कलक्टर का अप्रत्यक्ष ब्यान ; कंधमाल के दंगों के पीछे धर्मांतरण की भूमिका हो सकती है

1
205

कंधमाल में पिछले साल हुए दंगों के मामले में जांच कर रहे न्यायिक आयोग को पूर्व जिला मजिस्ट्रेट ने बताया कि 2004 से 2007 के बीच धर्मांतरण के मामले आधिकारिक तौर पर दर्ज दो मामलों से ज्यादा थे। वहां धर्मातरण के कई मामले थे, लेकिन कुछ ही जानकारी जिला प्रशासन को मिली37061979_27be00e3d5

कंधमाल में विहिप नेता लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या के बाद बड़े स्तर पर सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई थी। पिछले साल भड़की हिंसा का कारण क्या धर्मांतरण था, इस सवाल पर किसी तरह की टिप्पणी से इंकार करते हुए सिंह ने जिरह के दौरान कहा कि कलेक्टर कार्यालय में धर्मांतरण के मामले दर्ज करने के लिए एक रजिस्टर था लेकिन जनवरी 2004 में जिले में इस तरह के दो ही मामले दर्ज किए गए।

15 सितंबर 2004 से तीन अक्टूबर 2007 तक कंधमाल के डीएम रहे श्री सिंह ने कहा, उड़ीसा में धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के वैधानिक प्रावधानों का पालन नहीं किया गया। धर्मातरण के खिलाफ कोई शिकायत नहीं की गई, इसलिए कोई मुकदमा नहीं चला। उन्होंने कहा कि दूसरी तरफ जनगणना के आंकडे़ बताते हैं कि कंधमाल में सभी धार्मिक समूहों की जनसंख्या बढ़ी है . पूर्व कलेक्टर ने यह भी स्वीकार किया कि कंधमाल में जाली प्रमाणपत्र, सरकारी जमीन पर अतिक्रमण और आदिवासियों की भूमि को गैर जनजातीय लोगों को हस्तांतरित किए जाने से संबंधित मामले भी हुए।

भारत में अब तक दर्जनों आयोग दंगों ,भ्रष्टाचार और हत्या जैसे मुद्दों के लिए गठित हो चुकी है जिनमें से कुछ की रपट आने पर भी कोई परिणाम मिलता नहीं दिख रहा . महाराष्ट्र में मुंबई दंगों की जाँच कर रहे कृष्ण आयोग की रपट अब भी फाइलों में धुल फांक रही है . बहरहाल , कंधमाल दंगों के लिए गठित न्यायिक आयोग की अंतिम रपट के आने तक दंगों के वास्तविक कारणों के सम्बन्ध में कुछ कह पाना कठिन होगा . और आयोग की यह रपट कब तक आएगी इसका तो भगवान हीं मालिक है !

1 COMMENT

  1. कंधमाल आज अरूणाचल बनने की राह पर है। मतलब वहाँ धर्मांतरण का खेल जम कर चल रहा है। यदि आंकड़ों की दुनिया में -हजयाँककर देखें तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कंधमाल में खुमसी गरीबी ने सामाजिक और आर्थिक तौर से पिछड़े लोगों को ईसाई बनने के लिए मजबूर किया। 1991 में कंधमाल में ईसाईयों की संख्या 75597 थी, जो 2001 में ब-सजयकर 117950 हो गयी। मतलब एक दशक में इनकी जनसंख्या में 64.09 फीसदी की ब-सजयोतरी हुई। जाहिर है इतनी बड़ी बा। यह विडम्बना कहले कि फिलहाल राज्य में भाजपा समर्थित सरकार है, इसके बावजूद इसाई मिशनरियाँ लगातार लोगों को कंबल-ब्रेड-कुनैन की गोलियाँ मुफ्त में मुहैया करवाने की आड़ में धर्मान्तरित कर रहीं हैं, बजरंग दल के लोगों की पीड़ा यही है। यह अर्ध्दसत्य है। सरकार की मानें तो यदि मिशनरियों का विरोध सत्ता के गलियारे से होता है तो यह वैश्विक स्तर पर निन्दा और प्रतिक्रिया की बात होगी। यहीं वजह है कि सरकार के लोग चाह कर भी इन मिशनरियों के खिलाफ कुछ भी करने में असमर्थ हैं। हाँलाकि 1950 से लेकर आज तक राज्य में इसाई मिशनरियों को पश्चिमी देशों से सेवा के नाम पर जो पैसे मिले है उनके ऑंकड़े सरकार के पास है, जो चौकाने वाले हैं। इस बारे में नियोगी कमिटी की रिपोर्ट में गहरी चिंता प्रकट की गई है। यह रिपोर्ट मध्य प्रदेश के 480 विदेशी मिशनरियों के कार्यकलाप पर गहरी नजर रख कर तैयार की गई थी, जो बेहद चर्चित हुई थी।

