हास्य-व्यंग्य /हवासिंह हवा-हवाई

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पंडित सुरेश नीरव

जब से हवासिंह किसी ऊपरी हवा के प्रभाव में आए हैं बेचारे की तो हवा ही खराब हो गई है। और हवा हुई भी इतनी खराब है कि नाक की प्राणवायु और कूल्हे की अपान वायु में कोई भेद नहीं रह गया है। हवा का ऐसा हवाई सदभाव हवाईसिंह-जैसे बिरलों को ही नसीब होता है। शरीर के दोनों सिरों से प्राणायाम करने का जटिल-कुटिल हठयोग हवासिंह की हवाबाजी का ही दुर्लभ नमूना है। कुछ विद्वानों का तो यहां तक कहना है कि भोपाल में जो गैसकांड हुआ था उसके हाहाकारी यश की जिम्मादारी भले ही यूनियनकार्बाइट ने हथियाली हो मगर उसके मूल उत्पादक अपने हवासिंह भाईसाहब ही थे। अब आप तो सभी जानते ही हैं कि क्रेडिट हड़पने के मामले में इन अमेरिकनों का रिकार्ड तो हमेशा से ही खराब रहा है। हल्दी और नीम तक का पेटेंट-अपहरण करने में कभी न चूकनेवाला अमेरिका गैसकांड-जैसे महत्वपूर्ण और अंतर्राष्ट्रीय कारनामें का श्रेय भारत को कैसे लैने देता। वैसे राज़ की बात यह है कि यूनियन कार्बाइड और हवासिंह दोनों ही गैस उत्पादन की सहोदर संस्थाएं रही हैं। एक में गैस उत्पादन व्यावसायिक स्तर पर होता था और एक में गैस उत्पादन स्वांतः सुखाय होता था। यूनियन कार्बाइड दुर्घटनावश बंद हो गई। मगर हवासिंह संयंत्र आज भी चालू है। गैस लीक करने की अभद्र अमेरिकन शैली भारतीयों को बिलकुल पसंद नहीं आई। इसलिए यूनियन कार्बाइड को बोरिया बिस्तर बांधकर भोपाल से भागना पड़ा। माना कि आजकल भारतीयों का पश्चिमी सभ्यता के प्रति रुझान मंहगाई के ग्राफ की तरह बड़ा है मगर ललित कलाओं का संरक्षण भी तो हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है। हर जलवायु में वायु के शास्त्रीयवादन में हवासिंह की जितनी दक्षता और पारंगतता है वह हमारे लिए राष्ट्रीय गौरव की बात है। उसके आगे टुटरूंटूं अमेरिकन कंपनी की क्या बिसात थी। हवासिंह-जैसा हवाबाज, दुनिया में दूजा और कौन हो सकता है। वो अपने आप में एक ही पीस है। पर उनकी पर्सैनैलिटी इतनी हवाई भी नहीं कि उसे यूं ही हवा में उड़ा दिया जाए। नाना प्रकार की वायुओं की गठबंधन सरकार का केन्द्रीय कार्यालय हैं- हवासिंह। इस कार्यालय की हिफाजत के लिए प्राणों की तो औकात ही क्या है हवा तक की बाजी लगा देते हैं, हवासिंह। क्योंकि उन्होंने पढ़ रखा है कि प्राण भी वायु ही है। और वायु में प्राण हैं और प्राण में वायु है। लेकिन जब अपनी पर आ जाते हैं तो हवासिंह वायु के भी प्राण निकाल देते हैं। और उतनी ही तत्परता से प्राण की वायु भी। अगर शास्त्रों की मान लें तो प्राण भी वायु है तो साहब बड़े-से-बड़े बहादुर भी सिर्फ एक बार ही प्राणोत्सर्ग करके शहीद हो जाते हैं मगर हवासिंह प्रति दिन हवोत्सर्ग की बिना आउट हुए कम-से-कम एक सेंचुरी तो बना ही लेते हैं। है कोई ऐसा जांबाज