जब वरिष्ठ कांग्रेसी सांसद ने खुदरा में एफडीआई को राष्ट्र-विरोधी माना

लालकृष्ण आडवाणी

एनडीए सरकार के समय एक बार खुदरा में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के (एफडीआई) मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस में तीखा वाद-विवाद हुआ। यह 16 दिसम्बर, 2002 की बात है।

कांग्रेस के एक प्रमुख सांसद श्री प्रिय रंजन दासमुंशी ने इकनॉमिक्स टाइम्स में प्रकाशित खुदरा में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश सम्बन्धी एक लेख जिसमें कहा गया था कि योजना आयोग ने दसवीं पंचवर्षीय योजना के प्रारुप दस्तावेज में माना है कि इस क्षेत्र में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की जरुरत है, का हवाला देते हुए दासमुंशी ने कहा कि नौकरशाहों के माध्यम से ”बहुराष्ट्रीय खुदरा रिटेलर्स लगातार सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि वह खुदरा में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश जैसे राष्ट्र विरोधी फैसले की अनुमति दे।”

दासमुंशी ने आगे कहा कि सरकार ने विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की सीमाएं तय करने के उद्देश्य से मंत्रियों का समूह गठित किया था। मंत्रियों के समूह ने खुदरा व्यापार में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अवधारणा को रद्द कर दिया था। उन्होंने बताया कि बाद में, रोजगार सम्बन्धी योजना आयोग की एक टास्क फोर्स ने इसे इस आधार पर रद्द करने की सलाह दी थी कि इससे रोजगार पर बुरा असर पड़ेगा।

दासमुंशी ने कहा: सर, वाणिज्य मंत्री यहां हैं। मैं उनसे स्थिति स्पष्ट करने और इसे रिकार्ड में दर्ज कराने का अनुरोध करता हूं।

उस समय के वाणिज्य और उद्योग मंत्री अरुण शौरी उसी समय खड़े होकर बोले: सर, जैसाकि आप जानते हैं और सम्मानीय सदस्य भी कि वर्तमान नीति जोकि 1997 से चली आ रही है, के अनुसार खुदरा व्यापार में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति नहीं है।

दासमुंशी: मैंने कहा कि योजना आयोग द्वारा तैयार दसवीं योजना का दस्तावेज इसे स्वीकृति देता है जबकि मंत्रियों के समूह ने इसे रद्द किया है।

श्री अरुण शौरी: किसी भी हालत में, दसवीं योजना का दस्तावेज राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में विचारार्थ आएगा। कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों सहित सभी मुख्यमंत्रियों को वैयक्तिक प्रावधानों पर अपनी बात कहने का अवसर मिलेगा। उसमें आयात या संयुक्त उपक्रमों में व्यापारिक गतिविधयों, थोक गतिविधियों की अनुमति है और वह भी उनमें विशेषीकृत चीजों पर। यदि आप चाहते हैं कि मैं उन्हें पढ़कर सुनाऊं तो मैं पढ़ सकता हूं लेकिन जहां तक सामान्यतया खुदरा व्यापार का सम्बन्ध है, वह बिल्कुल सही है कि 1997 से यही सरकार की नीति रही है। मैं समझता हूं कि मात्र दो कम्पनियों को ही इस सम्बन्ध में 1997 से पूर्व अनुमति दी गई लेकिन उसके बाद से किसी को भी अनुमति नहीं दी गई है। हमने रिजर्व बैंक से भी चैक कर लिया है।

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भारत के इंटेलीजेंस क्षेत्रों में बी. रमन एक अत्यन्त प्रतिष्ठित नाम है। वह देश की बाह्य गुप्तचर एजेंसी अनुसंधान एवं अन्वेषण विंग (RAW) के मुखिया रहे हैं। वह भारत सरकार के मंत्रिमण्डलीय सचिवालय से अतिरिक्त सचिव के पद से निवृत्त हुए।

