सहयोगियों की तलाश में निकले राजनीतिक खिलाड़ी

ca0fxr6yऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि पंद्रहवीं लोकसभा चुनाव में खंडित जनादेश मिलने वाला है। उन स्थितियों से निपटने के लिए राजनीति के माने हुए खिलाड़ी नए सहयोगियों को तलाशने और अपना कुनबा मजबूत करने में जुट गए हैं।एग्जिट पोल के आते ही सरकार बनाने के प्रमुख दावेदार गठबंधनों यानी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग), राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और तीसरे मोर्चे के प्रमुख नेताओं और रणनीतिकारों की बैठकों का दौर शुरू हो गया है।

माना जा रही है कि इसी सिलसिले में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी दिल्ली आए हैं। राजग के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी के आवास पर भाजपा के कोर ग्रुप के नेताओं की एक बैठक हुई, जिसमें छोटे-छोटे राजनीतिक दलों को जोड़ने को लेकर विचार विमर्श किया गया।

मोदी ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि राजनीतिक कारणों से वे दिल्ली में हैं। चुनाव बाद की परिस्थिति के बारे में वरिष्ठ नेताओं के बीच चर्चा होगी। इसमें कोई छुपाने वाली बात नहीं है।

लोगों का कहना है कि पार्टी ने उन्हें ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) की अध्यक्ष जयललिता को मनाने का जिम्मा दिया है। ज्ञात हो कि गुजरात विधानसभा के पिछले चुनाव में मोदी को मिली सफलता के बाद जयललिता ने न उन्हें सिर्फ फोन कर बधाई दी थी बल्कि उन्हें चेन्नई आमंत्रित भी किया था।

भाजपा ने दावा किया है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ही देश के अगले प्रधानमंत्री होंगे।

दूसरी तरफ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के आवास पर भी पार्टी रणनीतिकारों की एक बैठक हुई। खबर आई है कि इस बीच, सोनिया गांधी ने राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव से फोन पर बातचीत कर चुनाव के दौरान बड़ी दूरी को कम करने का प्रयास किया। दिग्विजय सिंह और अमर सिंह के बीच चुनाव के दौरान आई दूरी भी अब मिटती दिख रही है।

अमर सिंह ने कहा, “दिग्विजय सिंह ने मुझ पर कोई निजी आक्षेप नहीं लगाया था। उन्होंने जो बयान दिए थे वे राजनीतिक थे।

कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने संवाददाताओं से कहा कि चुनाव सर्वेक्षणों को कांग्रेस गलत साबित कर देगी। सर्वेक्षणों के अनुमान से अधिक सीटें हम जीतेंगे।

