कांग्रेस की दिग्विजयी भाषा

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श्‍यामल सुमन

पिछले दो आम चुनावों में लगातार कांग्रेस और मनमोहन सिंह जी के नेतृत्व में जोड़-तोड के सरकार क्या बन गयी, कांग्रेस के कई नेताओं को भ्रम हो गया है कि उन्होंने शायद “दिग्विजय” कर लिया है सदा के लिए और बहुतेरे ऐसे हैं जिनकी भाषा लगातार तल्ख होती जा रही है। जबकि हकीकत यह है कि न तो अभी पूर्ण बहुमत है अकेले कांग्रेस को न ही पिछली बार।

अपने छात्र जीवन को याद करता हूँ तो इमरजेन्सी से पहले भी कुछ महत्वपूर्ण कांग्रसियों की भाषा में भी तल्खी आ गयी थी। परिणाम कांग्रेसजनों के साथ साथ पूरे देश ने देखा। किसी को यह भी शिकायत हो सकती है कि मैं किसी से प्रभावित होकर किसी के “पक्ष” या “विपक्ष” में लिख रहा हूँ। एक सच्चा रचनाकार का नैतिक धर्म है कि सही और गलत दोनों को समय पर “आईना” दिखाये। सदा से मेरी यही कोशिश रही है और आगे भी रहेगी। अतः किसी तरह के पूर्वाग्रह से मुक्त है मेरा यह आलेख।

“विनाश काले विपरीत बुद्धि” वाली कहावत हम सभी जानते हैं और कई बार महसूसते भी हैं अपनी अपनी जिन्दगी में। अलग अलग प्रसंग में दिए गए विगत कई दिनों के कांग्रसी कथोपकथन की जब याद आती है तो कई बार सोचने के लिए विवश हो जाता हूँ कि कहीं यह सनातन कहावत फिर से “चरितार्थ” तो नहीं होने जा रही है इस सवा सौ बर्षीय कांग्रेस पार्टी के साथ?

लादेन की मृत्यु के बाद एक इन्टरव्यू में आदरणीय दिग्विजय सिंह जी का लादेन जैसे विश्व प्रसिद्ध आतंकवादी के प्रति “ओसामा जी” जैसे आदर सूचक सम्बोधन कई लोगों को बहुत अखरा और देश के कई महत्वपूर्ण लोगों ने अपनी नकारात्मक प्रतिक्रिया भी व्यक्त की उनके इस सम्बोधन पर। लेकिन इसके विपरीत मुझे कोई दुख नहीं हुआ। बल्कि खुशी हुई चलो आतंकवादी ही सही, लेकिन एक मृतात्मा के प्रति भारत में प्रत्यक्षतः सम्मान सूचक शब्दों के अभिव्यक्ति की जो परम्परा है, कम से कम उसका निर्वाह दिग्विजय जी ने तो किया?

मैं रहूँ न रहूँ, दिग्विजय जी रहें न रहें, लेकिन रामदेव बाबा ने जो काम “आम भारतवासी” के लिये किया है उसे यहाँ की जनता कभी नहीं भूल पायेगी। एक शब्द में कहें तो बाबा रामदेव अपने कृत्यों से आम भारतीयों के दिल में बस गए हैं। “योग द्वारा रोग मुक्ति”, के साथ साथ जन-जागरण में उनकी भूमिका को नकारना मुश्किल होगा किसी के लिए भी। बाबा राम देव करोड़ों भारतीय समेत वैश्विक स्तर पर भी लोगों के दिलों पर स्वाभाविक रूप से आज राज करते हैं। ऐेसा सम्मान बिना कुछ “खास योगदान” के किसी को नहीं मिलता।

दिग्विजय उवाच – “रामदेव महाठग है, न तो कोई आयुर्वेद की डिग्री और न ही योग की और चले हैं लोगों को ठीक करने” इत्यादि अनेक “आर्ष-वचनों” द्वारा उन्होंने रामदेव जी के सतकृत्यों के प्रति अपना “भावोद्गार” प्रगट किया जिसे सारे देश ने सुना। यूँ तो उन्होंने बहुत कुछ कहा यदि सारी बातें लिखी जाय तो यह आलेख उसी से भर जाएगा क्योंकि उनके पास “नीति-वचनों” की कमी तो है नहीं और रामदेव के प्रति उनके हृदय में कब “बिशेष-प्रेम” छलक पड़े कौन जानता?

