मुस्लिम मतदाता संगठित रूप से देश के सबसे बड़े वोटबैंक के रूप में सर्वमान्य है । आजादी के बाद से ही इन मतदाताओं का झुकाव कांग्रेस की ओर अधिक रहा है । देश में सबसे अधिक वर्षों तक कांग्रेस का सत्ता में बने रहने का ये सबसे बड़ा कारण है । इसी वजह से देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी भाजपा का झुकाव भी समय समय पर मुस्लिम मतदाताओं की ओर रहता है । स्मरण रहे कि अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल के समय भी भाजपा ने इस वोटबैंक को रिझाने में कोई कसर नहीं रखी थी ।हांलाकि उसके बाद के चुनावी परिणामों ने ये स्पष्ट कर दिया कि मुस्लिम मतदाता भाजपा के पक्ष में तो कत्तई मतदान नहीं कर सकते । लगातार विपरीत रहे परिणामों के बावजूद भी भाजपा का शीर्ष नेतृत्व समय समय पर सदैव मानसिक विभ्रम का शिकार होता रहा है । जहां तक वर्तमान परिप्रेक्ष्यों का प्रश्न है तो अभी भी भाजपा का मुस्लिम प्रेम खत्म नहीं हुआ है । भाजपा का वर्तमान चुनावी एजेंडा एवं गतिविधियां इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं ।
जहां तक भाजपा और मुस्लिम मतदाताओं के बीच चल रहे छत्तिस के आंकड़े का प्रश्न है तो यह अपने जन्म काल से ही रहा है । बात चाहे अनुच्छेद-३७० की हो या शरीयत के आधार पर मिलने वाली सुविधाओं की या तुष्टिकरण की भाजपा ने जन्म से ही इन दोहरे मापदंडों का विरोध किया है । ऐसे में कांग्रेस को मुसलमानों के शोषण का कारक बताकर या उस पर मुस्लिमों के वोट बैंक के रूप में प्रयोग का आरोप लगाकर भाजपा मुसलमानों को रिझा नहीं सकती । जहां तक प्रश्न है वोट बैंक के रूप में संगठित होने का तो निसंदेह ये मुस्लिम मतदाताओं की अपनी पसंद है ।इसके पीछे कई सारे कारण हैं । स्मरण रहे कि मुस्लिम जनसंख्या के लिए राष्ट्रवाद जैसा मुद्दा कोई मायने नहीं रखता वे शरियत आधारित कानून व्यवस्था में विश्वास रखते हैं । वो व्यवस्था जिसमें उन्हे दर्जनों बच्चे पैदा करने,सड़कों पर हिंसा करने,इस्लाम आधारित शासन प्रणाली मिलने का पूर्ण भरोसा मिल सके । इस बात को आप राष्ट्रीय ध्वज एवं गीत के अपमान से स्पष्ट समझ् सकते हैं । अथवा कश्मीर के वर्तमान हालात ही देख लीजीए ध्यातव्य हो कि वहां की हिंदू जनसंख्या आज भी आजाद राष्ट्र में शरणार्थी के रूप में जीवन यापन को विवश है । इसके लिए सौ फीसदी मुस्लिम चरमपंथी ही जिम्मेदार हैं जिनके रक्तपात से आजिज आकर ये लोग आज दर दर की ठोकर खा रहे हैं । इन सब बातों को यदि रहने भी दिया जाय तो आतंकियों को इस्लामी समर्थन की बात हम कैसे भूल सकते हैं । वो समर्थन जो अफजल गुरू की फांसी की निंदा करता है अथवा कसाब की मौत का शोक बनाता है ।क्या ये राष्ट्रवाद के लक्षण हैं ?