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  1. एक्जिट पोल मे लगाये गये अनुमान अगर सही है तो यह मान लेने मे कोई हर्ज नही होना चाहिए कि कोई भी राजनैतिक दल जन विश्वास की कसौटी पर खरा नही उतरा है .स्व.इन्दिरा गाधी की ह्त्या के बाद सत्ता मे आयी काग्रेस के बाद कोई भी दल अकेले सरकार बनाने मे सफल नही रहा है स्व.नरसिह राव की सरकार भी अल्पमत सरकार रही है जो केवल जोड-तोड के कौशल पर चलती रही है और श्री अटल बिहारी बाजपेयी और श्री मनमोहन सिह की पॉच साल तक चली सरकार भी अकेले एक दल के बलबूते की सरकार नही थी .राजनेताओ ने जन-विश्वास अर्जित करने के बजाये यह कहकर जान बचानी शुरु कर दी कि -सॉझा सरकार वक्त की जरुरत है ,इसका कोई हाल-फिलहाल विकल्प नही है. और चाहे कथित बडे दल भारतीय जनता पार्टी हो या काग्रेस किसी ने भी अखिल भारतीय स्तर पर अपने जनाधार को मजबूत करने के लिए जबानी जमा -खर्च के सिवाए कु६ करने की कोशिश भी नही की और उसका नतीजा सामने है कि – कही की ईट कही का रोडा -भानुमति ने कुनबा जोडा के तर्ज पर सियासी हल्को मे सत्ता पर काबिज होने के लिए जी-तोड प्रयास जारी है .काग्रेस और भाजपा की टूटती साख ने अन्य दलो खासतौर से परिवर्तन की बात कहने वाले दलो को राजनैतिक शुन्य भरने का सुअवसर मिला था जिसे काग्रेस और भाजपा की तर्ज मे सत्ता के सुख मे हिस्सेदारी की हवस मे अन्य दलो ने भी पूरी तरह से गवॉ दिया है .वामपन्थी दल ,हर चुनाव विकल्प बनाने की बात करती आयी है पर अपना आधार बढाने के लिए कु६ करने के बजाये उसकी रुचि किसी न किसी कथित बुर्जुवा दल को किसी न किसी बहने सत्ता मे बनाये रखने तक ही सिमित रही है. परिणामतया फैलने के बजाए वामपन्थी भी भाजपा और काग्रेस की तरह सिमटे ही है ,स्व.कॉशीराम के बाद उनकी उत्तराधिकारी सुश्री मायावती की सोशल इन्जीनियरिग ने काग्रेस मे अपदस्थ हो चुके एक ताकतवर जातीय समूह के बदौलत उत्तरप्रदेश की हुकूमत हथियाने के बाद अपनी जमीनी कोशिशो को पर विराम लगाकर ,अपने राजनैतिक प्रतिद्दिन्दी को मजा चखाने मे ही अपनी सारी शक्ति लगा दी नतीजतन बहुजन समाज पार्टी की गति भी धीमी हो गयी . तमाम अपवादो के बाद भी भारतीय राजनीति मे स्व. डा.राममनोहर लोहिया ,स्व.जयप्रकश नारायण ,स्व.नरेन्द्र देव आचार्य के अनुयायियो के लिए भी बेहतर अवसर थे पर १९७७ मे समाजवादी आन्दोलन को लगे सत्ता के दीमक ने समेट कर रख दिया है . नामधारी समाजवादी श्री मुलायम सिह यादव ,श्री लालूप्रसाद यादव ,श्री रामविलास पासवान ,श्री नीतीश कुमार का नजरिया सत्ता रहा है इन लोगो ने सत्ता मे काबिज होने के बाद किसी जमीनी आन्दोलन को आगे बढ़ाने की कोई कोशिश नही की – परिणामतया समाजवादी आन्दोलन की साख को गहरी चोट पहुची है देखा जाये तो स्व.मधु-लिमए के अवसान के पूर्व ही राजनैतिक मूल्यो मे आयी निरन्तर गिरावट से समाजवादी आन्दोलन कभी उबर नही पाया श्री जार्ज फर्नाडिस जैसे कद्दावर समाजवादी नेता ने , स्व.अशोक मेहता के बाद अपनी सत्ता की सोच या शक्ति-शाली बनने की हवस मे समाजवादी विचाराधारा को सबसे ज्यादा चोट पहुचाने का काम किया है . अन्य दल तेलगू देशम, ड.एम.के. ए.डी.एम.के. एन.सी.