

-मृत्युंजय दीक्षित

जी हां, चीनी ड्रेगन एक बार फिर जाग उठा है। अजगर धीरे-धीरे हीं लेकिन काफी खतरनाक ढंग से भारत के खिलाफ एक के बाद एक साजिशें रच रहा है। वह अपनी ताकत लगातार बढ़ा रहा है। किसी न किसी बहाने लेकिन हमारे राजनैतिक पुरोधाओं, रणनीतिकारों ने पता नहीं क्यों चुप्पी साध ली है? वे चीन को उसी की भाषा में आक्रामक और उपाक्रामक उत्तर नहीं दे पा रहे हैं। यही कारण है कि चीन हमारी चुप्पी को बेहद कमजोरी मान बैठा है और वह हमारे ऊपर वार पर वार करता रहा है। चीन की विस्तारवादी सामरिक रणनीति जारी है। वह भारत के सभी पड़ोसी देशों में अपनी पहुंच कायम कर भारत विरोध को मुखर कर चुका है। चाहे वह नेपाल हो या म्यांमार व श्रीलंका जैसे छोटे देश। वर्तमान में जो समाचार प्राप्त हुए हैं। वे बेहद चौंकाने वाले हैं। अमेरिकी पत्र ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ के अनुसार, गुलाम कश्मीर में सामरिक रूप से महत्वपूर्ण गिलगित बाल्टिस्तान क्षेत्र पर चीन का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है क्याेंकि पाकिस्तान उसे उसका वास्ताविक नियंत्रण सौंप रहा है। अर्थात् अब गुलाम कश्मीर पर दावे के साथ चीन भी सामने होगा। इस क्षेत्र में दो ओर बातें बेहद महत्वपूर्ण घटित हुई हैं। पहली, वहां पाक शासन के विरुध्द जबर्दस्त विद्रोह सुलग रहा है और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के 7000 से 11000 हजार सैनिकों की वहां घुसपैठ हो गई है। यह क्षेत्र विश्व के संपर्क से कटा हुआ है। ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ का दावा है कि चीन पाकिस्तान के रास्ते सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाना चाहता है। इसी उद्देश्य से चीन हाई स्पीड रेल और एक सड़क संपर्क बनाने में जुटा हुआ है। इन्हीं रास्तों से होकर बीजिंग पूर्वी चीन से ब्लूचिस्तान के ग्वार, पासनी और ओरमास के चीन द्वारा नवनिर्मित पाकिस्तानी नौसेना अड्डों पर जरूरी सामान और ऑयल टैंकर पहुंचाएगा। ये अड्डे अंडमान के खाड़ी के पूर्व में स्थित हैं और इन मार्गों के बनते ही मात्र 48 घंटों में पूर्व चीन से वहां पहुंचा जा सकेगा। ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ का कहना है कि गिलगित तथा बाल्टिस्तान में प्रवेश कर रहे पी. एल. ए. सैनिकों में से कई रेलमार्ग पर काम करने वाले हैं। कुछ चीन के झिनसियांग प्रांत को पाकिस्तान से जोड़ने वाले काराकोरम हाइवे के विस्तार में जुटे हैं। अन्य बांधों, एक्सप्रेस-वे और अन्य परियोजनाओं पर भी काम कर रहे हैं। इन गुप्त स्थानों पर बन रही 22 सुरंगों पर रहस्य बना हुआ है क्योंकि वहां पर पाकिस्तानियों को भी जाने की अनुमति नही हैं। संभवतः इन सुरंगों का प्रयोग ईरान से चीन तक प्रस्तावित गैस पाईप के लिए ही होगी। पत्र का कहना है कि इस क्षेत्र में जो कुछ भी हो रहा है वह अमेरिका के लिए बेहद चिंता का विषय है। चीन को अंडमान की खाड़ी तक पहुंचने के लिए इतनी ईंट और सरिया देने से स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान अमेरिका का मित्र नहीं है। ज्ञातव्य है कि गिलगित और बाल्टिस्तान में लोकतंत्र और क्षेत्रीय स्वायत्तता के लिए चलने वाले आंदोलन को बड़ी ही निर्ममता से कुचला गया। इससे पाकिस्तानी सेना ने जेहादी गुटों के साथ मिलकर स्थानीय शिक्षा मुसलमानों को सुनियोजित तरीके से आतंकित किया। सामरिक दृष्टि से चीन-पाक का यह नापाक गठजोड़ अमेरिकी हितों को तो प्रभावित कर ही रहा है, साथ ही भारत के लिए एक बहुत बड़े खतरे की घंटी भी है। अब जब कभी गुलाम कश्मीर को लेकर भारत पाक के मध्य संघर्ष की स्थिति बनती है तो भारतीय सेनाओं को चीन के साथ भी प्रत्यक्ष रूप से दो-दो हाथ करने पड़ेंगे। इतना ही नहीं, चीन भारत को और भी कई प्रकार से उकसाने के लगातार