लोकपाल-हमाम में सभी नंगे!

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ 

लोकपाल विधेयक के बहाने कॉंग्रेस के नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबन्धन यूपीए और भाजपा के नेतृत्व वाले मुख्य विपक्षी गठबन्धन एनडीए सहित सभी छोटे-बड़े विपक्षी दलों एवं ईमानदारी का ठेका लिये हुंकार भरने वाले स्वयं अन्ना और उनकी टीम के मुखौटे उतर गये! जनता के समक्ष कड़वा सत्य प्रकट हो गया!

जो लोग भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डुबकी लगाते रहे हैं, वे संसद में भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिये आँसू बहाते नजर आये! सशक्त और स्वतन्त्र लोकपाल पारित करवाने का दावा करने वाले यूपीए एवं एनडीए की ईमानदारी तथा सत्यनिष्ठा की पोले खुल गयी! सामाजिक न्याय को ध्वस्त करने वाली भाजपा की आन्तरिक रुग्ण मानसिकता को सारा संसार जान गया! भाजपा देश के अल्प संख्यकों के नाम पर वोट बैंक बढाने की घिनौनी राजनीति करने से यहॉं भी नहीं चूकी|

भाजपा और उसके सहयोगी संगठन एक ओर तो अन्ना को उकसाते और सहयोग देते नजर आये, वहीं दूसरी ओर मोहनदास कर्मचन्द गॉंधी द्वारा इस देश पर जबरन थोपे गये आरक्षण को येन-केन समाप्त करने के कुचक्र भी चलते नजर आये!

स्वयं अन्ना एवं उनके मुठ्ठीभर साथियों की पूँजीपतियों के साथ साठगॉंठ को देश ने देखा| भ्रष्टाचार के पर्याय बन चुके एनजीओज् के साथ अन्ना टीम की मिलीभगत को भी सारा देश समझ चुका है| सारा देश यह भी जान चुका है कि गॉंधीवादी होने का मुखौटा लगाकर और धोती-कुर्ता-टोपी में आधुनिक गॉंधी कहलवाने वाले अन्ना, मनुवादी नीतियों को नहीं मानने वाले अपने गॉंव वालों को खम्बों से बॉंधकर मारते और पीटते हैं!

भ्रष्टाचार मिटाने के लिये अन्ना भ्रष्टाचार फैलाने वाले कॉर्पोरेट घरानों और विदेशों से समाज सेवा के नाम पर अरबों रुपये लेकर डकार जाने वाले एनजीओज् को लोकपाल के दायरे में क्यों नहीं लाना चाहते, इस बात को देश को समझाने के बजाय बगलें झांकते नजर आये! जन्तर-मन्तर पर लोकपाल पर बहस करवाने वाली अन्ना टीम ने दिखावे को तो सभी को आमन्त्रित करने की बात कही, लेकिन दलित संगठनों को बुलाना तो दूर, उनसे मनुवादी सोच को जिन्दा रखते हुए लम्बी दूरी बनाये रखी है!

संसद में सभी दल अपने-अपने राग अलापते रहे, लेकिन किसी ने भी सच्चे मन से इस कानून को पारित कराने का प्रयास नहीं किया| विशेषकर यदि कॉंग्रेस और भाजपा दोनों अन्दरूनी तौर पर यह तय कर लिया था कि लोकपाल को किसी भी कीमत पर पारित नहीं होने देना है और देश के लोगों के समक्ष यह सिद्धि करना है कि दोनों ही दल एक सशक्त और स्वतन्त्र लोकपाल कानून बनाना चाहते हैं| वहीं दूसरी और सपा, बसपा एवं जडीयू जैसे दलों ने भी लोकपाल कानून को पारित नहीं होने देने के लिये संसद में बेतुकी और अव्यावहारिक बातों पर जमकर हंगामा किया| केवल वामपंथियों को छोड़कर कोई भी इस कानून को पारित करवाने के लिये गम्भीर नहीं दिखा| यद्यपि बंगाल को लूटने वाले वामपंथियों की अन्दरूनी सच्चाई भी जनता से छुपी नहीं है|

