संविधान निर्माता

डा. रवीन्द्र अग्निहोत्री 

गणतंत्र दिवस का अवसर था। फ़ौज, पुलिस, कचहरी ,बैंक ,यूनिवर्सिटी जैसे भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से सेवानिवृत्त वरिष्ठ नागरिकों की अनौपचारिक गोष्ठी हो रही थी। चर्चा चल पड़ी कि देश का संविधान कैसे बना। कुछ लोगों का कहना था कि उस समय कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी, उसने कुछ लोग नामित ( nominate ) करके संविधान सभा बनाई और इस सभा ने संविधान बनाया। कुछ और लोग बोले कि यह सभा तो नाम के लिए थी, पूरा संविधान तो डा भीमराव आंबेडकर ने बनाया। उन्होंने जब संविधान बनाकर सभा में पेश किया तो कुछ लोगों ने किन्हीं बातों में संशोधन सुझाए। उन पर बहसें हुईं और फिर वोटिंग करके ‘ बहुमत ‘ के आधार पर फैसले किए गए। जब किसी विषय के पक्ष – विपक्ष में बराबर के वोट आए (जैसे, राजभाषा हिंदी हो या अंग्रेजी) तो संविधान सभा के अध्यक्ष डा राजेन्द्र प्रसाद के ‘ निर्णायक मत ‘ (casting vote) से फैसला किया गया। हिंदी का नाम आते ही एक सज्जन बोल पड़े कि हिंदी तो कहने को ही राजभाषा है, संविधान अंग्रेजी में बना और उसका तो अभी तक अनुवाद भी नहीं हुआ। संविधान के सम्बन्ध में समाज के वयोवृद्ध लोगों से ऐसी तथ्यहीन बातें सुनकर मैं सन्न रह गया।

 

संविधान सभा का गठन :

इस सम्बन्ध में वास्तविकता यह है कि जब देश को आज़ादी देने का निर्णय हो गया तब ” कैबिनेट मिशन योजना ( 1946 ) ” के अंतर्गत संविधान सभा का गठन किया गया। उस समय देश का जो भाग ब्रिटिश सरकार के अधीन था वह ” प्रांत ” (जहां 1935 के अधिनियम के द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव पद्धति लागू हो चुकी थी, इसलिए जनता द्वारा चुनी हुई सरकारें थीं) और ” कमिश्नरी ” नाम से दो भागों में बंटा हुआ था। देश का शेष भाग राज्य / रियासतों के रूप में राजाओं / नबावों के अधीन था। उक्त योजना के अंतर्गत 10 लाख जनसंख्या पर एक प्रतिनिधि के अनुपात में “ परोक्ष निर्वाचन “ के आधार पर प्रान्तों से, कमिश्नरी से , तथा ( एक समझौते के आधार पर ) राज्यों / रियासतों से संविधान सभा के लिए सदस्य “ चुने “ गए।

यह तो सच है कि कांग्रेस उस समय सबसे बड़ी पार्टी थी, अतः संविधान सभा में बहुमत भी उसी का था, 69% सदस्य कांग्रेस पार्टी के ही थे । अनेक प्रान्तों में तो कांग्रेस की सरकार थी ही, विभिन्न राज्यों/रियासतों में भी कांग्रेस या उसकी समर्थक पार्टियाँ ही सर्वाधिक सक्रिय थीं ; पर सभा के सदस्यों का चयन केवल ” पार्टी ” के आधार पर नहीं किया गया, बल्कि कोशिश यह की गई कि उसमें एक ओर तो हर अल्पसंख्यक समुदाय (मुसलमान , सिख, ईसाई, एंग्लो – इंडियन, पारसी आदि ) का प्रतिनिधित्व हो, तथा दूसरी ओर विद्वानों के रूप में प्रमुख विधिवेत्ता, न्यायविद , प्रशासक, राजनेता आदि भी रहें । इनके अलावा संविधान सभा ने एक विद्वान को अपना ‘ संविधान सलाहकार ‘ भी बनाया। यह जिज्ञासा होनी स्वाभाविक है कि अनेकानेक विद्वानों के होते हुए भी ” सलाहकार ” क्यों नियुक्त किया गया और संविधान का निर्माण करने में उसकी क्या भूमिका रही ?

