खाद मूल्यवृद्धि बनेगा राष्‍ट्रीय मुद्दा

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मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहल 

प्रमोद भार्गव

मुद्दों को लपकने में माहिर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खाद (उवर्रक) की कीमतों में की गई बेतहाशा वृद्धि को राष्ट्रीय मुद्दा बनाए जाने का संकल्प लिया है। राष्ट्रपति के लिए उम्मीदवारी चयन में उलझी राजग समेत अन्य विपक्ष किसान को हलाल करने वाली इस मूल्यवृद्धि को समझते, इससे पहले ही शिवराज ने बड़ी कीमतों के खिलाफ राजधानी भोपाल समेत प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों पर 24 घंटे का उपवास-प्रदर्शन कर आंदोलन की शुरुआत कर दी। अब शिवराज इस मसले को ‘किसान बचाओ अनुष्ठान’ के जरिये किसान समस्याओं को राजनीति के केंद्र में लाकर न केवल केंद्र की सप्रंग के सामने मुसीबत पैदा करेंगे, बल्कि मध्यप्रदेश में प्रमुख विपक्ष कांग्रेस को घेरकर उसे किसान विरोधी घोषित करने में अपनी पूरी ताकत लगाएंगे। जिससे 2013 में होने वाले मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पराभव का मुंह देखना पड़े। शिवराज इस मुहिम के माध्यम से केंद्र द्वारा अमल में लाई उस नीति को भी चुनौती देंगे, जिसके जरिये 1 अप्रैल 2011 से रासायनिक उर्वरक (खाद) नीति में बदलाव कर न्यूटेंट आधारित अनुदान योजना लागू की गई है। नतीजतन खाद निर्माता कारखानों को तेल कंपनियों की तरह खुद दाम तय करने का अधिकार मिल गया है। इस मूल्यवृद्धि से मध्यप्रदेश के किसानों को राहत देने के लिए शिवराज ने अनूठी पहल करते हुए 1 अप्रैल 2012 से किसानों को खाद और बीज पर बिना ब्याज कर्ज देने का भी ऐलान कर दिया है।

शिवराज सिंह चैहान एक तीर से दो निशाने एक साथ साधते हैं। एक तो वे किसान और गरीबों को ललचाने का कोई मौका नहीं चूकते, दूसरे विपक्ष को उसी के हथियार से परास्त करने की लोक-लुभावन शैली उन्होंने विकसित कर ली है। यही कारण है कि गेहूं खरीदी का मुद्दा जब मध्यप्रदेश में संकट बनकर उभरा तो उन्होंने बोरों की कमी का मुद्दा उछालकर केंद्र को कठघरे में ला खड़ा किया। क्योंकि बारदाना खरीदकर प्रदेशों में भेजना केंद्र सरकार की जिम्मेबारी है। जब बोरों की कमी आई तो उन्होंने किसानों को खुद के बोरे लाने के छूट दे दी थी। यही नहीं जूट के बोरे न होने पर प्लास्टिक के बोरे लाने का भी विकल्प दे दिया। जब भाजपा के ही अनुषांगिक संगठन ‘भारतीय किसान संघ’ के अध्यक्ष शिवकुमार शर्मा ‘कक्काजी’ ने गेहूं खरीदी में हो रही गड़बडि़यों से जुड़े आंदोलन को सड़क पर उतारा तो शिवराज और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा ने कुटिल चतुराई से न केवल इस आंदोलन की हवा निकाली, बल्कि किसान संघ से शिवकुमार को भी अलग कर दिया। जबकि विरोध प्रदर्शन के दौरान बरेली गोलीकाण्ड में पुलिस द्वारा चलाई गोलीबारी में एक किसान को भी हताहत होना पड़ा था। अलबत्ता 81 लाख टन गेहूं की रिकार्ड खरीदी कर शिवराज ने विपक्ष के सभी मंसूबों पर पानी फेर दिया।