आऊटलुक वेबसाइट पर हाल ही में लिखे गए एक लेख में उन्होंने इस पर खेद प्रकट किया है कि सीबीआई से लोगों को विश्वास तेजी से नीचे गिरा है। उन्होंने अनुरोध किया है कि इस एजेंसी के कामकाज की समीक्षा हेतु एक व्यापक जांच कराई जाए और लोगों की नजरों में इस एजेंसी की प्रतिष्ठा पुन: स्थापित करने हेतु कदम उठाए जाएं।

रमन ने अपने लेख में एक दिलचस्प तथ्य का उल्लेख किया है कि सन् 2010 के दिसम्बर के अंतिम सप्ताह में चीन सरकार ने, चीन में भ्रष्टाचार पर एक ‘श्वेत पत्र‘ प्रकाशित किया है, और बताया गया है कि कैसे सरकार उससे निपट रही है।

पूर्व रॉ प्रमुख कहते हैं: ”यहां तक कि चीन जैसे अधिनायकवादी देश में, सरकार को यह जरुरत महसूस हुई कि वह जनता को बताए कि भ्रष्टाचार सम्बन्धी उनकी चिंताओं से वह अवगत है।

भारत के एक लोकतंत्र होने जिसमें लोगों के प्रति जवाबदेही मानी जाती है, के बावजूद सरकार ने सीबीआई की सार्वजनिक आलोचना के प्रति लापरवाह रवैया अपनाया और एक संस्था का पतन होने दिया जिससे भ्रष्टाचार को फलने-फूलने की अनुमति मिली।”

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अमेरिका का सबसे बड़ा रिटेलर आज वॉलमार्ट है। दुनिया भर में इसके हजारों स्टोर्स हैं। सर्वाधिक अमेरिका में हैं। उसके बाद मैक्सिको में। न्यूयॉर्क टाइम्स रिपोर्ट के मुताबिक यह उपलब्धि इस रिटेलर की मैक्सिको इकाई ने ”इस भारी वृध्दि के लिए खुले हाथों से धन परोसकर” की है। टाइम्स में प्रकाशित जांच के बाद अप्रैल, 2012 में वॉलमार्ट ने पुष्टि की कि उसने वॉलमार्ट डि मैक्सिको में रिश्वत के आरोपों की जांच की है।

टेलपीस (पश्च्य लेख)

जिस दिन (14 सितम्बर) प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वॉलमार्ट के स्वागत हेतु लाल कालीन बिछाया, उसी दिन न्यूयार्क सिटी में अमेरिका का विशालतम वॉलमार्ट बंद हो गया।

विडम्बना देखिये फिर शुक्रवार को यूपीए सरकार ने वॉलमार्ट को एफडीआई का गुलदस्ता सौंपा और लॉबिस्टों ने आश्वस्त किया कि छोटे खुदरा व्यापारी सुरक्षित हैं, उसी दिन प्रसिध्द पत्रिका फॉरेन अफेयर्स के समूह से प्रकाशित एक वेब समाचारपत्र एटलांटासिटिज ने एक सदमा पहुंचाने वाला शीर्षक समाचार प्रकाशित किया: ”रिडाएटिंग डेथ: हॉउ वॉलमार्ट डिस्प्लेसस नियरबाय स्माल बिजनेस्स।”

अनेक सप्ताह पूर्व, 30 जून को 10 हजार से ज्यादा लोग अमेरिका के धनाढय शहर लॉस एजिंल्स में वॉलमार्ट स्टोर्स के विरुध्द ”वॉलमार्ट = पॉवरटी (गरीबी)” नारे लगाते हुए शहर में निकले।

1 जून को हजारों लोगों ने वाशिंगटन डीसी में वॉलमार्ट के विरुध्द विरोध प्रदर्शन किया। पूरे संयुक्त राज्य अमेरिका में ”से-नो-टू-वालमार्ट” आंदोलन चल रहा है।

-एस. गुरुमूर्ति

दि न्यू इण्डियन एक्सप्रेस

(20 सितम्बर, 2012) में

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