 

संविधान सलाहकार :

संविधान सलाहकार का नाम था बेनेगल नरसिंह राव। उनका जन्म 26 फरवरी 1887 को मैंगलोर में एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उनके पिता डाक्टर थे। मद्रास और ब्रिटेन में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद बेनेगल नरसिंह राव 1910 में भारतीय प्रशासनिक सेवा ( ICS ) में आ गए ( बाद में उनके छोटे भाई श्री बेनेगल रामा राव भी इसी सेवा में आए और लम्बे समय तक सन 1949 से 1957 तक रिज़र्व बैंक के गवर्नर भी रहे ) । बेनेगल नरसिंह राव की क़ानून में विशेष रुचि और विशेषज्ञता देखकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें तत्कालीन सांविधिक कोड ( 1935 – 37 ) के पुनरीक्षण का काम सौंपा और इस महत्वपूर्ण कार्य को कुशलतापूर्वक संपन्न करने के उपलक्ष्य में उन्हें 1938 में ” सर ” की उपाधि से विभूषित किया । एक वर्ष बाद 1939 में उन्हें बंगाल हाईकोर्ट का जज भी बना दिया । इस प्रकार उनकी ख्याति विधिवेत्ता और कूटनीतिज्ञ के रूप में थी। उनकी इसी ख्याति के कारण संविधान सभा ने उन्हें अपना ” संवैधानिक सलाहकार ” बनाया । इस कार्य को संपन्न करने के बाद वे अंतर-राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् में भारत के प्रतिनिधि ( 1950 से 1952 तक ) तथा फिर जीवन पर्यंत ( निधन 30 नवम्बर 1953 ) हेग स्थित अंतर-राष्ट्रीय न्यायालय में प्रथम भारतीय न्यायाधीश रहे ।

 

संविधान सभा की समितियां :

संविधान सभा की प्रथम बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई थी जिसमें तात्कालिक अध्यक्ष तो डा. सच्चिदानंद सिन्हा को वरिष्ठता के आधार पर बनाया गया ; पर दो दिन बाद 11 दिसंबर 1946 को डा. राजेंद्र प्रसाद को सभा का स्थायी अध्यक्ष चुना गया । संविधान बनाने के जटिल काम को सरल बनाने के लिए प्रक्रिया ( Procedure ) समिति , कार्य ( Business ) समिति, संचालन ( Steering ) समिति आदि लगभग एक दर्जन समितियां बनाई गईं । ऐसी ही एक समिति थी ” प्रारूप ( Drafting ) समिति ” । प्रायः लोग यह मान लेते हैं कि संविधान इसी समिति ने “ बनाया “, जबकि इसका काम था विभिन्न समितियों में किए गए निर्णयों को संविधान के ड्राफ्ट में शामिल करके सभा के समक्ष विचारार्थ प्रस्तुत करना ; पर इसका गठन संविधान सभा की प्रथम बैठक के लगभग आठ महीने बाद 29 अगस्त 1947 को किया गया । प्रश्न किया जा सकता है कि इन आठ महीनों में संविधान सभा ने क्या किया ?

संविधान का मूल प्रारूप ( Original draft ) :

वस्तुतः इस दौरान सभा दुहरा काम कर रही थी। एक ओर तो सभा की एवं विभिन्न समितियों की बैठकों में अपेक्षित विषयों पर चर्चा हो रही थी और कुछ निर्णय किए जा रहे थे, तो दूसरी ओर संविधान का मूल प्रारूप तैयार करने का काम संवैधानिक सलाहकार बेनेगल नरसिंह राव कर रहे थे। श्री राव ने इसके साथ ही संविधान सभा के माननीय सदस्यों की सूचनार्थ 60 देशों के संविधानों के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण तथ्य तीन ग्रंथों में प्रकाशित किए और उनकी प्रतियाँ सभा के सदस्यों को दीं। इसके बाद उन्होंने संविधान का पहला प्रारूप तैयार करके संविधान सभा में विचारार्थ प्रस्तुत किया। प्रारूप तैयार हो जाने पर संविधान सभा ने श्री राव को कनाडा , अमरीका, आयरलैंड , ब्रिटेन आदि कतिपय देशों की यात्रा पर इस उद्देश्य से भेजा कि वे वहां जाकर विश्व के संविधान विशेषज्ञों से भी विचार – विमर्श करें। तीन महीने में यह यात्रा पूरी करके उन्होंने अपनी महत्वपूर्ण रिपोर्ट संविधान सभा के समक्ष प्रस्तुत कर दी।