हवाबाज। इन हवासिंह के प्राण भी सर्कस के पशु-पक्षियों की तरह ट्रेंड हैं। पुलिस छापे के दौरान जैसे कुशल अपराधी भूमिगत हो जाते हैं वैसे ही संकट के समय इनके प्राण पखेरू उड़कर पेड़ पर जाकर निश्चिंत होकर लटक जाते हैं। और फिर संकट खत्म होते ही दुबारा पसलियों के पिंजरे में आकर दुबक जाते हैं। हवासिंह का व्यक्तित्व भी बड़ा हवायु है। हवायु यानी कि हवा और वायु का संयुक्त मोर्चा। जहां हवा को उलटा कर दें तो हवा, वाह..वाह कर उठे और वायु को उलटा कर दें तो वायु युवा हो जाए। खानदानी हवावंशी थे- हवासिंह। सूर्यवंशियों और चंद्रवंशियों के कारनामों के बोझ से तो हमारा इतिहास चरमरा रहा है मगर पराक्रम गाथाओं के बोझसे हांफते इस इतिहास को नीबू की सनसनाती ताजगी से लवरेज करने का काम इतिहास के दुर्लभ हवावंश गोत्र के इस इकलौते हवांतक राजकुमार का ही है। हवासिंह का कहना है कि पवनपुत्र हनुमान भी इनके हवावंश के ही वीर योद्धा थे। मगर इतिहासकारों की हवावंश का इतिहास लिखने में हवा खराब हो जाती थी। इसलिए किसी ने भी इन महान हवावंशियों का जिक्र जानबूझ कर नहीं किया। वरना समुद्र लांघने और संजीवनी बूटी वाले सुमेरु पर्वत को हाथ में लेकर उड़ने का दुरूह कार्य करनेवाले हवावंशियों को इतिहास में सूर्यवंशियों और चंद्रवंशियों-जैसी इंपोर्टेंस क्यों नहीं दी गई। उनकी तारीफ की हवा क्यों नहीं बांधी गई। और क्यों इनके योगदान को हवा में उड़ा दिया गया। क्या इन महत्वपूर्ण बातों को यूं ही हवा में उड़ाया जा सकता है। हवासिंह का गुस्सा जायज है। सचमुच में हवावंशिंयों के साथ परम अन्याय हुआ है। हवावंशियों के कारनामों के पुनर्मूल्यांकन के लिए ही इतने दिनों बाद हवासिंह का अवतार इस पृथ्वी पर हुआ है। हवासिंह हवावंश का इतिहास हवा के पन्नों पर लिखकर, देश में ही नहीं पूरी दुनिया में एक नई हवा बहा देंगे। हवासिंह के हवाई कारनामें इतिहास की उस हवाविहीन बॉडी में फिर से हवा पंप कर देंगे जो विरोधियों ने निकाल दी थी। अब हवासिंह अपने रास्ते में आनेवाले किसी भी विरोधी के मनसूबों के ट्यूब और गुब्बारों को आक्रोश की सुई चुभाकर पंक्चर कर देंगे। इतिहास के आकाश में हवावंश की वीरगाथाओं की हवा से भरे नए गुब्बारे वह फिर से उड़ा देंगे। हवावंशियों की प्रशंसा की हवेलियों और हवामहलों को हवाओं में बनाकर हवासिंह तैरा देंगे। हवावंशियों के सम्मान में बने हवाना शहर को हवासिंह विश्व संरक्षित शहर घोषित कराकर ही दम लेंगे। वरना वे अच्छों-अच्छों की हवा निकाल देंगे। फिर भले ही पृथ्वी पर बुरे लोग ही रह जाएं। क्योंकि अच्छों की तो हवा निकालकर पहले ही निबटा देंगे, हवासिंह। उनकी हवाई बातों को पहले तो मैं भी लाइटली ही लेता था मगर उनकी वैज्ञानिक सूझबूझ की एक विराट झलक ने मेरे विचारों की तुच्छ आबो-हवा को ही बदल डाला। वह संसार के सारे वैज्ञानिकों को, और विचारकों को ललकारते हुए किसी यक्ष