सियासत और सेक्स की कॉकटेल-कथा : 4

सीडी, जिसने सनसनी मचा दी…

– चण्डीदत्त शुक्ल

साल-2006 : उत्तर प्रदेश के एक पूर्वमंत्री का घर। बैकड्रॉप में मंत्रीजी के शपथग्रहण समारोह का चित्र लगा है। एक और तस्वीर डिप्लोमा संघ के अभिनंदन समारोह की है। यहां भी वो मौजूद हैं। इसी कमरे में हरे रंग की सलवार और कुर्ता पहने हुए एक युवती बैठी है। कुछ देर बाद वहां शिक्षाजगत के एक वरिष्ठ अधिकारी पहुंचते हैं…।

यह सबकुछ एक सीडी में दर्ज किया गया और जब यही सीडी निजी टेलिविजन चैनल पर टेलिकास्ट हुई, तो सियासत की दुनिया में भूचाल आ गया। सीडी में सेंट्रल कैरेक्टर निभाने वाली युवती थी—डॉ. कविता चौधरी। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में कविता अस्थाई प्रवक्ता थी और हॉस्टल में ही रहती थी। ये उस दौर की बात है, जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। एक टीवी चैनल ने यूपी के पूर्व कैबिनेट मिनिस्टर मेराजुद्दीन और मेरठ यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर आरपी सिंह के साथ कविता के अंतरंग संबंधों की गवाही देती सीडी जारी की। सनसनी भरी इस सीडी के रिलीज होने के बाद सियासत के गलियारों में सन्नाटा छा गया और यूपी के कई मिनिस्टर इसकी आंच में झुलसने से बाल-बाल बचे। सपा सरकार में बेसिक शिक्षा मंत्री किरणपाल, राष्ट्रीय लोकदल से आगरा विधायक और राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त बाबू लाल समेत मेरठ से सपा सरकार में सिंचाई मंत्री रह चुके डॉ. मेराजुद्दीन इस चक्कर में खूब परेशान हुए।… हालांकि ये सीडी सियासी लोगों को परेशान करने का सबब भर नहीं थी। कई ज़िंदगियां भी इसकी लपट में झुलस गईं।

23 अक्टूबर, 2006 : कविता चौधरी बुलंदशहर में अपने गांव से मेरठ के लिए निकली। 27 अक्टूबर तक वो मेरठ नहीं पहुंची, ना ही उसके बारे में कोई सुराग मिला। इसके बाद कविता के भाई सतीश मलिक ने मेरठ के थाना सिविल लाइन में कविता के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस ने इंदिरा आवास गर्ल्स हॉस्टल, मेरठ स्थित कविता के कमरे का ताला तोड़ा। यहां से कई चिट्ठियां बरामद की गईं। एक चिट्ठी में लिखा था—रविन्द्र प्रधान मेरा कत्ल करना चाहता है और मैं उसके साथ ही जा रही हूं। कुछ दिन बाद कविता के भाई के पास एक फ़ोन आया, दूसरी तरफ कविता थी। वो कुछ कह रही थी, तभी किसी ने फोन छीन लिया…।

पुलिसिया जांच में पता चला—रविन्द्र प्रधान ही मेन विलेन था। उसने बताया—मैंने कविता की हत्या कर दी है। रविन्द्र ने 24 दिसंबर को सरेंडर कर दिया और उसे डासना जेल भेज दिया गया। इसके बाद कविता केस सीबीआई के पास चला गया। रविन्द्र ने बताया—24 अक्टूबर को मैं और योगेश कविता को लेकर इंडिका कार से बुलंदशहर की ओर चले। लाल कुआं पर हमने नशीली गोलियां मिलाकर कविता को जूस पिला दिया। बाद में दादरी से एक लुंगी खरीदी और उससे कविता का गला घोंट दिया। आगे जाकर सनौटा पुल से शव नहर में फेंक दिया। रविन्द्र ने बताया कि कविता की लाश उसने नहर में बहा दी थी। पुलिस ने कविता का शव खूब तलाशा, लेकिन वह नहीं मिला। भले ही लाश रिकवर नहीं हुई, लेकिन पुलिस ने मान लिया कि कविता का कत्ल कर दिया गया है।

