कांग्रेस का देशवासियों को नायाब तोहफा

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15 अगस्त 1947 को भारत देश को पराधीनता से मुक्ति मिली। इसके बाद 26 जनवरी 1950 को भारण गणराज्य के गणतंत्र की स्थापना हुई। भारत का गणतंत्र आज किस मुकाम पर है किसी से छिपा नहीं है। देश के जिन गण के लिए तंत्र की स्थापना की गई थी, आज वे गण तो हाशिए में सिमट गए हैं। अब तंत्र चलाने वाले गण ही सब कुछ बनकर उभर चुके हैं। किसी को भारत देश के आखिरी छोर पर बैठे आम आदमी की चिंता नहीं है, हर कोई अपनी मस्ती और मद में चूर है। शिख से लेकर नख तक समूचे गण और उसका तंत्र आकंठ विलासिता, राजशाही, में डूबकर भ्रष्टाचार और अमानवीयता का नंगा नाच दिखा रहा है।

भारत के गणतंत्र के साठ साल पूरे होने की पूर्व संध्या से पहले ही भारत सरकार ने एक एसा करिश्मा कर दिखाया है, जिसे क्षम्य श्रेणी में कतई नहीं रख जा सकता है। भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय बालिका दिवस पर रविवार को जो विज्ञापन प्रकाशित करवाया है, वह घोर आपत्तिजनक है। इस विज्ञापन के बारे में अब सरकार अपनी खाल बचाने की गरज से तरह तरह के जतन अवश्य कर रही हो पर तरकश से निकले तीर को वापस रखा जा सकता है, किन्तु धनुष से छूटे तीर को वापस नहीं लाया जा सकता है।

केंद्र सरकार के मानव संसाधन विभाग द्वारा कन्या भू्रण हत्या के खिलाफ प्रकाशित विज्ञापन में देश के वजीरे आलम डॉ.एम.एम.सिंह, कांग्रेस की शक्ति और सत्ता की शीर्ष केंद्र श्रीमति सोनिया गांधी के साथ पडोसी मुल्क पाकिस्तान के पूर्व एयर चीफ मार्शल तनवीर महमूद अहमद का फोटो भी प्रकाशित किया है। तनवीर महमूद का फोटो इसमें प्रकाशित किया जाना किसी भी दृष्टिकोण से प्रासांगिक नहीं कहा जा सकता है।

केंद्र सरकार के विज्ञापन सरकारी तौर पर जारी करने का दायित्व सूचना और प्रसारण मंत्रालय के दिल्ली में सीजीओ काम्लेक्स में सूचना भवन के दृश्य एवं श्रव्य निदेशालय (डीएव्हीपी) का होता है। संबंधित विभाग द्वारा विज्ञापन का प्रारूप या अपनी मंशा से इस महकमे को आवगत कराया जाता है। इसके उपरांत यह विभाग उस विज्ञापन को डिजाईन करवाकर वापस संबंधित विभाग के अनुमोदन के उपरांत प्रकाशन के लिए जारी करता है।

यहां यह उल्लेखनीय होगा कि जो भी विभाग अपने विज्ञापन का प्रकाशन करवाना चाहता है, वह विज्ञापन के साथ अनुमानित राशि का धनादेश और किन अखबारों में इसे प्रकाशित किया जाना है, उसकी सूची भी संलग्न कर भेजता है। यह समूची प्रक्रिया सूचना भवन के भूलत से लेकर नवें तल तक विभिन्न प्रभागों और अनुभागों से होकर गुजरती है। इस मामले में गलती किसकी है, यह मूल प्रश्न नहीं है, मूल प्रश्न तो यह है कि इतने हाथों से होकर गुजरने के बाद भी गलती कैसे हो गई।

दरअसल सूचना भवन में वर्षों से पदस्थ सरकारी नुमाईंदों को अब अपने मूल काम के बजाए मीडिया की दलाली में ज्यादा मजा आने लगा है। कहते हैं कि पंद्रह से पचास फीसदी तक के कमीशन पर यहां करोडों अरबों रूपयों के वारे न्यारे हो रहे हैं। सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी द्वारा अगर एक माह में ही विभागों द्वारा प्रस्तावित विज्ञापन, अखबारों की सूची, उनके देयक के भुगतान की जानकारी ही बुलवा ली जाए तो उनकी आंखें फटी की फटी रह जाएंगी कि उनकी नाक के नीचे किस कदर भ्रष्टाचार की गंगा अनवरत सालों साल से बह रही है। डीएव्हीपी में भ्रत्य से लेकर उप संचालक स्तर तक के अधिकारियों का पूरा कार्यकाल डीएव्हीपी के दिल्ली कार्यालय में ही बीत गया है।

