कांग्रेस को नेता नहीं नीति बदलने की ज़रूरत है!

-इक़बाल हिंदुस्तानी

भाजपा एजेंडा बदले बिना एनडीए को फिर नहीं जोड़ पायेगी?

प्रवक्ता डॉटकाम पर चुनाव के दौरान हमने जब यह लिखा था कि भाजपा ने भ्रष्ट बाबूसिंह कुशवाह को लेकर अपने पैरों से हाथों पर कुल्हाड़ी मार ली है और उसने अपनी जो क़ब्र खोद ली है चुनाव बाद उसको दफनाया जाना तय है तब हमारे कुछ भाजपा समर्थक मित्रों को बहुत नागवार गुज़रा था उनका दावा था कि इस कदम से कोई नुकसान नहीं बल्कि फायदा ही होगा लेकिन आज हमारी बात पूरी तरह सही साबित हो चुकी है। ऐसे ही जब हमने प्रवक्ता पर बसपा के बारे में यह अनुमान ज़ाहिर किया कि माया के विकास पर भ्रष्टाचार का मुद्दा भारी पड़ेगा और उनकी सत्ता में वापसी संभव नहीं होगी तब भी कुछ पाठकों ने हमसे असहमति जताई थी लेकिन यह बात भी पूरी तरह न केवल सच थी बल्कि बसपा सरकार के खिलाफ लोगों में गुस्सा इतना अधिक बढ़ चुका था कि सपा को सबसे बड़ी पार्टी न बना कर मतदाताओं ने स्पश्ट बहुमत ही दे दिया।

मतगणना से एक दिन पहले प्रवक्ता पर ही हमने एक लेख में यह बताया था कि ज़बरदस्ती युवराज बनने वाले राहुल गांधी को यूपी की जनता ने ठुकरा दिया है और एक मामूली मास्टर और कभी पहलवान रहे मुलायम सिंह के लायक बेटे अखिलेश ने उनसे बाज़ी जीत ली है क्योंकि जो परिपक्वता और गंभीरता उन्होंने दिखाई है उससे साफ लग रहा है कि भविष्य में अखिलेश ही जनता का सफल नेतृत्व करेंगे। यह अंदाज़ भी मतगणना के बाद सही निकला। हमने इस आलेख में यह भी कहा था कि हो सकता है कि सपा अपने बल पर इतनी सीटें जीत ले कि उसको कांग्रेस के सपोर्ट की ज़रूरत ही ना रह जाये, यह अनुमान भी सही साबित हो गया है।

पांच राज्यों के चुनाव में एक बार फिर अन्ना फैक्टर का असर साफ असर नज़र आ रहा है। हालांकि यूपी से भ्रष्टाचार के अकेले मुद्दे पर बसपा के साथ साथ कांग्रेस और भाजपा का भी सफाया हुआ है लेकिन उत्तराखंड में निशंक के सीएम रहते भाजपा को जो नुकसान सूपड़ा साफ होने की शक्ल में होना था उस डैमेज कन्ट्रोल के लिये साफ सुथरी छवि के भुवन चंद खंडूरी ने कुछ ही माह में मज़बूत लोकपाल पास करके भाजपा को हारते हारते भी कांग्रेस के सामने बराबर की टक्कर में लाकर खड़ा कर दिया। यह विडंबना ही है कि खंडूरी खुद अपने विधानसभा क्षेत्र से चुनाव निशंक गुट के भीतरघात से हार गये क्योंकि वह राजनीति के इन घटिया और नीच तौर तरीकों को न तो जानते हैं और न ही अपना सकते हैं।

गोवा में कांग्रेस 16 से 9 सीटों पर खिसक गयी तो पंजाब में वह 42 से मामूली बढ़कर 46 और यूपी में 22 से 28 तक ही पहुंच सकी है। मणिपुर जैसे छोटे राज्य में वह ज़रूर 30 से 42 तक पहुंची मगर वहां उसकी पहले ही सरकार थी जिससे इस जीत के खास मायने नहीं हैं। जहां तक भाजपा का सवाल है तो पंजाब में वह बेगानी शादी में अब्दुल्लाह दीवाना की तरह अपनी सीटें 19 से घटने का शोक न मनाकर शिरोमणि अकाली दल की जीत का जश्न मना रही है। उत्तराखंड में वह खंडूरी की लाख कोशिशों के बावजूद 34 से घटकर 31 पर आ गयी जिससे मात्र तीन सीटें खोने से वह सत्ता की दौड़ से नैतिक आधार भी बाहर हो गयी, बहरहाल गोवा में उसने अपने गठबंधन के बल पर 14 से 21 सीटों पर पहुंच कर सत्ता ज़रूर कब्ज़ा ली है लेकिन दिल्ली की सत्ता तक पहंुचाने वाले उत्तरप्रदेश में वह मुंह की खाकर 51 से 47 पर पहुंच गयी जिससे उसे एक बार फिर यह अहसास हुआ होगा कि बसपा सरकार से भ्रष्टाचार के आरोप में निकाले गये मंत्री बाबूसिंह कुशवाह को लेकर उसने अपने पैरों पर अपने हाथों से कुल्हाड़ी मारी थी।

