भूतपूर्व लौहपुरुष के तेवर हो गए लाल

1
162

निरंजन परिहार

बीजेपी में हड़कंप है। लालकृष्ण आडवाणी अड़ गए हैं। नितिन गड़करी नहीं चलेंगे। संघ परिवार बहुत कोशिश कर रहा है। कोशिश यह कि कैसे भी करके गड़करी को एक बार फिर चला लिया जाए। लेकिन बूढ़ा शेर बिदक गया है। संघ परिवार बहुत सालों से बीजेपी के सिर पर सवार है। पर, गड़करी के मामले में इस बार आडवाणी संघ के सिर पर सवार हो रहे हैं। वे किसी भी हालात में गड़करी को रिपीट करने के लिए कहीं से भी तैयार नहीं लग रहे हैं। संघ परिवार अकसर ऐसे मौकों पर बहुत सारे खेल खेलता है। संघ परिवार को लग रहा था कि राम रथ पर सवार होकर देश भर को राम नाम की लहर लाने वाले आडवाणी को राम के जरिए साधा जा सकता है। सो, इस बार रामलाल तो भेजा। बेचारे रामलाल, गए तो थे संघ परिवार के दूत बनकर। सोचा होगा कि आडवाणी फिल्मों के शौकीन रहे हैं। सो, हसीना मान जाएगी फिल्म की तर्ज पर वे भी मान ही जाएंगे। लेकिन राम के नाम से देश की सत्ता से कांग्रेस को पानी पिलाने की हालत में लानेवाले आडवाणी ने राम लाल को पानी पिलाकर बैरंग वापस भेज दिया। रामलाल बीजेपी के संगठन महासचिव हैं। संगठन महासचिव का पद बीजेपी में कद और पद दोनों के हिसाब से बड़ा माना जाचा है। इस पद पर बैठनेवाले का मनोनयन संघ परिवार अपने भीतर से करता है। ठीक वैसे ही, जैसे अपने प्रदेश में कभी ओमप्रकाश माथुर संगठन महासचिव हुआ करते थे। माथुर तो खैर, पहले से ही किसान संघ के जमाने से वैसे भी ताकतवर थे और इस पद पर आकर और मजबूत हो गए। लेकिन बीजेपी की अंदरूनी राजनीति में यह बहुत ताकतवर पद हुआ करता है। सो, जो भी इस पद पर आता है, वो ताकतवर हो ही जाता है। अपने प्रकाशजी भाईसाहब को ही देख लीजिए। बहुत सम्मानित और मनुष्य होने के तौर पर बेहद अच्छे हैं। इतने अच्छे कि अपन भी उनके पैर छूते हैं। लेकिन पद पर थे, तो बहुत चर्चा में थे। अब कहां हैं, बहुत कम लोग जानते हैं। परंपरा के हिसाब से संघ परिवार अपने एक पुत्र को बीजेपी में ठेके पर भेजता है। भेजने से पहले उसको राजनीति के गुर सिखाता है। फइर वहां उससे राजनीति को नियंत्रित करवाता है। लेकिन जब वह खुद राजनीति करने लगता है, तो उसको वापस भी बुला लेता है। पर, आप तो जानते ही है कि राजनीति पीछा नहीं छोड़ती। एक बार भी जिस किसी ने उसको जी लिया, उसके साथ वह सदा के लिए चिपकी ही रहती है। सो, संघ का कोई ठेके पर गया पुत्र जब राजनीति नहीं छोड़ता है, तो संघ कहने को भले ही उससे किनारा कर लेता है। पर, वास्तव में उसे सताता है, बहुत परेशान करता है। वैसे, संघ परिवार की संतानें बहुत मजबूत होती हैं। सो, अपने ओमजीभाई साहब न तो थके, और नहीं हारे। जमे रहे, तो पद और कद दोनों पा गए। खैर, अपन बात संघ परिवार के बीजेपी में ठेके पर आए रामलाल की कर रहे थे। तो…, संघ परिवार की सांसों की क्षमता से भरे ताकतवर रामलाल आज के लौहपुरुष रहे आडवाणी के साथ शुक्रवार को ताकत आजमाने गए। रामलाल क्या बात करने गये थे, यह बिना जाने ही आडवाणी ने तबियत का बहाना बनाकर उनसे कोई बात नहीं की। पल भर के लिए इस बात को सच भी मान लिया जाए कि रामलाल तबियत का हाल पूछने ही गए थे, तो फिर तबियत कोई इतनी भी खराब नहीं थी कि आडवाणी उनसे मिलें भी नहीं। पर, पर वे नहीं मिले।और अगले दिन आडवाणी की तरफ से संघ परिवार और बीजेपी में यह संदेश पहुंचा दिया गया कि नितिन गडकरी नहीं चलेंगे। आमतौर पर शांत रहनेवाले आडवाणी ने आखिरकार शनिवार को अपनी आवाज बुलंद कर दी। और गडकरी को गद्दी छोड़ने का संदेश भिजवा दिया। बीजेपी में एक बार फिर हड़कंप मचा हुआ है।

 

1 COMMENT

  1. अगर पब्लिक परसेप्शन का कोई विचार किया जाना है और एक प्रत्श्थित हिंदी दैनिक की भाषा का प्रयोग करूँ तो यदि भाजपा को २०१३/१४ को मोर्चा के रूप में न लेकर युद्ध के रूप में लेना है तो फिर किसी ऐसे व्यक्ति को ही अध्यक्ष पद पर लाना उचित होगा जो भाजपा के प्रति लोगों के विश्वास को बढ़ने का काम करे.मेरे विचार में महिलाओं के प्रति समाज में उमड़ी भावना को ध्यान में रखते हुए सुषमा जी को ये अवसर देना उचित होगा.गडकरी जी पूरी तरह से निर्दोष हैं लेकिन केवल ये कहते रहने से पब्लिक का परसेप्शन एकदम से अनुकूल नहीं हो जायेगा. कहीं ऐसा न हो की जिद के कारन बाद में वाही हालत हो जो उत्तर प्रदेश में बाबु सिंह कुशवाहा के कारन हुई. हालाँकि बाबूसिंह और गद्करीजी के मामलों में भरी अंतर है. लेकिन लोकतंत्र में सही और गलत से ज्यादा पब्लिक के बीच बन गयी छवि ज्यादा महत्वपूर्ण होती है. बाकी तो निर्णय लेने वालों का अपना विवेक है.क्लास ओर्गेनयिजेशन और मास बेस्ड पार्टी के कार्य सञ्चालन में अंतर है.पूर्व में स्व.कौशल जी और कमलेश जी भी इस अंतर को आत्मसात न कर पाने के कारण असफलता का सामना कर चुके हैं.लेकिन इस समय भाजपा का ‘युद्ध’ हारना पार्टी ही नहीं देश को भी बहुत भारी पड़ेगा.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here