इस बात को थोड़ा और विस्तार से देखें तो कुछ बातें और स्पष्ट हो जाएंगी जिनमें सर्वप्रथम भारत के विभाजन की बात आयेगी । स्मरण रहे कि भारत के धर्म आधारित विभाजन की मांग मुस्लिम लीग के नेताओं की थी । इस मांग को रखते वक्त पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि,हिन्दू और मुसलमान एक देश में एक साथ नहीं रह सकते क्योंकि हिन्दू यदि गाय की पूजा करता है तो मुसलमान गाय को खाता है । आप जिन्ना के इस कथन से दोनों धर्मों की मानसिकता के बीच का अंतर स्पष्ट रूप से जान सकते हैं । यहां एक बात स्पष्ट हो गयी कि तत्कालीन मुस्लिम नेताओं ने शरियत आधारित शासन प्रणाली या दारूल इस्लाम के लक्ष्य को ध्यान में रखकर ही पाकिस्तान का निर्माण किया था । अब प्रश्न ये उठता है जब विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था तो धार्मिक पृष्ठभूमि के आधार पर धर्मावलंबियों का प्रत्यर्पण क्यों नहीं किया गया ? क्योंकि विश्व में ऐसे पहले भी हो चुका है । इसका जवाब है वोटबैंक,जी हां यहीं से कांग्रेस की वोटबैंक की राजनीति की शुरूआत हुई । आंकड़ों को यदि आधार मानें तो संपूर्ण विश्व में मुस्लिम आबादी के लिहाज से भारत दूसरा देश है । यहां मुस्लिम जनसंख्या की विकास दर अन्य देशों की अपेक्षा सबसे अधिक रही है । वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदू धर्मावलंबियों का विनाश लगातार जारी है ।इस पूरी प्रक्रिया में जबरन धर्मांतरण,स्त्रियों के साथ बलात्कार एवं मंदिर इत्यादि धार्मिक स्थलों का विध्वंस भी शामिल हैं । बहरहाल दोहरे मापदंडों का ये सिलसिला यहीं नहीं रूकता एक ओर हम बांग्लादेशियों के प्रति सहृदयता का भाव अपनाते हैं तो दूसरी ओर पाकिस्तान से वापस आये हिंदुओं के आंसू पोंछने की जहमत भी नहीं उठाते ।पाकिस्तान से आये हिन्दू तो दूर की बात हैं क्या हम कश्मीर के विस्थापितों को वापस उनके मूल स्थानों पर बसा सके ? यदि नहीं तो क्यों ? इन सारी विषम परिस्थितियों के लिए जिम्मेदार कौन है ? निसंदेह कांग्रेस का शासन जिसने अल्पसंख्यक के नाम पर उन्माद को खुला प्रश्रय दिया । ऐसे में भाजपा का साथ मुस्लिमों को वैसे भी रास नहीं आयेगा । बावजूद इसके भाजपा की इस प्रकार की कोशिशें मानसिक दिवालियेपन से ज्यादा कुछ नहीं हैं ।
इस बात को वैचारिक आधार पर भी देखें तो हिन्दू स्वाभाविक रूप से उदार उवं सहिष्णु होते हैं ।इस बात को समझाने के लिए एक नहीं अनेकों प्रमाण हैं । यथा वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा जिसके अंतर्गत सभी को स्वीकार्यता प्रदान करना । ये स्वीकार्यता का स्तर मात्र मानव के स्तर पर नहीं अपितु नदियां,वृक्ष,जीव-जंतु प्रत्येक स्तर पर लागू होता है । वहीं दूसरी ओर इस्लाम के दर्शन एवं इतिहास को देखें तो यह रक्तपात,लूटपाट एवं खूनखराबे से भरा पड़ा है । क्या इस्लाम के इस इतिहास को कोई नकार सकता है ? इस विषय मुस्लिम धर्मावलंबियों का सबसे बड़ा लक्ष्य रहा है दारूल इस्लाम की स्थापना । ये अवधारणा आज भी बदस्तूर कायम जिसका परिणाम आज सर्वत्र जेहाद के तौर पर दिख रहा है । ऐसे में कांग्रेस की तुष्टिकरण की मुहीम ने आग में घी का काम किया है । इस विषय में मानवाधिकार के रोना रोने वाले हमेशा गोधरा का तर्क प्रस्तुत करते हैं ।क्या हुआ था गोधरा में ? कैसे शुरू हुई वो विध्वंस लीला ? इस बात के प्रमाण उस काल के अखबारों में स्पष्ट रूप से मिल जाएंगे । जहां तक प्रश्न है घटना के मूल का तो वो निसंदेह कारसेवकों को जिंदा जलाने की घटना की क्रिया पर स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी ।ये शायद इतिहास में हिन्दुओं की प्रथम प्रतिक्रिया थी जो इतनी उग्र रूप में सामने आयी । बहरहाल जो भी हो हिंसा हर स्तर पर निंदनीय होती है चाहे वो किसी भी स्तर पर की जाये लेकिन घटना के आरंभ के श्रेय के कारकों को किसी भी स्तर पर नकारा नहीं जा सकता है । यहां सबसे ज्यादा मजे की बात ये है कि भारत वर्ष में इसके पूर्व एवं इसके बाद भी अनेकों दंगे हुए जिनमें बहुसंख्य हिन्दू मारे गये लेकिन इन घटनाओें को किस ने भी संज्ञान नहीं लिया ,क्यों ? असम में बोडो जनसंख्या का अल्पसंख्यक होना एक बड़ी साजिश का प्रमाण है । इशरत जहां प्रकरण में सीबीआई की अत्यधिक सक्रियता क्या साबित करती है ? या उसके आतंकियों से संपर्क पर मौन क्यों साध लेते हैं मानवधिकारवादी ? सबसे बड़ी बात इशरत जहां प्रकरण उछालने वाले साध्वी प्रज्ञा का नाम लेने से हिचकिचाते क्यों है ? किन साक्ष्यों के आधार पर उन्हे जेल में यातनाएं दी जा रहीं हैं ? या अल्पसंख्यक अधिकारों के नाम पर हिन्दुओं का चहुंमुखी शोषण कब तक किया जायेगा ? ये कुछ ऐसे मुद्दे जिन पर यथोचित न्याय की आशायें आम मतदाता को भाजपा से हैं । क्या भाजपा इन जन भावनाओं के साथ न्याय कर पायेगी? हां जहां तक मुस्लिमों को रिझाने का प्रश्न है तो वो भाजपा के लिए एक टेढ़ी खीर ही है । ऐसे मे वक्त भाजपा को एक बार दोबारा अपने सिद्धांतों की ओर वापस लौटने का । वो सिद्धातं जो राष्ट्रवाद और राष्ट्रद्रोह के बीच का स्वाभाविक अंतर पहचानते हैं ।वो सिद्धांत जो अनुच्छेद-३७०,दोहरी शासनप्रणाली एवं तुष्किरण का विरोध करते हैं। वो सिद्धांत जो सभी के लिए एक समान शासन प्रणाली सुनिश्चित करने की क्षमता रखते हैं । चुनाव निसंदेह भाजपा नेतृत्व का है, स्वार्थ लिप्सा में डूबी निस्तेज सत्ता या प्रखर राष्ट्रवादी मूल्यों की पुर्नस्थापना ।
बिलकुल सही कहा
” मुस्लिम जनसंख्या के लिए राष्ट्रवाद जैसा मुद्दा कोई मायने नहीं रखता वे शरियत आधारित कानून व्यवस्था में विश्वास रखते हैं । वो व्यवस्था जिसमें उन्हे दर्जनों बच्चे पैदा करने,सड़कों पर हिंसा करने,इस्लाम आधारित शासन प्रणाली मिलने का पूर्ण भरोसा मिल सके । इस बात को आप राष्ट्रीय ध्वज एवं गीत के अपमान से स्पष्ट समझ् सकते हैं । अथवा कश्मीर के वर्तमान हालात ही देख लीजीए ध्यातव्य हो कि वहां की हिंदू जनसंख्या आज भी आजाद राष्ट्र में शरणार्थी के रूप में जीवन यापन को विवश है । इसके लिए सौ फीसदी मुस्लिम चरमपंथी ही जिम्मेदार हैं जिनके रक्तपात से आजिज आकर ये लोग आज दर दर की ठोकर खा रहे हैं । इन सब बातों को यदि रहने भी दिया जाय तो आतंकियों को इस्लामी समर्थन की बात हम कैसे भूल सकते हैं । वो समर्थन जो अफजल गुरू की फांसी की निंदा करता है अथवा कसाब की मौत का शोक बनाता है ।क्या ये राष्ट्रवाद के लक्षण हैं ? “””
भाजपा जितनी जल्दी मुस्लिम व्यामोह से बाहर आ जाये उतना अच्छा.संभ्रम की स्थिति अच्छी नहीं है.जब सब ही मुस्लिम वोटों के पीछे भाग रहे हैं, गला काट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में जब सब मुस्लिम वोटों के पीछे जमीं आसमान एक किये हैं तो भाजपा दो काम करले.एक,स्पष्ट रूप से हिन्दू हितों की बात कहें और घोषित करें की भाजपा मुसलमानों को भी मोहम्मद्पंथी हिन्दू ही मानते हैं.दो,समझौता परस्ती की सुविधाजनक राजनीती छोड़कर निश्चय पूर्वक कम से कम पांच सौ प्रत्याशी भाजपा के खड़े करें.फेयरवेदर दोस्तों का साथ छोटने से इस बार ये संभव भी है.क्योंकि शिवसेना और अकालीदल के अतिरिक्त और कोई ,सहयोगी, नहीं बचा है जिनके लिए सीटें छोडनी पड़ें.पूज्य श्री गुरूजी कहा करते थे “शोर्ट कट विल कट यू शोर्ट”.समझौतों के कारण ही भाजपा अपने कोर मुद्दों से दूर गयी.और उसके प्रशंषकों में उसकी साख गिरी.जिन्ना को सेकुलर बताने से बहुत नुक्सान हुआ.भाजपा का कोर मतदाता भी उदासीन होकर घर बैठ गया.मुझे पिछले चुनावों में एक व्यक्ति ने बताया की उसके परिवार में चौदह मतदाता हैं.लेकिन उदासीनता के कारण केवल दो लोग ही मतदान को गए.यदि सही प्रकार से प्रत्याशी चयन किया जाये और उचित ढंग से हिंदुत्व को रखा जाये तो निश्चय ही भाजपा को अपने ही दम पर बहुमत प्राप्त हो सकता है.मुसलमान स्वयं भाजपा के साथ आ जायेगा. क्योंकि उसका स्वाभाव है की जहाँ वो अल्पसंख्या में है वहां वो ताकत के आगे नतमस्तक रहता है.और जहाँ वो बहुमत में होता है वहां किसी और के अस्तित्व की सम्भावना ही समाप्त हो जाती है.
राष्ट्रवादी अछूत है इस देश में,वह सांप्रदायिक भी करार दिया जाता है.राष्ट्रध्वज ,राष्ट्रगीत,का अपमान करने वाले, लोग ही असली नागरिक हैं,देश के संसाधनों पर भी पहला हक उनका है.