मैं कोई बाबा रामदेव का वकील नहीं हूँ। लेकिन उनके लिए या किसी भी राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान प्राप्त व्यक्ति के प्रति ऐसे दुर्व्यवहार की कौन सराहना कर सकता है। रामदेव जी अपने आन्दोलन के क्रम में “अपरिपक्व निर्णय” ले सकते हैं, कुछ गलतियाँ उनसे हो सकतीं हैं लेकिन सिर्फ इस बात के लिए उनके जैसे “जन-प्रेमी” के खिलाफ इतना कठोर निर्णय वर्तमान सरकार के दिवालियेपन की ओर ही इशारा करता है। उस पर तुर्रा ये कि दिग्विजय जी को वाक्-युद्ध में “दिग्विजय” करने के लिए छोड़ दिया गया हो। अच्छा संकेत नहीं है। सरकारी महकमे सहित कांग्रेस के बुद्धिजीवियों को इस पर विचार करने की जरूरत है कम से कम भबिष्य में कांग्रेस के “राजनैतिक स्वास्थ्य” के लिए।

जहाँ तक मुझे पता है कि गुरूदेव टैगोर ने अपने पठन-पाठन का कार्य घर पर ही किया इसलिए उनके पास भी कोई खास “स्कूली डिग्री” नहीं थी। फिर भी उन्हें “नोबेल पुरस्कार” मिला। लेकिन ऊपर में वर्णित दिग्विजय जी की डिग्री वाली बात को आधार माना जाय तो गुरुदेव को विश्व समुदाय ने नोबेल पुरस्कार देकर जरूर “गलती” की? एक बिना डिग्री वाले आदमी को नोबेल पुरस्कार? लेकिन ये सच है जिसे पूरा विश्व जानता है। फिर रामदेव जी की “डिग्री” के लिए दिग्विजय जी को इतनी चिन्ता क्यों? जबकि आम भारतीयों ने उनके कार्यों सहर्ष स्वीकार किया है।

आदरणीय दिग्विजय जी भारतीय लोकतंत्र का सबसे बड़ा मंदिर है संसद और हमारे सैकड़ों सांसदों को “राष्ट्र-गान” तक पूरी तरह से नहीं आता है। तो क्या उन्हें सांसद नहीं माना जाय क्या? आप ही गहनता से विचार कर के बतायें देशवासियों को उचित दिशा-निर्देश दें। और ऐसे ही हालात में मेरे जैसे कवि के कलम से ये पंक्तियाँ स्वतः निकलतीं हैं कि –

राष्ट्र-गान आये ना जिनको, वो संसद के पहरेदार।

भारतवासी अब तो चेतो, लोकतंत्र सचमुच बीमार।।

“अन्ना” – आज एक नाम न होकर एक “संस्था” बन गए हैं अपनी निष्ठा और “जन-पक्षीय” कार्यों के कारण। अन्ना एक गाँधीवादी संत हैं सच्चे अर्थों में। उन्होंने भी जन-जागरण किया। आन्दोलन चलाया। लोकपाल पर पहले सरकारी सहमति बनी अब कुछ कारणों से असहमति भी सामने है। फिर अन्ना ने 16 अगस्त से अनशन और आन्दोलन की बात की। यह सब लोकतंत्र में चलता रहता है। सरकार में भी समझदार लोग हैं। जरूर इसका समाधान तलाशेगे, अन्ना से आगे भी बात करेंगे। अभी नहीं जबतक भारत में प्रजातंत्र है ये सब चलता रहेगा। यह “लोकतंत्रीय स्वास्थ” के लिए महत्वपूर्ण भी है।

