चर्च द्वारा मीडिया को डराने का प्रयास

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कुछ दिन पहले ओडिशा में ईसाइयों के साथ हो रहे तथा कथित अन्यायों की जांच पडताल करने के लिए यूरोपीय संघ ने अपना एक ग्यारह सदस्यीय जांच दल प्रदेश में भेजा था। किसी विदेशी जांच दल द्वारा भारत की आंतरिक स्थिति को लेकर जांच दल का गठन करना और उस जांच दल द्वारा प्रदेशा के अधिकारियों की बैठके बुलाना और यहां तक कि न्यायालय के न्यायधीशों से पूछताछ करने की कोशिश करना, यह किसी भी स्वतंत्रता प्रेमी को चौंकाने के लिए पर्याप्त था।

छोटी छोटी बातों को लेकर हल्ला मचाने वाले और आतंकवादियों के मानवाधिकारों के लिए लडने वाले तथा कथित राष्ट्रीय चैनलों ने तो यूरोपीय संघ जांच दल की इस अनाधिकार चेष्टा पर चुप्पी साधना ही उचित समझा परन्तु ओडिशा का मीडिया ऐसा नहीं कर सकता था क्योंकि यह प्रश्न ओडिशा के स्वाभिमान से जुडा हुआ था। ओडिया भाषा के मीडिया ने यूरोपीय जांच दल की ओडिशा में  इन हरकतों को लेकर काफी हो हल्ला मचाया। लोगों ने जगह जगह इस जांच दल के खिलाफ प्रदर्शन भी किये और कंधमाल में वकीलों के संघ ने दल को न्यायधीशों से मिलने नहीं दिया। ओडिया भाषा के समाचार पत्रों ने इस पर संपादकीय लिख कर इस दौरे का विरोध किया। शायद जनता के इसी विरोध को देखते हुए मुख्यमंत्री नवीन पटनायक अन्तिम क्षणों में इस विदेशी जांच दल से मिलने से कन्नी काट गये।

चर्च ने यूरोपीय जांच दल के चले जाने के बाद अब ओडिशा में मीडिया को धमकाने और डराने का काम शुरु कर दिया है। पिछले दिनों वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभ लेखक डॉ0 कुलदीप चन्द अग्निहोत्री का यूरोपीय जांच दल की गतिविधियों को लेकर एक आलेख (चर्च के लिए भारत की प्रभुसत्ता दांव पर) दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका न्वोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचार के 10 फरवरी के अंकमें प्रकाशित हुआ था। भुवनेश्वर से प्रकाशित ओडिया दैनिक समाचार पत्र आरम्भ ने इस आलेख को अपने 11 फरवरी के अंक में प्रकाशित किया। आरम्भ दैनिक ओडिशा में अपने तीखे तेवरों और बेबाक लेखन के लिए जाना जाता है। यह समाचार पत्र लोकमत का प्रतिनिधि अखबार माना जाता है। इसका सरकारों से टकराने का इतिहास रहा है। जाहिर है कि चर्च ओडिया भाषी मीडिया से खफा है वह प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से मीडिया को धमकाने के प्रयास कर रहा है ताकि मीडिया चर्च की राष्ट्र् विरोधी हरकतों के खिलाफ बोलना बंद कर दे। और ओडिशा में चर्च के कृत्यों के कारण उसका भय भी बढ रहा है। चर्च द्वारा स्वामी लक्ष्मणान्नद सरस्वती की हत्या करवा देने के बाद भी सरकार ने तो हत्यारों को पकडने में कोई रूची दिखाई और न ही चर्च की गतिविधियों पर अकूंश लगाया। इसके विपरीत सरकारी जमीन पर कब्जा करके बनाये गये झोपडी नूमा चर्चो के स्थान पर ओडिशा सरकार जनता के ही पैसे से वहां पक्के चर्च बनाने में मदद कर रही है। चर्च का संदेश साफ है – जब स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती की हत्या के बाद भी हमारा कोई बाल बांका न कर सका तो चर्च के खिलाफ बोलने और लिखने वालों का क्या हश्र हो सकता है। इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

लगता है आरम्भ अखबार पर भी चर्च का यही दवाब पडा और डॉ0 अग्निहोत्री का आलेख छापने के तीसरे दिन ही अखबार ने इस आलेख को वापिस लेने की घोषणा कर दी और साथ ही क्षमा याचना कर ली। अखबार ने क्षमा याचना करते हुए कहा —गत 11 तारीख को इस पृष्ठ पर प्रकाशित डॉ0 कुलदीप चन्द अग्निहोत्री द्वारा लिखित, चर्च के लिए भारत की प्रभुसत्ता खतरे में, लेख आरम्भ लोकसंपादक मंडल के सर्वधर्म समभाव तथा सीमाविहीन मानवीयता की नीति के विपरीत है। यह आरम्भ का मत नहीं है। हम किसी भी प्रकार से इस मत से सहमत नहीं है। इस तरह का धर्म विद्वेशकारी विचार छप जाने के कारण हम शार्मिंदा है। इस पृष्ठ का दायित्व निभा रहे सह सम्पादक की गैर जिम्मेदारी के कारण हम अपने विवकेशील तथा सचेतन पाठकों से क्षमा याचना कर रहे है। ध्यान रहे कि अग्निहोत्री के इस आलेख पर अभी कोई पाठकीय टिप्पणी आरम्भ में प्रकाशित नहीं हुई थी। संपादक मंडल ने उससे पहले ही हडबडी में चर्च से क्षमा याचना कर ली। चाहे कहीं प्रत्यक्ष चर्च का उल्लेख नहीं किया गया है लेकिन भाषा से स्पष्ट है कि लेख छपने के तीसरे ही दिन बिना किसी पाठकीय प्रतिक्रिया का इंतजार किये क्षमा याचना करना चर्च द्वारा पीछे से डाले जा रहे दवाब का ही परिणाम है।

वैसे तो चर्च ने और खासकर के विदेशी चर्च संस्थानों ने भारत के मीडिया घरानों में बडे स्तर पर निवेश करके नीतियों में अपने अनुकूल परिवर्तन करने की स्थिति प्राप्त कर ली है लेकिन अभी भी प्रादेशिक भाषाओं के मीडिया में उसकी घुसपैठ इतनी नहीं है। यह भी सच्चई है कि भारतीय जनमानस को गेहराई तक भारतीय भाषाओं का प्रादेशिक मीडिया ही प्रभावित करता है। चर्च इस तथ्य को भली भांति जानता है। स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती की हत्या के बाद ओडिशा चर्च की भावी रणनीति की प्रयोगशाला बन गया है। यूरोपीय जांच दल का आगमन उसी रणनीति का हिस्सा है और अब अखबारों पर अप्रत्यक्ष दवाब डालकर उन्हें चुप करवाने की दादागिरि उसकी आने वाले दिनों की कार्य योजना का संकेत देती है। चर्च का यह दवाब वास्तव में आरम्भ अखबार पर ही नहीं है बल्कि यह दवाब ओडिया लोगों की अभिव्यक्ति को बंद करने की रणनीति भी है। यह प्रहार उत्कल प्रदेश के स्वाभिमान पर प्रहार है जिसका उत्तर हर स्थिति में उत्कलवासियों को देना ही होगा।

– समन्वय नंद