कल्याण के नाम पर कण्डोम

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-डॉ राजेश कपूर

पश्चिमी प्रभाव में हमने सीखना शुरू कर दिया है कि कण्डोम साथ लेकर चलो ताकि एड्स से बचाव हो। सार्वजनिक स्थानों पर ऐसे अश्लील विज्ञापन देखने को मिल जाते हैं कि कण्डोम साथ लेकर चलो। क्या मायने हैं इसके? भारतीयों की ऐसी पतित सोच तो कभी नहीं रही, पर हमें ऐसा बनाने का एक सोचा-समझा प्रयास चलता नज़र आ रहा है।

पश्चिमी जगत के लोग हर पल काम वासना पूर्ति के लिए मल-मूत्र त्याग से अधिक तत्परता से, कभी भी, कहीं भी की तरह तैयार रहते है। पर क्या भारत की ऐसी दुर्दषा कभी रही हैं? नहीं रही, इसीलिए हमारी ऐसी दुर्गति करने की योजनाएं और तैयारी करोड़ों नहीं अरबों रु खर्च करके देश भर में प्रारम्भ की गई है, और वह भी हमारे कल्याण के नाम पर। ये विनाशकारी योजनाएं एड्स के बचाव के नाम पर लागू की जा रही हैं। स्वदेशी-विदेशी स्वयंसेवी संस्थाएं इस कार्य को करने के लिए सरकारी खजाने और विदेशी सहायता से भारी भरकम अनुदान प्राप्त करती रही हैं।

यानी एड्स से बचाव के नाम पर हर बच्चे बूढ़े को हर पल काम वासना के सागर में गिराने का, पश्चिम के षड्यंत्र को लागू करने का काम सरकारी संरक्षण में खूब फल-फूल रहा है। चरित्र, संयम के स्वभाव में विकसित भारतीय समाज, विदेशी आकाओं की भावी योजनाओं में बाधक है। अतः उसे समाप्त करने का कुटिल प्रयास व्यापक स्तर पर सफलता पूर्वक चल रहा है। आपको कोई ऐतराज तो नहीं कि आप और आपके बेटे-बेटियाँ, बहुएं अपने साथ कण्डोम लेकर चलें? कृपया शर्म के कारण इस पर मौन रहकर सहयोगी न बनें। लाखों साल से संयम और चरित्र की प्रतिष्ठा को प्राप्त समाज की होने वाली इस दुर्दशा और विनाश के प्रयासों को हम और खुलकर अपना मत प्रकट करें।

भारतीय समाज की व्यवस्थाओं को तोड़ने वाले पूरी बेशर्मी से बात को कहते और प्रचार करते हैं और हम अपने संस्कारों से बंधे चुप-चाप सब सह जाते हैं। यह सब यूं ही चलने देना आने वाले विनाश की भूमिका बना रहा है। इसमें आपका मौन सहायक हो रहा है। अतः इस पर सोचें, इसे हम और जो उचित लगे वह कहें, पर कुछ करें जरूर। याद रखें कि मनुष्य की हर जरूरत से धन कमाना और उसके लिये उन्हें अति की सीमा तक भोगों को भोगने के लिए उकसाना, हमें पतन और विनाश की खाई में धकेलने वाला है।

‘कंण्डोम साथ लेकर चलने’ जैसे विज्ञापन देखकर सर झुककर गुज़र जाने से काम नहीं चलेगा। बच्चों और युवाओं के कोमल मन को विकृत बनाने पाले इन कुप्रयासों का विरोध दर्ज करवाना एक बार शुरू तो करें, आप जैसे कइ लाग होंगे जो आपके साथ़ जुड़जाएंगे।