लेकिन दिग्विजय जी कैसे चुप रह सकते हैं? तुरत बयान आया उनकी तरफ से कि यदि अन्ना आन्दोलन करेंगे तो उनके साथ भी “वही” होगा जो रामदेव के साथ हुआ। क्या मतलब इसका? क्यों बार बार एक ही व्यक्ति इस तरह की बातें कर रहा है? क्यों ये इस तरह के फालतू और भड़काऊ बातों की लगातार उल्टी कर रहे हैं? कहाँ से इन्हें ताकत मिल रही है? कहीं दिग्विजय जी की “मानसिक स्थिति” को जाँच करवाने की जरूरत तो नहीं? मैं एक अदना सा कलम-घिस्सू क्या जानूँ इस “गूढ़ रहस्य” को लेकिन ये सवाल सिर्फ मेरे नहीं, आम लोगों के दिल में पनप रहे हैं जो आने वाले समय में ठीक नहीं होगा कांग्रेस के लिए। कांग्रेस में भी काफी समझदार लोग हैं। मेरा आशय सिर्फ “ध्यानाकर्षण” है वैसे कांग्रेसियों के लिए जो ऐसी बेतुकी बातों पर अंकुश लगा सकें।

करीब तीन दशक पहले मेरे मन भी संगीत सीखने की ललक जगी। कुछ प्रयास भी किया लेकिन वो शिक्षा पूरी नहीं कर पाया। उसी क्रम में अन्य रागों के अतिरिक्त मेरा परिचय “राग-दरबारी” से भी हुआ। यह “राग-दरबारी” जिन्दगी में भी बड़े काम की चीज है जिसे आजकल चलतऊ भाषा में अज्ञानी लोग “चमचागिरी” कहते हैं। यदि हम में से कोई इस राग के “मर्मज्ञ” हो जाए तो कोई भी “ऊँचाई” पाना नामुमकिन नहीं। आज के समय की नब्ज पकड़ कर ये बात आसानी से कोई भी कहा सकता है।

प्रिय राहुल जी का 41वाँ जन्म दिवस आया और कांग्रेसजनों ने इसे पूरे देश में “हर्षोल्लास” से मनाया। किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? और हर्षोल्लास से मनायें। लेकिन आदरणीय दिग्विजय जी भला चुप कैसे रह सकते? संसार का शायद ही कोई ऐसा बिषय हो जिसके वे “ज्ञाता” नहीं हैं। तपाक से राहुल जी की इसी साल शादी की चिन्ता के साथ साथ उन्हें “प्रधानमंत्री” के रूप में देखने की अपने “अन्तर्मन की ख्वाहिश” को भी सार्वजनिक करने में उन्होंने देरी नहीं दिखायी। क्या इसे राग-दरबारी कहना अनुचित होगा? अब जरा सोचिये वर्तमान प्रधानमंत्री की क्या मनःस्थिति होगी? वे क्या सोचते होंगे?

मजे की बात है कि दिग्विजय जी इतने पुराने कंग्रेसी हैं। मंत्री, मुख्यमंत्री बनने के साथ साथ लम्बा राजनैतिक अनुभव है उनके पास। उनके वनिस्पत तो राहुल तो कल के कांग्रेसी कार्यकर्ता हैं। लेकिन उन्हें अपनी “वरीयता” की फिक्र कहाँ? वे तो बस अपने “राग” को निरन्तर और निर्भाध गति से “दरबार” तक पहुँचाना चाहते हैं ताकि उनकी “दिग्विजयी-भाषा” पर कोई लगाम न लगा सके। काश! मैं भी “राग-दरबारी” सीखकर अपनी तीन दशक पुरानी गलती को सुधार पाता?

