कांग्रेस की शर्मनाक हार के निहितार्थ

-सुरेश हिन्दुस्थानी-
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वर्तमान में कांग्रेस पार्टी अपनी अप्रत्याशित पराजय के कारण सदमे जैसी स्थिति में है। सोनिया और राहुल गांधी की भाषा में चुनावों से पूर्व का पैनापन लगभग विलुप्त सा हो गया है। वास्तव में आज का हर कांग्रेसी इस बात को तो स्वीकार कर रहा है कि देश में नरेन्द्र मोदी की लहर थी, जो चुनावों के समय उन्हें दिखाई नहीं दी। यह एक ऐसी लहर साबित हुई, जिसमें कांग्रेस के आधार स्तम्भ तक हिलने की कगार पर पहुंच गए थे और कहीं कहीं तो कांग्रेस की बुनियाद ही जमीन तलाश करने की मुद्रा में आ गई। कहना तर्कसंगत ही होगा कि देश के अधिकांश राज्य आज मोदी की वाणी के अनुसार कांग्रेस मुक्त भारत का संदेश प्रवाहित कर रहे हैं। ऐसी स्थिति की आशा कांग्रेस को कतई नहीं थी।

कांग्रेस की इस बार सबसे बड़ी पराजय हुई है। उसके निहितार्थ में यह तर्क दिया जा सकता है कि कांग्रेस के जो 44 सांसद निर्वाचित होकर आए हैं, उनमें अधिकांश रूप से वह सांसद शामिल हैं जो किसी भी पार्टी से या निर्दलीय खड़े होने पर भी जीत जाते। यानी कांग्रेस के जो भी उम्मीदवार जीते हैं वह उनकी व्यक्तिगत जीत है। कहने का तात्पर्य है कि कांग्रेस की ऐतिहासिक हार हुई है। इस हार को लेकर अभी तक मौन की अवस्था में रहे कांग्रेस नेता अब मुंह खोलने की हिम्मत करने लगे हैं, कांग्रेस के कई नेताओं ने तो सीधे तौर पर राहुल को निशाना बनाना शुरू कर दिया है, अब देखना यह है कि बात कहां तक जाती है।

हार के पीछे की कहानी
कांग्रेस की हार का अध्याय तो उसी दिन से प्रारम्भ हो गया था, जब देश में अण्णा हजारे द्वारा चलाए गए भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को पूरे भारत देश का समर्थन हासिल हो गया था, समस्त भारत में इस मुद्दे को लेकर प्रदर्शन होने लगे, लेकिन कांग्रेस केवल कुतर्कों के माध्यम से अपने गुनाहों को छुपाने का प्रयास करती नजर आई। कांग्रेस को करना यह चाहिए था कि भ्रष्टाचार के विरोध में इस मुखरित होती आवाज को कानूनी और सरकारी प्रयासों के माध्यम से समाप्त करने का प्रयास किया जाता। पर कांग्रेस ने इसके उलट जाते हुए अण्णा हजारे पर ही आरोप लगाना शुरू कर दिया। कांग्रेस के एक वरिष्ठ मंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि अण्णा क्या जानें देश कैसे चलाया जाता है, जो व्यक्ति कभी चुनाव नहीं लड़ा हो उसको इस प्रकार की आवाज नहीं उठाना चाहिए। कांगे्रसी नेता का इस प्रकार का कथन कांग्रेस की गले की हड्डी साबित होता गया, और जो परिणति हुई आज वह सबके सामने है। बड़बोले कपिल सिब्बल का तो चुनाव हारने के बाद गुमशुदा से हो गए हैं।

हम जानते हैं कि कांग्रेस ने हर उस आवाज को दबाने का प्रयास किया जो उसके विरोध में उठी, इसके लिए सरकार के संरक्षण में चल रही संस्थाओं का उपयोग भी किया। केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने कथित तौर पर ही सही, कांग्रेस का पूरा साथ दिया। बाबा रामदेव के द्वारा चलाए गए कालेधन के विरोध में उठाई गई आवाज को जिस तानाशाही तरीके से दबाने का प्रयास किया गया, उसका स्मरण भी आज तक सभी को है। अगर रामदेव धरना स्थल से भाग जाने में सफल नहीं होते तो पता नहीं क्या होता। अगर लोकतांत्रिक पद्धति से विचार किया जाए तो बाबा रामदेव के काले धन के मुद्दे पर हुए इस कार्यक्रम का उद्देश्य मात्र यही था कि देश के बाहर विदेशी बैंको में जो भी कालाधन है उसे वापस लाने के लिए सरकार प्रयास करे। अब सवाल यह आता है कि लोकतांत्रिक भारत देश में क्या इस प्रकार की आवाज उठाना गुनाह है, अगर गुनाह है तो फिर लोकतंत्र कैसा? यह भी कांग्रेस के प्रतिसर जाने का प्रमुख कारण बना। वास्तव में देश के सांस्कृतिक मानबिन्दुओं की रक्षा करते हुए सरकारों को जो काम करना होता है, वैसा काम कांग्रेस नीत सरकार ने किया ही नहीं। इसके विपरीत कांग्रेस ने भगवान राम को काल्पनिक ही बता दिया, साथ ही न्यायालय में शपथ पत्र देकर कहा कि राम तो पैदा ही नहीं हुए। इसी आधार पर रामसेतु को तोडऩे का दुस्साहस भी सोनिया के मार्गदर्शन में चलने वाली सरकार ने किया। अपने निजी स्वार्थों की बलिबेदी पर देश की अखण्डता और स्वाभिमान को ताक पर रखने वाली कांग्रेस नीत सरकार ने जिस प्रकार से सत्ता बचाने का षड्यंत्र किया, वह भी सबने देखा।

कार्यों में दिखे भारत की छवि
भारत देश की प्रत्येक सरकारों के कामकाज में भारत की छवि परिलक्षित होना चाहिए, तभी सरकारें सार्थक भारत की तस्वीर का निर्माण कर सकतीं हैं। हम नरेन्द्र मोदी की सरकार से इतनी तो आशा कर ही सकते हैं कि देश के व्यापक हितों का चिन्तन करते हुए भारत को उच्चतम शिखर पर पहुंचाने के लिए सरकार अभी से अपने प्रयास प्रारंभ करे, समय की प्रतीक्षा तो अवसरवादी लोग करते हैं।

1 COMMENT

  1. जमीनी हकीकत यह है की अल्पसंख्यको का कांग्रेस से पुरी तरह मोहभंग हो चुका है. अलबत्ता कांग्रेस के अल्पसंख्यक चहरे (अल्वी, शकील, सुलेमान) यह दिखाने की कोशीस कर रहे है की अल्पसंख्यक आज भी कांग्रेस के साथ है. कांग्रेस महासत्ताओ की साथी है और महासत्ताएं भारतीय अल्पसंख्यको को प्रयोग करती रही है. यह बात अल्पसंख्यको को समझ आनी चाहिए.

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