अन्यथा पूरी संस्कृति पतन के खाइ में गिरकर समाप्त होती जाएगी।

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डॉ. राजेश कपूर
लेखक पारम्‍परिक चिकित्‍सक हैं और समसामयिक मुद्दों पर टिप्‍पणी करते रहते हैं। अनेक असाध्य रोगों के सरल स्वदेशी समाधान, अनेक जड़ी-बूटियों पर शोध और प्रयोग, प्रान्त व राष्ट्रिय स्तर पर पत्र पठन-प्रकाशन व वार्ताएं (आयुर्वेद और जैविक खेती), आपात काल में नौ मास की जेल यात्रा, 'गवाक्ष भारती' मासिक का सम्पादन-प्रकाशन, आजकल स्वाध्याय व लेखनएवं चिकित्सालय का संचालन. रूचि के विशेष विषय: पारंपरिक चिकित्सा, जैविक खेती, हमारा सही गौरवशाली अतीत, भारत विरोधी छद्म आक्रमण.

16 COMMENTS

  1. ‘जागतिक षड्यंत्र’ ‘आज़ादी बचाओ आन्दोलन, २१-बी, मोतीलाल नेहरु रोड, इलाहाबाद-२११००२’ इनका इमेल या फोन नबर देने की कृपा करे मेरा नबर है 09370133070

  2. हे इन्डियन , सही नाम छुपाने की क्या ज़रूरत आ पडी, पहले ही एक नकली नाम वाली / वाला जो है वह काफी नहीं क्या?
    खैर आपकी जानकारी के लिए फिर भी बतला दूँ कि एड्स का वायरस जानबूझकर बनाने और इसके अत्यंत दुर्बल होने की बात हवाई या निराधार नहीं है. प्रमाणों के लिए ‘गूगल’ में धुंध कर देख लें. साईट्स निम्न हैं————
    * Conspiracy Planet. Com इसमें विस्तृत जानकारी मिलेगी कि किस जासुउसे संस्था ने किसके कहने पर एड्स का वायरस बनाकर कैसे और कहा, क्यूँ फैलाया.
    * Mercola.com में सर्च के विकल्प में आपको वैक्सीनेशन की भयानक कौन्स्पीरेसी पर सैंकड़ों लिंक्स मिल जायेंगे .
    * एक पुस्तक ‘निकोला एम्. निकोलो’ की लिखी हुई ‘दी वर्ड कौन्स्पीरेसी’ पढ़ लें, फिर आप कोई प्रश्न नहीं पूछेंगे. इसका हिन्दी अनुवाद ‘जागतिक षड्यंत्र’ ‘आज़ादी बचाओ आन्दोलन, २१-बी, मोतीलाल नेहरु रोड, इलाहाबाद-२११००२’ से मिल जाएगा.
    * जहां तक बात है श्री मनमोहन सिंघ जी की तो वे तो एक कमज़ोर कठपुतली से अधिक महत्व नहीं रखते.पूरी भारत सरकार विदेशी ताकतों के इशारे पर नाचने को मजबूर बना दी गयी है. यहाँ तो अमेरिका का राष्ट्रपती तक दवा निर्माता अमेरीकी कंपनियों के आदेश के अनुसार चलने को मजबूर होता है या उनका साथी होता है. अन्यथा उसे जीवन से हाथ धोना पड़ता है. कृपया छुपाये गए तथ्यों को जानें और समझें, यदी आप उनका एक हिस्सा नहीं और उनका सहकार नहीं बनाना चाहते.

  3. हे इन्डियन महोदय, अपना सही नाम लिख देते तो आप की पहचान छुपाने के प्रयास से कोई संदेह तो न उपजते. खैर आप की जानकारी में लादूं कि माननीय मनमोहन सिंह जी के वश में एड्स आदि के कार्यक्रमों को रोकना या चलाना नहीं है. ये सब तो संसार की ऐसी ताकतों के आदेश पर चलता है जो अमेरिका की सरकार तक को संचालित करते हैं. हम लोग पढने-पढ़ाने का प्रयास तो करते नहीं, बस अंतर्राष्ट्रीय षडयंत्रकारियों के प्रचार के शिकार बन कर अपनी बर्बादी का कारण स्वयं बन बैठते हैं. मेरा सुझाव है कि आप मुझ पर तो विश्वास करेंगे नहीं, अतः जो साईट्स नीचे दे रहा हूँ उन्हें ‘गूगल’ में तलाश करके देख लें, आँखें खुल जायेंगी——
    * conspiracy planet.com.