13 COMMENTS

  1. कोई कांग्रेसी कुकुर मु………. गया तो दिग्विजय पैदा हो गए थे इस लिए वो १ कुकुर मु …. से जयादा कुछ नहीं है

  2. श्री रामतिवारी जी आपसे सादर अनुरोध करता हो क्रपया २ शब्द
    १ बामपंथ
    २ धर्मनिरपेक्ष
    का केवल शाब्दिक अर्थ बताने की क्रपा करे ज्यदा गहराई में या व्याकरण की भासा में मत जाना .
    यदि अप जैसे विद्वान इन २ शब्दों पर पर प्रकास डाले तो जन मांस का बड़ा भला होगा .
    धन्यवाद

  3. दिग्विजयसिंह ने पूरी ईमानदारी और बहादुरी से वर्तमान दौर के विदूषकों और साम्प्र्दायिक्तावादियों का भांडा फोड़ा है,वे स्वयम इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री धारी और गोल्ड्मेदेलिस्ट होते हुए भी कभी उस सत्ता मद में या वैयक्तिक अहंकार में समझोतावादी सावित नहीं हुए.उनके कडवे किन्तु सच्चाई से लबालब वयान इस बात के प्रमाण हैं कि जो निकृष्ट मानसिकता और अशालीन रागात्मकता से दिग्भ्रमित हो रहे हैं वे दिग्विजयसिंह को समझने में असमर्थ हैं.कीड़े मकोड़ों की तरह शेर पर भिनभिनाने वाले कुकुरमुत्ते तो दिग्विजय सिंग को कितना ही कोसें ,मीडिया और नकली बाबा तंत्र-मन्त्र वाले चाहें तो अपनी तथाकथित तंत्र साधना भी आजमा कर देख लें ,किसी भी कौए के कोसने से दिग्विजयसिंह रुपी सिंह का बाल बांका नहीं होने वाला.जितने दुश्मन कांग्रेस के बाहर खदबदा रहे हें उनसे कहीं अधिक संख्या में स्वयम कांग्रेस के अन्दर बिज्बिजा रहे हैं .मध्यप्रदेश में बहरहाल सिर्फ एक ही पढ़ा -लिखा और धर्मनिरपेक्ष कांग्रेसी है बाकी तो सब हवा के साथ चलने वाले हैं.

  4. दिग्विजय सिंह इस देश का सबसे बड़ा बद्म्ह्स नेता है क्योंकि जो शब्द और भाषा का तरीका उसका है वो किसी अच्छे नेता का हो ही नहीं सकता. पता नहीं लोग ऐसे गंदे इंसानों को अपना नेता कैसे चुन लेते हैं. ये हमारा ही कसूर है क्योंकि हमने अब तक अपनी ताकत का सही सदुपयोग किया ही नहीं है.

  5. मै कुछ तथ्य पेश कर रहा हूँ और आप लोग भी सोचिये कि क्या सोनिया गाँधी सच में हिन्दुओ से नफरत करती है ??

    1 – सोनिया जी ने विसेंट जार्ज को अपना निजी सचिव बनाया है जो ईसाई है ..विसेंट जार्ज के पास 1500 करोड़ कि संपत्ति है 2001 में सीबीआई ने उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति रखने का मामला दर्ज किया उस वक्त सीबीआई ने विसेंट के 14 बैंक खातो को सील करते हुए कड़ी करवाई करने के संकेत दिए थे फिर सोनिया के इशारे पर मामले को दबा दिया गया .. मैंने सीबीआई को विसेंट जार्ज के मामले में 4 मेल किया था जिसमे सिर्फ एक का जबाब आया कि जार्ज के पास अमेरिका और दुसरे देशो से ए पैसे के स्रोत का पता लगाने के लिए अनुरोध पत्र भेज दिया गया है .. वह रे सीबीआई १० साल तक सिर्फ अनुरोध पत्र टाइप करने में लगा दिए !!!

    2 – सोनिया ने अहमद पटेल को अपना राजनैतिक सचिव बनाया है जो मुस्लमान है और कट्टर सोच वाले मुस्लमान है ..

    3 – सोनिया ने मनमोहन सिंह कि मर्जी के खिलाफ पीजे थोमस को cvc बनाया जो ईसाई है ..और सिर्फ सोनिया की पसंद से cvc बने .जिसके लिए भारतीय इतिहास में पहली बार किसी प्रधानमंत्री को माफ़ी मागनी पड़ी ..
    4 – सोनिया जी ने अपनी एकमात्र पुत्री प्रियंका गाँधी की शादी एक ईसाई राबर्ट बढेरा से की ..