पी. आदि की रुचि भी एक सिमित क्षेत्र तक की ही है -यहा सवाल यह है कि – आखिर सत्ता सुख के लिए ललायित दलो ने अपनी जमीनी भूमिका मे विस्तार करने के बजाए यथावाद की स्थिति क्यो स्वीकार्य कर ली है इसकी कु६ प्रमुख वजहे है -१. कथित बडे राजनतिक दलो के एक बडे वर्ग की सोच थी कि – सता की खिचडी से परेशान होकर जनता एक या दो दलो के इर्द-गिर्द गोलबन्द हो जायेगी इस तरह से उन्हे कम शक्तिशाली दलो की चुनौती और मनौती दोनो से स्थायी रुप से मुक्ति मिल जायेगी और एक ही व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करने वाले एक या दो दल ही बचे रहेगे जिनके हाथो सत्ता की कमान होगी २.राजनीतिक मूल्यो मे गिरावट के चलते राजनेता ,जद्दोजेहद का माद्दा खो चुके है और परिवर्तन के लिए मेहनत करना अब उनके लिए सभव नही रह गया है ३. नैतिकता की कमी के चलते सोच बौनी हो चुकी है जो व्यक्तिगत आकॉक्षा से परे कु६ देखना ही नही चाहती है.४.अनैतिक राजनैतिक कर्म के चलते राजनेताओ ने मतदाताओ को मानसिक रुप से दास बनाने के लिए , अनुचित सुविधाओ का द्वार दिखा दिया जिसके चलते जमीनी स्तर पर भी राजनैतिक चिन्तन ,सुविधाओ के मोहपाश मे फस गया .और ऐसी ही यथावादी स्थितियो ने राजनीति को सत्ता प्रबन्धको के हवाले कर दिया . स्व.इन्दिरा गाधी जी के जमाने से शुरु हुए सत्ता प्रबन्ध ने स्व.मोरारजी देसाई ,स्व. वी.पी.सिह ,स्व.राजीव गाधी ,स्व.नरसिह राव , श्री देवगौडा ,श्री मनमोहन सिह को प्रधान मन्त्री बनने मे अहम भूमिका निभायी है , स्व.यशपाल कपूर ,श्री माखनलाल फोतेदार , श्री अहमद पटेल, श्री जार्ज फर्नाडिस , श्री अमर सिह का सत्ता -प्रबन्ध कौशल की चर्चा गाहे -बगाहे होती ही रही है .हर स्तर पर ऐसे राजनैतिक प्रबन्धको की भरमार है .एक्जिट पोल ने जो तस्वीर दिखाई है उससे साफ है कि अगली सत्ता का खेल एक बार फिर प्रबन्धको के हाथ चला गया है पर इस खेल मे अभी तक जो खिलाडी दिख रहे है उनमे श्री मनमोहन सिह जी की स्थिति इसलिए मजबूत दिख रही है कि , उनके पक्ष मे काम करने वाली टीम माहिरो की है जबकि प्रधानमन्त्री पद के लिए समस्त योग्यता के धारक श्री आडवानी जी की टीम एन.डी.ए. के सयोजक श्री जार्ज फर्नाडिस की सेवाओ से वन्चित है . अब श्री आडवानी जी के प्रबन्धक उनके लिए कैसा प्रबन्ध करते है यह देखने वाली चीज होगी .सत्ता किसी के हाथ जाये यह अलग बात है पर राजनैतिक दलो की असली कामयाबी कुर्सी पर कब्जा नही है बल्की राजनैतिक विश्वास की बहाली है .वर्ना वह दिन भी बहुत जल्दी आने वाला है, जब सत्ता का नियन्त्रण ऐसे हाथो मे पहुच जायेगा जहा राजनैतिक दलो की स्थिति दोयम दर्जे की होगी हो सकता है आज स्वार्थ मे डूबे हुए राजनेता , राजनीति के कल को देखना पसन्द न करे परन्तु बिगडे राजनेताओ की व्यक्तिगत महत्वकॉक्षा पर अपने को होम कर देने वाले राजनैतिक कार्यकर्ताओ को अपने और लोकतन्त्र के भविण्य के बारे मे सोचना चाहिए कि सरकार बनाते -बनाते वह जिस दिशा मे चल निकला है क्या वह दिशा उसकी अन्तिम मन्जिल है . रही बात आम जनता की तो यदि स्वार्थी राजनीति ने उसकी आदते खराब की है तो भली राजनीति जनता की बिगडी आदते सुधार भी सकती है .

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