राष्ट्रमंडल खेल घोटाला: भाजपाई नेता पर हुआ पहला संदेह

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-निर्मल रानी

भारत में पहली बार आयोजित हुए राष्ट्रमंडल खेल पूरी सफलता के साथ समाप्त हो गए। नि:संदेह कार्यक्रम के शानदार उद्धाटन तथा समापन समारोहों ने पूरी दुनिया का ध्यान भारत की ओर खींचा। क्या राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लेने वाले खिलाड़ी तो क्या इन खेलों के साक्षी बनने आऐ विदेशी सैलानी, सभी ने इस अभूतपूर्व शानदार आयोजन की जमकर सराहना की। आयोजन की सफलता से उत्साहित आयोजन समिति से जुड़े कई लोगों के मुंह से तो यह भी सुनने में आया कि भारत अब ओलंपिक खेलों का आयोजन कराने की भी क्षमता रखता है। बहरहाल, याद कीजिए राष्ट्रमंडल खेल शुरू होने के पहले 6 महीनों का वह वातावरण जबकि मीडिया ने आयोजन समिति की इस हद तक आलोचना करनी शुरू कर दी थी कि ऐसा संदेह होने लगा था कि इतना विशाल आयोजन वास्तव में दिल्ली में हो भी पाएगा या नहीं। और यदि किसी तरह हुआ भी तो सफल हो पाएगा या नहीं। यह संदेह भी तमाम भारत वासियों को होने लगा था कि ऐसा न हो कि इतने बड़े आयोजन के बाद हमें मान स मान, प्रतिष्ठा आदि मिलने के बजाए कहीं अपमान, अक्षमता व फिसड्डीपन का तमंगा न मिल जाए। परंतु प्राकृतिक व मानवीय तमाम नकारातमक परिस्थितियों के बावजूद भारत ने इस आयोजन को सफलतापूर्वक कराकर दुनिया को अपनी क्षमता का आंखिरकार लोहा मनवा ही दिया। सोने पे सुहागा तो यह रहा कि हमारे देश के खिलाड़ियों ने इन राष्ट्रमंडल खेलों में अब तक के सबसे अधिक पदक जीतकर दुनिया को यह भी दिखा दिया कि हमारा देश केवल आयोजन में ही अनूठा नहीं बल्कि हमारे देश के खिलाड़ी भी दुनिया को अपना लोहा मनवाने की पूरी क्षमता रखते हैं।

बहरहाल जहां यह अभूतपुर्व एवं विशाल आयोजन पूरी तरह सफल रहा वहीं इसी आयोजन समिति के साथ व्यापारिक रूप से जुड़े तमाम लोगों ने लूट खसोटमचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एक अनुमान के अनुसार राष्ट्रमंडल खेलों में लगभ 8000,करोड़ रूपये का घपला किए जाने का अनुमान है। ऐसी भी संभावना है कि यह घपला इससे भी बड़ा हो सकता है। गौरतलब है कि जब राष्ट्रमंडल खेलों का पारंपारिक बजट तैयार हुआ था तो उस समय इस पर 2 हाार करोड़ रूपये से भी कम लागत का अनुमान लगाया गया था। परंतु खेल के समापन तक इस पर 70 हजार करोड़ तक की लागत का ताज़ा अनुमान लगाया जा रहा है। आंखिर इस आयोजन के बजट में लगभग 35 गुणा की बढोतरी के पीछे का रहस्य क्या हो सकता है। यदि महंगाई को भी इस का कारण माना जाए तो यह बात गले से इसलिए नहीं उतरती कि देश में बावजूद इसके कि लगभग सभी वस्तुएं पहले से कहीं अधिक महंगी हो चुकी हैं उसके बावजूद किसी भी वस्तु का दाम कम से कम 35 गुणा तो हरगिज नहीं बढ़ा है।

खेलों के आयोजन में व्यापक भ्रष्टाचार होने के शोर-शराबे के बीच खेल उद्धाटन से पूर्व ही यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने यह सांफ कर दिया था कि खेलों के समापन के बाद इसमें हुए भ्रष्टाचार की पूरी जांच कराई जाएगी। उसी समय यह आभास हो गया था कि कार्यक्रम के समापन के बाद यथाशीघ्र इसकी जांच होने की संभावना है। परंतु इस बात का अंदाज तो किसी को नहीं था कि समापन समारोह के अगले ही दिन प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह इसकी जांच के आदेश दे देंगे। परंतु ऐसा ही हुआ। खेलों के समापन के अगले ही दिन देश के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग)को 90 दिन में राष्ट्रमंडल खेलों पर हुए पूरे खर्च का ऑडिट करने का आदेश दे दिया गया। और अब आशा है कि संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान ही कैग संभवत: अपनी रिपोर्ट भी संसद के सुपुर्द कर देगा।