    5 – अजित जोगी को छातिसगड़ का मुख्यमंत्री सिर्फ उनके ईसाई होने के कारण बनाया गया जबकि उस वक़्त कई कांग्रेसी नेता दबी जबान से इसका विरोध कर रहे थे .. अजित जोगी इतने काबिल मुख्यमंत्री साबित हुए की छातिसगड़ में कांग्रेस का नामोनिशान मिटा दिया ..
    अजित जोगी पर दिसम्बर 2003 से बिधायको को खरीदने का केस सीबीआई ने केस दर्ज किया है . सीबीआई ने पैसे के स्रोत को भी ढूड लिया तथा टेलीफोन पर अजित जोगी की आवाज की फोरेंसिक लैब ने प्रमडित किया इतने सुबूतो के बावजूद सीबीआई ने आजतक सोनिया के इशारे पर चार्जशीट फाइल नहीं किया ..

    6 – जस्टिस ……. [मै नाम नहीं लिखूंगा क्योकि ये शायद न्यायपालिका का अपमान होगा ] को 3 जजों की बरिस्टता को दरकिनार करके सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस बनाया गया जो की एक परिवर्तित ईसाई थे …

    7 – राजशेखर रेड्डी को आँध्रप्रदेश का मुख्यमंत्री बनने में उनका ईसाई होना और आँध्रप्रदेश में ईसाइयत को फ़ैलाने में उनका योगदान ही काम आया मैडम सोनिया ने उनको भी तमाम नेताओ को दरकिनार करने मुख्यमंत्री बना दिया ..

    8 – मधु कोड़ा भी निर्दल होते हुए अपने ईसाई होने के कारण कांग्रेस के समर्थन से झारखण्ड के मुख्यमंत्री बने …

    9 – अभी केरल विधान सभा के चुनाव में कांग्रेस ने 92 % टिकट ईसाई और मुस्लिमो को दिया है

    10 – जिस कांग्रेस में सोनिया की मर्जी के बिना कोई पे …….ब तक नहीं कर सकता वही दिग्विजय सिंह किसके इशारे पर 10 सालो से हिन्दू बिरोधी बयानबाजी करते है ये हम सब अछि तरह जानते है …

  6. दिग्विजय सिंह आज की राजनीति के विदूषक हैं. उन्हें मुंह का बवासीर हो गया है.राहुल को प्रधानमंत्री बनाने का सुझाव देने की जल्दी में यह भी भूल गए हैं की इटली के कानून के अनुसार राहुल बाबा इटली के न केवल नागरिक हैं बल्कि इतालियन पासपोर्ट पर रौल विन्ची केनाम से यूरोप की यात्राएं भी गुप्त रूप से करते रहते हैं.भारत के कानून के मुताबिक वो प्रधान मंत्री बनने केलिए विधिक रूप से अयोग्य हैं.क्यों राहुल की भी सोनिया की तरह फजीहत करना चाहते हैं?वैसे देश को १५ जुलाई के बाद सुब्रमण्यम स्वामी जी द्वारा सोनिया के खिलाफ मुक़दमा किये जाने का बेसब्री से इंतज़ार है.और सोनिया भी इससे घब्दाई हुई है इसी कारन से ८ से११ जून तक एक दर्ज़न वित्तीय सलाहकारों की फौज लेकर प्राइवेट जहाज से स्वित्ज़रलैंड होकर आयी हैं शायद अपने अकूत काले धन को किसी और ठिकाने पर पहुंचाकर.भगवान डॉ. स्वामी की रक्षा करें.

  7. आपका धन्यवाद सुमन जी,
    दिग्विजय जैसे घटिया आदमी के लिए भी अपने बहुत संयमित सब्दो का प्रयोग किया है,
    मै बसिकाली मप से हु और मुझे पता है इस घटिया आदमी ने कितना बंटाधार किया हमारे प्रदेश का

    अतीत

  8. साथियों इस भारत भूमि की क्या यही मती है की यहाँ दुनिया के सबसे मक्कार गद्दार भ्रस्ट झूठे लोग शासन करे …
    वह रे देश की किस्मत ….

