यदि कांग्रेस शासन में वर्षा सवा माह देर से होती…

-प्रवीण गुगनानी-
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देश ने पिछले लगभग डेढ़ माह के नरेन्द्र मोदी शासन में एक बात बड़ी शिद्दत से महसूस की है कि देश में एनडीए का मंत्रिमंडल शासन काम नहीं कर रहा है बल्कि एक प्रकार की सामूहिक उत्तरदायित्व की भावना काम कर रही है जिसमें मंत्रिमंडल का प्रत्येक सदस्य व्यक्ति न होकर समूह बन गया है और समूह व्यक्ति बन गया है. इस गुरुतर भाव से चल रही दिल्ली सरकार की ही देन है कि लगभग सवा माह के वर्षा के भाव और सूखे की आशंका के बलवती हो जानें के बाद भी देश महंगाई और सटोरियों के चंगुल में जानें से बचा हुआ है. ऐसा नहीं है कि वर्षा की कमी से केंद्र सरकार घबराई नहीं! वह घबराई भी और उसकी रातों की नींद भी उड़ी किन्तु वह गुरुतर भाव से परस्थिति जन्य भूमिका में आ गई और इसके किसी भी मंत्री ने वर्षा, महंगाई, उत्पादन, बाजार, खाद्यान्न कमी जैसे शब्दों से व्यवस्थित दुरी बनाए रखकर “क्रायसिस मेनेजमेंट” के समय पर “डिजास्टर मेनेजमेंट” का आचरण प्रस्तुत किया (जैसा कि पूर्व में होता चला आया है) जिसके कारण इतना बड़ा देश इस समय पर महंगाई के कृत्रिम संकट से बच पाया है. निस्संदेह ऐसा इस देश में पहले नहीं होता था और सप्रंग के पिछले दस वर्षों में सतत इस स्थिति के विपरीत स्थिति देखनें में आती थी. हमें पिछले दस सालों में वर्षा में होने वाली एक दो सप्ताह के विलम्ब में भी इस देश महंगाई के चक्रव्यूह में फंसकर आम आदमी को कराहते और सिसकते देखनें की आदत पड़ गई थी. ऐसा नहीं है कि नरेन्द्र मोदी के शासन में महंगाई नहीं हुई है! अब भी हुई है! किन्तु यह महंगाई अर्थव्यवस्था के सामान्य चक्रों का स्वाभाविक परिणाम है जबकि सप्रंग शासन में बहुधा महंगाई मंत्रियों के बयानों के कारण आती देखी गई थी.

अब तो लगभग देश भर में वर्षा का दौर चल पड़ा है और आशा हा कि इन्द्रदेव बड़े पैमाने पर रुकी हुई बुआई को व्यवस्थित संपन्न करा देंगे. पिछलें कुछ वर्षों में भी बरसात में देरी हुई है किन्तु लगभग सवा माह की देरी संभवतः पिछले दस वर्षों में कभी नहीं हुई. इस सम्पूर्ण चक्र में जो बात देखनें और ध्यान देनें योग्य है वह यह कि पिछले दस वर्षों में वर्षा में दो तीन सप्ताह की देरी से या ज़रा सी भी अनियमितता से सप्रंग सरकार के मंत्री ऊल जूलूल और गट्टर पट्टर बयान जारी करनें लगते थे जिससे बाजारों में महंगाई का एक सैलाब आ जाता था जिससे आम जनता त्रस्त हो जाती थी. भले ही मंत्रियों के व्यक्तव्यों से उत्पन्न हुई यह महंगाई अस्थाई होती थी किन्तु इस अल्पकाल और अस्थाई महंगाई के दौर में ही देश की माध्यम और गरीब वर्ग जनता अपनी गांठ से हजारो करोड़ रूपये खो बैठती थी और वायदा व्यापारियों के साथ बड़े-बड़े उद्योगपतियों की तिजोरियों में रूपये की बाढ़ आ जाती थी. सप्रंग सरकार के दस वर्षों में प्रतिवर्ष चला यह खेल बड़ा ही क्रूर और निर्मम था किन्तु देखनें में आया कि मौसम विभाग का भी सटोरिये, नेता और व्यापारियों के कार्टेल ने भरपूर उपयोग किया और आम उपभोक्ता को लूटा खसोटा.