इस मामले में अपनी खाल बचाने के लिए महिला बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ द्वारा तर्क के बजाए कुतर्क देना उनके मानसिक दिवालियापन के अलावा और कुछ नहीं माना जा सकता है। यह कोई छोटी मोटी गलती नहीं जिसकी निंदा कर इसे भुलाया जा सके। अगर चाईल्ड वेलफेयर मिनिस्ट्री ने तनवीर महमूद की फोटो जारी की भी हो तो क्या डीएव्हीपी की सारी सीढियों पर धृतराष्ट्र के बंशज ही विराजमान हैं।

वायूसेना का कहना सच है कि इस तरह से सरकारी विज्ञापनों में अगर भारत के खिलाफ आतंकवाद का ताना बाना बुनने वाले पकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख का फोटो प्रकाशित किया जाएगा तो सैनिकों का मनोबल गिरना स्वाभाविक ही है। उपर से तीरथ के उस बयान ने आग में घी का ही काम किया है जिसमें तीरथ ने कहा है कि फोटो के बजाए विज्ञापन की भावनाओं पर ध्यान दें। तीरथ का यह बयान राष्ट्रभक्तों की भावनाएं आहत करने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है।

अगर विज्ञापनों में फोटो महत्वहीन होती हैं तो फिर उसमें सोनिया और मनमोहन की फोटो लगाई ही क्यों गई। और अगर तीरथ के बजाए इस विज्ञापन में पाकिस्तान की किसी महिला नेत्री की फोटो लग जाती तब भी क्या तीरथ के तेवर यही रहते, जाहिर है नहीं, क्योंकि उस वक्त तो विभाग के न जाने कितने अफसरान निलंबन की राह से गुजर चुके होते।

इस तरह के विज्ञापन के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय और तीरथ ने तो कुतर्कों के साथ माफी मांग ली है, किन्तु भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय (आई एण्ड बी मिनिस्ट्र) दायित्व संभालने वाली अंबिका सोनी क्यों खामोश हैं। दरअसल यह गलती सूचना प्रसारण मंत्रालय के डीएव्हीपी प्रभाग की है, सो उन्हें भी सामने आना चाहिए। गलती से अगर महिला बाल विकास विभाग ने तनवीर महमूद की फोटो जारी भी कर दी तो आई एण्ड बी मिनिस्ट्र के डीएव्हीपी प्रभाग की जवाबदारी यह नहीं बनती है कि वह संबंधित विभाग को यह बताए कि यह फोटो प्रासंगिक नहीं है।

बहरहाल देश में गण की रक्षा, समृद्धि, विकास के लिए स्थापित किए गए तंत्र ने पचास साल पूरे कर लिए हैं। आज आजाद भारत में गणतंत्र पहले से मजबूत हुआ है या कमजोर इस पर टिप्पणी करना बेमानी ही होगा, क्योंकि भारत के गणतंत्र की गाथा सबके सामने ही है। जब गणतंत्र की स्थापना के साठ साल पूरे होने के महज दो दिन पहले ही भारत सरकार का तंत्र इतनी भयानक और अक्षम्य लापरवाही करे तब गणतंत्र के हाल किसी से छिपे नहीं होना चाहिए।

-लिमटी खरे

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लिमटी खरे
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1 COMMENT

  1. अधिक तो नहीं यही विचार मन में आया गणतंत्र नहीं गुण तंत्र की आवशयकता है देश को
    आज भी प्रथम गण तंत्रता के दृश्य मेरी आँखों के सामने है चार घोड़ों की बग्गी पर बाबू जी राजेंदर प्रसाद दोनों हाथ जोड़े सफ़ेद परिधान .मुख पर मुस्कान लिए ऐसे लग रहे थे जैसे भगवान सयम ही शांति के दूत हों उस समय की तालिओं की आवाजे आज भी कानों में बज रहीं हैं सभी पाठशालाओं में प्रतेक विद्धियार्थी को चार लड्डू भी मिले थे और वह लड्डुओं का स्वाद मोती चूर के लड्डूओं से कम नहीं थाएक पीतल की प्लेट जिस पर १९५१ तथा चार शेरो वाली मूर्ती उकेरी गई थी काश वह पलेट मेरे पास होती मेरे महान देश की यादगार
    और आज अपने पोता नाती .नातिन को दिखाती
    क्षमा करना हिंदी भाषा अधिक नहीं लिखनी आती

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