  4. सरकार बेवक़ूफ़ है रेड रिबन पर इतना खर्चा कर रही है मनमोहन सिंह जी अगर आप मेरी आवाज़ सुन रहे हो तो फालतू खर्च रोक दो क्योंकि एड्स की दवा श्री कपूर जी के पास है

  5. AIDS को लेकर कुछ प्रश्न उठाये गए हैं जो की आज के सन्दर्भ में बड़ा महत्व का विषय है. इस बारे में मेरी दृष्टी में जानने योग्य जो ज़रूरी बातें हैं वे ये हैं——–
    *१* AIDS का इलाज अत्यंत आसान है. मेरी इस बात पर आसानी से विश्वास नहीं आयेगा. पर पूरी बात के बाद आशा है की आप विश्वास करने लगेंगे.
    *यदि तुलसी, नीम, बिल्ब या बेल गिरी के पत्ते ( प्रत्येक के ५-७ पत्ते) प्रातः काल ४-७ काली मिर्च के साथ चबाये जाएँ तो एड्स रोग ठीक हो जाएगा. इसका वायरस वास्तव में अत्यंत दुर्बल होता है जो आसानी से मारा जा सकता है.
    * अत्यधिक कामवासना व भोगों के कारण जिनका रज-वीर्य या सत्व समाप्त हो गया हो, ओज क्षय हो गया हो, वे लोग इस बीमारी का आसानी से शिकार बनते हैं और उनका इलाज कठिन या असंभव सिद्ध हो सकता है. इस रोग को आयुर्वेदिक ग्रंथों में ‘ओजक्षय’ कहा गया है. चरित्र वान लोगों को ये रोग नहीं हो सकता.
    * अमेरिका की गुप्तचर एजेंसी द्वारा ये वायरस डैट्रिक की प्रयोगशाला में बड़ी मेहनत और भारी खर्च करके तैयार किया गया है जिस से विश्व की फ़ालतू ( उनकी नज़र में ) जनसंख्या को समाप्त किया जा सके . साथ ही भरपूर कमाई भी हो.
    * अफ्रीका में पोलियो के टीकों में एड्स का वायरस डालकर टीकाकरण किया गया था. फलस्वरूप ७० % लोगों को एड्स हो गया. अमेरिकनों पर यह प्रयोग हैपेटाईटिस के सूचीकरण में किया गया. वे भी एड्स का शिकार हो गए पर सफलता केवल ७०% रही. अबतक ये सफलता का प्रतिशत बहुत बढ़ गया होगा.
    * बेचारे अफ्रीकियों को एड्स का कारण बता-बता कर उनके प्रती जुगुप्सा जगाई गई. उपरोक्त तथ्यों पर अनेक स्वतंत्र शोध लेख और प्रमाण इन्टरनेट पर उपलब्ध हैं. आप चाहें तो देखें Conspiracy Planet. Com थोडा प्रयास करने पर और भी अनेक प्रमाण मिल जायेंगे.
    # हम भारतीयों के लिए अत्यंत महत्व की जानने की बात है कि लाख प्रयास करने पर भी आप लोग एड्स, तपेदिक, कैंसर, मधुमेह, ह्रदय रोगों के शिकार उतनी तेज़ी से नहीं बन रहे जितना कि आपको बनाने का प्रयास हो रहा है. कारण है आप लोगों की अद्भुत रोग निरोधक शक्ती जो हमें मिली है अपने पूर्वजों के कारण. संयम पूर्ण जीवन, विवाहित जीवन में भी संयम का अभ्यास करते रहने के आदर्श पालन करना, आहार में संयम, आदर्श दिनचर्या, अत्यंत विज्ञान सम्मत पाक व आहार शास्त्र जिसका मुकाबला आज भी विश्व में नहीं है.
    -इन रुकावटों को दूर करने के लिए हमारे आहार, विहार, दिनचर्या, विचार, चरित्र सबकुछ बदलने के अभूतपूर्व प्रयास चल रहे हैं. उसी कड़ी में है हमको अत्यधिक वासना का गुलाम बना देने का, वासना की नाली में डूबा देने का प्रयास. फिर हम आसानी से एड्स तथा anya अनेक रोगों का शिकार बन सकेंगे.
    फिर हम nistej , सत्वहीन लोगों से कभी भी कोई ख़तरा १९४७ या १८५७ जैसा नहीं होगा. तो कुल मिलाकर अगर स्वाभिमान से स्वस्थ होकर जीना है तो चरित्रवान बनकर अपने भारतीय जीवन मूल्यों का पालन करते हुए जीना होगा. तभी इस भयानक और गुप्त aakramno का सामना हम कर पायेंगे.