अब इन चुनावों से एक बात लगभग तय हो गयी है कि यूपी में सपा बसपा एक दूसरे का एकमात्र विकल्प बन चुकी हैं। जो कांग्रेस इस बात पर सूत न कपास जुलाहे लट्ठम लट्ठा की तरह अकड़ रही थी कि वे सपा या बसपा में से किसी को भी समर्थन नहीं देंगे और कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला तो राष्ट्रपति शासन लगायेंगे उनको जनता ने उनकी औकात शायद इस धमकी की वजह से भी बताई है कि आपको दोनों ही कष्ट नहीं करने पड़ेंगे। इधर खुद गुंडों की भाषा बोल रहे बेनीप्रसाद वर्मा जिस तरह से सपा को गुंडो की पार्टी बता बता कर सपा की बजाये बसपा को समर्थन देने की नेक सलाह दे रहे थे उनको अब पता चल गया होगा कि यूपी के लोग सपा को भविष्य की राज करने लायक पार्टी मानकर उनकी कांग्रेस को भ्रष्टों और अहंकारी नेताओं की पार्टी मानते हैं। इससे पहले भी बेनी अन्ना को अपने चुनावी क्षेत्र बाराबंकी आकर भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करने पर सबक सिखाने की धमकी देकर यह ज़ाहिर कर चुके थे कि असली गंडागर्दी क्या होती है? सपा के नेता शिवपाल यादव ने बेनी को जवाब भी दिया था कि असली गुंडे तो वह खुद यानी बेनी थे सपा में, जिनको निकाल कर सपा को गुंडागर्दी से मुक्त किया गया है।

यह अजीब बात है कि बसपा भी इस हार से सबक न लेकर अपनी काली करतूतों का दोष कांग्रेस, भाजपा और मीडिया पर लगा रही है। आश्चर्य की बात है कि इन तीनों ने पता नहीं कब इस बात का ठेका लिया था कि ये बसपा जैसी घटिया, भ्रष्ट और जातिवादी पार्टी को जिताने का काम करेंगे? सपा के युवा नेता अखिलेश ने इस बात को महसूस किया है कि सपा को बहुमत मिलने के बावजूद प्रदेश के एक बड़े वर्ग के दिल दिमाग में उसकी गुंडाराज की छवि मौजूद है लिहाज़ा उन्होंने दो टूक कहा है कि पहले की सरकार के रहते जो शिकायते सामने आईं थी उनको दोहराने नहीं दिया जायेगा और अगर कानून को हाथ में लेने वाले सपा के लोग भी होंगे तो भी उनको किसी कीमत पर बख़्शा नहीं जायेगा। अब सवाल यह है कि सपा की यूपी में स्पश्ट जीत राष्ट्रीय राजनीति में क्या गुल खिलाती है?

बसपा, कांग्रेस और भाजपा के यूपी की करारी हार से सबक ना लेकर ठीकरा दूसरों पर फोड़ने से एक कहानी याद आ रही है। कुछ कांग्रेसी दोगली बात कर रहे हैं कि अगर कांग्रेस यूपी में जीतती तो यह राहुल की मेहनत की जीत होती और अगर हारी है तो संगठन की कमजोरी है। कुछ दावा कर रहे हैं कि मनमोहन की जगह राहुल को पीएम बनाया या प्रियंका को कांग्रेस में एक्टिव किया जाये तो कांग्रेस का डूबता जहाज़ बच सकता है जबकि कोई यह कहने की हिम्मत नहीं कर रहा कि हमारी महंगाई और भ्रष्टाचार बढ़ाने वाली नीतियों को बदले बिना केवल नेता बदलने से बात बनने वाली नहीं है और सपा का ग्राफ भी मुलायम की नीतियां बदलकर अखिलेश ने युवाओं और पीड़ित जनता की नब्ज़ छूकर बढ़ाया है यह केवल युवराज बनकर या बड़े बड़े दावे और वादे करने ही नहीं हो सकता।