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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मीणा-आदिवासी परिवार में जन्म। तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष बाल-मजदूर एवं बाल-कृषक। निर्दोष होकर भी 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे। जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! 20 वर्ष 09 माह 05 दिन रेलवे में मजदूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, नक्सलवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म, दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़न सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्लेषक, टिप्पणीकार, कवि, शायर और शोधार्थी! छोटे बच्चों, वंचित वर्गों और औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष-‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (BAAS), राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स एसोसिएशन (JMWA), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा/जजा संगठनों का अ.भा. परिसंघ, पूर्व अध्यक्ष-अ.भा. भील-मीणा संघर्ष मोर्चा एवं पूर्व प्रकाशक तथा सम्पादक-प्रेसपालिका (हिन्दी पाक्षिक)।

9 COMMENTS

  1. श्री जीत भार्गव जी आप लिखते हैं कि

    ‘‘मीणा साहब, आप खुद शराबखोरी के सख्त खिलाफ हैं| आपकी जीवनचर्या किसी कथित ब्राह्मण से कम सात्विक नहीं है| फिर आप अन्ना द्वारा दारुबंदी संबंधी बयान को इतना तूल क्यों दे रहे हैं!!’’

    सबसे पहले तो मैं स्पष्ट कर दूँ कि मैं अन्ना के दारूबन्दी के विचार के नहीं, बल्कि दारूबन्दी के तालिबानी तरीके के खिलाफ हूँ|

    अब आगे मैं यह कहना चाहता हूँ कि आपका यह कथन मुझे नहीं पता कि क्या-क्या और किधर-किधर संकेत करता है? लेकिन सात्विकता से कई गुना बढ़ा है-मानव मूल्यों का रक्षण और संक्षण! सात्विकता से कई गुना बढ़ा है-समाज में मानव का संवेदनशील बने रहना और असंवेदनशीलता से ग्रस्त तथा मनमानी करने वाले लोगों पर समाज तथा कानून का नियंत्रण! कानून द्वारा ऐसे लोगों को कठोरतम दंड दिया जाना, बेशक ऐसा करने वाला कोई भी क्यों न हो!

    अन्यथा कानून के शासन का मतलब ही क्या रह जाएगा? मानव गरिमा का मतलब ही क्या रह जायेगा! ऐसे लोगों की मनमानी की अनदेखी, सीधे-सीधे अपराध की अनदेखी है! ये अपराधों को बढ़ावा है!

    इसके विरोध को आप “तूल देना” कह रहे हैं! मुझे दुःख है कि इंसाफ मांगने या इंसाफ की बात करने को ‘‘तूल दें रहे हैं’’ ऐसा कह कर आप समाज के बहुसंख्यक दमित लोगों के जख्मों को कुरेद रहे हैं!

    ध्यान रहे कि जब मैं दमित शब्द का उपयोग करता हूँ तो इसका अर्थ केवल स्त्री, दलित, आदिवासी और प़िछडे वर्ग (जो सभी मनुवादी व्यवस्था में शूद्र कहलाते हैं) ही नहीं हैं| बल्कि आज की बदलती परिस्थितियों के अनुसार हर धर्म, वर्ग और जाति का कमजोर व्यक्ति कहीं न कहीं दमित है| मैंने अनेक राजपूत, बनिया और ब्राह्मनों के साथ होने वाले अन्याय और शोषण को रुकवाने के लिये शूद्रों की खिलाफत की है| लेकिन यही सच है कि कमजोर लोगों में बहुसंख्यक आज भी शूद्र ही हैं|

    मैं ये वाक्य बचपन से सुनता आया हूँ कि ‘थप्पड़ मार दिया तो क्या हुआ? मंदिर से नीचे उतार दिया तो क्या हुआ? औरत का हाथ पकड़ लिया तो क्या हुआ (आदि आदि..) इसे इतना तूल क्यों दे रहे हो?’