प्रयास कर रहा है। अभी तक वह अरुणाचल प्रदेश को ही विवादित बताता था लेकिन अब वह जम्मू-कश्मीर क्षेत्र को भी संवेदनशील व विवादित बनाने में लग गया है। गत दिनों जम्मू-कश्मीर को संवेदनशील क्षेत्र बताते हुए उसने उत्तरी भारत के सैन्य प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल जी. एस. जायसवाल को चीन यात्रा का वीजा देने से इनकार कर दिया। उधर बहुत दिनों बाद चीन की इस हरकत पर भारत ने चीन के प्रति कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उक्त घटनाक्रम से व्यथित होकर विदेश मंत्रालय ने चीनी राजदूत सांग यांग को बुलाकर कड़ी आपत्ति दर्ज की और इतना ही नही भारत सरकार ने भी विवाद सुलझने तक चीन से सैन्य संवाद स्थागित कर दिया है। साथ ही भारत सरकार ने चीन के इस कदम को अस्वीकार्य बताया। इस घटनाक्रम से यह साफ हो रहा है कि चीन अपने मित्र पाकिस्तान के इशारे पर जम्मू-कश्मीर को विवादित क्षेत्र मानकर भारत को परेशान कर रहा है। कभी वह जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को अलग से नत्थी कर वीजा देता है जिसका भारत लगातार विरोध कर रहा है। चीन पाक अधिकृत कश्मीर में विकास परियोजनाओं में भी सक्रिय भागीदारी निभा रहा है। अभी तक चीन की भारत विरोधी गतिविधियां अरुणाचल प्रदेश तक ही सीमित थी, लेकिन सुनियोजित साजिशों के अंतर्गत उनका विस्तार भी हुआ है। चीनी गतिविधियों से भारत के प्रति दुर्भावना स्पष्ट रूप से प्रकट होती है। अमेरिकी रक्षा मुख्यालय पेंटागन ने यह खुलासा भी किया है कि चीन ने भारत की सीमा के समीप नई उन्नत लंबी दूरी तक मार करने वाली सी.एस.एस. 5 मिसाइलें तैनात की हैं। वह शीघ्र ही इस क्षेत्र में वायुसेना भेजने की आपात योजना भी तैयार कर रहा है। पेंटागन का मानना है कि चीन ने अंतरिक्ष में हमला करनेवाली नई मिसाइलें विकसित कर ली हैं। रिपोर्ट के अनुसार चीन और भारत की 4,057 कि.मी. लंबी सीमा पर तनाव बना हुआ है। उधर चीन के एक सरकारी पोर्टल ने पूरे देश में सर्वे किया है कि क्या चीन भारत पर हमला कर सकता है? इस पर चीन की 60 प्रतिशत जनता ने समर्थन किया है, चूंकि चीन एक ऐसा देश है जहां मीडिया स्वतंत्र नही हैं इसलिए चीन का सरकारी मीडिया वहां के आम जनमानस में भारत विरोधी भावना को भी फैलाने का काम कर रहा है। चीनी गतिविधियां निश्चय ही बेहद खतरनाक हैं, लेकिन हमने शांत तटस्थ भाव अपना लिया है। चीन हमको सामरिक व रणनीतिक दृष्टि से चारों दिशाओं से घेरता जा रहा है। लेकिन हम क्या कर रहे हैं? हम तो पड़ोसी देशों में अपनी पहुंच भी नहीं बना पा रहे हैं। एक समय था जब नेपाल में भारत की तूती बोलती थी लेकिन चीन-पाक के नापाक गठजोड़ ने वहां से भारत को लगभग खदेड़ सा दिया है। इन परिस्थितियों में सबसे बड़ी चिंता का विषय यह है कि इन घटनाओं की जानकारी हमारी मीडिया को विदेशी मीडिया से प्राप्त हो रही है। संसद में सतपाल महाशय की अध्यक्षता वाली 32 सदस्यीय रक्षा संबंधी स्थायी संसदीय समिति की रिपोर्ट में सरकार को जमकर फटकार लगाई गई है। संसद में पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि पड़ोसी देशों की ओर से हमारी सीमाओं पर चलाई जा रही निर्माण गतिविधियों पर नजर रखना और आंकड़ों का रिकॉर्ड रखना बेहद जरूरी है। अब एक बात जग जाहिर हो चुकी है कि चीन पाक के बीच भारत विरोधी गठजोड़ बन चुका है तथा अब इस प्रकार की परिस्थितियां उत्पन्न हो रही है कि भारत के साथ तनाव बनाए रखने से चीन को कोई नुक सान होगा। वह भारत को दबाव में रखने की रणनीति अपना रहा है। अतः हमें भी चीन पर आक्रामक दबाव बनाने के लिए कुछ तो करना हीं पड़ेगा। अभी तो भारतीय राजनीतिज्ञ पता नहीं कर पा रहे हैं, यदि वे इसी प्रकार तटस्थ रहते हैं तो भविष्य के युध्द में भारत को नुकसान पहुँचेगा और इतिहास इन्हें कभी माफ नहीं करेगा।

* लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

3 COMMENTS

  1. धन्यवाद श्री दीक्षित जी. वाकई पानी सर तक पहुँच गया है.

    दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक कर पिता है. १९६२ की चीन से बेहद शर्मनाक हार से भी हमने कुछ नहीं सीखा है. राष्ट्र सिर्फ सेना से ही मजबूत नहीं होता है. अन्दर और बहार दोनों तरफ से मजबूती जरुरी है. सूचना तंत्र तो मजबूत है किन्तु हमारे देश में लाल फीताशाही, भ्रष्टाचार का खत्म करना बहुत जरुरी है.

    १९६२ की हमारी हार सेना की कमजोरी से नहीं बल्कि राजनितिक, कुटनीतिक कमजोरी के कारन थी. युद्ध के समय सरकार भले ही भंग न हो किन्तु नीतिगत निर्णय तीनो सेनाधयाक्शो द्वारा संयुक्त रूप से ही चैये, क्योंकि वे पढ़े लिखे होते है, नेताओ की तरह बन्दर बाँट तो नहीं करेंगे.

    देश के हर स्कूल में स्काउट गाइड, एन.सी.सी., एन.एस.एस. के द्वारा स्वाभिमान सिक्षा देनी चैये. हर हिन्दुस्तानी के अन्दर यह भावना पैदा करनी चाइये की इन चार फूटे चीनियो को इस मार मार कर डेड़ फूटे बने देंगे अगर उसने इस बार हम पर हमला करने का दुस्शासश किया.

  2. =कोई रण नीति है?== कि अहिंसा के बल (दुर्बल) लडना चाहते हो?==
    क्या हमारा शासन जमिन में अपना सर गाडके “शीर्षासन” कर रहा है? अगर ऐसा ही है, तो हमें “शवासन” करने का समय आएगा।
    (१) हम क्यों कैलाश मान सरोवर पर अधिकार नहीं जताते?
    (२) ४०,००० वर्ग खोई हुयी भूमि पर भी अधिकार जताएं।
    (३) और हम क्यों हमारी अपनी सीमावर्ती भूमिपर सेनाके आवागमनके लिए ६३ साल रास्ते बनाए बिना सोए हुए है?
    (४) हिमालय दुर्लंघ्य था, जब भू सेनाएं लडा करती थी। अब हवाइ जहाजोंसे, मिसाइलोंसे, रॉकेटों से, अण्वस्त्रोंसे यह नाटे, नकटें, चींटिकी भांति सीमापर घुसेंगे। दिवालपर युद्ध लिखा हुआ, पढ लो। गलत प्रमाणित होना चाहता हूं। तैय्यारी रखने में हानि नहीं।

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