सभ्यता का संघर्ष कब तक …..

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civilizationसंसार के समस्त जीवधारियों का जीवन परस्पर संघर्ष की कहानी है। अपने आप को मौत से बचाते हुए अच्छी जिन्दगी की तलाश में पूरा जीवजगत आपसी टकरावों में उलझा रहा है। मसलन, सर्प और मेंढक के बिच का टकराव, बड़ी मछलियों का छोटी मछलियों के साथ टकराव आदि अनेक उदहारण इस सन्दर्भ में दिए जा सकते हैं। जिजीविषा की इस लडाई में मानव को कैसे भूल सकते हैं, असल में मनुष्य- मनुष्य के मध्य जाति-धर्म-भाषा अर्थात सभ्यताओं का संघर्ष नई बात नही है। संपूर्ण वैश्विक सन्दर्भ में पिछले २००० वर्षों के इतिहास को खंगाले तो कई जानने योग्य तथ्य प्रकाश में आते हैं । यही वो समय था जब विश्व इतिहास में नया बदलाव आरंभ हो चुका था। आज के इस विवादित और आतंकित भविष्य की नीव भी पड़ चुकी थी। अब तक ईसाइयत की मान्यताओं को न मानने वाले १५० करोड निरीह लोगों की हत्या की जा चुकी है। लगभग ४८ सभ्यताओं को नष्ट किया जा चुका है। ईसाइयत के बाद प्रगट हुए इस्लाम ने भी इसी परम्परा को अपनाया। इसके पीछे धर्मान्धों की यह मानसिकता काम करती है कि उनके धर्म में जो है वही एकमात्र और अन्तिम सत्य है। समूची दुनिया को एक धर्म में रंग डालने कि कवायद ठीक वैसी ही है जैसी वर्षों पूर्व सरे संसार को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के अंधेरे से ढँक दिया गया था। यही वो वक्त था, लोग कहते थे -“ब्रिटिश साम्राज्य में सूर्यास्त नही होता। “स्कूल के दिनों में एक कहानी पढ़ी थी जिसमे तरह -तरह के रंग हरा, लाल, पीला, कला, सफ़ेद सभी अपने -अपने को श्रेष्ठतम बताते हुए दुनुया को अपने अधिपत्य में शामिल करना चाहते हैं। यहाँ भी धर्म को आधार बना कर संसार का झूठा एकीकरण करने का कुप्रयास चलाया जा रहा है। इस दुनियाकि विविधता ही इसकी सबसे बड़ी संपत्ति है, इस विविधता को धर्म के नाम पर तोड़ने का काम कुछ अन्ध्भाक्तो कीदेन है। कुछ धर्मो खास कर ईसाइयत और इस्लाम में धर्म विस्तार/धर्म परिवर्तन पुन्य का काम माना जाता है। अब, जब कोई धार्मिक मान्यता पुण्य का साधन बन जाए तो यह तय करना मुश्किल हो जाता है की यह कार्य तलवारों के जोर से हो अथवा कागज – कलम के जोर से यार्था के इस युग में पैसों की चमक से। आज सारा विश्व जिस आतंक के “वाद” की परिभाषा तैयार करने में जुटी है,उसका सीधा- सीधा सम्बन्ध ऐसी ही मान्यताओं से जुडाहुआ है। हालाँकि कुछ लोग, जिन्हें आतंक और आतंकवाद के बिच का अनतर नही पता, अशोकमहान को भी आतंकी कहने से नही चुकते। उनके मुताबिक तो नक्सलवाद, क्षेत्रवाद आदि भी आतंकवाद ही है । जिस अशोक की बात की जाति है उसका युद्ध राज्य विस्तार के लिए था न की धरम विस्तार के लिए। धर्म विस्तार के लिए तो उन्हें भी प्रचार का सहारा लेना पड़ा था। आज के इस बेसिर-पैर की हिंसात्मक करवाई में विश्वास रखने वालो की तुलना सम्राट अशोक से करना मुर्खता की बात होगी। आतंक से आतंकवाद का सफर कई दशकों में तय किया गया है। हमारा भारत तो शको, हनो, तुर्को, मुगलों, और अंग्रेजों के आक्रमण और फिर शासन केसमय से ही आतंक का दंश झेलता आया है । आज भी दुनिया में सबसे ज्यादा हमले हमारे देश में होते हैं। हमेशा से रक्षात्मक रवैया अपनानाये रहने की वजह से ही तो ये दुर्गति है। मुठी भर बहरी आक्रमणकारियों ने न केवल हम पर शासन किया बल्कि अपनी धर्म और संस्कृति को भी थोपते गए। हमारी कमजोरियों का फल ये है कि५ हजार साल पुराणी सभ्यता वाला भारत, १३० करोड कि आबादी वाला भारत, पाकिस्तान से तंग आकर अमेरिका से मदद मांग रहा है! तब से अब तक हम दूसरी बार घुटने टेकते नजर आरहे हैं। अर्नाल्ड ने कहा था” भारत एक ही बार पराजित हुआ था वो भी १९४७ में “। निश्चय ही धर्म के नाम पर विभाजन हमारी हार थी। बहरहाल, सभ्यता का ये संघर्ष अनवरत जारी है,  कब तक?  पता नही ……..


जयराम चौधरी

बी ए (ओनर्स)मास मीडिया
जामिया मिलिया इस्लामिया
मो: 09210907050

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