    क्या अन्याय का विरोध करना तूल देना है और अन्यायी को सजा नहीं देना न्याय है? क्या आप समझाना चाहेंगे कि ये किस संस्कृति और किस धर्म की शिक्षा है? क्या आप नहीं मानते हैं कि ये ही वो क्रूर और घृणित मानसिकता है जो अन्याय तथा अन्यायी को बढावा देती है और हमको एक नहीं होने देती है|

    क्षमा करें हजारों घटनाओं के कारण मेरा ऐसा अनुभव है कि ये सोच ‘‘अमानवीय मनुवाद’’ का ‘‘घृणित उत्पाद’’ है! आखिर क्यों किसी भी जाति के कथित एक नशेड़ी, अपराधी या पतित या बदचरित्र या कमजोर या एक स्त्री या दमित या दलित या आदिवासी के मानवीय हकों की रक्षा करना आप जैसे उच्च जातीय ब्राह्मणों के लिए नैतिक रूप से जरूरी नहीं है? इन लोगों के साथ सक्षम और समर्थ लोगों द्वारा नैतिकता, धर्म और संस्कृति के नाम पर किये जाने वाले अत्याचारों को लेकर आप लोगों की आत्मा, आपको झकझोरती क्यों नहीं है? आखिर इन वर्गों के साथ होने वाले अन्याय को आप तूल देना क्यों मानते हैं! और ऐसा कब तक कहते रहेंगे? ये खुलेआम अन्याय और अन्यायी को बढावा देना ही तो है!

    कृपया इस प्रकार की सार्वजनिक अभिव्यक्ति और अपराधियों को समर्थन देने की वृत्ति को छोड़ें, यदि आप सौहार्द तथा संस्कृति का मतलब समझते हैं और मानव मूल्यों के समर्थक हैं तो अन्ना जैसे अपराधियों का समर्थन करना छोड़ें!

    अन्त में, मैं आपको एक नवीनतम घटना के बारे में बतलाना जरूरी समझता हूँ| पिछले दिनों मैं एक गॉंव में गया| उस गॉंव में बनिया का एक घर है| बनिया की जवान अविवाहित लड़की को उस गॉंव के बहुसंख्यकों (जो ब्राह्मण, बनिया या राजपूत नहीं हैं, लेकिन वे सभी ब्राह्मणों द्वारा संस्कारों में दी गयी मनुवादी शिक्षा से संस्कारित हैं| जिसके तहत कहा गया है कि ‘समर्थ को नहीं दोष….’ जिसके चलते अन्ना भी समर्थ हैं और आप उसके साथ खड़े हैं) के एक लड़के ने अकेले में पकड़ा, उसे छेड़ा और अपने साथ यौन सम्बन्ध बनाने के लिये उत्प्रेरित किया| हो सकता है कि वह उसकी इज्जत भी लूट लेता, यदि कुछ बजुर्ग लोग अचानक वहॉं नहीं आ गये होते|

    यह कोई पहली और अनौखी घटना नहीं है| ऐसा आमतौर पर देशभर में सर्वत्र सभी कमजोर व दमित लोगों के साथ होता रहता है| लड़के को पकड़ा गया और लोगों का हुजूम जमा हो गया|
    संयोग से मैं मेरे संगठन के लोगों के साथ उधर से आ रहा था| हमने रुककर देखा और घटना की जानकारी प्राप्त की तो लड़की का पिता रो-रो कर इंसाफ की मांग कर रहा था|

    लोग उसे ये कह कर समझा रहे थे कि जो हो गया सो हो गया अब इस बात को यहीं खतम करो और बात को अधिक ‘‘तूल मत दो’’! चलो छोडो लड़की की इज्जत तो बच गयी!

