चित्रा, विशाखा, फाल्गुनी….. नक्षत्रों का शब्द गुंजन

11
331

teaherॐ–नक्षत्रों की अवधारणा भारत की देन

ॐ –विश्व-व्यापी अंतरिक्षी मानसिकता

ॐ –नक्षत्रों के काव्यमय सुंदर नाम

 

(एक)गुजराती विश्वकोश

गुजराती विश्वकोश कहता है, कि,”नक्षत्रों की अवधारणा भारत छोडकर किसी अन्य देश में नहीं थी। यह, अवधारणा हमारे पुरखों की अंतरिक्षी वैचारिक उडान की परिचायक है, नक्षत्रों का नामकरण भी पुरखों की कवि कल्पना का और सौंदर्य-दृष्टि का प्रमाण है।महीनों के नामकरण में, उनकी अंतरिक्ष-लक्ष्यी मानसिकता का आभास मिलता है।

(दो) अंतरिक्षी दृष्टि, या वैचारिक उडान?

तनिक अनुमान कीजिए; कि, समस्या क्या थी? आप क्या करते यदि उनकी जगह होते ?भारी अचरज है मुझे, कि पुरखों को, कहाँ, तो बोले इस धरती पर काल गणना के लिए, महीनों का नाम-करण करना था। तो उन्हों ने क्या किया? कोई सुझाव देता; कि, इस में कौनसी बडी समस्या थी ?रख देते ऐसे महीनों के नाम, किसी देवी देवता के नामपर, या किसी नेता के नामपर,जैसे आजकल गलियों के नाम दिए जाते हैं।

(तीन)विश्व-व्यापी अंतरिक्षी मानसिकता।

पर जिस, विश्व-व्यापी अंतरिक्षी मानसिकता का परिचय हमारे पुरखों ने बार बार दिया, उस पर जब, सोचता हूँ, तो विभोर हो उठता हूँ। ऐसी सर्वग्राही विशाल दृष्टि किस दिव्य प्रेरणा से ऊर्जा प्राप्त करती होगी?

जब भोर,सबेरे जग ही रहा था, तो मस्तिष्क में ऐसे ही विचार मँडरा रहे थे। और जैसे जैसे सोचता था, पँखुडियाँ खुल रही थी, सौंदर्य की छटाएँ बिखेर रही थी, जैसे किसी फूल की सुरभी मँडराती है, फैलती है। हमारे पुरखों ने इस सूर्योदय के पूर्व के समय (दो दण्ड) को ब्राह्म-मुहूर्त क्यों कहा होगा, यह भी समझ में आ रहा था।

पर एक वैज्ञानिक समस्या को सुलझाने में हमारे पुरखों ने जो विशाल अंतरिक्षी उडान का परिचय दिया, उसे जानने पर मैं दंग रह गया। और फिर ऐसे, वैज्ञानिक विषय में भी कैसा काव्यमय शब्द गुञ्जन? यह करने की क्षमता केवल देववाणी संस्कृत में ही हो सकती है। आलेख को ध्यान से पढें, आप मुझसे सहमत होंगे, ऐसी आशा करता हूँ। ऐसे आलेख को क्या नाम दिया जाए?

(चार) काव्यमय शब्द-गुंजन ?

क्या नाम दूँ, इस आलेख को। शब्द गुंजन, पुरखों की ब्रह्माण्डीय चिंतन वृत्ति, उनकी आकाशी छल्लांग, या उनकी अंतरिक्षी दृष्टि? वास्तव में इस आलेख को, इसमें से कोई भी नाम दिया जा सकता है। पर मुझे शब्द गुञ्जन ही जचता है। चित्रा, विशाखा, फल्गुनी जैसे नाम देनेवालों की काव्यप्रतिभा के विषय में मुझे कोई संदेह नहीं है।

(पाँच) नक्षत्रों के काव्यमय मनोरंजक नाम

तनिक सारे नक्षत्रों के नाम भी यदि देख लें, तो आपको इसी बात की पुष्टि मिल जाएगी।कैसे कैसे काव्य मय नाम रखे गए हैं?