इस बीच आयकर विभाग ने राष्ट्रमंडल खेलों से जुड़े व्यवसायियों के घरों, दं तरों व संबंधित संस्थानों में छापेमारी की कार्रवाई शुरु कर दी है। माना जा रहा है कि खेलों से जुड़े लगभग 20 व्यापारिक संस्थान संदेह के घेरे में हैं। पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता तथा स्वर्गीय प्रमोद महाजन के कभी परम मित्र व सहयोगी समझे जाने वाले ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ के तथाकथित पहरेदार सुधांशु मित्तल के दिल्ली, चंडीगढ़ व लुधियाना में उनके व उनके रिश्तेदारों के आवासों व व्यापारिक परिसरों पर लगभग 30 जगह एक साथआयकर विभाग द्वारा छापेमारी की गई। यहां गौरतलब यह भी है कि राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार का सबसे अधिक राग इन्हीं ‘भाजपाई सांस्कृतिक राष्ट्रवादियों’ द्वारा ही अलापा जा रहा था। परंतु इत्तेंफांक यह भी है कि संदेह की सुई सर्वप्रथम भाजपाई नेता पर ही जा टिकी। और इस छापेमारी से तिलमिलाए भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने जब कुछ नहीं सूझा तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ही संदेह के घेरे में लेने की कोशिश कर डाली। जरा गौर कीजिए कि जो व्यक्ति पहली बार देश का प्रधानमंत्री बनने के दिन तक मात्र एक मारूती 800 कार का स्वामी रहा हो तथा ड्राईवर रखने के बजाए स्वयं अपनी गाड़ी चलाता रहा हो ऐसे ईमानदार व्यक्ति पर संदेह करना हिमाक़त नहीं तो और क्या है?

ऐसा नहीं है कि राष्ट्रमंडल खेलों में हुए इस अभूतपूर्व लूटकांड में किसी कांग्रेसी नेता का हाथ नहीं होगा या कांग्रेस पार्टी से जुड़े व्यवसायियों ने दोनों हाथों से लूट नहीं मचाई होगी। परंतु इसकी शुरुआत में जिस प्रकार सुधांशु मित्तल जैसे ‘राष्ट्रवादियों’ से जुड़े स्थानों पर व उनके रिश्तेदारों के घरों व कार्यालयों पर छापे पड़ रहे हैं उससे एक बार फिर यह साफ जाहिर हो गया है कि इनका सांस्कृतिक राष्ट्रवाद या तो महा दिखावा है या फिर लूट-खसोट को ही यह लोग सांस्कृतिक राष्ट्रवाद कहते हैं। शायद बंगारू लक्ष्मण, दिलीप सिंह जूदेव तथा संसद में पैसे लेकर सवाल पूछने वाले कई सांसदों की ही तरह। बहरहाल शुरु से ही विवादों में रहे राष्ट्रमंडल खेलों की जांच पूरी निष्पक्षता व पारदर्शिता के साथ होनी चाहिए। चाहे इस लूट में कोई प्रधानमंत्री का सगा संबंधी शामिल हो या सोनिया गांधी व राहुल गांधी का कोई खास आदमी या फिर कांग्रेस पार्टी के किसी भी नेता का कोई नुमाईंदा या भारतीय जनता पार्टी का कोई सांस्कृतिक राष्ट्रवादी। जिसने देश की आम जनता के पैसों को लूटकर अपने घर भरे हैं उन्हें यथाशीघ्र न केवल बेनकाब होना चाहिए बल्कि उन्हें यथाशीघ्र संभव जेल की सलाखों के पीछे भी होना चाहिए।

