समन्वय नंद
पिछले दिनों कुछ मतांतरित ईसाई देश के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से मिले। इन लोगों ने विभिन्न मामलों पर प्रधानमंत्री से चर्चा की। बातचीत के दौरान इन सज्जनों ने प्रधानमंत्री डॉ. सिंह को बताया कि ओडिशा में ईसाइयों पर हमले बढ़ रहे हैं। डॉ. सिंह ने उनकी बात को काफी गंभीरता से सुना और इस पर चिंता जाहिर की। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वह इस संबंध में देश के गृह मंत्री पी. चिदंबरम से बात करेंगे और उन्हें कहेंगे कि ओडिशा में ईसाइयों पर बढ रहे हमलों के बारे में जानकारी लें और आवश्यक कार्रवाई करें।
कायदे से प्रधानमंत्री डॉ. सिंह को इस बात की छानबीन करनी चाहिए थी कि ये सज्जन जो कुछ भी बोल रहे हैं, क्या वह सही है। क्या किसी समाचार पत्र या फिर किसी टीवी चैनलों में यह प्रसारित हुआ है कि ओडिशा में ईसाइयों पर हमले हो रहे हैं। प्रधानमंत्री के पास इसकी जानकारी लेने के लिए अनेक स्रोत हैं जहां से वह यह जानकारी ले सकते थे। उनके पास खुफिया विभाग के साथ-साथ अन्य भी कई स्रोत हैं। अपने गृह मंत्री को इन तथाकथित हमलों के बारे में बात करने के लिए आश्वासन देने से पूर्व इस बात की जांच करवा सकते थे।
इसके अलावा वह इन मतांतरित सज्जनों से यह भी पूछ सकते थे कि क्या उनमें से कोई ओडिशा का रहने वाला है। अगर वह यह प्रश्न उनसे मिलने आये इन मतांतरित ईसाइयों से पूछते तो वे बताते कि उनका किसी प्रकार से ओड़िशा से कोई लेना देना नहीं है। ये सभी मतांतरित ईसाई कैथोलिक सेकुलर फोरम नामक मंच से जुड़े हैं और दिल्ली व मुम्बई में निवास करते हैं। इनमें से शायद ही ऐसा कोई हो जो अपने पूरे जीवन काल में ओडिशा गया हो। ये लोग अगर दिल्ली व मुम्बई में ईसाइयों के बारे में प्रधानमंत्री से बात करते तो शायद ठीक होता।
इन सभी बातों के बावजूद प्रधानमंत्री ने इन काल्पनिक हमलों पर चिंता जाहिर की। प्रधानमंत्री की क्या कोई विवशता थी जो उन्होंने ऐसा किया, या फिर इसके पीछे कोई और कारण है, यह जांच का विषय हो सकता है।
इन मतांतरित ईसाइयों में से अगर कोई ओडिशा का होता तो समझ में भी आता। अगर किसी राज्य में किसी संप्रदाय के खिलाफ ज्य़ादती होती है तो अनुचित है। इसका प्रतिकार होना चाहिए। सभी को इसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए, इसमें किसी प्रकार का कोई शक नहीं है। लेकिन प्रधानमंत्री डॉ. सिंह के सामने इस तरह की बात कहना कि ओडिशा में ईसाइयों पर हमले बढ रहे हैं, जबकि इस तरह की एक भी घटना सामने नहीं आयी है इसलिए उन सज्जनों की नीयत पर संदेह होता है। केवल इतना ही नहीं जब ये लोग ओडिशा के रहने वाले न हों और इस तरह की झूठी बात फैला रहे हों, तो उनके नीयत पर शक गहराना लाजमी है।
ये कौन लोग हैं और ओडिशा को बिना कारण के व बिना आधार के क्यों बदनाम करना चाहते हैं, इसकी ठीक से जांच की जानी आवश्यक है। ओडिशा को बदनाम करने के पीछे ये लोग ही हैं या उनके पीछे कोई और अदृश्य शक्ति है, इसकी भी जांच जरुरी है। इन अदृश्य शक्तियों का असली उद्देश्य क्या है। पूर्व में भी ये शक्तियां ओडिशा को बदनाम करने के लिए दिन-रात एक कर दी थीं। शांत प्रदेश ओडिशा को इन शक्तियों ने अशांत कर दिया था। वनवासी क्षेत्र में चार दशकों से अधिक समय तक वनवासियों की सेवा में लगे स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या में इनकी भूमिका संदिग्ध थी। इसके बाद वहां वातावरण अशांत हो उठा था। पूरे विश्व में ओडिशा बदनामी की गई। ईसाइयों के सर्वोच्च नेता पोप से लेकर अनेक राष्ट्राध्यक्ष ओडिशा की जनता के खिलाफ टिप्पणी देते रहे। कई देशों ने तो खुले आम ओडिशा की जनता की निंदा की। इसके बाद भी वे शांत नहीं हुए।