संविधान सभा ने जब डा भीमराव आम्बेडकर की अध्यक्षता में प्रारूप समिति का गठन किया तो उसे यह काम सौंपा कि संवैधानिक सलाहकार ने संविधान का जो मूल प्रारूप तैयार किया है, यह समिति उसकी जांच करे , संविधान सभा में जो निर्णय किए जा चुके हैं, उन्हें , तथा उनसे सम्बन्धित अन्य अनुषंगी विषय भी जो संविधान में आने चाहिए, इसमें शामिल करे , और फिर संविधान का अपने द्वारा संशोधित प्रारूप सभा के विचारार्थ प्रस्तुत करे ( to ” scrutinize the Draft of the text of the Constitution prepared by the Constitutional Adviser giving effect to the decisions taken already in the Assembly and including all matters ancillary thereto or which have to be provided in such a Constitution, and to submit to the Assembly for consideration the text of the Draft Constitution as revised by the Committee.” ) इस प्रकार संविधान का मूल प्रारूप ( ड्राफ्ट ) तो सलाहकार बेनेगल नरसिंह राव ने तैयार किया, प्रारूप समिति ने उसकी समीक्षा की , उसमें अपेक्षित संशोधन किए और अंततः उसका सम्पादन किया।

 

संविधान सभा की विशेषताएं :

 

हमारे संविधान सभा की कतिपय ऐसी विशेषताएं थीं जिनकी आज कल्पना करना भी कठिन है। जैसा ऊपर बता चुके हैं, संविधान सभा में प्रचंड बहुमत तो कांग्रेस पार्टी का था ; पर सभा ने दो निश्चय किए। पहला, सभी निर्णय ” सर्व – सहमति (consensus ) ” के आधार पर किए जाएंगे, “ बहुमत “ के आधार पर नहीं ; और दूसरा, जिन समस्याओं पर मतभेद अधिक होंगे या गंभीर होंगे, उनमें “ समझौते “ कराकर समायोजन किया जाएगा। इन दोनों ही निश्चयों का सभा ने दृढ़ता से पालन किया, कोई भी निर्णय बहुमत के आधार पर नहीं किया, अध्यक्ष के निर्णायक मत का तो प्रश्न ही नहीं उठता। ( विस्तार से पढ़ें , Granville Austin , The Indian Constitution : Cornerstone of a Nation ; Bombay : Oxford University Press ; 1972 ; specially ” India’s Original Contribution : 1. Decision Making by Consensus 2. The Principle of Accommodation ” pp 311 – 321 )

 

 

अपने इन निर्णयों को कार्यान्वित करने की दृष्टि से ही संविधान सभा ने विभिन्न समितियों में उन लोगों को प्रमुखता दी जो “ कांग्रेस के विरोधी “ माने जाते थे। प्रारूप समिति के गठन में भी इसी नीति का पालन किया गया। इसीलिए बाबा साहब डा. भीमराव अम्बेडकर को उसका अध्यक्ष बनाया जिनका कांग्रेस विरोध जग जाहिर है। इतना ही नहीं, सात सदस्यों की इस समिति में कांग्रेस के केवल एक सदस्य (बम्बई के पूर्व गृहमंत्री और प्रसिद्ध वकील श्री के. एम. मुंशी) को रखा ; समिति में अन्य सदस्य थे — मद्रास के पूर्व एडवोकेट जनरल अल्लादि कृष्णस्वामी अय्यर , जम्मू -कश्मीर के पूर्व प्रधान मंत्री एन गोपालस्वामी अय्यंगार , भारत के पूर्व एडवोकेट जनरल बी एल मित्तर , असम के पूर्व मुख्य मंत्री मोहम्मद सादुल्ला , और प्रसिद्ध उद्योगपति एवं वकील डी पी खेतान ( बाद में इस समिति के सदस्यों में दो परिवर्तन भी किए गए। श्री बी एल मित्तर के त्यागपत्र के कारण बड़ौदा के महाराजा के विधि सलाहकार श्री माधव राव को सदस्य बनाया गया , और डी पी खेतान का देहांत हो जाने पर टी .टी. कृष्णमाचारी को सदस्य बनाया गया ) । स्पष्ट है कि प्रारूप समिति के सभी सदस्य विधि विशेषज्ञ थे और सभी ने एकजुट होकर काम किया।

 