हालांकि अभी से इस बात को लेकर भी संदेह व्यक्त किया जाने लगा है कि यह जांच किसी ठोस नतीजे पर पहुंचेगी भी या नहीं। और इस जांच के बाद कुछ लोग बेनकाब होंगे भी या नहीं। ऐसा संदेह पिछले कई दशकों से भ्रष्टाचार संबंधी तमाम जांच समितियों की जांच के बाद मिले असफल परिणामों के संदेह के आधार पर व्यक्त किया जा रहा है। परंतु जो लोग सोनिया गांधी व मनमोहन सिंह की ईमानदार छवि से वांकिंफहैं तथा उसपर विश्वास करते हैं उन्हें जरूर इस बात की उम्‍मीद है कि जो भी हो इस जांच के परिणाम यथाशीघ्र सामने आएंगे तथा भ्रष्ट लोगों के चेहरों को देश व दुनिया ज़रूर देख व पहचान सकेगी। हालांकि खेल समापन के अगले ही दिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व सोनिया गांधी ने आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी से फासला बनाकर यह संदेश देश को दे दिया था कि खेल संबंधी भ्रष्टाचार की जांच में पूरी पारदर्शिता व निष्पक्षता रखी जाएगी तथा किसी भी व्यक्ति के बड़े से बड़े संबंधों का कोई लिहाज नहीं किया जाएगा। बावजूद इसके कि सुरेश कलमाड़ी खेल शुरु होने से पहले ही सांफतौर पर यह कह चुके हैं कि यदि मैं इन भ्रष्टाचारों में शामिल हुआ तो बेशक मुझे फांसी पर क्यों न चढा दिया जाए।

जहां तक भारत और भ्रष्टाचार का संबंध है तो आपको गत् सितंबर माह में अवकाश प्राप्त कर चुके भारतीय सतर्क ता आयुक्त प्रत्यूष सिन्हा के वे शब्द शायद भली भांति याद होंगे जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से यह कहा था कि यहां तीस प्रतिशत भारतीय तो पूरी तरह भ्रष्ट हैं जबकि इतने ही भारतीय भ्रष्ट होने की कगार पर हैं। पूरी दुनिया में फैले भ्रष्टाचार पर नार रखने वाली संस्था ट्रांसपेरेंसी इन्टरनेशनल के अनुसार भारत को दस में से केवल 3.4 अंक ही प्राप्त हुए हैं। इस प्रकार भारत दुनिया के भ्रष्ट देशों की सूची में 84वें स्थान पर है। जबकि इस सूची में 1.1 अंक लेकर सोमालिया सबसे भ्रष्ट देश गिना जा रहा है। वहीं 9.4 अंक के साथ न्यूजीलैंड दुनिया के सबसे कम भ्रष्ट देशों में प्रथम है। भ्रष्टाचार पर नार रखने वाले विशेषक इसके पीछे का मु य कारण यह मानते हैं कि वर्तमान दौर में मनुष्य की इज्‍जत व सम्‍मान का मुख्‍य आधार केवल पैसा ही समझा जाने लगा है। आम आदमी केवल यह देखता है कि अमुक व्यक्ति कितना अधिक पैसे वाला है तथा उसके पास कितने संसाधन हैं। परंतु वह यह नहीं देखता कि उसने वह पैसा कहां से और किस प्रकार अर्जित किया। जबकि कुछ दशक पूर्व आम आदमी की इस सोच में कांफी अंतर था। कोई भी व्यक्ति पहले पैसे से अधिक अपनी इज्‍ज्‍त और मान सम्‍मान को तरजीह देता था। यही वजह है कि पहले हमें व हमारे देश को राजनेताओं के रूप में कभी लाल बहादुर शास्त्री, गुलारी लाल नंदा, रंफी अहमद किदवई, सरदार पटेल, डॉ राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण जैसे तमाम ऐसे ईमानदार लोग मिले जो आज हमारे लिए केवल दिखावे मात्र के लिए ही सही परंतु प्रेरणास्रोत जरूर समझे जाते हैं। परंतु दुर्भाग्यवश आज के दौर में हमें कभी मधु कौड़ा जैसे लोग मु यमंत्री बने दिखाई देते हैं तो कभी किसी रायपाल का विमान क्रैश होने पर आसमान से नोटों की बारिश होते नार आती है। कभी बंगारु लक्ष्मण तो कभी जूदेव तो कभी रेड्डी बंधु। कभी चारा घोटाला तो कभी चीनी घोटाला आदि न जाने क्या-क्या। ऐसे में एक बार फिर किसी ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवादी’ नेता के रूप में सुधांशु मित्तल जैसे भाजपाई नेता का नाम राष्ट्रमंडल खेलों के घोटाले के सिलसिले में संदेह के दायरे में आना कोई आश्चर्यजनक बात तो नहीं परंतु अफसोसनाक बात तो जरूर है।