    सोनिया गाँधी को आप कितना जानते हैं? (भाग-२)

    सोनिया गाँधी भारत की प्रधानमंत्री बनने के योग्य हैं या नहीं, इस प्रश्न का “धर्मनिरपेक्षता”, या “हिन्दू राष्ट्रवाद” या “भारत की बहुलवादी संस्कृति” से कोई लेना-देना नहीं है। इसका पूरी तरह से नाता इस बात से है कि उनका जन्म इटली में हुआ, लेकिन यही एक बात नहीं है, सबसे पहली बात तो यह कि देश के सबसे महत्वपूर्ण पद पर आसीन कराने के लिये कैसे उन पर भरोसा किया जाये। सन १९९८ में एक रैली में उन्होंने कहा था कि “अपनी आखिरी साँस तक मैं भारतीय हूँ”, बहुत ही उच्च विचार है, लेकिन तथ्यों के आधार पर यह बेहद खोखला ठहरता है। अब चूँकि वे देश के एक खास परिवार से हैं और प्रधानमंत्री पद के लिये बेहद आतुर हैं (जी हाँ) तब वे एक सामाजिक व्यक्तित्व बन जाती हैं और उनके बारे में जानने का हक सभी को है (१४ मई २००४ तक वे प्रधानमंत्री बनने के लिये जी-तोड़ कोशिश करती रहीं, यहाँ तक कि एक बार तो पूर्ण समर्थन ना होने के बावजूद वे दावा पेश करने चल पडी़ थीं, लेकिन १४ मई २००४ को राष्ट्रपति कलाम साहब द्वारा कुछ “असुविधाजनक” प्रश्न पूछ लिये जाने के बाद यकायक १७ मई आते-आते उनमे वैराग्य भावना जागृत हो गई और वे खामख्वाह “त्याग” और “बलिदान” (?) की प्रतिमूर्ति बना दी गईं – कलाम साहब को दूसरा कार्यकाल न मिलने के पीछे यह एक बडी़ वजह है, ठीक वैसे ही जैसे सोनिया ने प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति इसलिये नहीं बनवाया, क्योंकि इंदिरा गाँधी की मृत्यु के बाद राजीव के प्रधानमंत्री बनने का उन्होंने विरोध किया था… और अब एक तरफ़ कठपुतली प्रधानमंत्री और जी-हुजूर राष्ट्रपति दूसरी तरफ़ होने के बाद अगले चुनावों के पश्चात सोनिया को प्रधानमंत्री बनने से कौन रोक सकता है?)बहरहाल… सोनिया गाँधी उर्फ़ माइनो भले ही आखिरी साँस तक भारतीय होने का दावा करती रहें, भारत की भोली-भाली (?) जनता को इन्दिरा स्टाइल में,सिर पर पल्ला ओढ़ कर “नामास्खार” आदि दो चार हिन्दी शब्द बोल लें, लेकिन यह सच्चाई है कि सन १९८४ तक उन्होंने इटली की नागरिकता और पासपोर्ट नहीं छोडा़ था (शायद कभी जरूरत पड़ जाये) । राजीव और सोनिया का विवाह हुआ था सन १९६८ में,भारत के नागरिकता कानूनों के मुताबिक (जो कानून भाजपा या कम्युनिस्टों ने नहीं बल्कि कांग्रेसियों ने ही सन १९५० में बनाये) सोनिया को पाँच वर्ष के भीतर भारत की नागरिकता ग्रहण कर लेना चाहिये था अर्थात सन १९७४ तक, लेकिन यह काम उन्होंने किया दस साल बाद…यह कोई नजरअंदाज कर दिये जाने वाली बात नहीं है। इन पन्द्रह वर्षों में दो मौके ऐसे आये जब सोनिया अपने आप को भारतीय(!)साबित कर सकती थीं। पहला मौका आया था सन १९७१ में जब पाकिस्तान से युद्ध हुआ (बांग्लादेश को तभी मुक्त करवाया गया था), उस वक्त आपातकालीन आदेशों के तहत इंडियन एयरलाइंस के सभी पायलटों की छुट्टियाँ रद्द कर दी गईं थीं, ताकि आवश्यकता पड़ने पर सेना को किसी भी तरह की रसद आदि पहुँचाई जा सके । सिर्फ़ एक पायलट को इससे छूट दी गई थी, जी हाँ राजीव गाँधी, जो उस वक्त भी एक पूर्णकालिक पायलट थे । जब सारे भारतीय पायलट अपनी मातृभूमि की सेवा में लगे थे तब सोनिया अपने पति और दोनों बच्चों के साथ इटली की सुरम्य वादियों में थीं, वे वहाँ से तभी लौटीं, जब जनरल नियाजी ने समर्पण के कागजों पर दस्तखत कर दिये। दूसरा मौका आया सन १९७७ में जब यह खबर आई कि इंदिरा गाँधी चुनाव हार गईं हैं और शायद जनता पार्टी सरकार उनको गिरफ़्तार करे और उन्हें परेशान करे। “माईनो” मैडम ने तत्काल अपना सामान बाँधा और अपने दोनों बच्चों सहित दिल्ली के चाणक्यपुरी स्थित इटालियन दूतावास में जा छिपीं। इंदिरा गाँधी, संजय गाँधी और एक और बहू मेनका के संयुक्त प्रयासों और मान-मनौव्वल के बाद वे घर वापस लौटीं। १९८४ में भी भारतीय नागरिकता ग्रहण करना उनकी मजबूरी इसलिये थी कि राजीव गाँधी के लिये यह बडी़ शर्म और असुविधा की स्थिति होती कि एक भारतीय प्रधानमंत्री