    इस बात को सुनकर मेरे तनबदन में आग लग गयी| मैंने लड़के के पिता को (जो उस गॉंव का प्रमुख व्यक्ति था) साफ शब्दों में कहा कि यदि आप धृतराष्ट्र नहीं हैं तो आपको अपने बेटे को अभी और इसी समय दण्ड देना चाहिये, अन्यथा हम लोग कानून की मदद लेंगे और पुलिस को सूचित करेंगे| इस पर लड़के के बाप ने भी आप ही की भाषा का उपयोग किया और कहा कि-

    ‘‘बाबूजी छोटी सी बात है, हम गॉंव के लोग निपट लेंगे| आप बात को क्यों तूल दे रहे हैं, लड़के की ओर से मैं माफी मांगता हूँ, लेकिन गलती बनिया की छोरी की ही है| वो लटके-झटके करके गॉंव में घूमेगी तो गॉंव के छोरे तो छेड़ेंगे ही! इसमें कौनसी बड़ी बात है!’’

    हम चुप नहीं रहे और आखिर में मामला कानून तक पहुँचा और आखिर में लड़के ने और उसके माता-पिता ने लिखित में माफी मांगी तथा लड़के से लिखित में स्वीकार करवाया गया कि उसने गलती की थी| जिसके लिये वह शर्मिन्दा है और भविष्य में कोई गलती नहीं करेगा| यदि फिर से गलती करे तो उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही की जावे| इस कागज की एक-एक कॉपी लड़की के पिता को, पुलिस को और हमारे संगठन को दी गयी|

    मैं श्री जीत भार्गव जी और “तूल मत दो” में आस्था रखने वालों से पूछना चाहता हूँ कि इस मामले को तूल देकर हमने कौनसा अपराध किया है? क्या इंसाफ की मांग को तूल देना कहकर आप हर उस व्यक्ति को अपमानित नहीं कर रहे हैं, जो उत्पीड़ित और व्यथित है? क्या ऐसा करके आप मनुवादी मानसिकता के घृणित उत्पाद अन्ना हजारे जैसे अपराधियों का संरक्षण नहीं कर रहे हैं?

    अन्ना जैसे लोग जिस मानसिकता के कारण शराबियों की पिटाई कर रहे हैं| इसी मानसिकता के चलते दूसरे लोग दलित दूल्हे के घोड़ी पर बैठने का, हरिजनों के मन्दिरों में प्रवेश का और भोजनालयों में खाना खाने का विरोध करते हैं| स्त्री आरक्षण का विरोध करते हैं| दलित-आदिवासियों के सैपरेट इलेक्ट्रोल के हक को छीनने वाले गॉंधी का गुणगान करते हैं! ये बहुत लम्बी फेहरिस्त है| जिसका दर्द आप तब तक नहीं समझ सकते, जब तक कि आपको इस दर्द का अहसास खुद नहीं होगा!
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकश’
    सम्पादक-प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक) तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    फोन : 0141-2222225 मो.98285-02666

  2. मीणा साहब , आप खुद शराबखोरी के सख्त खिलाफ हैं. आपकी जीवन चर्या किसी कथित ब्राह्मण से कम सात्विक नहीं है. फिर आप अन्ना द्वारा दारुबंदी संबंधी बयान को इतना तुल क्यों दे रहे हैं…!!

  3. श्री तापस याग्निक जी आपने अपनी टिप्पणी दिनांक : ०३.०१.१२ में अनेक बात लिखी हैं, जिनमें से बिन्दु नंबर दो, यथा……

    “२) मनुवाद को मैं ठीक से नही जानता पर अगर बात रही संस्कृति की तो कभी भी भारतीय महिलाओं को काम न करने की बाध्यता नही रही , अपितु उनका समाज में बराबर की हिस्सेदारी रही है . राजनीती , शिक्षा एवं समाज के अन्य कार्यो में उनका पुरुषो के बराबर ही मान रहा है!”

    जब तक आप मनुवाद या मनुस्मृति को नहीं जानते तब तक इस बारे में आप कितनी सही टिप्पणी कर सकते हैं? ये सवाल अपने आप से पूछें! इसी का परिणाम है कि आप एक हवाई टिप्पणी कर रहे हैं! यथा—

    “कभी भी भारतीय महिलाओं को काम न करने की बाध्यता नही रही , अपितु उनका समाज में बराबर की हिस्सेदारी रही है.”