  6. Main bhi maantaa hoon ki yah vigyapan sahi nahi hai,par upaay kta hai?Aaj Bhaarat mein AiDS aur HIV ke sabse jyada rogi hain.Maine yah sankhyaa unlogon ko milaakar likhaa hai,jo aankre mein nahi dikhaaye gaye hain.Hamaare yahan tawaayafon aur call girls ki sankhya kisi bhi desh ke mukaable kahi jyaadaa hai Maine aisi aisi ladkiyon ko call girls ke roop mein dekhaa hai,jinke baare mein main aisaa soch bhi nahi sakta thaa. Ham kahne ko charitrawaan bhale hi ban le,par aakron ke anusaar hamse jyaada bhrast duniyaa mein shaayad hi koi ho. Yah prachaar aur jaagrukta ke kaaran hi sambhav hua ki Bharat mein AIDs aur HIV pidit logon ki sankhayaa utni nahi hui jatna maine nineties mein anumaan lagaathaa.Nahi to us samay jis raftaar se yah sankhyaa badh rahi thee,mera anumaan tha ki Bhaarat ka har daswan adult AIDS yaa HIV ka shikar ho jaayega,par aisa nahi huaa jiskaa sabse badaa kaaran logon mein jaagruktaa laanaa hai.
    Bhaarat ki aadhi se adhik adult aabaadi migrated labour force hai.Ve log akele rahne ke liye baadhya hain.OOnki naitikta aur bekraari maine dekhi hai.Naitiktaa ka updesh denaa aasaan hai,aur usme ham maahir bhi hain,par amal bahut kathin hai.Ham KAMBAL ODH KAR GHEE PINE WALON KO yahi bataayaa ja rahaa hai ki aage badhne ke pahle ekbaar soch lo aur dushkarm par ootaaru hi ho to sawdhaani to barto.

    • यथार्थ टिप्पणी और सच कहने का सलीका. साधुवाद!

  7. पाश्चात्य संस्कृति का अन्धानुकरण अमे निश्चत रूप से पतन की और ले जा रहा हे इसे पुरजोर विरोध से रोकना होगा

  8. यह सब देखकर दुनियामे सिर्फ एड्स ये एक ही बिमारी बच गायी है ऐसा लागता है. और एड्स के नाम से करोडो रुपयोका भ्रष्ट्राचार आराम से चल राहा है.
    आप एक योनसंबंध रखने वाले हो तो इस बिमारि का डर नही. यह सच छुपाया जराह है , ताकी इनका गोरख धंदा चलते रहै.

    • एड्स से देश में जितनी मौतें 10 वर्ष में होती हैं, उतनी मौतें धूम्रपान की वजह से मात्र एक सप्ताह में ही हो जाती हैं।

  9. तथाकथित ”आधुनिक” लोगो ने इस देश को बर्बाद करने मे कोई कमी नहीं की. कंडोम ले कर चलने वाली पीढ़ी देश का कितना भला कर पायेगी, कहा नहीं जा सकता. आपके चिंतान्कपता नहीं कितना असर होता है लेकिन ऐसे चिंतन सामने आने ही चाहिए. भारतीय समाज को पतित होने से अब कोई रोक नहीं सकता लेकिन कोशिश होनी ही चाहिए.