प्रारूप समिति ने बेनेगल नरसिंह राव के तैयार किए मूल ड्राफ्ट की जांच करके संशोधित ड्राफ्ट फरवरी 1948 को प्रस्तुत किया ; जनता के विचार जानने की दृष्टि से इसे समाचारपत्रों में प्रकाशित भी किया, जनता से सुझाव आमंत्रित किए, और आवश्यक संशोधनों के बाद संविधान 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ। पारित संविधान पर हस्ताक्षर करने से पूर्व संविधान सभा के अध्यक्ष डा. राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान के तैयार करने में सभी सदस्यों को उनके सहयोग के लिए जब धन्यवाद दिया तब श्री बेनेगल नरसिंह राव की भूमिका की उन्होंने विशेषरूप से चर्चा की और कहा, ” इस सभा में उन्होंने सारे समय अवैतनिक रूप से काम किया, सभा को न केवल अपने ज्ञान और विद्वत्ता से लाभान्वित किया बल्कि आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराकर सभा के अन्य सदस्यों को भी अपने दायित्त्वों का सम्यक रूप से निर्वाह करने में सहयोग दिया। ” अतः यह कहना सर्वथा उचित होगा कि हमारा संविधान किसी एक व्यक्ति का बनाया हुआ नहीं, अनेक विशेषज्ञों के सामूहिक चिंतन का परिणाम है।

cons

संविधान का हिंदी अनुवाद :

संविधान बन भले ही गया हो , पर संविधान सभा का काम अभी पूरा नहीं हुआ था । उसने मूल संविधान अंग्रेजी में बनाया था जबकि संविधान में राजभाषा हिंदी स्वीकार की गई थी । अतः उसने अपने अध्यक्ष को यह दायित्व सौंपा कि 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने से पहले ( अर्थात दो महीने के अन्दर ) वे इसका हिंदी अनुवाद करवाएं । अनुवाद तो हिंदी में होना था, पर डा. राजेन्द्र प्रसाद ने एक बहुत दूरदर्शितापूर्ण निर्णय किया। उन्होंने विभिन्न भारतीय भाषाओं के 41 विद्वानों का ” भाषा विशेषज्ञ सम्मेलन ” बुलाया । इस सम्मेलन में यह निश्चय हुआ कि संविधान में प्रयुक्त पारिभाषिक शब्दों के हिंदी अनुवाद के लिए ऐसे शब्दों को वरीयता दी जाए जिन्हें अन्य भारतीय भाषाओं में भी स्वीकार किया जा सके। इस सम्मेलन में बुलाए गए विद्वानों में से ही पांच विद्वानों ( सर्वश्री राहुल सांकृत्यायन , डा. सुनीति कुमार चटर्जी , जयचंद विद्यालंकार , मोटुरि सत्यनारायण और यशवंत आर दाते ) की ” अनुवाद विशेषज्ञ समिति ” बनाई गई जिसने संविधान का हिंदी अनुवाद तैयार किया। फिर संविधान को हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में पृथक-पृथक सुलेख में लिखा गया। शांति निकेतन के ब्योहार राम मनोहर सिन्हा , नंदलाल बोस जैसे सुप्रसिद्ध चित्रकारों ने उसके हर पृष्ठ पर रामायण – महाभारत आदि के विभिन्न प्रसंगों के चित्रों से उसे अलंकृत किया । यह देखकर सुखद आश्चर्य होता है कि विभिन्न भारतीय भाषाओं के विशेषज्ञों का सम्मेलन आयोजित करना, उसमें भाषा-मोह और भावुकता से परे रहकर तर्कसंगत निर्णय लेना, देश के मूर्धन्य विद्वानों की अनुवाद समिति बनाना, संविधान जैसे तकनीकी ग्रन्थ का अनुवाद करना, उसे सुलेख में लिखना, हर पृष्ठ को चित्रों से सजाना जैसे सभी कार्य दो महीने के अन्दर पूरे कर लिए गए। अंत में 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा की अंतिम बैठक आयोजित करके सभी सदस्यों ने दोनों प्रतियों पर हस्ताक्षर किए ।

तो यह है संविधान सभा के गठन, संविधान के निर्माण और उसके हिंदी अनुवाद की अंतर्कथा। इससे यह स्पष्ट है कि हमारा संविधान किसी एक व्यक्ति का बनाया नहीं, तत्कालीन विद्वानों की सामूहिक सोच का परिणाम है। संविधान सभा ने एक पार्टी का पर्याप्त बहुमत होते हुए भी विरोधियों का जिस प्रकार सम्मान किया और ” सर्व सहमति ” के सिद्धांत का पालन किया, वह विश्व का अद्वितीय उदाहरण है, अपने देश की बहुत बड़ी उपलब्धि है, लोकतंत्र की अर्चना है, स्वतंत्रता की उषा में दिया गया अर्घ्य है। हमारा पुनीत कर्तव्य है कि हम आज भी हर क्षेत्र में उसी भावना का पोषण करके लोकतंत्र की जड़ों को मज़बूत करें।