    रिपोर्ट के मुताबिक मिशनरियों द्वारा संचालित विद्यालयों में बच्चों को इसाई बनने के लिए दबाव डाला जाता है। आदिवासी और अनुसूचित जाति के बच्चों को मुफ्त में शिक्षा, आवास और भोजन देने के एवज में उन्हें सुबह-शाम ‘प्रभु के अनमोल शब्द’ गाने के लिए कहा जाता है। इन विद्यालयों में बाइबिल की कक्षाएँ अलग से लगाई जाती हैं। रिपोर्ट में इस बात का खुलासा है कि मध्यप्रदेश (आज का छत्तीसगढ) में उत्सवों और पर्वो में कितनी चालाकी से सलीब का प्रदर्शन और समायोजन किया जा रहा है। अकाल के दिनों में पानी के लिए तरसते और अनाज के लिए तड़पते लोगों को विभिन्न सुविधाएँ देकर उन्हें इसाई बनाने के बारे में रिपोर्ट में लम्बी चर्चा है। यही वजह है कि दिलीप सिंह जूदेव के नेतृत्व में इन्हीं इलाकों में घर वापसी आन्दोलन चलाया जा रहा है।

    आज स्थिति पहले से बदतर है। मध्यप्रदेश में अजीत जोगी की सरकार के प्रति लोगों का प्रबल आक्रोश इसी वजह से था, क्योंकि उनके कार्यकाल में इसाईयत को जमकर ब-सजयावा मिला। आज मध्यप्रदेश, उड़ीसा और छत्ताीसग-सजय में चर्च समर्थित शिक्षण एवं स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना हो रही है। गाँवों में बाइबिल बाँटे जा रहे है। अब तस्वीर का दूसरा रुख भी है। मीडिया हाउस, नई दिल्ली की ‘द पॉलिटिक्स बिहाइन्ड एन्टी क्रिश्चियन वायलेंस’ शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि ‘इसाईयों पर ज्यादातर हमले आदिवासी इलाकों में हुए हैं। खासतौर से शिक्षण संस्थानों पर।’ जिन इलाकों में विकास नहीं पहुँच पाया है वहाँ मिशनरियाँ सक्रिय हैं, सफल हैं इसलिए लोकप्रिय हैं। समाज का एक समर्थ तबका, जो विकास के लिए हल्ला जरूर करता है लेकिन विकास से जुड़े तत्वों के खिलाफ हड़बोग भी मचाता है। क्योंकि ऐसे लोग विकास नहीं चाहते, क्योंकि विकास नहीं होने से ही मुद्दे पनपते है, उन मुद्दों को प्रचारित कर जनकल्याण के नाम पर केन्द्र से पैसे उलीचे जाते हैं। यह बात दूसरी है कि विकास तब भी नहीं हो पाता। इस परिस्थिति में लक्ष्य साधनेवाली संस्थाएँ या लोग जब जनहित के लिए सक्रिय होते है तो विकास का पैसा डकारने वाले लोग हिंसा पर उतारू हो जाते हैं। इसाईयों को प्रताड़ित करने वाले हमलावरों के दलील यही है कि उनका विरोध विकास से नहीं है बल्कि धर्मान्तरण से है। चाहे भील बहुल डांग (1998) की घटना हो या ग्राहम स्टीवर्ट एस्टेंस को जिंदा जलाऐ जाने का प्रकरण इन सब को हिन्दूवादी जायज ठहराते हैं क्योंकि डांग से लेकर मयुरभंज तक के इलाके आज धर्मान्तरण की चपेट में। 24 दिसम्बर 2007 तक अकेले उड़ीसा में 40 चर्च को धराशाही करने वाले त्रिशूली मित्र आगे और भी कुछ कर गुजरने की कस्में खा रहें हैं, धधकते कंधमाल को देखकर ऐसा ही लगता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here