(१) अश्विनी,(२) भरणी, (३) कृत्तिका, (४) रोहिणी, (५) मृगशीर्ष (६) आर्द्रा, (७) पुनर्वसु (८) पुष्य, (९) अश्लेषा (१०) मघा, (११)पूर्वाफल्गुनी, (१२) उत्तराफल्गुनी, (१३)हस्त, (१४) चित्रा,(१५) स्वाति, (१६) विशाखा, (१७)अनुराधा, (१८) ज्येष्ठा,(१९) मूल, (२०) पूर्वाषाढा,(२१)उत्तराषाढा, (२२) श्रवण, (२३) घनिष्ठा, (२४) शततारा, (२५) पूर्वाभाद्रपदा,(२६) उत्तराभाद्रपदा, (२७) रेवती, और वास्तव में (२८) अभिजित नामक एक नक्षत्र और भी होता है।

इन नक्षत्रों के सुन्दर नामों का उपयोग भारतीय बाल बालिकाओं के नामकरण के लिए होना भी, इसी सच्चाई का प्रमाण ही है।

विशेषतः अश्विनी, कृत्तिका, रोहिणी, वसु, फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, घनिष्ठा, रेवती ऐसे बालाओं के नाम आपने सुने होंगे।और अश्विन, कार्तिक, श्रवण, अभिजित इत्यादि बालकों के नाम भी जानते होंगे।

ऐसे शुद्ध संस्कृत नक्षत्रों के नामों को और उनपर आधारित महीनों के नामों को पढता हूँ, तो, निम्नांकित द्रष्टा योगी अरविंद का कथन शत प्रतिशत सटीक लगता है।

(छः) योगी अरविंद :

“संस्कृत अकेली ही, उज्ज्वलाति-उज्ज्वल है, पूर्णाति-पूर्ण है, आश्चर्यकारक है, पर्याप्त है, अनुपम है, साहित्यिक है, मानव का अद्भुत आविष्कार है; साथ साथ गौरवदायिनी है, माधुर्य से छलकती भाषा है, लचिली है, बलवती है, असंदिग्ध रचना क्षमता वाली है,पूर्ण गुंजन युक्त उच्चारण वाली है, और सूक्ष्म भाव व्यक्त करने की क्षमता रखती है।”

 

क्या क्या विशेषणों का, प्रयोग, किया है महर्षि नें?माधुर्य से छलकती, और पूर्ण गुंजन युक्त? कह लेने दीजिए मुझे, कोई माने या न माने, पर मैं मानता हूँ, कि सारे विश्व में आज तक ऐसी कोई और भाषा मुझे नहीं मिली।

दंभी उदारता, ओढकर अपने मस्तिष्क को खुला छोडना नहीं चाहता कि संसार फिर उसमें कचरा कूडा फेंक कर दूषित कर दे। हमारे मस्तिष्कों को बहुत दूषित और भ्रमित करके चला गया है, अंग्रेज़।

मूढः पर प्रत्ययनेय बुद्धिः, सारे, भारत में भरे पडे हैं। एक ढूंढो हज़ार मिलेंगे।

 

(सात) नक्षत्र’ शब्द की व्युत्पत्ति।

’नक्षत्र’ शब्द को तोड कर देखिए ।यह “न”+”क्षत्र” = “नक्षत्र” ऐसा जुडा हुआ संयुक्त शब्द है। “न” का अर्थ (नहीं) + क्षत्र का अर्थ “(नाश हो ऐसा) तो, नक्षत्र शब्द का, अर्थ हुआ “जिसका नाश न हो” ऐसा। वाह ! वाह ! क्या बात है? अब सोचिए (१) हमारे पुरखों को पता था, कि, इन तारकपुंजों का जिन्हें नक्षत्र कहा जाता है, नाश नहीं होता। वास्तव में यह विधान (Relative) सापेक्ष है, फिर भी सत्य है।

(आँठ)भगवान कृष्ण

मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकर: ।।१०-३५।(गीता)

भगवान कृष्ण -गीता में कहते हैं, कि, महीनों में मैं मार्गशीर्ष और ऋतुओं में बसन्त हूँ।

तो मार्गशीर्ष यह शब्द शुद्ध संस्कृत है। इसका संबंध कहीं लातिनी या ग्रीक से नहीं है। न तब लातिनी थी, न ग्रीक। कृष्ण जन्म ईसापूर्व कम से कम, ३२२८ में १८ जुलाई को ३२२८ खगोल गणित से प्रमाणित हुआ है। इन ग्रह-तारों की गति भी घडी की भाँति ही होती है। बार बार ग्रह उसी प्रकार की स्थिति पुनः पुनः आती रहती है। अंग्रेज़ी में इसे सायक्लिक कहते हैं, हिंदी में पुनरावर्ती या चक्रीय गति कहा जा सकता है।भगवद्गीता में इस शब्द का होना बतलाता है, कि महाभारत के पहले भी मार्गशीर्ष शब्द का प्रयोग रहा होगा। कहा जा सकता है, कि,महीनों के नाम उस के पहले भी, चलन में होने चाहिए।

