कांग्रेस शासन में महंगाई ने तोडी कमर

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कांग्रेसनीत संप्रग सरकार को जनता ने जिस विश्वास के साथ सत्ता पर बैठने का अधिकार सौंपा वस्तुत: सरकार की नीतियों से नहीं लग रहा है कि वह जनता के प्रति गंभीर है। सरकार द्वारा जारी आकडों में भारत वैश्विक स्तर पर तेजी से उभर रहा है। देश में हर सेक्टर में दिन दूनी रात चौगनी तरक्की दर्शायी जा रही है। भारत की चालू वित्त वर्ष में आर्थिक विकास दर 7.8 से लेकर 8 प्रतिशत है। एशियन विकास बैंक (एडीबी) का भी यही मानना है कि भारत की विकास दर 7 प्रतिशत से कम नहीं होगी, लेकिन तरक्की के यह आंकडे तब बेमानी लगते हैं जब जमीन पर महगाँई की मार झेलता आम आदमी अपनी इच्छा से भरपेट भोजन की थाली भी नहीं खरीद सकता।

संप्रग सरकार के राज्य में खाद्य पदार्थों ने सभी रिकार्ड तोड दिए हैं। बढी हुई महंगाई ने जैसे मध्यम वर्ग के मासिक बजट की रही-सही कसर पूरी कर दी है। सब्जी और अनाज के दाम सातवें आसमान पर पहुँच गए हैं। खाद्यान में 20 प्रतिशत वृद्धि हो चुकी है। बच्चों की पढाई भी महंगाई की मार से नहीं बची। साधारण कॉपी की कीमतों में 35 प्रतिशत तक इजाफा हुआ है, किन्तु केंद्र सरकार है कि अपने जादुई ऑंकडे दिखाने में लगी हुई है। माइनस पर मौजूद महँगाई तथा बढती जीडीपी ग्रोथ दिखाकर वह अपनी पीठ थपथपा रही है। सरकार मान रही है कि बढी हुई कीमतें वैश्विक घटना है, लेकिन सच यह है कि आज देश में खाद्य वस्तुओं और आवश्यक उत्पादों की कीमतों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं रह गया है। बिचौलिए, दलाल, सट्टेबाज और बडे व्यापारी जमाखोरी कर दाम बढा देते हैं। केन्द्र सरकार फिर उन्हें कम कराने की मशक्कत करती दिखाई देती है। इसकी अपेक्षा होना यह चाहिए था कि सरकार का खाद्य वस्तुओं के व्यापार मे लगे वर्ग पर पहले से भय और नियंत्रण होता ताकि कोई व्यापारी अधिक लाभ के लालच में देश की जनता को लूटने से पहले दण्ड के भय से बेइमानी ही नहीं करता।

अर्थशास्त्री महँगाई के लिए माँग और आपूर्ति के अंतर को दोषी मानते हैं, किन्तु यह भारत में बढ रही मंहगाई के पीछे का सच कदापि नहीं है। सिर्फ दालों की यथास्थिति देखें तो वर्ष 2008 में भारत में 147.6 टन तथा 2009 में 146.6 लाख टन दालों का उत्पादन हुआ था। 08 की तुलना में 09 बीते एक वर्ष में 1लाख टन की गिरावट आई। भारतीय अर्थशास्त्रियों के अनुसार देश में 170 लाख टन दाल की वार्षिक मांग है । यदि इस बात को मान भी लिया जाए कि हमारे अर्थशास्त्री सही कह रहे हैं तब जो शासकीय आंकडे हैं कि एक वर्ष में केन्द्र सरकार ने 25 लाख टन दाल का आयात किया इसे किस रुप में देखा जाए? क्योकि इस तरह बाजार में 171.6 लाख टन दाल उपलब्ध होनी चाहिए थी। जब माँग से ज्यादा आपूर्ति की गई है फिर गत एक वर्ष के अंदर कीमतों में दुगने का अंतर कैसे आ गया? निश्चित ही यह जमाखोरी और कालाबाजारी का परिणाम है। इसी तरह अन्य रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुओं में बढोत्तरी जारी है।