  10. आदरणीय कपूर जी ,
    आपका कहना भी सही है ,
    यदि किसी देश को कमज़ोर करना हो या उसको मिटाना हो तो सबसे पहले उसकी संस्क्रति और भाषा उससे छीन लो , हमारे देश में परिवार वाद की प्रथा रही है और चरित्र, संयम का स्वभाव रहा है यही विज्ञापन एक समस्या नहीं है मेने पहले भी लिखा था की अश्लील विज्ञापन और सिनेमाघरों के बहार शहर भर में फिल्मों के कामुक पोस्टर निश्चित रूप से किशोरवय बालक बालिकों के मन पर बुरा प्रभाव डालते हैं आप जिस भी जगह के रहने वाले होंगे हर जगह का यही हाल है रोज़ाना ही मासूम बच्चों के साथ दैहिक अत्याचार, यौन शोषण का एक ना एक किस्सा सुर्खी में होता है, सोच कर घिन भी आती है। भारतीय समाज नैतिक पतन के गर्त में कितनी गहराई तक जा धँसा है आए दिन छोटी-छोटी दुधमुँही बच्चियों तक के साथ, बलात्कार की घटनाएँ फिर उनकी हत्याएँ देश भर में देखने-सुनने को मिल रहीं हैं, जो समाज के नैतिक ताने-बाने की जर्जरता चीख-चीखकर प्रदर्शित कर रहीं है। देश के तमाम बुद्धिजीवी, समाजसेवी, राजनीतिज्ञ चुप हैं, यह भारी चिंता का विषय है।
    भारतीय समाज के इस तरह नैतिक पतन के दलदल निरन्तर धँसते चले जाने का मुख्य कारण इलेक्ट्रानिक मीड़िया और फिल्मों के जरिये परोसी जा रही अश्लीलता है, परन्तु मात्र ये कह देना मामले का सामान्यीकरण होगा। इसके पीछे मौजूद तमाम राजनैतिक-सामाजिक- सांस्कृतिक-एवं आर्थिक कारणों की जाँच-पड़ताल की आवश्यकता है। बल्कि इसको परिचर्चा में भी शामिल किया जाना चाहिए मेरी संपादक जी से निवेदन है अगर इस पर कभी परिचर्चा न हुई हो तो इस पर ध्यान दें
    लेकिन एड्स से बचाव को जागरूक करना एक अलग बात है और वो ज़रूरी भी है पर ये विज्ञापन उस सन्दर्भ में गलत नहीं कहा जा सकता है जबकि नवयुवक वेश्यालयों में जा रहें हैं पहले जब तक एड्स की समस्या नहीं थी अलग बात थी लेकिन आजकल जब वो जा रहें हैं तो ये विज्ञापन भी आ रहें हैं ……
    परन्तु ये नितांत शर्म का विषय है की हमको ऐसे विज्ञापनों का भी सामना करना पड़ रहा है महोदय से निवेदन है की कोइ और कारगर उपाय यदि इस सन्दर्भ में हो तो सुझाने का कष्ट करे
    ……………….. शुभकामनाओ के साथ आपका मार्गदर्शन मिलता रहे आशिर्वादाभिलासी ……… दीपा शर्मा

  11. आदरणीय कपूर जी ने बहुत बड़ा मुद्दा उठाया है। धन्यवाद।

    भारत विश्व का एक बहुत बड़ा बजार है। यहां सब बिकता है। विदेशों का सस्ता एवं खराब माल मुफ्त में भारत भेज दिया जाता है और लोगों को आदि बनाकर फिर महंगा माल खपाया जाता है।

    कुछ समय (दो तीन साल पहले) पहले दूरदशर्न पर हर कुछ मिनट में रेलवे स्टेशन पर कण्डोम का का विज्ञापन आता था। समाचार देखना भी मुश्किल होता था। अब तो कण्डोम के विज्ञापन साबुन, बिस्कुट से भी ज्यादा सामान्य हो गऐ हैं।