अब मार्गशीर्ष शब्द मृग-शीर्ष से निकला हुआ है। मृग-शीर्ष का अर्थ होता है, मृग का शिर या हिरन का सिर।

तो मृग-शीर्ष: एक नक्षत्र है। पर वह, मृग की बडी आकृति का एक भाग है।

(नौ) मृग नक्षत्र

एक मृग (हिरन) नक्षत्र है, और इस नक्षत्र में कुल १३ ताराओं का पुंज है।मृग नक्षत्र में चार ताराओं का चतुष्कोण बनता है, जो मृग (हिरन)के चार पैर समझे जाते हैं। इन चार ताराओं के उत्तर में तीन धुंधले तारे हैं, जो (हिरन) मृग का सिर है। दक्षिण की ओर के दो पैरों के बीच, तीन ताराओं की पूंछ है।पेट में, व्याध(शिकारी) ने सरल रेखा में, मारा हुआ एक तीर है। इस तीर के पीछे प्रायः सीधी रेखामें एक चमकिला व्याध (शिकारी) का तारा है।इस नक्षत्र का सिर हिरन के सिर जैसा होने के कारण इसे मृग शीर्ष कहा गया।

 

(दस)मार्गशीर्ष

पूनम का चंद्र इस नक्षत्र से युक्त होने के कारण उस महीने का नाम मार्गशीर्ष हुआ।

बालकों को चित्र बनाते आपने देखा होगा। वें क्रमानुसार बिंदुओं को रेखा ओं से, जोड जोडकर देखते देखते चित्र उभर आता है, यह आपने अवश्य देखा होगा। हाथी, घोडा, हिरन, इत्यादि चित्र बालक ऐसे क्रमानुसार बिंदुओं को जोडकर बना लेते हैं। कुछ उसी प्रकार से तारा बिन्दुओं को जोडकर जो आकृतियाँ बनती हैं, उनके नामसे नक्षत्रों की पहचान होती है।

(ग्यारह) महीनों के नाम

पूनम की रात को चंद्र जिस नक्षत्र से युक्त हो, उस नक्षत्र के नाम से उस महीने का नाम रखा गया है।

चित्रा में चंद्र हो तो चैत्र, विशाखामें चंद्र हो तो वैशाख, ज्येष्ठा में चंद्र हो तो ज्येष्ठ, पूर्वाषाढा में चंद्र हो तो अषाढ, श्रवण में चंद्र हो तो श्रावण, पूर्वाभाद्रपद में चंद्र हो तो भाद्रपद, अश्विनी में चंद्र हो तो अश्विन ऐसे नाम दिए गए। कृत्तिका में चंद्र हो तो कार्तिक, मृगशीर्ष में चंद्र हो तो मार्गशीर्ष, पुष्य में चंद्र हो तो पौष,मघा में चंद्र हो तो माघ, पूर्वा फाल्गुनी में चंद्र हो तो फाल्गुन ऐसे बारह महीनों के नाम रखे गए हैं।

प्रत्येक माह में विशेष नक्षत्र संध्या के समय ऊगते हैं। और भोर में अस्त हुआ करते हैं।

(बारह) महीनों के नक्षत्र और आकृतियाँ:

चित्रा –मोती के समान, विशाखा –तोरण के समान, ज्येष्ठा -कुंडल के समान, पूर्वाषाढा – -हाथी के दाँत के समान, श्रवण —वामन के ३ चरण के समान, पूर्वाभाद्रपद -मंच के समान, अश्वनी — अश्वमुख के समान, कृत्तिका —छुरे के समान, मृगशिरा–हिरन सिर , पुष्य —वन के समान , मघा —भवन, पूर्व-फाल्गुनी -चारपाई के समान

 

—-ऐसे पुरखों का ऋण हम परम्परा टिका कर ही चुका सकते हैं।

 

Previous articleचक्रव्यूह
Next articleबारिश
डॉ. मधुसूदन
मधुसूदनजी तकनीकी (Engineering) में एम.एस. तथा पी.एच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त् की है, भारतीय अमेरिकी शोधकर्ता के रूप में मशहूर है, हिन्दी के प्रखर पुरस्कर्ता: संस्कृत, हिन्दी, मराठी, गुजराती के अभ्यासी, अनेक संस्थाओं से जुडे हुए। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति (अमरिका) आजीवन सदस्य हैं; वर्तमान में अमेरिका की प्रतिष्ठित संस्‍था UNIVERSITY OF MASSACHUSETTS (युनिवर्सीटी ऑफ मॅसाच्युसेटस, निर्माण अभियांत्रिकी), में प्रोफेसर हैं।