30 जून, 2008 को गाजियाबाद की डासना जेल में बंद रविन्द्र प्रधान की भी रहस्यमय हालात में मृत्यु हो गई। बताया गया कि उसने ज़हर खा लिया है। हालांकि रविंद्र की मां बलबीरी देवी ने आरोप लगाया कि उनके बेटे ने खुदकुशी नहीं की, बल्कि उसका मर्डर कराया गया है। ऐसा उन लोगों ने किया है, जिन्हें ये अंदेशा था कि रविन्द्र सीबीआई की ओर से सरकारी गवाह बन जाएगा और फिर उन सफ़ेदपोशों का चेहरा बेनकाब हो जाएगा, जो कविता के संग सीडी में नज़र आए थे। कविता के भाई ने भी आरोप लगाया कि चंद मिनिस्टर्स और एजुकेशनिस्ट्स के इशारे पर उनकी बहन का खून हुआ और रविन्द्र प्रधान को भी मार डाला गया।

… पर कहानी इतनी सीधी-सादी नहीं। इसमें ऐसे-ऐसे पेंच थे, जो दिमाग चकरा देते हैं। कविता की हत्या के आरोपी रविन्द्र ने कई बार बयान बदले। पहले कहा गया कि एक मंत्री के कविता के साथ नाजायज़ ताल्लुकात थे, फिर यह बात सामने आई कि कविता का रिश्ता ऐसे गिरोह से था, जो नामचीन हस्तियों के अश्लील वीडियोज़ बनाकर उन्हें ब्लैकमेल करता था। कविता इनकी ओर से हस्तियों को फांसने का काम करती थी। एक स्पाई कैम के सहारे ये ब्ल्यू सीडीज़ तैयार की जाती थीं।

पुलिस की मानें, तो कविता का इस काम में रविन्द्र प्रधान और योगेश नाम के दो लोग साथ देते थे। उन्होंने लखनऊ में पूर्व सिंचाई मंत्री डॉ. मेराजुद्दीन की अश्लील सीडी बनाई और उनसे पैंतीस लाख रुपए वसूल किए। रवीन्द्र ने बताया था कि कविता के कब्जे में चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर आर. पी. सिंह और ललित कला अकादमी के अध्यक्ष कुंवर बिजेंद्र सिंह की अश्लील सीडी भी थी।

ब्लैकमेलिंग के एवज में मिले पैसे के बंटवारे को लेकर तीनों के बीच झगड़ा हुआ, तो कविता ने धमकी दी कि वो सारे राज़ का पर्दाफ़ाश कर देगी। रविन्द्र और योगेश ने फिर योजना बनाई और कविता को गला दबाकर मार डाला। पुलिस की थ्योरी मानें, तो कविता को भी इसका इलहाम था और उसने अपने कमरे में कुछ चिट्ठियां लिखकर रखी थीं। इनमें ही लिखा था—मुझे रविन्द्र से जान का ख़तरा है। इस मामले में योगेश और त्रिलोक भी कानून के शिकंजे में आए। जांच में पता चला कि कविता के मोबाइल फोन की लास्ट कॉल में उसकी राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त बाबू लाल से बातचीत हुई थी।

सीबीआई और पुलिस ने बार-बार कहा कि कई मंत्री इस मामले में इन्वॉल्व हैं और उनसे भी पूछताछ होगी। विवाद बढ़ने के बाद राज्य के पूर्व सिंचाई मंत्री डॉ. मेराजुद्दीन ने राष्ट्रीय लोकदल से इस्तीफा दे दिया, वहीं बाबू लाल ने भी पद से त्यागपत्र दे दिया। सियासत और सेक्स के इस कॉकटेल ने खुलासा किया कि महत्वाकांक्षा की शिकार महिलाएं, वासना के भूखे लोग और आपराधिक मानसिकता के चंद युवा…ये सब पैसे और जिस्म की लालच में इतने भूखे हो चुके हैं कि उन्हें इंसानियत की भी फ़िक्र नहीं है। दागदार नेताओं को कोई सज़ा नहीं हुई, रविन्द्र और कविता, दोनों दुनिया में नहीं हैं, अब कुछ बचा है…तो यही बदनाम कहानी!