    मनुवाद या मनुस्मृति का ज्ञान नहीं है, वहन तक तो ठीक है, लेकिन इस टिप्पणी से तो लगता है कि आपको आज के समाज की सच्ची तश्वीर भी नहीं दिख रही है!

    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
    संपादक प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित हिंदी पाक्षिक)

  4. मनुवाद जानने के लिए मनुस्मृति पढिये जनाब !शायद तब भी आपको यह जानकर आश्चर्य न हो कि जो बाते आपने लिखी है उस तरह का कानून मनुस्मृति में शुद्रो के लिए पहले से ही लागु था ? जाति के नाम पर एवं वर्ण के नाम पर सवर्णों की योग्यताये एवं अवर्णों तथा शुद्रो की निर्योग्यताओ के बारे में जानने के लिए पढ़े-”मनुस्मृति”https://www.apnihindi.com/2011/01/blog-post_14.html

  5. मीणाजी,खिंचाई तो आपने सब की कर दी,पर आपकी दृष्टि में भी भ्रष्टाचार की समस्या तो देश में है ही.फिर इसका समाधान क्या है?

  6. आदरणीय श्री तपस जी, सर्वप्रथम आपने टिप्पणी की इसके लिये मैं आपका आभार व्यक्त करता हूँ| द्वितीय आपकी टिप्पणी पढकर लगता है कि आप एक विद्वान एवं सभ्य व्यक्ति हैं|

    परन्तु सवाल यह है कि हर शराबी की शराब को छुड़ाना तो मैं भी चाहता हूँ, बल्कि मैं तो शराब के उत्पाद और बिक्री की पूर्ण सरकारी पाबन्दी के पक्ष में हूँ, किन्तु यह सब करने का तरीका अन्ना जी ने जो अपना रखा है, क्या आप इसे संविधानेत्तर (संविधान से परे) नहीं मानते?

    यदि नहीं तो फिर जींस पहनने वाली लड़कियों, पर्दा नहीं करने वाली महिलाओं और नौकरी करने जाने वाली औरतों को भी यह कहकर कि वे मनुस्मृति और हिन्दुत्वादी संस्कृति का अपमान कर रही हैं, उन्हें भी अन्ना जी या कोई दूसरे अन्ना जैसे मनुवादी समाज सुधारक द्वारा मारने-पीटने और खम्बे से बांधने को भी आप मानवता के हित में उपयुक्त समझेंगे?

    यदि यही मानवता की परिभाषा है फिर तो भारत सरकार को तत्काल मानव अधिकार संक्षरण अधिनियम में संशोधन करना होगा|

    श्री तपस जी भारत में पुलिस सहित किसी को भी किसी मानव को मारने-पीटने का हक नहीं है, फिर अन्ना कौन होते हैं, किसी को मारने-पीटने वाले?

    यदि अन्ना के इस कृत्य को आप गॉंव की प्रगति के लिये उपयुक्त मानते हैं तो फिर तो प्रत्येक हत्यारे, बलात्कारी, चोर-डकैत को तो आप तत्काल गोली मार देने या फिर चौराहे पर पत्थर मारने की सजा देने को भी मानवता के हित में समझेंगे?

    फिर तो इस्लामिक तालिबानियों में और अन्नावादी मनुवादियों में आप कैसे अन्तर करेंगे? तालिबानी भी तो इस्लाम के हित में ही शरिया कानून को लागू करने की बात कहते हैं और जो नहीं मानता है, उसे सार्वजनिक रूप से अन्ना की ही भांति सजा देते हैं|

    यदि अन्ना के शराबियों को सार्वजनिक रूप में खम्बे से बॉंधकर पीटने के आपराधिक कृत्य को सही ठहराया गया तो गन्दी नालियों की सफाई नहीं करने वाले मेहतर को सफाई करने से इनकार करने पर उसे तो जान से ही मार दिया जाना आपको मानवता के हित में ही लगेगा|