यह सही है कि खाद के दामों में भारी इजाफे के कारण देश के करोड़ों किसानों को आर्थिक संकट में डाल दिया गया है। हैरानी इस बात पर भी है कि डीजल-पेटोल पर एक रुपये की भी मूल्यवृद्धि होती है तो देश का सारा विपक्ष और मीडिया हाहाकार मचा देता है, लेकिन खाद के दामों में दोगुना से ज्यादा मूल्यवृद्धि होने पर भी मध्यप्रदेश को छोड़ अन्य राज्यों से भी विरोध की आवाज बुलंद नहीं हुई। मीडिया की चुप्पी भी हैरतअंगेज है ? इस लिहाज से शिवराज की इस पहल की जितनी सराहना की जाए उतनी कम है। केंद्र से खाद की कीमतें कम कराने के लिए शिवराज मध्यप्रदेश विधानसभा के 16 जुलाई से शुरु होने वाले मानसून सत्र में संकल्प परित कराएंगे और अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों तथा क्षेत्रीय दलों के अध्यक्षों से भी ऐसा ही करने का निवेदन करेंगे। फिलहाल पत्र लिखकर उन्होंने इस मुहिम को आगे भी बढ़ा दिया है। लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों को भी जरुरत है कि वे सांसद के मानसून सत्र में खाद के दामों में हुई इस अप्रत्याशित मूल्यवृद्धि के मसले को तवज्जो दें। दरअसल केंद्र की सप्रंग सरकार ने 1 अप्रैल 2011 से उर्वरक नीति में बदलाव न्यूटेंट आधारित अनुदान योजना लागू की है। इसके जरिए खाद निर्माताओं को आयातित खादों पर अधिकतम खुदरा मूल्य तय करने की छूट दे दी गई है। इस नीति के अमल में आते ही एक साल के भीतर खाद के दाम दो से ढाई गुना तक बढ़ गए है। यह नीति भारतीय खेती-किसानी के लिए खतरनाक साजिश है। इसके मार्फत किसानों को अतंरराष्टीय बाजार के भरोसे छोड़ दिया गया है। लिहाजा कालांतर खाद निर्माता हर सीजन में खादों के दाम बढ़ाकर किसानों की आर्थिक बदहाली का सवब बनेगें। यही नहीं खाद की आपूर्ति में बनावटी कमी लाकर कंपनियां खुदरा खाद विक्रेताओं को भी कालाबाजारी का अवसर देंगी। जिससे खाद व्यापार में लगी पूरी  शृंखला के पौ बारह हों।

हालांकि खाद के दामों को लेकर मुख्यमंत्री समेत भाजपा व उसके अनुषांगिक संगठनों के एक दिनी उपवास को लेकर कांग्रेस ने नौटंकी करार दिया है। कांग्रेस प्रवक्ता अभय दुबे का कहना है कि केंद्र में राजग सरकार के दौरान खाद को बाजार के हवाले करने की योजना बनी थी। राजग ने ही 2006 तक उर्वरकों को सरकार के नियंत्रण से बाहर रखने की बात कही थी। राजग ने 2003 में खाद के सिलसिले में ‘नूतन मूल्य योजना’ बनाई थी। तब तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा और उर्वरक मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा था कि हमने खर्च पुनर्गठन आयोग’ (एक्सपेंडिचर रिफॉर्म कमीशन) की सिफारिशों को माना है। इसलिए खाद पर 14 हजार करोड़ रुपये की जो सालाना सब्सिडी दी जा रही है वह आर्थिक बद्हाली का कारण बन रही है। इसलिए खाद को चरणबद्ध तरीके से नियंत्रण मुक्त कर देने की जरुरत है। केंद्र की सप्रंग सरकार ने इसी नूतन मूल्य योजना को 1 अप्रेल 2011 को नीति में बदल दिया।

इस सबके बावजूद प्रदेश सरकार की इस बात के लिए तारीफ करनी होगी कि कांग्रेस शासन में किसानों को 18 फीसदी की ब्याज दर पर कर्ज दिया जाता था, जिसे क्रमशः घटाते हुए प्रदेश भाजपा सरकार एक फीसदी पर ले आई है। अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने यह घोषणा कर सबको हैरान कर दिया है कि इस वित्तीय साल से इस एक प्रतिशत ब्याज दर को भी समाप्त कर खाद-बीज लेने वाले किसानों को बिना किसी ब्याज के कर्ज दिया जाएगा। इससे सहकारी बैंकों को होने वाले नुकसान की भरपाई प्रदेश सरकार के खजाने से की जाएगी। यही नहीं जो किसान 1 अप्रैल 12 से खाद-बीज के लिए बैंकों से कर्ज ले चुके हैं, उन्हें ब्याज की धनराशि लौटाई जाएगी।

सहकारिता विभाग और उसके मातहत काम करने अपेक्स बैंक मुख्यमंत्री की घोषणा को अमली जामा पहनाने के नजरिये से किसानों को ब्याज-मुक्त ऋण सुविधा उपलब्ध कराने के लिए नीति बनाने में लग गए हैं। इसके लिए कर्नाटक और महाराष्ट जैसे राज्यों में लागू योजना के प्रावधानों को अमल में लाया जा सकता है। महाराष्ट में किसानों को 50 हजार रुपये तक का कर्ज बिना कोई ब्याज वसूले दिया जाता है। कर्नाटक में यही सीमा एक लाख रुपये तक है। प्रदेश के बैंक फिलहाल किसानों को एक प्रतिशत की दर से तीन रुपये तक के कर्ज उपलब्ध करा रहे हैं। हालांकि मध्यप्रदेश का ही जिला सहकारी केंद्रीय बैंक, टीकमगढ़ बिना किसी ब्याज के कर्ज की व्यवस्था किसानों को पिछले तीन साल से करा रहा है। बैंक के अध्यक्ष विवेक चतुर्वेदी का कहना है कि यह सुविधा केवल ईमानदार किसानों को हासिल है। जो किसान नियमित किस्तें चुकाकर बैंक कर्ज पूरा चुका देते हैं, उन किसानों को बैंक ब्याज की राशि लौटा देता है। बहरहाल इस योजना का विस्तार पूरे देश में जरुरी है, जिससे अन्नदाता को राहत मिले और वह कर्ज के चलते आत्महत्या करने को मजबूर न हो।

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