विश्वास के चक्कर में लोगो की टक्कर

bureaucrat
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-दीपक शर्मा “आज़ाद”-

bureaucratना ना ना भाई विश्वास करो वो साहब निर्दोष है, एकदम शरीफ की जात है। आपको मालूम नहीं क्या उनके पास देश की एकमात्र साफ़, स्वच्छ पार्टी का सर्टिफिकेट भी है। फिर आप कैसे उनको झूठा बोल सकते हो। देखा नहीं वो देश की राजनीतिक स्थिति को बदलने के लिए कितना प्रयास कर रहे हैं। दिनभर लगे रहते हैं और अब तो जग जाहिर हो गया रात को भी पार्टी का कार्य बड़ी मेहनत और लगन से करते हैं, बावजूद इसके आप उनपर इस तरह के संगीन आरोप कैसे लगा सकते हैं। क्या आपके पास कोई सबूत-गवाह है, नहीं है न! फिर-फिर! क्यों भाई? अरे वो लड़की गवाह नहीं है, वो तो विपक्षी पार्टी का स्टंट है!

कुछ ऐसे ही साफगोई से इंकार कर रहे हैं, उस राजनीतिक दल के लोग जो अपने को आम आदमी का मसीहा कहते न थकते थे। इन दिनों इस पर हमारे नुक्क्ड़ की चौपाल पर बड़ी बहस चल पड़ी है, दो आदमी पार्टी के फेवर में बोलते है तो तीन आदमी उनके फेवर को घेवर की चाशनी में लपेट कर चट करने के लिए बैठे रहते हैं। ये पांच ही वे लोग है जिन्हें सब नुक्क्ड़ का सरपंच कहते हैं, जब भी नुक्क्ड़ पर कोई कांड होता है या शहर या देश में बवाल होता है तो इन पंचों की पंचायत बैठती है। और बाकी नाई, दर्जी, पनवाड़ी, किराने वाला तेली सब इनकी बातों के चटखारे भरते हैं। वैसे भी जब तक किसी बहस या मुद्दे पर कोई पक्षी-(बे) पक्षी न हो तो बेस्वाद बात पर चटकारे मारने से क्या फायदा। ऐसा लगता है मानों बिना तीखेपन के पानी-पतासी, आलू बिन समोसा या बिन चाशनी घेवर खा रहा हो।

इन दिनों हमारे यहाँ खुदाई चल रही है विश्वास की, देखते हैं कि हमारे आम आदमी चाय और बीड़ी के सुट्टे के बीच कितना विश्वास ला पाते हैं। वहीं नुक्क्ड़ पर विराजमान एक पनवाड़ी तो आजकल इनकी बहस सुनकर पान पर मसाला आधा घंटे तक रगड़ता रहता है। ऐसे में पान खाने वाले साहब भी घंटों पान की रगड़ाई और बहस में बढ़ती लड़ाई देखकर टाइमपास करने लगे हैं। इत्ते में एक नया मसाला आ गया मार्किट में, सुना है कि महिला आयोग की अध्यक्ष और एक सदस्य तो विश्वास पर विश्वास करने के चक्कर में आपस में ही उलझ गयी। सुनी-सुनाई खबर है कि अब वो दोनों ही एक दूसरे पर विश्वास करने में कतरा रही है।

न्यूज़ चैनल्स पर विश्वासलीला जैसे विश्वसनीय कार्यक्रम डेलीशॉप की भांति अब नियमित प्रसारित किये जाने लगे हैं। जिन पर पांच से छ: नेता अपनी स्किल्स और छवि को और ज्यादा चमकाने पर अड़े हैं। इनमे कुछ नेता-नेत्रियां सुन्दर और उज्जवल मुखड़े वाले हैं, हालाँकि इनके चरित्र पर हमारे नुक्कड़ वाले पंचों को अभी भी शक है। एक नेता तो वो है जो कुछ महीने पहले खुद ही किसी महिला के चक्कर में स्टिंग की गिरफ्त में आ गए थे, अब सकुशल उसके चंगुल से छूट आए हैं। और बड़े हँस-हँसकर अपने अनुभव साथी प्रवक्ताओं को सुना रहे थे। चर्चा धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी, सब दिल खोल के अपनी बात रखते हैं, बस जिसका विरोध किया जाता है, वही थोड़ा उखड़ा-उखड़ा नजर आता है। अपने विरोध को तालियों की थापों से जनता के कानों में जबरदस्ती घुसाता है। बड़ा अजीब हो गया है न्यूज़ चैनल्स का माहौल, जिसमें खुल रही है हर दिन किसी न किसी बड़े नेता की पोल। पर ये किस्सा भी एक दिन आया-गया हो जाएगा, यकीं मानों किसी भी नेता को चाहे वो बुराई या असभ्यता का कितना ही बड़ा प्रतिक हो वनवास न किसी को आज तक मिला है और न ही कभी मिल पायेगा। यही है भारतीय राजनीति और ऐसे हैं भारतीय राजनीतिज्ञ।

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