भूख के खिलाफ संगठित प्रयास

-देवेन्‍द्र उपाध्‍याय

विश्व खाद्य दिवस हर साल 16 अक्तूबर को मनाया जाता है। इस दिन संयुक्त राष्ट्रसंघ के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफ ए ओ) की 65 वर्ष पूर्व स्थापना हुई थी। पिछले 29 वर्ष से विश्व खाद्य दिवस मनाया जा रहा है। इस वर्ष का विषय है-भूख के खिलाफ संगठित हों यह विषय इसलिए चुना गया है ताकि विश्व में भुखमरी के खिलाफ राष्ट्रीय, क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लड़ाई के लिए संगठित प्रयास किए जा सकें।

नवंबर 2009 में खाद्य सुरक्षा पर आयोजित विश्व सम्मेलन में पारित संकल्प में 1996 में आयोजित विश्व खाद्य सम्मेलन की उस घोषणा को दोहराया गया जिसमें विश्व के चेहरे से हमेशा के लिए भूख का खात्मका करने की वचनबध्दता व्यक्त की गई थी। भूख के खिलाफ सफलता तभी मिल सकती है जब राज्य, सामाजिक संगठन तथा निजी क्षेत्र सभी स्तरों पर मिलकर लड़ाई लड़ें और भूख, अत्यधिक गरीबी एवं कुपोषण को शिकस्त दें। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र के संगठन एफ.ए.ओ, विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्लू.एफ.पी) और अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष (आईएफएडी) मिलकर विश्व में 2015 तक अत्यधिक गरीबी और भूख का उन्मूलन करने के वैश्विक प्रयासों में महत्वपूण्र् ा रणनीतिक भूमिका निभा सकते हैं। इस दिशा में संयुक्त राष्ट्र प्रणाली और विश्व खाद्य सुरक्षा की एफएओ की समितियों से जुड़े लोग एकजुट हो रहे हैं।

भूख की वैश्विक समस्या को तभी हल किा जा सकता है जब उत्पादन बढ़ाया जाए। खाद्यान्न सुरक्षा तभी संभव है जब सभी लोगों को हर समय, पर्याप्त, सुरक्षित और पोषक तत्वों से युक्त खाद्यान्न मिले जो उनकी आहार संबंधी आवश्यकताओं को पूरा कर सके। गांवों में कृषि मुख्य आर्थिक गतिविधि है, फसल उत्पादन को बढ़ावा देने की जरूरत है इससे रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे और भुखमरी से ग्रस्त लोगों की संख्या में भी कमी आएगी। अच्छे पोषण की अनदेखी का सीधा मतलब है कुपोषण के शिकार बच्चे। इस दिशा में विभिन्न सामाजिक सुरक्षा सेवाएं और रोजगार गारंटी योजनाएं कारगर साबित हो सकती हैं।

आबादी बढ़ी-कृषि क्षेत्र स्थिर

भारत में खेती का क्षेत्र पिछले 40 वर्ष से अधिक समय से 140 मिलियन हेक्टेयर पर टिका है जबकि आबादी में लगातार वृध्दि हो रही है। पानी उपलब्धता और जमीन की उर्वरता में कमी आई है जबकि इस देश की आकांक्षाएं कृषि क्षेत्र से बहुत अधिक हैं और इसलिए गुणवत्तायुक्त उत्पाद के साथ उत्पादन में वृध्दि भी बहुत जरूरी है। सार्वजनिक क्षेत्र के साथ निजी क्षेत्र की भागीदारी को भी प्रोत्साहित करना समय की आवश्यकता है लेकिन यह सार्वजनिक क्षेत्र की कीमत पर नहीं होना चाहिए।

