शहर-शहर ”वेश्या” बस कोठे नहीं हैं !

”अपने बिकने का दुख है हमें भी लेकिन, मुस्कुराते हुए मिलते हैं खरीदार से हम।” चर्चित साहित्यकार मुनव्वर राना ने जब ये पंक्तियां कहीं तो कई तस्वीरें जहन में उतर कर आ गईं। कीमत कहें या फिर मजबूरी के आगे खुद की बोली लगाने वाली वेश्या की कहानी के किसी किरदार से मानों कोई पर्दा हट गया हो। पर, फिर भी हम हों या फिर आप कई बार कई सवालों में उलझ जाते हैं। वो सवाल हैं बद्नाम गली, रेड लाईट एरिया, वैश्यालय जैसे तमाम शब्दों को लेकर कि आखिर अपने चरित्र को सामाजिक तौर पर इन सभी चीजों से बचाने का दिखावा करने वाले कुछ पुरूष कैसे नजरें बचाकर, पहचान छिपाकर इन जगहों से रूबरू होना पसंद करते हैं। सवाल यह भी है कि इन वेश्याओं की हकीकत क्या है ? वेश्याएं कितनी अच्छी और कितनी बुरी हैं ? सवालों की फेहरिस्त में एक सवाल यह भी है कि प्रतिबंधित होने के बावजूद दिल्ली, कानपुर, लखनऊ जैसे कई शहरों में कैसे सेक्स रैकेट संचालित हो रहे हैं ? और भी कई सवाल। आपके इन सवालों के जवाबों की तलाश में हमने पूरी पड़ताल की, पेश है ये रिपोर्ट……

Romeवेश्यावृत्ति का कानून !
हो सकता है कई बार आपको भी ऐसा लगा हो कि जब इस तरह के धंधे धड़ल्ले से चल ही रहे हैं। प्रतिबंधित होने के बाद भी इन्हें अन्य रोजगारों के मुखौटे की आड़ में चलाया जा रहा है तो भला क्या फायदा कि इन पर ”रोक” का स्टीकर लगाकर ड्रामेबाजी की जाए। दरअसल भारत सरीखे परंपरावादी देश में वेश्यावृत्ति को कानूनी दर्जा देने की सिफारिशें हो चुकी हैं। वो भी तब जब देश में दक्षिणपंथी विचारधारा वाली सरकार है। इस दौर में कहीं न कहीं ये फैसला विरोधाभासी दिखाई देता है। 2014 में महिला आयोग की अध्यक्ष ललिता कुमार मंगलम ने इसकी मांग कर इसे मुद्दा बना दिया। पर सुर बदलते गए या कहें नरम पड़ गए। और निजी विचार कहकर मुद्दे को किनारे कर दिया गया। क्योंकि वेश्यावृत्ति को कानूनी दर्जा देने के कई अर्थ निकलते हैं। जिनके संदर्भ में सोचने मात्र से लोगों को बद्नामी का डर सताने लगता है, धंधे में फिसलने की आजादी का बोध होने लगता है।

क्यों अलग है कानून ?
मौजूदा स्थिति यह है कि भारत में अनैतिक व्यापार निषेध कानून 1956 के तहत वेश्यावृत्ति अपराध है। भले ही इस पेशे में महिला अपनी मर्जी से आई हो या जबरन धकेली गई हो। साथ ही कानून समेत न्याय भी लिंग के अनुसार दो भागों में विभक्त कर दिया जाता है। जिस्मफरोशी करते हुए पकड़े जाने पर महिला के साथ तरीका अलग तो पुरूष के साथ कानून का एक अलग तरीका अपनाया जाता है।
साथ ही इस कानून के तहत यह साबित कर पाना बड़ा कठिन है कि कोई पुरुष अपनी मर्जी से जिस्मफरोशी कर रही महिला के पास आया था या महिला को जबरन उसके पास भेजा गया था। इस कारण से वादी और प्रतिवादी पुलिस के रहमोकरम पर आ जाते हैं। जिसके बाद भ्रष्टतंत्र की वजह से कानून की आड़ में पुलिस हो या फिर वकील सारी चीजों को कठपुतली बनाकर पेश करते हैं। जिसकी वजह से उम्मीद, बदलाव और तमाम सकारात्मक चीजें वक्त से पहले ही दम तोड़ देती हैं।

वेश्या कितनी अच्छी और कितनी बुरी ?
माना जाता है कि बेहद कम उम्र में लड़कियों को इस धंधे में झोंक दिया जाता है। इस तरह के मामलों में लड़की के परिवार वाले पैसे के लालच में लड़कियों को बेंच देते हैं। या फिर कोई अपनी मजबूरी का हवाला देते हुए खुद ब खुद इस दलदल में फंसने के लिए चली आती हैं। तो कुछ जगहों पर शादी के नाम पर भरमाकर इंसानियत की कीमतें लगा दी जाती हैं। इस तरह से वेश्या के पेशे में उतरी हुई मासूम दूसरे के फैसलों को अपनी किस्मत मान लेती हैं। इन सबके इतर जॉब के नाम पर भी कुछ लोग लड़कियों को वैश्यालयों में बेंच देते हैं। सोचिएगा ”कितना सशक्तिकरण हुई है स्त्री वर्ग, वास्तव में वेश्या कितनी बुरी और कितनी अच्छी हैं।”

ज्यादातर बस अड्डे या रेलवे स्टेशन ही क्यों हैं वेश्याओं का ठिकाना ?
निश्चित तौर पर यह सवाल आपके जहन में भी होगा। इसका जवाब जानने के लिए हमने बात की जेएनपीजी, लखनऊ में मानव शास्त्र के चर्चित प्रोफेसर डॉ0 आलोक चांटिया से तो उन्होंने जो कारण बताये वो वास्तव में चौंकाने वाले थे। डॉ0 आलोक ने बताया कि रेलवे स्टेशन, बस अड्डों पर ज्यादातर यात्री आता जाता है। अगर सेक्स की रेशियो देखा जाए तो पता चलता है कि ये तब बढ़ा है जब से व्यक्ति घर से बाहर रहने लगा। दरअसल उसके लिए सेक्सुअल रिलेशन में जो प्रतिबंध थे वो कम होने लगे। इन सबके इतर कारण यह भी है कि वेश्या को पता है कि जो भी व्यक्ति आ रहा है वो कुछ घंटों के लिए ही है। बस सेक्स करेगा और चला जाएगा। और वहां ग्राहक मिलना भी आसान होगा। इस मोरैैलिटी के कारण ही रेलवे स्टेशन वगैहर अच्छे सोर्स बन गए।
हिमांशु तिवारी आत्मीय

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