आज स्थिति यहाँ तक आ पहुँची है कि पिछले 12 वर्षों का रिकार्ड इस महँगाई ने तोड दिया है। महँगाई की दर 19.83 पर पहुँच गई है। सब्जियों में जिस तेजी से बढोत्तरी हुई है उसने तो भारतीय मध्यमवर्गीय रसोई का जायका ही बिगाड कर रख दिया। इस मध्यमवर्ग और मजदूर वर्ग की हालत यह हो गई है कि दिन प्रतिनिधि बढती महँगाई के कारण आवश्यक वस्तुएँ खरीदने में उन्हें पसीना आ रहा है। आलू के दामों में 132.74 प्रतिशत, प्याज 40.75, अन्य सब्जियों में 46.70 प्रतिशत तथा दालें 41.69 प्रतिशत महँगी हुई हैं। इसी अनुपात में फलों में तेजी आई है। चीनी 60 रुपये किलो और दूध की कीमत 22 रूपए लीटर से बढकर 30 रूपए पहुँच गई है। खाद्यान में बाजरा 12, गेहूँ 9.4 और चावल 2 प्रतिशत महँगे हुए हैं। थोक मूल्य पर आधारित अन्य गैर खाद्य वस्तुओं में भी 8.74 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। इसके बावजूद भी सरकार का महंगाई के प्रति लचीला रुख समझ के परे है। केन्द्र की कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के इस रुख से यही प्रदर्शित हो रहा है कि वह महँगाई के प्रति गंभीर नहीं ।

यही कारण है कि उसके इस गैर जिम्मेदारी भरे कदम को लेकर पिछले संसद सत्र में वित्त मंत्रालय की संसदीय स्थाई समिति ने भी सरकार की कार्यप्रणाली पर उंगली उठाई थी। समिति ने अपनी रपट मे कहा कि सरकार द्वारा इसे रोकने के लिए जो महत्वपूर्ण कदम उठाए जाने चाहिए थे वह उसने अभी तक नहीं उठाए हैं। वित्त मंत्रालय महँगाई पर अंकुश लगाने में पूरी तरह विफल रहा है।

वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए ऐसा लगने लगा है कि महँगाई यूपीए सरकार के नियंत्रण से बिल्कुल बाहर हो गई है। केवल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कृषि मंत्री के बार-बार आने वाले वक्तव्यों जिनमें वह इस बात की दुहाई दे रहे हैं कि सूखा तथा बढती महँगाई से निपटने के लिए सरकार के पास पर्याप्त अनाज हैबल्कि आयात के लिए जरूरी विदेशी मुद्रा का भण्डार भी मौजूद हैं से अब काम नहीं चलने वाला न यह बताने से की किसानों ने पिछले साल 23 करोड 40 लाख टन खाद्यान्न का रिकार्ड उत्पादन किया था।

सरकार जिस तरह से आम जनता को भरोसा दिला रही है उससे देश में तेजी से बढती महँगाई को नहीं रोका जा सकता है। केन्द्र सरकार जिन थोक मूल्य सूचकांक की आड में महँगाई से बचने तथा मुँह चुराने का प्रयास कर रही है वह थोक मूल्य सूचकांक की पध्दाति केवल भारत में अपनाई गई है जिससे उपभोक्ता को सरकारों द्वारा भ्रम में रखा जा सके। यूरोप में होल-सेल के स्थान पर रिटेल दर के अनुसार महँगाई का अनुमान लगाया जाता है। भारत में यह पद्धति इसलिये भी अपनाई गई है कि यदि महँगाई छपे मूल्य के अनुसार बतायी जायेगी तो जनता कहीं महँगाई के भय से सरकार के विरोध में आन्दोलन न कर बैठेऔर लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था में इस आन्दोलन के परिणाम से सरकार न चली जाये। केन्द्रीय वित्त मंत्रालय का सांख्यिकी विभाग जो आंकडे हमारे सामने रखता है प्राय: वह इसी प्रकार के होते हैं।

आज भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की चौथे नंबर की अर्थव्यवस्था है, किन्तु प्रतिव्यक्ति आय में यह 133वें पायदान पर है। यानि आय प्राप्ति की दृष्टि से 132 देश भारत की अपेक्षा बेहतर स्थिति में हैं। समय रहते महँगाई पर ब्रेक नहीं लगाया गया तो कांग्रेसनीत संप्रग सरकर को यह बात समझ लेना चाहिए कि आने वाले दिनों में स्थिति बहुत भयंकर हो जायेगी।

– मंयक चतुर्वेदी

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मयंक चतुर्वेदी
मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है। सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

5 COMMENTS

  1. O bharat ki janta…jaise pyaj ki mahngai ke karan BJP ko haraya tha vaise ab bhi apana roop dikhao….ab kahe aankhe munde baithi ho…..JAI SARDAR….JAI ITALI WALI MAIYA KI….JAI TEDE DEV KI….JAI BHONDU YUVRAJ KI…..JAI HO

