पंडित सुरेश नीरव
शिक्षा और भैंस का संबंध पुराणकाल से ही फसल और खाद तथा सूप और सलाद की तरह घनिष्ठ रहा है। ये बात और है कि हमारा अपना व्यक्तिगत संबंध शिक्षा के साथ वैसा ही है जैसा कि भट्टा-पारसौल के किसानों का संबंध बिल्डरों के साथ। अगर ज़मीन किसान की जायदाद है तो शिक्षा हमारी जायदाद है। हमारी ज़मीन पर पुश्तैनी भैंसों का तबेला चलता था अब जिसके लिए काला अक्षर भैंस बराबर हो और जिसके पास नकद पचास भैंसें हों तो वो तो दुनिया के सभी पढ़े-लिखे लोगों से एक अक्षर ज्यादा का ज्ञानी हुआ कि नहीं। क्योंकि दुनिया के किसी भी भाषा में वर्ण सिर्फ उनचास ही होते हैं। और हमरे पास भैंसें थीं पूरी पचास। ससुर हमसे ज्यादा पढ़ैया और कौन होगा संसार में यही सोचकर हमने अपने तबेले में स्कूल खोलने की ठान ली। और जय बजरंग बली कहकर स्कूल खोल डाला। तबेले के बजाय स्कूल खोलने में फायदा-ही-फायदा है।
वो का है कि तबेले में दिनभर बस एक-सी भैंसे देखते रहो। स्कूल खोल लो तो अलग-अलग डिजायन की मस्त-मस्त मास्टरनियां निहारो। जिन्हें देखकर वे बूढ़े जो बेचारे बचपन में पढ़ नहीं पाए वे भी लाठी टेकते हुए पढ़ने की लालसा लिए चले आते हैं। सारे गांव में सिच्छा का वातावरण बन गया है। पहले हमारे भेजे में हिंदी मीडियम स्कूल खोलने का फितूर जागा तो हमारे तबेले के गोबर उठाने का बौद्धिक काम करनेवाले गोबर-उठैयाओं ने एक सुर में हमें चेताया कि- चौधरी साहब आप इज्जतदार आदमी हैं। आपको क्या ये शोभा देगा कि आप हिंदी मीडियम स्कूल चलाएं। अरे इससे तो फिर तबेली ही अच्छा है। स्कूल चलाना है तो अंग्रेजी मीडियम का स्कूल ही चलाइए। मोटी फीस और पतली मास्टरनियां अंग्रेजी स्कूल के बूते ही हासिल होती हैं। देख लेना अंग्रेजी मीडियम का स्कूल खुलते ही गांव के सारे चाचा-ताऊ जै रांमजी का कीर्तन छोड़कर गुडमॉर्निंग मैम की जुगाली करते हुए यही सुबह-सुबह योगासन करेंगे। और कुछ उत्साही प्रौढ़-शिशु तो एडमीशन की लाइन में भी लग जाएंगे।
अंग्रेजी मीडियम स्कूल का एक और फायदा है। गोबर उठैयों ने रहस्योदघाटन किया- वो क्या है कि अंग्रेजी मीडियम में पढ़ाने से मास्टर की गलती पकड़ाई नहीं आती है। इसलिए अंग्रेजी मीडियम स्कूल खोलने पर आपको अलग से मास्टर भी नहीं रखने पढ़ेंगे। हम जितने भी गोबर-उठैया भैया हैं सब शाम को मास्टरनियों से ट्यूशन पढ़ लेंगे और शाम के गुप्तज्ञान को अपनी अंटी में रखते हुए सार्वजनिक ज्ञान सुबह बच्चों में बांट दिया करेंगे। सारे बच्चे रटंत तोता हो जाएंगे। ये देख कर उनके अम्मा-बाप के हाथों के तोते उड़ जाएंगे। हम लोग जो पढ़ाएंगे अगर उसका आधा भी बच्चों ने समझ लिया, चौधरी साहब तो समझो एक-दो आईएएस तो हर साल हमारे स्कूल की बदौलत ही इस देश को मिल जाया करेंगे। आखिर हमारी काबिलीयत भी तो कोई चीज़ है। तबेले में भैसों के आगे बीन बजाने का हमारा अखंड-प्रचंड धारावाहिक अनुभव किस दिन काम आएगा। जो कुछ भी हमारे भेजे में अभी तक कुलबुला रहा है सब बच्चों के दिमाग में ठूंस देंगे। सिच्छा के भंडार की बड़ी अपूरब बात..ज्यों खरचे त्यौं-त्यौं बढ़े बिन खरचै घट जात। तबेले के शिक्षाविदों ने अट्टहास किया। चौधरी साहब ने आगे कथा सुनाते हुए हमें बताया कि गोबरउठौयों ने फिर कहा कि सदियों से अनसुलझी रही- अकल बड़ी या भैंस-जैसी गुत्थी अपने अंग्रेजी मीडियम स्कूल के जरिए सुलझाकर सफलता के झंडे गाढ़कर-गिनीज़ बुक का सीना फाड़कर हम अपने स्कूल को मदर डेयरी से भी बड़ा बना देंगे। हम सब आपके और आपकी भैंसों के पुश्तैनी सेवक हैं। हम गोबर को गुड़ बनाना जानते हैं। गुड़ का गोबर कभी नहीं करते। अगर हम अपने गोबर में गुड़ कर सकते होते तो सुलभवाले हमसे अठन्नी थोड़े ही लेते। खैर आपकी भैंस को हम पानी में नहीं जाने देंगे। बस आपसे एकई बिनती है चौधरी साहब कि जब हम कच्छा में पढ़ाय रहे होंय तब आप हम लोगन से बीड़ी मांगने मत आय जइयो। काहे कि अंग्रेजी मीडियम के तो छात्र भी ससुर बीड़ी नहीं सिगरेट पीयत हैं। और दोस्तो इस तरह अटपटे और चटपटे ढंग का ये अलबेला मदर भैंसलो पब्लिक स्कूल आज अपनी खास विशेषताओं के कारण चिरकुटपुर का स्थानीय स्तर पर वर्ड फेमस स्कूल बन चुका है। अगर इस स्कूल में आपको खुद पढ़ने या अपने जायज-नाजायज बच्चों को पढ़ाने की इच्छा हो रही हो तो हमसे संपर्क करें।
नीरव जी
थान्कू तुमरे अस्कुल में रीड करके हमकू भी हिंगलिश आने लगा है .
अब हम अपने बच्चो को भी थिर्द क्लास हिंदी मीडियम से हटा कर .
इधरच हेदमिशन दिलाएगा १०-१२ तो ias pcs हो ही जायेंगे