Previous articleकविता – अस्तित्व
Next articleलाल बत्ती की धौंस और आम आदमी
डा. रवीन्द्र अग्निहोत्री
जन्म लखनऊ में, पर बचपन - किशोरावस्था जबलपुर में जहाँ पिताजी टी बी सेनिटोरियम में चीफ मेडिकल आफिसर थे ; उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान में स्नातक / स्नातकोत्तर कक्षाओं में अध्यापन करने के पश्चात् भारतीय स्टेट बैंक , केन्द्रीय कार्यालय, मुंबई में राजभाषा विभाग के अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त ; सेवानिवृत्ति के पश्चात् भी बैंक में सलाहकार ; राष्ट्रीय बैंक प्रबंध संस्थान, पुणे में प्रोफ़ेसर - सलाहकार ; एस बी आई ओ ए प्रबंध संस्थान , चेन्नई में वरिष्ठ प्रोफ़ेसर ; अनेक विश्वविद्यालयों एवं बैंकिंग उद्योग की विभिन्न संस्थाओं से सम्बद्ध ; हिंदी - अंग्रेजी - संस्कृत में 500 से अधिक लेख - समीक्षाएं, 10 शोध - लेख एवं 40 से अधिक पुस्तकों के लेखक - अनुवादक ; कई पुस्तकों पर अखिल भारतीय पुरस्कार ; राष्ट्रपति से सम्मानित ; विद्या वाचस्पति , साहित्य शिरोमणि जैसी मानद उपाधियाँ / पुरस्कार/ सम्मान ; राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर का प्रतिष्ठित लेखक सम्मान, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान , लखनऊ का मदन मोहन मालवीय पुरस्कार, एन सी ई आर टी की शोध परियोजना निदेशक एवं सर्वोत्तम शोध पुरस्कार , विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का अनुसन्धान अनुदान , अंतर -राष्ट्रीय कला एवं साहित्य परिषद् का राष्ट्रीय एकता सम्मान.

4 COMMENTS

  1. आदरणीय शुक्ल जी ,
    आपसे करबद्ध प्रार्थना है एक बार भारत का संवैधानिक इतिहास देखने की अवष्य कृपा करें जो प्रत्येक विधि प्रकाशन पर प्रचुरता से उपलब्ध है ।
    या
    भगवानदाश मार्ग नई दिल्ली में अवश्य पधारें ।

  2. संविधान की सारी रूप रेखा श्री बेनगेल राव ने निश्चित की है , तो नैतिकता और भारतीय उच्चादर्श यह कहते हैं कि डॉक्टर भीम को जो प्रसिद्धी उनकी योग्यता को देखते हुए मिली वह किसी भी तरह से श्री राव के प्रति न्याय नहीं है ।
    अतः उस त्रुटि को अब भी सुधार लिया जाना चाहिए ।
    – यमुनापाण्डेय ,,
    ऐडवोकेट

  3. अग्निहोत्री जी आपने संविधान के निर्माड के बारे में बहुत उपयोगी जानकारी अधिकृत सूत्रों के हवाले से संविधान निर्माड के लोकतान्त्रिक पध्धति के बारे में स्पष्ट नहीं किया है की आजाद हिंदुस्तान के संविधान बनाने का अधिकार ब्रिटिश इंडिया रूल १९३५ के अनतेरगत दिया था न की भारत की आम जनता ने दिया था संविधान दभ के सदस्यों का चुनाव ब्रिटिश इंडिया रूल १९३५ के अनतेरगत परोक्च मत्दम द्वारा किया गया था मुस्लिम लीग द्वारा संविधान सभा का बहिस्कार किया गया था तथा राजाओ और नबाबो द्वारा सदस्यों को मनोमित किया गया था सबसे महत्व्पुर्द बात यह है की जो संविधान संविधान सभा द्वारा बनाया गया था उसकी प्रस्तावना ब्रिटिश संसद से पारित करने की बद्ग्यता थी जो कराया गया इस सम्बन्ध में आम जनता की रे कभी नहीं ली गयी इस संविधान पर जनमत संग्रह कभी नहीं कराया गया इस तरह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के संविधान का निर्माड घोर अलोकतांत्रिक पध्धति से हुआ है इस सम्बन्ध में केशव नन्द भारती बनाम केरल राज्य के मामले में फुल बेंच के १२/१ के बहुमत से फासला दिया गई की भारत के संविधान में किया गया सत्य नहीं है क्यों की इस सा म्विधन के निर्माड का आदेश बरिश संसद द्वारा परोक्च मतदान द्वारा किया गया है और कौन मुर्ख होगो जो १८%लोगो को बहुमत मन ले / ओर्प्फ़ेसर साहब अनुरोध है की इस सम्बन्ध में मेरी अज्ञानता को दूर करने की कृपा karege

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here