शहर

dog in a car राघवेन्द्र कुमार राघव

जब गाय मिले चौराहों पर

कुत्ता बैठा हो कारों में ।

तब ये आप समझ जाना

कोई शहर आ गया ।

टकराकर तुमसे जवां मर्द

बोले क्या दिखता तुम्हें नहीं ।

तभी वृद्ध दादा जी बोलें

सॉरी बेटे दिखा नहीं ।

बस इतने से ही जान लेना

कोई शहर आ गया ।।

जहाँ लाश के कांधे को

चार लोग भी मिले नहीं ।

माँ-बहन कष्ट नें खड़ी रहें

मगरूर सीट से उठे नहीं ।

कर लेना विश्वास मित्र

कोई शहर आ गया ।।

दर-ओ-दीवार आलीशान

जिधर देखो नज़र आए ।

मगर उनमें नहीं कोई

दादा दादी नज़र आए ।

ठहर जाना मान लेना

कोई शहर आ गया ।।

 

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राघवेन्द्र कुमार 'राघव'
शिक्षा - बी. एससी. एल. एल. बी. (कानपुर विश्वविद्यालय) अध्ययनरत परास्नातक प्रसारण पत्रकारिता (माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय जनसंचार एवं पत्रकारिता विश्वविद्यालय) २००९ से २०११ तक मासिक पत्रिका ''थिंकिंग मैटर'' का संपादन विभिन्न पत्र/पत्रिकाओं में २००४ से लेखन सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में २००४ में 'अखिल भारतीय मानवाधिकार संघ' के साथ कार्य, २००६ में ''ह्यूमन वेलफेयर सोसाइटी'' का गठन , अध्यक्ष के रूप में ६ वर्षों से कार्य कर रहा हूँ , पर्यावरण की दृष्टि से ''सई नदी'' पर २०१० से कार्य रहा हूँ, भ्रष्टाचार अन्वेषण उन्मूलन परिषद् के साथ नक़ल , दहेज़ ,नशाखोरी के खिलाफ कई आन्दोलन , कवि के रूप में पहचान |

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