भारत आज विश्व में विकसित राष्ट्रों की कतार में पहुंचने के करीब है। भारत के सामने बहुत चुनौतियां है। विश्व की तीन प्रतिशत जमीन पर 17 प्रतिशत आबादी वाले भारत में पानी मात्र 4.5 प्रतिशत है। विश्व की 11 प्रतिशत पशुधन आबादी कुल विश्व क्षेत्र के 2.3 प्रतिशत क्षेत्र में हैं। ऐसी स्थिति में इस चुनौती का सामना करने के लिए और कदम उठाए जाने की जरूरत है। भारत के भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद आईसीएआर की तुलना में विश्व में किसी देश में ऐसा कृषि अनुसंधान संस्थान नहीं है जिसने फसलों की नई-नई किस्मों को विकसित कर किसानों तक पहुंचाया हो। भारत में हरित क्रांति का श्रेय इसी को जाता है जिसके वैज्ञानिक अब दूसरी हरित क्रांति की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। देश भर में आईसीएआर से संबध्द अनुसंधान केंद्र बीज की सुखा सहिष्णु किस्में अन्य पादप प्रबंधन विधियों के विकास में लगी हुई हैं जिससे बढ़ते तापमान के कारण्ा होने वाले उत्पादन में नुक्सान को कम किया जा सके।

उत्पादन में वृध्दि

सन् 1950-51 के बाद अनाज फसल उत्पादन में साढ़े चार गुना, बागबानी फसलों के उत्पादन में 8 गुना, मछली उत्पादन में नौ गुना और अंडों के उत्पादन में 27 गुना वृध्दि हुई है। अनेक ऐसी फसलों का भी भारत में उत्पादन होने लगा है जो पहले यहां नितांत अपरिचित थीं। इसके बावजूद चुनौतियों भी कम नहीं हैं। भारत ने कृषि उत्पादन, उत्पादकता, खाद्यान्न उपलब्धता, बागवानी उत्पादन, दूध, गोश्त और मछली उत्पादन में उल्लेखनीय वृध्दि अर्जित की है, जिसका श्रेय आईसीएआर को जाता है।

भारत में सब्जियों का उत्पादन 125.88 मिलियन टन पर पहुंच चुका है जोकि विश्व उत्पादन का 12 प्रतिशत है। गत दशक के दौरान सब्जी उत्पादन दुगना हुआ है और सकल सब्जी उत्पादकता में डेढ़ गुना वृध्दि दर्ज की गई है। बढ़ती हुई आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 200 मिलियन टन सब्जियों के उत्पादन की जरूरत है जिसका सीमित भूमि और जल संसाधनों में ही उत्पादन करना होगा।

फसल सुधार

आईसीएआर ने वर्ष 2009-10 के दौरान धान, गेहूं जौ, मक्का, बाजरा, दलहन और तिलहन सहित मुख्य फसलों की 31 किस्मों/संकर को देश के विभिन्न कृषि जलवायु वाले क्षेत्रों के लिए विमोचित/निर्धारित किया। पूसा 1121 बासमती ऐसी किस्म है जिसकी बराबरी विश्व में बासमती की कोई किस्म नहीं कर सकती। इससे उत्पादकता दुगुनी हुई है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान आईएआरआई से अब तक 17 बीज कंपनियां अनुबंध कर चुकी हैं। पूसा बासमती के स्तर की कोई सूखारोधी किस्म अभी तक विकसित नहीं हुई है।

अब तक सब्जियों की 396 किस्में विकसित की जा चुकी हैं जिनका उत्पादन विभिन्न कृषि जलवायु वाले क्षेत्रों में किया जा रहा है। किसानों ने टमाटर, बैंगन, गोभी, बंदगोभी, और खीरे की संकर किस्मों को व्यापक पैमाने पर अपनाया है। भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर ने बागबानी फसलों के लिए 6 जैविक कीटनाशकों का उत्पादन एवं बिक्री का कार्य बड़े पैमाने पर शुरू किया है।

कृषि मानव-संसाधन विकास

देश में 44 राज्य कृषि विश्वविद्यालय, एक केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय (इम्फाल), पांच डीम्ड विश्वविद्यालय तथा 4 केंद्रीय विश्वविद्यालय कृषि एवं संबध्द क्षेत्रों में स्नातक, स्नातकोत्तर एवं उच्च शिक्षा के अध्ययन के अलावा अनुसंधान से भी जुड़े हुए हैं। आईसीएआर के 5 राष्ट्रीय संस्थान, 34 कृषि विज्ञान संस्थान तथा 10 पशुविज्ञान एवं मात्सियिकी से संबध्द संस्थान हैं। देश में इस समय 78 अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजनाएं, 25 परियोजना निदेशालय, 17 राष्ट्रीय अनुसंधान केन्द्र तथा 6 राष्ट्रीय ब्यूरो कार्यरत हैं।