  2. आम आदमी मतलब
    सब्र का जीता जागता बुत
    जो सिर्फ उम्मीद और
    झूठे वादों के लिए
    पूरी उम्र गुजार देता है
    महगाई जिसकी जीवन साथी है
    टपकती छत या टूटी हुई झोपडी
    जिसमे पूरी जिन्दगी गुजरती है
    एक मुट्ठी चावल और बाकी पानी
    हर रोज जिसकी हांडी में पकते है
    बच्चे भूखे नंगे
    रोजगार की आस
    हर रोज़ नित नयी जुगत
    जीवन के साथ साथ
    ता उम्र चलने वाली ऐसी व्यबस्था
    आम गरीब आदमी के जीवन में
    ऐसे ही बदस्तूर जारी है
    ये आम आदमी
    जो हर खास का जीवन बनाता है
    हर खास का जीवन सजाता है
    जो साड़े चार बरस
    झूटी उम्मीद के दिए जला कर
    जिन्दगी बसर करता है
    और फिर
    कुछ शराब की बूंदों
    सस्ती सी साड़ी
    या १००, २०० रूपये में
    अपना वोट बेचकर
    फिर से गरीबी का
    लाइसेंस पा लेता है
    यूँ भी गरीब रहने में
    हर खास का फायदा ही है
    इसलिए गरीब हमेंशा ही
    गरीब रहता है
    और अमीरों की दुनिया में
    खिलौना बनकर जीता है
    सरकार जो आम आदमी के नाम पर
    सत्ता का सुख लेती है
    लेकिन दुर्भाग्य
    गरीब की सुध फिर
    अगले चुनाव तक कभी नहीं लेती है
    अपना हक अगर गरीब मांगने भी चले जाये
    तो नसीहत और झूठे आश्वासन जरुर मिल जाते है
    गाँव तो पहले ही रोजगार की तंगी
    से दिनोदिन अनाथ होते चले जा रहे है
    लेकिन शहर में जीने के भी अब
    लाले हुए जा रहे है
    कहते है की विकास बहुत तेजी से हो रहा है
    सुना है विदेशी मेहमानों की आवभगत के लिए
    हजारों करोड़ खर्च हो रहा है
    राजधानी को चमकाया जा रहा है
    जिसमे सारा तंत्र रात दिन जुटा हुआ है
    आम आदमी भूखा भी रहे
    टपकती झोपडी में रहे
    बच्चे उसके शिक्षा भी ढंग से न ले सके
    मंहगाई का बोझ भी ढोहे
    पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी उसके लिए दूभर हो जाये
    सरकार के लिए सचमुच बेहद मामूली समस्या है
    क्योंकि खास लोग ये अच्छी तरह जानते है
    की आम आदमी का मतलब
    बेहद कमजोर याददास्त वाले लोग
    जो सिर्फ खास लोगो के पाँव के नीचे
    गलीचों की तरह बिछने के लायक है
    और जिन्हें कभी भी लोलीपोप देकर
    मनाया ख़रीदा जा सकता है
    दरअसल ये आम गरीब जनता है
    और इसे खास बनकर जीने का हक कतई नहीं
    क्योंकि जिस दिन गरीब भी खास हो जायेगा
    फिर कौन किसको डराएगा
    कौन किसपर अपना राज़ चलाएगा
    इसलिए हुज़ूर गरीबी का जिन्दा रहना
    बेहद जरुरी है
    जब तक गरीबी है
    खास लोगो की जिन्दगी रंग बिरंगी है
    वैसे भी आम आदमी सिर्फ सपने देखने के लिए बना है
    कुछ वो खुद देखता है
    कुछ कोई खास आदमी उसको दिखा देता है
    गरीबी एक नशा है
    इसलिए इस नशे को जिन्दा रखना
    हर खास की जरुरत भी है मजबूरी है
    यूँ भी गरीबी में जीना अब आम आदमी को खूब आ चुका है
    तब ऐसे में
    शिकायत की कोई वज़ह नहीं, जगह नहीं है,
    मतलब
    जो चल रहा है वो सबकी मर्जी है …………………. रवि कवि