की मुद्रा में पूछते हैं कि न्यूटन ने यह छोटी-सी बात तो सब को बता दी कि ऊपर की चीज़ नीचे पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण की शक्ति के कारण जाती है मगर कोई चीज़ इस गुरुत्वाकर्षण शक्ति के विपरीत ऊपर क्यों जाती है, हवा से भरे गुब्बारे आकाश में ऊपर ही क्यों जाते हैं,अग्नि की ज्वाला और धुंआ ऊपर क्यों जाता है, इसके बारे में क्यों नहीं बताया। कभी सोचा है किसी ने इस मुद्दे पर कि कौन-सी शक्ति है जो इन चीजों को ऊपर खींचती है। उनका दृढ़ विश्वास है कि यह सारे कारनामे उनके हवावंशी पुरखों की कृपा का ही परिणाम है। वह हवा में बैठे-बैठे इन गुब्बारों की डोरी अपनी ओर खींचते रहते हैं। और धुएं को लपकते रहते हैं। जबाव चाहिए हवासिंह को कि एक आदमी जो सात-आठ फुट से ऊंचा नहीं उचक सकता तो कौन है जो उस अदना से आदमी के बिना पंखवाले दिमाग को सातवें आसमान तक पहुंचाता है। कहां चला जाता है तब न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत। सिगरेट का धुंआ और मंहगाई हमेशा ऊपर ही क्यों जाते हैं। इन्हें क्या इसरो और नासा की मदद से ऊपर पहुंचाया जाता है। कोई किसी को अपने से ऊपर नहीं देखना चाहता। फिर कौन-सी शक्ति है,जो इन्हें ऊपर खींचती है। और-तो-और जब आदमी के होश उड़ते हैं तभी वह बेहोश होता है। बेहोश पड़े आदमी के होश कौन उड़ाता है। वह आदमी खुद तो बेहोश पड़ा होता है। और किसी दूसरे आदमी को जरूरत क्या पड़ी है, उसके होश ऊपर उड़ाने की। ऐसे ही जब आदमी मर जाता है तो फिर उस निर्जीव के प्राण पखेरू ऊपर कौन उड़ाता है। उसके प्राण पखेरू ऊपर ही क्यों उड़ते हैं। इस चर-अचर संसार में कौन है जो रात-दिन पृथ्वी की इस गुरुत्वाकर्षण शक्ति की हवा खराब करता रहता है। ऐसे ही गंभीर मुद्दों की पड़ताल करते हुए हवासिंह पूछते हैं कि मजाक क्यों और कैसे उड़ता है। खिल्ली उड़ती ही क्यों है। रेंगती क्यों नहीं। और फिर ये खिल्ली और मजाक आपका। और इसे उड़ाए कोई दूसरा। कौन है ये दूसरा। वो आदमी जो कभी इस बात पर यकीन नहीं करता,रात-दिन बहस करता है कि हनुमानजी सुमेरु पर्वत लेकर उड़े थे या नहीं लेकिन जब उसकी पहाड़नुमा बीवी को लेकर कोई उड़ जाता है तो उसे विश्वास हो जाता है कि हनुमानजी पहाड़ लेकर जरूर उड़े होंगे। तय है कि वे साधारण मनुष्य कतई नहीं होंगे। साधारण आदमी जो अपनी हवा बंद हो जाने पर चूरण की शरण में चला जाता हो। क्या खाकर पहाड़ लेकर उड़ेगा। अरे,यह सारे अलौकिक कार्य हमारे हवावंशियों के ही हवाई कारनामें है। हवालात में हवा और लात का फास्टफूड खानेवाले फुस्स आदमी के नहीं। जो डायरी में भी हवा खाले तो हवा-ला कांड हो जाए। हवा में गांठ बांधने के जब भी हवात्कारी चमत्कार हुए हैं,वह सब हमारे हवावंशियों के हवाले से ही हुए हैं। और भविष्य में भी होते रहेंगे। यह कहते हुए हवासिंह खुद ज्वलनशील गैस के सिलेंडर हो जाते हैं। वो फड़फड़ते