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चंडीदत्त शुक्‍ल
यूपी के गोंडा ज़िले में जन्म। दिल्ली में निवास। लखनऊ और जालंधर में पंच परमेश्वर और अमर उजाला जैसे अखबारों व मैगजीन में नौकरी-चाकरी, दूरदर्शन-रेडियो और मंच पर तरह-तरह का काम करने के बाद दैनिक जागरण, नोएडा में चीफ सब एडिटर रहे। फोकस टीवी के हिंदी आउटपुट पर प्रोड्यूसर / एडिटर स्क्रिप्ट की ज़िम्मेदारी संभाली। दूरदर्शन-नेशनल के साप्ताहिक कार्यक्रम कला परिक्रमा के लिए लंबे अरसे तक लिखा। संप्रति : वरिष्ठ समाचार संपादक, स्वाभिमान टाइम्स, नई दिल्ली।

4 COMMENTS

  1. Yes it is true that sex and money both are the weakness of human life. but in the field of education, it is supposed to ignore all these evils. but this is the human tendency to facilititate this corruption. Dr. R.P. Sing and his bonding with Polititions provved the same. it is very shaming that the bonding between politetions and educationists making this nonsense and facilitating corruption in the field of education.

    i wish all the best to the writer, his language and style to narrates the story is very much inetrested. keep it up

  2. प्रिय हिमवंत और श्री प्रेम जी।
    सबसे पहले तो इसके लिए आभार कि आपने ये लेख पढ़े। दूसरी बात-निश्चित तौर पर ये कोई खोजपरक आलेख नहीं है पर ना तो गप है, ना ही कोई अफ़वाह। सब जानते हैं कि ये कथाएं सच्ची कथाएं हैं। प्रकारांतर से मनोरंजन के तत्व आपको दिख सकते हैं। परंतु यह भी आपकी सोच और इच्छा पर आधारित है। जैसे कि मुझे तो ऐसे संदर्भ पढ़-देखकर जुगुप्सा और घृणा ही होती है।
    एक बार पुनः आभार, आपने समय दिया।

  3. संभवत: हिमवंत ने “कोयले की दलाली में मूंह काला” लोकोक्ति नहीं सुनी| याद रहे चंडीदत्त शुक्ल कॉकटेल-कथा ही सुना रहे हैं| गली के नुक्कर पर खड़े हो इसकी उसकी और अपनी कही सब गप्प ही तो है| यदि चंडीदत्त शुक्ल का झुकाव तहकीकात संबंधी पत्रकारिता की ओर होता तो भगवान ही जाने क्या होता| जब लोग कॉकटेल-कथा से मनोरंजित हो जाते हैं तो कोई क्योंकर जान का जोखिम ले? सच तो यह है कि कोई भी इस घटना के पीछे छिपे सत्य को पूर्ण रूप से नही जानता और न ही किसी में सत्य जानने की क्षमता है| मैंने इन्ही कारणों से कॉकटेल-कथा गोष्टी से उठते लोगों को कुछ ऐसा कहते सुना है, “भगवान जाने सच क्या है,” “जैसी करनी वैसी भरनी,” “आज दुनिया में पैसा ही सब कुछ है, पैसे के लिए जो चाहे करवा लो,” इतियादी|

  4. सेक्स मानव की प्राकृतिक भुख है. अगर स्त्री-पुरुष की रजामन्दी से यौनाचार होता है तो फिर ईतना बवेला मचाने की कोई जरुरत नही थी. कहानी पढने के बाद मेरी धारणा यह है की वास्तव मे कविता चौधरी और रविन्द्र प्रधान की हत्या मिडिया की वजह से हुई. मिडिया को व्यक्तिगत सम्बन्धो के मामलो को इस प्रकार सार्वजनिक प्रकाशन करने से रोका जाने के लिए कडे कानुन बनाने चाहिए.

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