    यही तो वो मनुवादी रुग्ण व्यवस्था है, जो न मात्र अमानवीय है, अपितु हजारों वर्षों से रुग्ण और अमानवीय सोच को भी बढावा देती रही है| मानव को अमानवीय बनाती रही है| ऊपर से ऐसी सोच को सही ठहराने को भी सही ठहराती है| यह धृणास्पद और निन्दनीय ही नहीं, अपितु अपराध भी है| ऐसी प्रवृत्ति के लोगों की जगह सभ्य समाज में नहीं, बल्कि कारागारों में है!
    -डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
    सम्पादक-प्रेसपालिका (पाक्षिक), जयपुर
    ०१४१-२२२२२२५, ९८२८५-०२६६६

    • श्री मीणा जी सर्वप्रथम आपने मेरी टिपण्णी का जवाब दिया उसके लिए धन्यवाद चाहूँगा… हो सकता है आपकी और मेरी सोच कुछ अंतर हो क्युकी आपको जितने वर्ष का पत्रकारिता/ लेखन का अनुभव है उतनी तो मेरी उम्र ही नही है ….

      १) अन्ना जी के खम्भे से बांधकर मारने के कृत्य को तो मैंने भी असंवेधानिक कहा है …

      २) मनुवाद को मैं ठीक से नही जानता पर अगर बात रही संस्कृति की तो कभी भी भारतीय महिलाओं को काम न करने की बाध्यता नही रही , अपितु उनका समाज में बराबर की हिस्सेदारी रही है . राजनीती , शिक्षा एवं समाज के अन्य कार्यो में उनका पुरुषो के बराबर ही मान रहा है

      ३) किसी भी व्यक्ति को समझाने की भी हद्द होती है … ” लातो के भूत बातो से नही मानते ”
      कभी कभी तो माता पिता भी बालक को चांटा मार देते है तो क्या वे तालिबानी हो गए ????

      ४) मैं किसी भी रूप में तालिबानी तरीके को उचित नही कह रहा हूँ पर हा अति गाँधी वादी तरीके के विरूद्ध हूँ, जिसमे हाथ पर हाथ धरे , ढीट की तरह बेठे रहो ….. जब पानी सर के ऊपर बहने लगे तो हल्का बल प्रयोग जरूरी है …

      –तापस याग्निक

  7. मैं लेख से असहमत हूँ,…!!!
    सारा देश यह भी जान चुका है कि गॉंधीवादी होने का मुखौटा लगाकर और धोती-कुर्ता-टोपी में आधुनिक गॉंधी कहलवाने वाले अन्ना, मनुवादी नीतियों को नहीं मानने वाले अपने गॉंव वालों को खम्बों से बॉंधकर मारते और पीटते हैं!

    मैं ये बताना चाहूँगा की अन्ना ने ये काम क्यों किया ??? ये वे लोग थे जो रोज दारू पीते थे और कई बार कहने पर भी बंद नही करी थी… अतः उनके भले के लिए ये कदम उठाया मन ये संवेधानिक नही है पर फिर भी मानवता के लिए… उनके इस कदम से गाँव में आज कोई दारू नही पीता तथा उनका गाँव उनके आदर्शो पर चल कर बहुत प्रगति कर रहा है तथा आस पास के १७ गाँव वाले भी वहां मजदूरी के लिए जाते है …

    हा NGO के मुद्दे पर जल्द ही अन्ना को अपना रूख साफ़ करना चाहिए !!!

  8. सत्ताधारी गठबन्धन यूपीए और भाजपा के नेतृत्व वाले मुख्य विपक्षी गठबन्धन एनडीए सहित सभी छोटे-बड़े विपक्षी दलों एवं ईमानदारी का ठेका लिये हुंकार भरने वाले स्वयं अन्ना और उनकी टीम के मुखौटे उतर गये! जनता के समक्ष कड़वा सत्य प्रकट हो गया!
    ——-
    इस सत्य को तो जनता बहुत पहले से जानती थी की मजबूत लोकपाल देना राजनीतिज्ञों के बस में नहीं है क्योकि भ्रष्टाचार की शुरुआत ही राजनीति से होती है.
    अन्यथा विगत ४५ वर्षो से यह कानून भ्रूण में ही नहीं पलता रहता जो की २९ दिसम्बर को मृत अवस्था में पैदा हुआ या कराया गया .