हुए पूछते है कि हजारों-लाखों बुझे दीपक और डूबी हुई नावों के मलबे पर खड़े कथित आदमी के फ्लैटों की बिजली कौन उड़ाता है। हवा का रुख देखकर ही क्यों उड़ती है बिजली। फिर खुद ही गुत्थी सुलझाते हैं- अरे बिजली मैया भी हवा पर सवार होकर ही उड़ती हैं। वो भी हमारे हवावंशी फेमिली की ही हैं। कभी सुना है आपने कि विज्ञान के विमान में बैठकर कभी-कहीं बिजली उड़ी हो। हवा धर्मनिरपेक्ष होती है। हवा का कोई मजहब नहीं होता। हमारे हवा के देश में कोई क्षेत्र विशेष नहीं होता मगर आदमी ने उसे भी पुरवा और पछवा हवा कहकर क्षेत्रियता में बांटने की कुत्सित कोशिश की है। हो सकता है कि कल आदमी हवा को इतने टुकड़ों में बांट दे कि मौसम वैज्ञानिक भविष्यवाणी करते हुए कहें कि आज साउथ इंडियन हवाएं इतनी तेज़ चलेंगी कि नॉर्थइंडियन हवाओं की हवा खराब हो जाएगी। इस आदमी का सोच ही हमेशा घटिया रहा है। मगर जब यही हवाएं तूफान के स्टेडियम में एक साथ मिलकर भांगड़ा करने लगती हैं तो मौसम वैज्ञानिकों की हवाई भविष्यवाणियां भी हवा के साथ-साथ,हवा के संग-संग, हवा में तिनकों की तरह उड़ जाती हैं। और तब पराजय के पसीने से लथपथ आदमी डॉयलॉग मारता है कि वो दिन हवा हुए जब पसीना गुलाब था। कितना झूठ बोलता है आदमी। उसका पसीना कभी गुलाब नहीं होता। वरना टीवी के पर्दे पर विशेष नस्ल का स्प्रे करती हसीनाएं नो पसीना का विजयी गीत काहे को गातीं। आदमी के इस झूठ को देख-सुनकर हवासिंह कहते हैं कि- हम हवावंशी इतना गुस्सया जाता हूं कि हमरे दांतों को भी पसीना आ जाता है। अब कल ही का बात है कि एक बहनजी रेडियो पर रंभाय रही थीं कि- पंख होते तो उड़ जाती रे रतिया हो बालमा। कहां पंखहीनता का स्यापा और उसके तनिक ही देर बाद एक दूसरी बहनजी पता नहीं चिल्ला-चिल्लाकर गा रही थीं कि गा-गाकर चिल्ला रही थीं कि- उड़ी-उड़ी जाऊं रे…उड़ी-उड़ी जाऊं रे। हमरी तो हालत ही खराब हो गई। भेजा से दिमाग और हाथ के तोते इस चिल्ल-पौं को सुनकर दोनो सलाह करके साथ-साथ उड़ गए। आखिर तोतों की भी तो कोई ईज्जत होती है। वे हाथों के तोते थे कोई आस्तीन के सांप नहीं, जो उड़ नहीं पाते। उन्होंने जैसे ही सुना कि बिना पंखोंवाली बहनजी उड़ सकती हैं तो हम पंख लिए हाथों पर हाथ धरे हाथों का तोता बने काहे को अपनी बेइज्जती खराब कराएं। ससुर फट्ट से उड़ गए। हवासिंह के दिमाग में विचार आया है कि बहनजी के कहीं पंख तो नहीं निकल आए। सुना है कि चींटी के भी एक विशेष समय में पंख निकल आते हैं। शायद उसी डिजायन के पंख बहनजी के भी निकल आए हों। और शायद वो भी अपनी जिंदगी की पहली और आखिरी उड़ान भरने की सूचना गा-गाकर दे रही हों- उड़ी-उड़ी जाऊं रे…। चींटी ही होंगी,बहनजी,परी तो हैं नहीं। परियां तो हवावंशी होती हैं। हवासिंह के वंश की। यह कह कर हवासिंह हवा हो गए। वो हैं ही हवा-हवाई।

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