ऐसे ही माया को समझ में नहीं आ रहा कि वह बहुजन से सर्वजन का केवल नारा देकर वास्तव में दलित जन वह भी मुट्ठीभर दलितों की पार्टी बनकर रह गयी थी और उसके जो 80 विधायक जीते भी हैं वे भी उसकी नीतियों नहीं बल्कि दलितों की जातिवादी और मसुलमानों की साम्प्रदायिक सोच का नतीजा अधिक है और अगर अखिलेश ने अपने किये वादों पर ईमानदारी से अमल कर दिया तो याद रखना पांच साल पहले लिख कर दे सकता हूं कि ना केवल कांग्रेस व भाजपा यूपी से हमेशा के लिये विदा हो जायेंगी बल्कि बसपा भी आने वाले कई चुनाव तक पछताती रहेगी कि हमें एक मौका मिला था उसे ऐसे कमाई के चक्कर में क्यों गंवा दिया।

इस कहानी से तीनों ही नसीहत ले सकते हैं-एक बार एक आदमी इस बात से नाराज़ होकर अपने गांव से कहीं दूर बहुत दूर चल दिया कि उसको सब लोग जानबूझकर बदनाम और परेशान करने के लिये बेवकूफ कहते हैं। वह चलते चलले काफी दूर निकल आया। अचानक लंबी दूर तय करने से उसको बहुत तेज़ प्यास लगने लगी। उसने इधर उधर नज़र दौड़ाई तो उसे पानी की एक टोटी दिखाई दी। वह उसके पास पहुंचा और पानी पिया। पानी पीने के बाद उसने मन ही मन कहा कि उसकी प्यास बुझ चुकी है, अब बंद हो जा लेकिन टोटी से पानी बहता रहा। फिर उसने अपनी मुंडी घुमाई और इशारे से टोटी से कहा कि और पानी नहीं चाहिये, लेकिन वह फिर भी चलती रही। अब उसका गुस्सा बढ़ने लगा और वह जोर से चिल्लाया कि जब वह पानी पी चुका तो अब क्यों नहीं बंद होती?

उसे यह सारी कवायद करते एक आदमी देख रहा था वह बोला अबे ओ बेवकूफ टोटी ऐसे बंद होती है क्या? उस आदमी ने उसको हाथ से घुमाकर बंद कर दिया। इतना सुनना था गांव से भागा आदमी फूट फूटकर रोने लगा और कहने लगा कि जिस वजह से वह गांव छोड़कर आया था वही समस्या फिर सामने आ गयी और आपको किसने बताया कि गांव में मेरा नाम बेवकूफ था। उस आदमी ने कहा तुम जब बवकूफ वाली हरकतें कर रहे हो तो इसमें किसी से पूछने या बताने की ज़रूरत ही कहां है कि तुम बेवकूफ हो या नहीं तुम जहां जाओगे मूर्ख ही कहे जाओगे, अगर बेवकूफ नहीं कहलाना चाहते तो अपने काम करने का तरीका बदलो।

मस्लहत आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम,

तू नहीं समझेगा सियासत तू अभी नादान है।

 

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

4 COMMENTS

  1. इकबाल हिन्दुस्तानी जी,ऐसे तो आम तौर से मैं आपकी लेखों और निर्भीक विचारों का प्रशंसक रहा हूँ,पर इस बार तो यूपी के चुनाव की आपकी भविष्य वाणी ने तो मुझे भी चौंका दिया.लगता है कि आपने यूपी के जनता की नब्ज पहचान ली थी.अब तो राजनीति करने वालों को आपसे डरना चाहिए.वर्तमान लेख भी सटीक है और आपकी समन्वित विचार धारा का परिचायक है.

  2. अच्छा लेख. देखना दिलचस्प होगा की नौजवान अखिलेश प्रदेश की राजनीती और प्रशासनिक व्यवस्था में कोई सार्थक बदल कर पाएंगे या ‘नेताजी’ के पुराने अजेंडे के अनुसार ही काम करेंगे? हमारी शुभकामना है की अखिलेश जी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश का विकास बिहार और गुजरात से भी तेज गति से हो और सभी वर्गों को न्याय मिले.

  3. बेहतरीन लेख – इसे कहते शब्दों की धार बिना नब्ज के ज्ञान कोई हकीम सफा तो दूर हकीम नहीं बन सकता. कांग्रेस को सही सलाह और राजनीति को आइना बहुत खूब

  4. वैसे तो राजनीतिज्ञों, बाबुओं, और तमाम रूप और रंगों के व्योपारियों ने देश को अल्पसंख्यक अमीरी और बहुसंख्यक गरीबी के उतार-चढ़ाव झूले पर ला असाधारण भारत को जन्म दिया है, तिस पर आश्चर्यजनक बात यह है कि मीडिया सदैव सांप के निकल जाने पर लकीर को ही पीटे जा रहा है| कांग्रेस नेता बदले या नीति, इकबाल जी द्वारा लेख में अंत में कही कहानी के बेवकूफ को क्योंकर सत्ता सौंपी जाए?

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