    सैक्स शिक्षा एक ऐसी शिक्षा है जिसके बारें में बताने पर व्यवहारिक अनुभव की त्रीव लालसा होती है। सैक्स शिक्षा हमारे यहां स्कूल बल्कि प्रायमरी स्तर पर देने की तैयारी चल रही है। बच्चों के कोमल मन में अभी से सैक्स भर दो, भारत देश जो हजारों सालों से अजेय रहा है उसे चारित्रिक गुलाम बना दो। अपने आप देश बिखर जाऐगा।

    यूरोप जो कि बेहद ठण्डे देश रहें हैं। वहां सैक्स के मायने अलग हो सकते हैं किन्तु भारत जो कि गरम देश है। हमारी संस्कृति है, विरासत है, हमारे देश में अध्यात्म है। सैक्स सैक्स न होकर एक शास्त्र रहा है। एक गुप्त विद्या के रूप में जो कि केवल शादी के बाद ही स्वीकार्य रहा है वह भी केवल एक पति पत्नि के बीच में।

    रही बात रोगों की तो अगर शारिरिक व्यायाम होते रहें, संतुलित खानपान हो, संयमित दिनचर्या हो और योग प्राणायाम हो ता बिमारियों की क्या मजाल कि इन्सान शरीर को छू सके।

  12. चिंता सही है परन्तु व्यथा उचित नहीं.. आखिर कारण तो सबके पास है.. संस्कृति को पतित करने वालों के पास भी और उसके खिलाफ लंबरदारी करने वालों के पास भी..

  13. कपूर साहब ,
    आपकी व्यथा उचित ही है . इस देश की युवा पीढ़ी बर्बाद हो चुकी है .गर्ल्स होस्टल की गतिविधि यदि आप देखलें तो अहसास हो जायेगा युवा पीढ़ी योंन सामग्री ओर गर्भ निरोधकों का बेशर्मी से उपयोग कर रही है अपने स्वास्थय तथा भविष्य का भी ख्याल नहीं रख रहीं हैं .योंन सम्बन्ध अब इनके लिए इन्जोय का साधन बन गया है .ये सब पतन की ओर अग्रसर हैं .नारी स्वतन्त्रता तथा मानवाधिकार जैसे संगठन सरकार के सहयोग से आग में घीं डालने का कम कर रहें हैं .

    • Aapsab log milkar yuva pidhi ko kosh rahe hain.Mujhe yah to pataa nahi ki kitne yuva aapke in comments ko padhate hain,par ek baat main saaf saaf kahna chaahtaa hoon ki aaj ke senior citizens khaas kar oonlogon ko yuvaon ko oopdesh dene kaa koi aadhikaar nahi hai ,jo 1928 and 1947 ke beech paidaa huye hain,kyonki aaj ki durdasaa ke mukhya kaaran ve hi log hain.Oonlogon ne to apni jawaani mein apne aur desh ko bhrast karne mein kuchh oothaa nahi rakhaa aur aaj updesh dene baithe hain.Yah to Laloo Prasad jaisi baat ho gayee ki apne to 10 bache paida karlo aur doosron ko family planning ka oopdesh do.Maine India Today mein teen saal pahle yah mudaa uthaya tha,par kisine oospar dhyan dene ki jaroorat nahi samjhi.Aaj phir ham wahi ronaa ro rahe hain.Par yaron ,apne garebaan mein to jhank kar dekho,tumne desh aur yuvaon ke liye kyaa kiya hai?Desh aaj bhrast nahi huaa hai. Iski buniyaad to oos di rakhi gayee thee jis din desh aajaad huaa tha aur panch varsiye yojnayen shuru huyi thee.Wahi marj dhire dhire badhta rahaa aur ham is mukaam par aa pahuche.Main nahi jaanataa ki aap logon mese kitne aaj sakriya hain,par ronaa rone aur yuvaa pidhi ko koshne ke badale agar aap kuchh apne apne dhang se karna shuru kar de to shayad samaj aur desh ka kuchh kalyaan ho jaaye.

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