  3. Sabse pahli baat ya yu kahe ki sarkar ka sarvkalik bahana ki mahangai ki samasya waishwik hai, mai poochhta hu ki sarkar ne kis data ke kin aankado keadhar par ye vichar banaye hai, Mai pichhle 4 salo se europe me hu, jyadatar desh ghoomelekin kahi bhi rahne ke kharch me mujhe pichhale 3 salo mekoi fark nahi laga, balki Belgium jaise desho me to doodh itna sasta ho gaya hai kis kisano ko kheto me bahana pad raha hai…Aarthik mandi ki wajah se automobile aur heavy electric ke daam ghate hai, ghar kharidna aur sasta ho gaya hai…lekin sarkar janti hai ki desh ki janta ko isi bahane se bevkoof banaya ja sakta hai…kyuki “dusro ko bhi dukhi dekhkar ham bhartiy apna dukh bhool jate hai..lekin asli jimmedaar mahangaai ki ye Congress sarkar hai jisne munafakhori, bhrashtachar ko har star par manyatya de trakkhi hai…NCP ka neta aur krishi mantri sharad powar jiske bhateejo ki 8 se 10 sugar mills hai unke dabaav me Ganne ka muly ghataya gaya jiski wajah se kisan andolan ko badhy huye aur chini ka mulya betahasha badhaya gaya///yahi kahunga ki Bharat ne fir se apna bhagya rakt pipasuon ke haath me de rakkha hai..

  4. हमारे देश का दुर्भाग्य है की हमारे यहाँ का विपक्ष कमजोर है. नहीं भूला चाइए की सिर्फ प्याज और लहसुन ने भाजपा की सरकार गिरा दी थी. आज तो हर जगह से अंगार बरस रहे है.

    आकंडे कहते है की पिछले वर्ष उत्पादन उससे पहले वर्ष से कम नहीं हुया है. फिर इतनी महंगाई क्यों. कृषि मंत्री को शर्म सी डूब कर इस्तीफा दे दीना चहिये, सरकार को कृषि मंत्री को तुरंत प्रभाव से निष्कासित कर देना चहिये. विपक्ष के कड़े कदम उठाना चहिये. जनता को चिलाने के आलावा कुछ नहीं आता है. वोह तो क्रिकेट, मीडिया में अपना गम भुला देती है. ऐसा लगता है की “अँधा बाटे रेवाड़ी …….. …………. …………. ………….”. कभी फील गुड तो कभी इंडिया शाइनिंग – आम आदमी का क्या होगा.

  5. माना की महंगाई बढ़ी है ,खाद्यान्न की कीमते बढ़ी है ,चीनी का दाम भी बढ़ा है ! लेकिन इसका दूसरा पहलू कोई नहीं देखता !
    दूध का दाम चीनी का दाम सरकार तय करती है , लेकिन साबुन ,पेस्ट , चाय पत्ती जैसे अनगिनत उत्पादनों का दाम तय निर्माता
    करता है ! ऐसी आज़ादी किसानो को क्यों नहीं मिलती ? चाहे सारी वस्तू की कीमते बढे लेकिन किसान ने अपनी उत्पादन की
    कीमते बढ़ाने का हक नहीं है क्यों ? जो चीजो का उत्पादन कम होता है ,उसकी कीमते तो बढ़ेगी ही ! जब टोमाटो का उत्पादन
    जरुरत से ज्यादा होता है और उसके दाम जमीन पर आते है तब किसान की यह स्थिथि होती है की बाज़ार ले जानेका किराया
    नहीं निकलता तो किसान को टोमाटो रोड पर फेकने पड़ते है , दूध का भी वही हाल है ! दाल , टोमाटो , गेहू , प्याज जैसे चीजो के
    भाव बढ़कर भी किसान आज भी वही फटेहाल क्यों है ? शहर में जमीन के भाव , प्लाटो के भाव , दुकानों के भाव असमान छू रहे
    है ,जब कोई मोर्चा नहीं निकलता , जब कोई आवाज नहीं उठती ! क्यों ? सरकार कोई भी हो ,जब खाद्यान्न का उत्पादन कम होगा तो
    भाव बढेगा ही !! भारत में खेती सिर्फ १५-२० प्रतिशत जमीन पर होती है बाकि जगह खेती लायक बनानेके लिए सरकार को नयी योजना
    लानेकी जरुरत है ! मंडी में तरकारी की ज्यादा आवक होती है तो तरकारी के भाव भी गिर जाते है !
    भाव बढेगा ही ! भाव बढेगा तो सरकारी ,कर्मचारिकी लोगोंकी पगार भी बढ़ेगी ,क्या फर्क पड़ता है !

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