की पत्नी इटली की नागरिक है ? भारत की नागरिकता लेने की दिनांक भारतीय जनता से बडी़ ही सफ़ाई से छिपाई गई। भारत का कानून अमेरिका, जर्मनी, फ़िनलैंड, थाईलैंड या सिंगापुर आदि देशों जैसा नहीं है जिसमें वहाँ पैदा हुआ व्यक्ति ही उच्च पदों पर बैठ सकता है। भारत के संविधान में यह प्रावधान इसलिये नहीं है कि इसे बनाने वाले “धर्मनिरपेक्ष नेताओं” ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि आजादी के साठ वर्ष के भीतर ही कोई विदेशी मूल का व्यक्ति प्रधानमंत्री पद का दावेदार बन जायेगा। लेकिन कलाम साहब ने आसानी से धोखा नहीं खाया और उनसे सवाल कर लिये (प्रतिभा ताई कितने सवाल कर पाती हैं यह देखना बाकी है)। संविधान के मुताबिक सोनिया प्रधानमंत्री पद की दावेदार बन सकती हैं, जैसे कि मैं या कोई और। लेकिन भारत के नागरिकता कानून के मुताबिक व्यक्ति तीन तरीकों से भारत का नागरिक हो सकता है, पहला जन्म से, दूसरा रजिस्ट्रेशन से, और तीसरा प्राकृतिक कारणों (भारतीय से विवाह के बाद पाँच वर्ष तक लगातार भारत में रहने पर) । इस प्रकार मैं और सोनिया गाँधी,दोनों भारतीय नागरिक हैं, लेकिन मैं जन्म से भारत का नागरिक हूँ और मुझसे यह कोई नहीं छीन सकता, जबकि सोनिया के मामले में उनका रजिस्ट्रेशन रद्द किया जा सकता है। वे भले ही लाख दावा करें कि वे भारतीय बहू हैं, लेकिन उनका नागरिकता रजिस्ट्रेशन भारत के नागरिकता कानून की धारा १० के तहत तीन उपधाराओं के कारण रद्द किया जा सकता है (अ) उन्होंने नागरिकता का रजिस्ट्रेशन धोखाधडी़ या कोई तथ्य छुपाकर हासिल किया हो, (ब) वह नागरिक भारत के संविधान के प्रति बेईमान हो, या (स) रजिस्टर्ड नागरिक युद्धकाल के दौरान दुश्मन देश के साथ किसी भी प्रकार के सम्पर्क में रहा हो । (इन मुद्दों पर डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी काफ़ी काम कर चुके हैं और अपनी पुस्तक में उन्होंने इसका उल्लेख भी किया है, जो आप पायेंगे इन अनुवादों के “तीसरे भाग” में)। राष्ट्रपति कलाम साहब के दिमाग में एक और बात निश्चित ही चल रही होगी, वह यह कि इटली के कानूनों के मुताबिक वहाँ का कोई भी नागरिक दोहरी नागरिकता रख सकता है, भारत के कानून में ऐसा नहीं है, और अब तक यह बात सार्वजनिक नहीं हुई है कि सोनिया ने अपना इटली वाला पासपोर्ट और नागरिकता कब छोडी़ ? ऐसे में वह भारत की प्रधानमंत्री बनने के साथ-साथ इटली की भी प्रधानमंत्री बनने की दावेदार हो सकती हैं। अन्त में एक और मुद्दा, अमेरिका के संविधान के अनुसार सर्वोच्च पद पर आसीन होने वाले व्यक्ति को अंग्रेजी आना चाहिये, अमेरिका के प्रति वफ़ादार हो तथा अमेरिकी संविधान और शासन व्यवस्था का जानकार हो। भारत का संविधान भी लगभग मिलता-जुलता ही है, लेकिन सोनिया किसी भी भारतीय भाषा में निपुण नहीं हैं (अंग्रेजी में भी), उनकी भारत के प्रति वफ़ादारी भी मात्र बाईस-तेईस साल पुरानी ही है, और उन्हें भारतीय संविधान और इतिहास की कितनी जानकारी है यह तो सभी जानते हैं। जब कोई नया प्रधानमंत्री बनता है तो भारत सरकार का पत्र सूचना ब्यूरो (पीआईबी) उनका बायो-डाटा और अन्य जानकारियाँ एक पैम्फ़लेट में जारी करता है। आज तक उस पैम्फ़लेट को किसी ने भी ध्यान से नहीं पढा़, क्योंकि जो भी प्रधानमंत्री बना उसके बारे में जनता, प्रेस और यहाँ तक कि छुटभैये नेता तक नख-शिख जानते हैं। यदि (भगवान न करे) सोनिया प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुईं तो पीआईबी के उस विस्तृत पैम्फ़लेट को पढ़ना बेहद दिलचस्प होगा। आखिर भारतीयों को यह जानना ही होगा कि सोनिया का जन्म दरअसल कहाँ हुआ? उनके माता-पिता का नाम क्या है और उनका इतिहास क्या है? वे किस स्कूल में पढीं? किस भाषा में वे अपने को सहज पाती हैं? उनका मनपसन्द खाना कौन सा है? हिन्दी फ़िल्मों का कौन सा गायक उन्हें अच्छा लगता है? किस भारतीय कवि की कवितायें उन्हें लुभाती हैं? क्या भारत के प्रधानमंत्री के बारे में इतना भी नहीं जानना चाहिये!