11 COMMENTS

  1. (1)
    Yah Alekh “Gaurav Bharati” Namak agami, pustak men Chhapega.
    (2)
    ye Shayad 2 Bhagome prakashit hogi.
    (3)
    Isake purv, “Shabd Bharati” namak Pustak, jo Shabdon ke mul ko lekar likhe gaye aalekhon ka Sangrah hai, atyant saphal hua hai.
    Chhapai ka sara vyay dataon ne kiya hai.
    Naam “Gaurav Bharati Bhag ek” aur “Gaurav Bharati Bhag do” rakhane ka vichar chal raha hai.

    mera Satkar bahut sthano par (A)Governor of Rhode Island,(2) U Mass Dartmouth,(3) Bharatiy vichar Munch(4) aur karib 3-4 baar KEY NOT SPEAKER ka samman prapt Hua hai. (5) an-ginat vyakhyano ke lie bhi bulaya Jata hun.
    paramatma ki kripa manata hun.
    Madhusudan Jhaveri.

  2. Madhusudanji,

    I am writing to commend you on this beautiful poetic article on Nakshatras. Indeed, nothing can be compared to the grandeur vision of our sages who were also poets at heart, who could listen to the cosmic rhythm of the galaxies and coin such beautiful and meaningful names for the stars.

    With Regards,

    Arun Naik

  3. प्रिय मित्र डॉ. भूदेव शर्मा, आदरणीय ह्वाइस एअर मार्शल विश्वमोहन तिवारी जी, सु श्री. शकुंतला जी, बहन रेखा सिंह जी, आदरणीय सत्त्यार्थि जी, पवन झा जी, एवं सुरेंद्रनाथ तिवारी जी (दूरभाष संदेश) सभी को सामुहिक धन्यवाद देता हूँ। आपने विशेष समय निकाल कर पढा, और टिप्पणी भी की।आभार।

  4. प्रिय शकुन्तला जी,
    नमस्कार
    आपने कितना मधुर सराहा है मधुसुदन् जी के लिख् को, इसे पधकर मेरा आनन्द् द्विगुणित हो गया।
    जैसा कि मैने लिखा है अब पाश्चात्य नाक्षत्र विज्ञानी भी मानने लगे हैं कि भारत नक्ष्त्र विज्ञान में अग्रणी था और् उनका ज्ञान कमसकम् ३००० ईसा पूर्व से प्रारंभ होता है।
    आशा है आप् स्वस्थ व सानंद हैं.
    विश्व मोहन तिवारी

  5. व्हाइस एअर मार्शल आदरणीय विश्वमोहन तिवारी जी की, टिप्पणी इ मेल से आयी थी, जो निम्नांकित है।–मधुसूदन।

    ===>”प्रिय मधुसूदन जी,
    एक प्रेरणादायक लेख के लिए धन्यवाद।
    गुजराती विश्वकोष ने सही लिखा है,और मैं उसका प्रमाण देना चाहता हूं।
    श्री धरमपाल जी की एक पुस्तक है ‘इंडियन साइंस एण्ड टेक्नालाजी इन द एटीन्थ सेंचुरी ‘..
    इस पुस्तक में पैतालीस पृष्ट का एक लेख है , ‘रिमार्क्स आन द एस्ट्रानामी आफ द ब्रहमिन्स ‘ .. इसके विद्वान लेखक जान प्लेफेयर, ऍफ़ आर एस ने विज्ञानसंगत प्रमाण देकर सिद्ध किया है की : (१) जिन अवलोकनों परा भारतीय खगोलशास्त्र आधारित है वे ईसा के ३० ० ० से अधिक वर्ष पुरानेहैं। (२ ) उन्हें रेखागणित, अंकगणित और खगोलशास्त्र के सिद्धान्तों का भी अच्छा ज्ञान था।”
    विश्व मोहन तिवारी

  6. Subject: Re: Recommended Article By m: चित्रा, विशाखा, फाल्गुनी….. नक्षत्रों का शब्द गुंजन-Thanks

    Dear Madhusudan bhai:

    Thanks for the message and the article. I read it twice to enjoy its beauty and the depth that you have particularly brought out.

