सुरक्षाबलों का मनोबल तोडने की साजिश

उत्तर प्रदेश में शनिवार 18 मई, 2013 को कोर्ट से लखनऊ जेल ले जाते समय बीमारी के कारण विवादित आतंकवादी खालिद मुजाहिद की मौत हुई थी। परन्तु प्रदेश के मुसलमानों ने खालिद की मौत पर जगह-जगह उत्पात मचाया जिसकी वजह से मुलायम सिंह की सपा सरकार ने मुसलमानों को खुश करने के लिए उनकी नाजायज मांगों को मानते हुए 42 पुलिसकर्मियों (5 वरिष्ठ अधिकारी तथा 37 अन्य पुलिसकर्मी) के खिलाफ विभिन्न आपराधिक मामलों के अतंर्गत केस दर्ज कर सीबीआई जांच के आदेश दे दिए। सरकार द्वारा इस प्रकार आदेश देने से उसकी कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह लगता है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने कहा है कि शायद बिमारी के कारण ही इस आतंकवादी की मौत हुई है। अब प्रश्न यह उठता है कि अखिलेश यादव ने बिना किसी जांच पड़ताल के इन कत्र्तव्यनिष्ठ 42 पुलिसकर्मियों के खिलाफ तुरन्त आपराधिक मुकद्दमें क्यों दर्ज किए व सीबीआई जांच के आदेश क्यों दिए? अगर आतंकी खालिद की मौत पुलिस की हिरासत में भी हुई है तो ये 42 पुलिसकर्मी उसके लिए कैसे दोषी हो सकते है?

गुजरात, राजस्थान व मध्य प्रदेश का वांछित व इनामी घोषित खूंखार अपराधी सोहराबुद्दीन (दाउद इब्राहिम का गुर्गा) के पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने पर भी इसी प्रकार मुस्लिम समाज, तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादियों, मानवाधिकारवादियों आदि ने हल्ला मचाया था। जिसमें वरिष्ठ कत्र्तव्यनिष्ठ एवं देशभक्त आई.पी.एस. अधिकारी श्री बंजारा व श्री पंड्या आदि को दोषी बनाकर जेल में ठूंस दिया गया। इसी प्रकार इशरतजंहा (जिसके बारे में लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी संगठनों ने कहा था कि यह हमारी ही ऐजेंट है और जिहाद के काम को ही अंजाम दिया है हमे इस पर गर्व है) को गुजरात पुलिस अगर छोड देती तो न जाने कितनी बड़ी आतंकी दुर्घटना अहमदाबाद में घट जाती।

दिल्ली के बाटला हाउस कांड (सितम्बर, 2008) मंे भी आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में देश के लिए शहीद हुए इंस्पेक्टर मोहनचन्द शर्मा की शहादत को जिस प्रकार कुछ कथित धर्मनिरपेक्ष राजनेताओं तथा मानवाधिकारियों द्वारा कंलकित किया गया और मारे गये आतंकवादियों को महिमा मंडित किया गया। उससे इन राजनेताओं की ओछी एवं देशद्रोही मानसिकता का परिचय मिलता है। कथित मानवाधिकारवादियों तथा राजनेताओं द्वारा किए गए इस प्रकार के व्यवहार से एक धर्म विशेष (मुसलमान) भले ही खुश हुए हो परन्तु इन्होंने समस्त देशभक्तों का विश्वास भी खोया है।

एक धर्म विशेष (मुसलमानों) को खुश करने के लिए देश की सेवा करने वाले देशभक्त कत्र्तव्यनिष्ठ पुलिसकर्मियों पर इस प्रकार आरोप लगाना कहां तक न्यायसंगत है! क्या इन पुलिसकर्मियों के कोई मानवाधिकार नहीं है? सरकार द्वारा इस प्रकार के उठाये गए कदम से क्या प्रदेश के अन्य पुलिसकर्मियों का मनोबल नहीं टूटेगा? वे जिस प्रकार आज अपने कत्र्तव्य को निष्ठापूर्वक निभा रहे है क्या भविष्य में निभा पायेगें? मुस्लिम अपराधियों को पकड़ते समय उन्हें तो हमेशा यही डर सताता रहेगा कि कहीं इनको पकडने के कारण उनपर भी सीबीआई जांच न बैठ जायें?

जिस प्रकार सीमाओं पर जिहादी जवानों के सिर काटकर सेना में भय पैदा करते है उसी प्रकार पुलिस बलों पर राजनैतिक शक्तियां मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए उनका मनोबल तोड़कर उनकी संविधान व कत्र्तव्यपरायणता की शपथ को पूरा करने में अवरोध पैदा कर रही है। क्या यह भी एक प्रकार से जिहाद के कार्य में सहभागिता तो नहीं है?

यति नरसिंहानन्द सरस्वती

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