    ++++++
    जो लोग भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डुबकी लगाते रहे हैं, वे संसद में भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिये आँसू बहाते नजर आये! सशक्त और स्वतन्त्र लोकपाल पारित करवाने का दावा करने वाले यूपीए एवं एनडीए की ईमानदारी तथा सत्यनिष्ठा की पोले खुल गयी!
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    अपना अपना नजरिया है फ़िलहाल इतना ही कहा जा सकता है ये तो होना ही था

    ++++++

    सामाजिक न्याय को ध्वस्त करने वाली भाजपा की आन्तरिक रुग्ण मानसिकता को सारा संसार जान गया! भाजपा देश के अल्प संख्यकों के नाम पर वोट बैंक बढाने की घिनौनी राजनीति करने से यहॉं भी नहीं चूकी|

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    सभी संवैधानिक संस्थाओ में आरक्षण लागु होना चाहिए जो की अभी नहीं है जिससे प्रत्येक वर्ग को लाभ हो तब दलित के मुक़दमे की सुनवाई दलित करेगा अल्पसंख्यको के मुकदमो की सुनवाई के लिए पाकिस्तान से जज आयात करना पड़ेगा जो की सुगम है
    आज की व्यवस्था तो मनुवादी है जहा केवल दलितों अल्पसंख्यको को न्याय नहीं मिल रहा है मनुवादी मजे कर रहे है
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    भाजपा और उसके सहयोगी संगठन एक ओर तो अन्ना को उकसाते और सहयोग देते नजर आये, वहीं दूसरी ओर मोहनदास कर्मचन्द गॉंधी द्वारा इस देश पर जबरन थोपे गये आरक्षण को येन-केन समाप्त करने के कुचक्र भी चलते नजर आये!
    ——

    जिन सवैधानिक संस्थानों में आरक्षण था ही नहीं वहा समाप्त करने की पहल को मूर्खता ही कहा जायेगा .
    देश के सर्वोच्च पद”राष्ट्रपति ” पद पर दलित व अल्पसंखक चुने गए जो सायद आरक्षण के कारन चुने गए . वर्तमान में भी जो चुनाव आयुक्त है शायद वो भी आरक्षण के कारन ही है .चुनाव आयुक्त का पद सायद चतुर्थ श्रेणी की कोटि में आता है जो की मुझे मालूम नहीं है

    मेरे विचार से आरक्षण को कम से कम इतना प्रतिसाद तो मिलना ही चाहिए की यह हमारे दैनिक कार्यो में इसे शामिल किया जाय वा इसे शक्ति से लागु किया जाय
    जैसे –
    दलित अल्पसंखक पिछड़े ३ टाइम भोजन करेंगे मनुवादी केवल १ टाइम यदि दोबारा भोजन किया तो जुरमाना देना होगा
    दलित रात को १२ घंटे सोयेंगे मनुवादी केवल ६ घंटे आदि आदि .
    तभी आरक्षण सही मायने में अपना कम कर पायेगा दबे कुचालो का विकाश हो पायेगा ऐसी वयवस्था संविधान में करवानी चाहिए.
    उपरोक्त सभी सुझाव वक्तिगत है जिनपर उचित चर्चा होनी चाहिए अन्यथा आरक्षण का कोई मतलब नहीं .क्योकि वर्तमान में जो आरक्षण पिछले ६५ वर्सो से लागु है उसका कोई सार्थक परिणाम आज तक नहीं निकला अस्तु कोटा शत प्रतिशत वा सशक्त किया जाना चाहिए तभी समानता आ पायेगी ,

    तभी देश से मनुवाद का सफाया होगा दबे कुचले समानता के स्तर पर होंगे और मनुवादी इनका तो भगवन ही मालिक है .ये इस देश के काबिल नहीं है इन्हें देश से निकल देना चाहिए

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