    (प्रस्तुत लेख सुश्री कंचन गुप्ता द्वारा दिनांक २३ अप्रैल १९९९ को रेडिफ़.कॉम पर लिखा गया है, बेहद मामूली फ़ेरबदल और कुछ भाषाई जरूरतों के मुताबिक इसे मैंने संकलित, संपादित और अनुवादित किया है। डॉ.सुब्रह्मण्यम स्वामी द्वारा लिखे गये कुछ लेखों का संकलन पूर्ण होते ही अनुवादों की इस कडी़ का तीसरा भाग पेश किया जायेगा।) मित्रों जनजागरण का यह महाअभियान जारी रहे, अंग्रेजी में लिखा हुआ अधिकतर आम लोगों ने नहीं पढा़ होगा इसलिये सभी का यह कर्तव्य बनता है कि महाजाल पर स्थित यह सामग्री हिन्दी पाठकों को भी सुलभ हो, इसलिये इस लेख की लिंक को अपने इष्टमित्रों तक अवश्य पहुँचायें, क्योंकि हो सकता है कि कल को हम एक विदेशी द्वारा शासित होने को अभिशप्त हो जायें !

  9. भावनाओ की अद्भुत अभिव्यक्ति धन्यवाद बेहद महत्वपूर्ण आलेख

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