13 COMMENTS

  1. अरे निर्मला जी ने अपना पूरा परिचय छुपा रक्खा था
    जे पी शर्मा जी को धन्यवाद्

  2. कांग्रेस सेवा दल की पत्रकार शाखा के एक उदीयमान सदस्य द्वारा अपना कर्त्तव्य निभाने की मिसाल निर्मल रानी जी ने सब के सामने रख दी.एक सर्वविदित महाभ्रष्ट पार्टी के पत्रकार को कांग्रेस गठबंधन सर्कार के महाघोटालों में से कोई याद नहीं आया.बेचारी को यह भी पता नहीं की सीबीआई किस के इशारों पर नाचती है .क्वात्त्रोची को काले धन का पैसा बैंक से निकलवाने में सीबीआई पर जो कलंक लगा उसे कौन नहीं जानता .आपका भविष्य उज्जवल हो पर ऐसा तो लिखने की कृपा करें जिस पर कम् से कम अज्ञान पाठक ही विश्वास कर लें

  3. निर्मल रानी जी,

    अब जब सुधान्सू मित्तल को पकड़ ही लिया है तो जांच खत्म कर देनी चाहिए | क्यों बेकार में समय और पैसा बर्बाद किया जाए | आखिर बोफोर्स की जांच और कार्यवाही बंद करने के लिए यही तर्क दिया गया था | पिछली यूपीए सरकार ने अपने पहले साल में ही लन्दन के बैंक से बोफोर्स का पैसा निकालने दिया और फिर जांच बंद कर दी कि समय और पैसा बेकार में खर्च हो रहा है |

    दूसरी पारी में CWG घोटाले पर भी कुछ वैसी ही उम्मीद है और आप जैसे समर्थक तो हैं ही |

    मनमोहन सिंह जी व्यक्तिगत तौर पर ईमानदार हैं लेकिन क्या सारे कांग्रेसी हैं ? क्या पार्टी फंड के लिए घोटाले नहीं हो रहे ? क्या मनमोहन जी राजनैतिक तौर पर ईमानदार हैं | नरसिम्हा राव सरकार के वित्त मंत्री थे तब क्या उन्हें पता था कि सरकार बचाने के लिए सांसदों को पैसा दिया गया था ?

    आप ने नोट फार वोट का जिक्र किया है | क्या आप मानटी हैं कि जो सांसद अपनी पार्टी से बगावत करके यूपीए सरकार को बचाए थे वह देश प्रेम के कारण था और कोइ पैसा नहीं दिया गया था ? इसकी जो जांच हुई वह ठीक और पारदर्शी थी ?

  4. वाह! अवधेश जी, मंसूर जी,शैलेन्द्र कुमार जी, अभिषेक पुरोहित जी, शिशिर जी की तीखी और सही टिप्पणियों से पता चलता है की देश के लोग जागरूक हैं, सचेत हैं ; समय आने पर देश को लूटने वालों को वे दंड ज़रूर देंगे. इन जागरूक मित्रों को साधुवाद और सन्देश कि “जागते रहना”

  5. तिवारी जी भाजपा का तो पता नहीं किन्तु कांग्रेस तो चोर है ही साथ में वामपंथी आतंकवादी है| आपने आखिर स्वीकार कर ही लिया कि जो सत्ता में होगा वो तो खाएगा ही| तिवारी जी वैसे वामपंथ का बैंक बैलेंस भी मैंने सुना है काफी बढ़ गया है|
    शैलेन्द्र भाई, अभिषेक भाई और शिशीर भाई ने महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ दी हैं| और अभिषेक भाई ने तो इनकी ऐसी की तैसी कर डाली| शिशीर भाई सही कहा आपने इन्होने तो घोटालों में भी राजनीति खोज डाली| और शैलेन्द्र भाई आपने तो तिवारी जी कि बोलती ही बंद कर डाली|
    मुझे ख़ुशी हो रही है कि अब कांग्रेस और वामपंथ के विरोध में आवाजें उठ रही हैं और वो दिन दूर नहीं जब इनकी नस्ल का ही इस देश से सफाया हो जाएगा|