ध्यान देनें योग्य बात है कि 13 जुलाई तक 43 प्रतिशत बरसात कम हुई है और बुवाई भी 45 प्रतिशत कम हुई है जिससे गंभीर और विकट स्थिति बन गई थी. देश के कई हिस्सों में अभी तक बारिश की एक बूंद भी नहीं पड़ी थी, और मौसम के जानकारों के मुताबिक कमजोर मानसून की वजह से पांच साल में पहली बार देश में सूखा पड़ सकने की आशंकाएं प्रकट की जानें लगी थी. पिछले पांच साल में पहली बार देश में सूखे की आशंका कमजोर मानसून की वजह से प्रबल होती चली जा रही थी. मुझे और देश को याद है कि पिछले दशक में इस प्रकार की भयावह स्थिति का दसवां अंश भी बनता था तब संप्रग मंत्रिमंडल के कुछ मंत्री (जिनका नाम यदि नहीं लूंगा तब भी पाठक उन्हें याद करके कोस ही लेंगे) बड़ी ही सक्रियता से दलाल स्ट्रीट के साथ हाट लाइन पर व्यस्त होकर अपनी आंखें वायदा बाजार के कंप्यूटर पर स्थिर कर लेते थे और इसके साथ ही देश भर में मूल्य वृद्धि का बिच्छू पूरी अर्थव्यवस्था को अपनी चपेट में ले लेता था. मंत्रियों के इन बयानों से आम उपभोक्ता तो चपेट में आता ही था साथ साथ कई छोटे और मंझोले स्तर के व्यापारी भी लालच में आकर अपनी पूंजी गंवा बैठते थे और सड़क पर आकर अपमान जनक जीते थे, या कई अवसरों पर तो आत्महत्या तक कर लेते थे.

महंगाई जैसी सबसे बड़ी और असरकारक समस्या से जूझ रही दिल्ली में बैठी नमो टीम (केंद्रीय मंत्रिमंडल) का उत्साहवर्धन किया जाना चाहिए कि दो साल से सूखे की मार झेल रहे महाराष्ट्र में फिर सूखे जैसे हालत उत्पन्न हो जाने, महाराष्ट्र के 22 जिले सूखा ग्रस्त घोषित किये जाने, पश्चिमी यूपी में सामान्य से 73 फीसदी कम बारिश होने, पूर्वी उत्तर प्रदेश में 40%, कम वर्षा होने, पंजाब में सामान्य के मुकाबले 57 फीसदी कम वर्षा होने, राजस्थान में 74% कम बारिश होने, पूर्वी राजस्थान में 73% वर्षा कम होनें, पश्चिमि राजस्थान में 65% वर्षा कम होनें, पूर्वी ओर पश्चिमी म.प्र. में 74% वर्षा कम होनें, गुजरात में 92% कम बारिश होने, सौराष्ट्र सामान्य से 83% वर्षा कम होनें, विदर्भ और मराठवाड़ा में 67% कम वर्षा होने, और देश के अनेकों अन्य प्रमुख कृषि उत्पादक क्षेत्रों में सूखे जैसी स्थिति के स्पष्ट हो जानें के संकट को झेल रही नरेन्द्र मोदी सरकार ने परिपक्व ही नहीं बल्कि देश के प्रति पितृत्व भाव वाली सरकार होने का परिचय दिया और इस संकट को बखूबी मैनेज कर गई ! देश को केन्द्रीय मंत्रिमंडल के सदस्यों के लालच से बचा ले जाने वाला नेतृत्व देने हेतु बधाई नरेन्द्र जी मोदी!

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