    Such appreciations make us proud of our great heritage.

    Professor Bhu Dev Sharma,
    Former Prof. of Math, Clark Atlanta University, Atlanta, GA, USA
    Former (Founder) President, World Assn. for Vedic Studies (WAVES),
    http://www.umassd.edu/indic/waves
    Former President: Hindu Uni. of America, Orlando

  7. आदरणीय आचार्यवर
    आप के लेख पढ़ कर रोम रोम पुलकित हो उठता है .अधोगति को प्राप्त हो चुके हम भारतवासिओं को आपके लेख हमारे गौरवशाली अतीत से परिचित करा कर पुनर्जागरण की प्रेरणा देते हैं निश्चय ही ऐसे सर्वतोमुखी प्रतिभावान पूर्वजों के वंशज होना ही गौरवान्वित होने का पर्याप्त आधार है आप लिखते रहे देरसवेर हमारी वर्त्तमान पीढियां भी उसी विलक्षण प्रतिभा का आभास कराएंगी ऐसा मुझे विश्वास होने लगा है .
    शुभाकांक्षी
    सत्यार्थी

  8. शब्द गुंजन लेख पढकर खुशी से भाव विभोर हो उठी । नक्षत्र , आकृतिया और महीनो के नाम और आपस मे उनका समन्वय पढकर , जानकर अपार गर्व होता है ।मेरी माता जी से मै प्रतिदिन दूरभाष अथवा skype से बात करती हूँ तो हमारे भारतीय पंचाग के अनुसार ही तिथियों के हिसाब से बात होती है ।माता जी तो भारत के ह्रदय मध्य प्रदेश मे रहती है । एक समय था जब मै इस देश में नवंबर १९ ८ ४ मे आई थी तो माँ पिता जी और मुझे यह चिंता थी की कैसे हमे अपने व्रत और त्यौहार पता लगेगे ।
    आज वह समय है की हम अपना ही सब कुछ जीना चाहते है क्योकि वही सनातन साश्वत सत्य है । जानकारी पूर्ण ज्ञानवर्धक सुंदर लेख के लिय धन्यबाद ।आपके लेखो का सतत योगदान अतुलनीय और रोचक है हमारी ज्ञान वृद्धी मे ।

  9. i pad —–से आया हुआ इ पत्र सन्देश ——

    From: Shakun Bahadur
    To: Madhusudan H Jhaveri

    आदरणीय मधुसूदन जी,
    आपका आलेख पढ़कर मैं अत्यन्त विस्मित हूँ और अभिभूत भी । भारतीय ज्ञान-सिन्धु में गहरी डुबकी लगाकर आप
    कितने अनमोल मोती निकाल कर हमारे लिये निरन्तर लाते हैं , यह तथ्य उल्लेखनीय भी है और प्रशंसनीय भी ।
    प्राय: यही भ्रामक धारणा है कि हमने ज्योतिष-विद्या का ज्ञान यूनान से प्राप्त किया । यदि मैं भूल नहीं रही हूँ तो,
    शायद श्री गुणाकर मूले जी के एक लेख में भी कुछ ऐसा ही पढ़ा था ।जिसे पढ़ कर आश्चर्य भी हुआ था,क्योंकि
    हमारे वैदिक-साहित्य के अन्तर्गत षड्वेदांगों में ज्योतिष भी एक है

    “नक्षत्रों का शब्द गुंजन” आप के द्वारा दिया नाम ही समीचीन है ।

    आपने विविध नक्षत्रों के साथ हमारे सभी महीनों के नामों को सम्बद्ध करके जिस वैज्ञानिकता के साथ गहराई से
    ये रहस्य उद्घाटित किया है,वह आश्चर्यचकित करने के साथ ही अपने पूर्वजों की ज्ञान-गरिमा पर गर्वित तो करता ही है और आश्वस्त भी । आपका सम्पूर्ण शोध-कार्य वर्तमान भारतीय एवं विदेशी विद्वानों की आँखों से अज्ञान और भ्रम का आवरण हटा कर,नयी दृष्टि के लिये ज्योति प्रदायक है । आपका ये श्रमसाध्य शोध-कार्य निश्चय ही हम सभी के लिये ज्ञानवर्धक और स्तुत्य है । भारतीय-संस्कृति, साहित्य और ज्ञान-विज्ञान के प्रति आपकी निष्ठा और आपके वैदुष्य को मेरा सादर नमन !!

    सादर,
    शकुन्तला बहादुर

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here