  6. @श्रीराम जी अभी अभी खुफिया सूत्रों से पता चला है की कांग्रेस ने वामपंथियों को भी मोटी मलाई खिलाई है इसीलिए वामपंथी चुप है मैंने तो सोचा था की खेल ख़त्म होते ही वामपंथी जमीन सर पर उठा लेंगे कि जब देश कि आज़ादी के समय ही ये तय हो गया था कि शासन, सत्ता से लेकर धन, संपत्ति तक उन्हें हर जगह हिस्सा मिलेगा तो अब तक इतने बड़े खेल में उन्हें उनका हिस्सा क्यों नहीं मिला
    लेकिन वामपंथियों कि शांति ने ये बता दिया है कि उन्हें उनका हिस्सा मिल चुका है और वो ओलम्पिक के आयोजन के लिए भी तैयार है

  7. CWG ki poornahuti pr sara desh khushnuma mahol men aa gya kintu niyati ko manjoor nahi hamari kshanik khushi.kya gajab ho gaya ?jo satta men hoga vo to khayega hi..lekin vipaksh yane bhajpa ke neta bhi malaai chhan gaye ye to baakai kamaal hai…congresi chor hain to bhajpa vale daaku…

  8. निर्मल रानी ये खबर छपने के कितने पैसे खाएं हैं तुमने? ऐसी घटिया लेख मैंने पहली बार देखि है. क्या बीजेपी का कोई व्यक्ति इतना बड़ा घपला करवा सकता है? मनमोहन सिंह के नाक के नीचे हुए घोटाले पर क्या वह सो रहा था? शर्म आनी चाहिए तुम्हे सोनिया और मनमोहन का बचाव करते हुए. घोटालों में भी तुमने राजनीती खोज ली. यदि केंद्र और राज्य में कांग्रेस की सरकार है तो कैसे बीजेपी इस महाघोटाले को अंजाम दे सकती है? शानदार खेल की क्रेडिट तो इस सरकार ले सकती है लेकिन घोटाले की नहीं, क्यों?

  9. भारत में चमचों की कमी नही है नित नये पैदा हो रहे है कुछ पुर्स्कृत भी हो रहे है,एसा लगता है कि अब चमचॊ का भी इक प्रतियोगता रखनी पडॆगी.
    आयकर के छापे को भर्ष्टाचार से,सांस्कृतिक राष्ट्र्वाद से जोडा जा रहा है,क्या बात है??जिन लोगों ने सत्तर हजार करोड का घओटाला किया उनको बचाने २९ लाख का टेक्स बचाने वाले को मोहरा बनाया जा रहा है,देश का टेक्स खाने के कारण इन सहाब को सजा होनी ही चाहिये पर देश का नाम मिट्टि मे मिलाने के लिये जिम्मेदार प्रधानमंत्रि,सोनिया,राहुल और उनके चम्चो पर कार्य्वाही होनी चाहिये,पर सबको पता सीबीआई और जाँच एजेन्सिया किनके इशारो पर काम करति है,लालु,मुलायम,मायाव्ति को ब्लेक्मैल करना,ललित मोदी को अपनी सफ़ायी का अवसर ही ना देना,अमित शाह को फ़र्जी फ़साना,बिना कोयी सबुत के अभी तक साध्वी प्रग्या और देदेन्द्र गुप्ता को जैल में ठुसना,अफ़जल को फ़ासि नही देना,कसाब पर मुकदमे का नाटक करना,६० हजार करोडो का घोटाला करने के बाद भी स्पेक्ट्र्म केस दायर नही होना,लगभग पुरे मीडिया को खरिदना,छोटे छोटॆ पत्र्कारो को गिफ़्ट देकर,धमकाकर या कोयी ओर लालच देकर अपने पक्ष मे लिखवाना जैसे काम करने वाली महान गा~म्धिवादि सेक्युलर पार्टि को छोडकर अपना समय व्यर्थ के लेख लिख कर राष्ट्र्वादियो को गालिया निकालने का काम जो कर रजे है क्या इससे ये बात सिध नही होती कि एसे लोग निष्पक्ष{जो पहले भी नही थे} नही है और किसी ना किसी स्वार्थ से एसा कर रहे है पर शायद इन्हे पता नही कि जनता मुर्ख नही है,वो सब लोगो को देखती है,चाहे को २९ लाख खाये या ७० हजार करोड भर्ष्ट तो भर्ष्ट ही होता है लेकिन हाथी को छोडकर छोटे जानवरो को पकडता है उसे शिकारी नही कहा जा स्कता है…………….