खाद्यान्न उत्पादन

गतवर्ष खराब मौसम के बावजूद 2009-10 में खाद्यान्न उत्पादन 218 मिलियन टन होने को उम्मीद है। इस वर्ष मानसून बहुत अच्छा रहा। कुछ क्षेत्रों में चावल की फसल को समय पर वर्षा न होने नुकसान हुआ है। अब भारी बरसात से राहत मिलने के बाद मौसम की स्थितियां अनुकूल होने की वजह से रबी फसल का उत्पादन बेहतर होने की उम्मीदें बढ़ी हैं।

खरीफ फसलों के बुआई क्षेत्र में वृध्दि

सितंबर 2010 के अंतिम सप्ताह की रिपोर्ट के अनुसार 1006.24 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खरीफ फसलों की बुआई की जा चुकी है। जो कि पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 65.33 लाख हेक्टेयर अधिक है। इस वर्ष सभी प्रमुख फसलों का बुआई क्षेत्र पिछले वर्ष की खरीफ फसलों से अधिक है।

राज्यों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष 324.27 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की बुआई की गई है जिससे 23.32 लाख हेक्टेयर वृध्दि प्रदर्शित होती है। दालों की बुआई पिछले वर्ष की तुलना में 19.71 लाख हेक्टेयर अधिक है जो 110.44 लाख हेक्टेयर है। मोटे अनाजों की बुआई 210.89 लाख टन दर्ज की गई है, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 4.73 लाख हेक्टेयर अधिक है।

भुखमरी के शिकार लोगों की तादाद घटी

एफएओ की ताजा रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में भुखमरी के शिकार लोगों की तादाद घटकर एक अरब से कम हो गई है। इसे 2008 की तुलना में अच्छी फसल और खाद्य पदार्थों के गिरते दामों के नतीजा बताया जा रहा है।

संयुक्त राष्ट्र ने भुखमरी से ग्रसत लोगों की तादाद कम करने के लिए ‘ग्लोबल मिलेनियम गोल’ निर्धारित किया है। इसके तहत विकासशील देशों में 2015 तक कुपोषण या भुखमरी झेल रहे लोगों की तादाद 10 फीसदी करने का लक्ष्य रखा गया है। 1992 में यह आंकड़ा 20 फीसदी था।

रिपोर्ट में कहा गया है कि लोगों को भोजन उपलब्ध कराने के मामले में भारत और चीन ने तरक्की जरूर की है लेकिन दुनिया की 40 फीसदी कुपोषित आबादी आज भी इन्हीं दोनों देशों में रहती है इस मामले में बांग्लादेश, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, कांगो और इथोपिया के नाम भी जोड़े जा सकते हैं।

भारत में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को कुपोषण से बचाने के लिए अनेक उठाए जा रहे हैं। इसके सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं।

उत्तर पश्चिम भारत के मुख्य हिस्सों से मानसून के हटने के बाद इन इलाकों में फसल खराब होने की चिंताए घटने लगी हैं। अब खरीफ फसल के लिए अच्छी स्थितियां बनने की उम्मीद है। पैदावर में दस प्रतिशत वृध्दि की संभावना है।

भारत सरकार ने 2007-08 में देश के 312 चुने हुए जिलों में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन शुरू किया था जिससे चावल और गेहूं के उत्पादन में वृध्दि हुई है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के लिए 11वीं योजना में 25 हजार करोड़ रुपये का परिव्यय निर्धारित किया गया है। यह कृषि क्षेत्र में अब तक की सबसे बड़ी स्कीम है जिसका उद्देश्य राज्यों को कृषि एवं संबध्द क्षेत्रों के लिए परिव्ययों को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना है जिससे 11वीं योजना में 4 प्रतिशत वृध्दि के लक्ष्य को पूरा किया जा सके।(स्टार न्यूज़ एजेंसी)

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