अब जब स्थिति पूरी तरह सामान्य है और सौहार्दपूर्ण वातावरण है, ऐसे में ये शक्तियां एक बार फिर सक्रिय हो उठी हैं। वे फिर एक बार ओडिशा को बदनाम करने के लिए ठान चुके हैं। ओडिशा की शांतिप्रिय जनता को बिना कारण ये लोग फिर से कठघरे में खडा कर रहे हैं। इस कारण उन्होंने देश के प्रधानमंत्री के सामने यह कोरा झूठ बोला कि ओडिशा में ईसाइयों पर हमले बढे हैं। और देश के प्रधानमंत्री ने मुंडी हिला कर उनका समर्थन किया। सच्चाई को तफ्तीश किये बिना ही उन्होंने इन काल्पनिक हमलों के लिए चिंता तक व्यक्त कर दिया है। केवल इतना ही नहीं उन्होंने इन काल्पनिक हमलों के लेकर अपने गृह मंत्री को आवश्यक कार्रवाई करने के लिए भी कह दिया।
स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या करने के बाद ओडिशा को वैश्विक स्तर पर बदनाम करने का पहली बार प्रयास हुआ है, ऐसा नहीं है। स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या के बाद इन शक्तियों ने अपनी पूरी ताकत ओडिशा को बदनाम करने में लगा दी। इन्हीं सज्जनों के एक समूह ने उन दिनों राष्ट्रपति को एक ज्ञापन सौंप कर यह बताया कि स्वामी लक्ष्णनानंद जेल में डाले जाने लायक थे। अभी हाल ही के दिनों में ओडिशा में माओवादियों ने एक अंबुलैंस उडा दिया। इस अंबुलैंस में जो बैठे थे वे इत्तेफाक से ईसाई थे। माओवादियों ने इस हमले की जिम्मेदारी ली। लेकिन ओडिशा को बदनाम करने पर जुटी इस गिरोह ने हद कर दी। इस हमले में भी वह ओडिशा की जनता का हाथ बताया। केवल इतना ही इनके द्वारा संचालित एक अंग्रेजी वेबसाईट से इस तरह की खबर जारी हुईं और पूरे विश्व तक पहुंचाया। इसके अलावा यूरोपीय यूनियन के राजदूत ओडिशा आये और उन्होंने बिना किसी आधार पर ओडिशा के खिलाफ टिप्पणी की। इसके बाद ओडिशा के बारे में नई दिल्ली के कान्स्टिट्यूशन क्लब में एक दो दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें भी जो शामिल थे, उनका ओडिशा से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं था। इस दो दिवसीय कार्यक्रम में ओडिशा की जनता को जम कर गालियां दी गई। इससे भी वे प्रसन्न नहीं हैं और अब संपूर्ण झूठ को प्रधानमंत्री के सामने रखा और प्रधानमंत्री ने उनकी हां में हां मिलाया और प्रेस विज्ञप्ति के जरिये अखबारों में प्रकाशित कराया।
ये शक्तियां ओडिशा को बदनाम करने के अपने अभियान में लगी हुई हैं। प्रधानमंत्री डॉ. सिंह जिनको ओडिशा के लोगों का साथ देना चाहिए था वह भी उनके साथ हैं, ऐसा लग रहा है। सभी जानते हैं कि भारत में मतांतरण के लिए चर्च को अमेरिका से करोड़ों रुपये प्राप्त होते हैं। और हाल ही में विकीलिक्स में ऐसे भी खुलासे किये हैं कि प्रधानमंत्री अपने मंत्रियों तक की नियुक्ति अमेरिका के इशारे पर कर रहे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं है ओडिशा में ईसाइयों पर काल्पनिक अत्याचारों पर चिंता व्यक्त कर के प्रधानमंत्री अमेरिका के चर्च संबंधी हितों की रक्षा कर रहे हैं। दुर्भाग्य से ओडिशा में स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या के समय से ही चर्च की भूमिका संदिग्ध हो रही थी। क्या चर्च ओडिशा में कोई और भयानक खेल खेलना चाहता है? जनवादी व तथाकथित मानवाधिकार संगठनों को इसकी भी जांच करवानी चाहिए।
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