  10. निर्मला जी सुधीर मित्तल के घर तो छापा पड़ा लेकिन घोटाले का नहीं इन्कम टैक्स का अगर आप इस लेख में बताती की राहुल बाबा और सोनिया मैडम ने इसमें अपना कितना बैलेंस बढाया तो अच्छा लगता क्योंकि घोटाला तो वो करेगा जिसके पास ठेके देने का अधिकार हो आप के ही पिछले लेखों को आधार माने तो मैडम और बाबा के बिना कांग्रेस में पत्ता भी नहीं हिलता तो इतना बड़ा भ्रष्टाचार मैडम कि जानकारी(सहमति) के बिना कैसे हो सकता है ये तो तय है कि मैडम अपने विश्वासपात्रों पर तो कोई खतरा नहीं आने देंगी तो छापे गैर-कान्ग्रेसिओं के ऊपर ही पड़ेंगे और आप तो जानती ही है कि मैडम का परिवार घोटाले करने और पचाने में औरों से बहुत आगे है सुधीर मित्तल जी तो उनके आगे अभी बच्चे ही है
    आपके लेख को पढ़कर आश्चर्य होता है कि भाजपाईयों को समझदार माने कि कान्ग्रेसिओं को बेवक़ूफ़ क्योंकि जबकि केंद्र में कांग्रेस राज्य में कांग्रेस आयोजन समिति में कांग्रेसी और तो और आइओए(IOA) और कामन वेल्थ आयोजन समिति (OC) के अध्यक्ष भी कांग्रेसी और ज्यादातर सदस्य भी कांग्रेसी और घोटाला कर रहें भाजपाई हा हा हा हा ………….

  11. MITTAL तो बहाना है ये सारे कान्ग्रेसिओं की चल है अगर प्रधानमंत्री मैं हिम्मत है तो संयुक्त संसदीय जाँच समिति से जाँच करावे

  12. हो….. गया !

    ‘ख़तम खेल’, सोना हज़म हो गया,
    रजत, तांबा जो था भसम हो गया.

    पढ़ा ख़ूब ‘कलमा दि’लाने पे जीत,
    “विलन”, सौत* का फिर बलम हो गया. *[सत्ता]

    लगी दांव पर आबरूए वतन,
    रवय्या तभी तो नरम हो गया.

    चला जिसका भी बस लगा डाला कश,
    ‘हज़ारेक’ करौड़ी चिलम हो गया.

    है मशहूर मेहमाँ नावाज़ी में हम,
    बियर की जगह, व्हिस्की-रम हो गया.

    सितारों से रौशन रही रात-दिन,
    ये दिल्ली पे कैसा करम हो गया.

    कमाई में शामिल ‘विपक्षी’ रहे,
    ‘करोड़ों’ का ठेका ! क्या कम हो गया?

    निकल आया टॉयलेट से पेपर का रोल*,
    यह वी.आई.पी. ‘हगना’ सितम हो गया.

    [*एक रोल ४१०० में खरीदा गया?]
    — mansoorali hashmi

  13. सबसे पहला छापा भाजपा के नेता के घर पर मार कर भ्रष्टतम सरकार के ईमानदार प्रधानमंत्री जी विपक्ष की धार कुंद कर जनता को यह सन्देश देना चाहते थे की इसमे सभी शामिल है.

    भाजपा ने जेपीसी से जांच कराने की मांग की है, क्यूँ नहीं मान लेते प्रधानमंत्री जी, जाहिर है दाल में बहुत कुछ काला है और इससे पहले भी प्रधानमंत्री जी की सरकार सीबीआई का दुरुपयोग कर विभिन्न जांचो को प्रभावित करती रही है.

    मनमोहन जी तब तक ईमानदार जब तक उनका नाम प्रत्यक्ष रूप से किसी घोटाले में नहीं आता. यह भी मत भूले कि महज सत्ता के लिए ध्रितराष्ट्र की तरह आँखे मूँद कर कौरवो को सब कुछ करने की आज़ादी देने वाले प्रधानमंत्री को इतिहास कभी माफ़ नहीं करेगा.

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