नकल माफ़ियाओं के चंगुल में माध्यमिक और उच्च शिक्षा

-राघवेन्द्र कुमार राघव-   india-education

हरदोई ज़िले की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह नकल माफ़ियाओं की गिरफ़्त में है। प्रतिवर्ष 50,000 से ज्यादा छात्र-छात्राएं नकल की महामारी से संक्रमित होकर अंधकार के गर्त में गिर जाते हैं। शासन और प्रशासन नकल के इस काले खेल में बराबरी की भागीदारी का निर्वाह करता दिखता है। मार्च माह में होने वाली परिषदीय परीक्षाओं के लिए नकल की पूरी तरह बिसात बिछायी जा चुकी है । परीक्षा केन्द्रों के लिए जोड़-तोड़ का खेल पूरा होने के बाद नकल के लिए क्षेत्ररक्षण सजाया जा रहा है । अधिकारिओं से साठगांठ और परीक्षकों की खरीद-फ़रोख़्त इस खेल की साधारण सी चालें हैं । अपना नाम तक न लिख पाने वाले भी नकल की बहती नदिया में नहाकर यहां तर जाते हैं । निकटतम जनपदों को छोड़िए, कई प्रदेशों से छात्र यहां अपनी नौका पार लगाने के लिए आते हैं ।

हरदोई जिले के विकास खण्ड बेंहदर, कछौना, सण्डीला, माधोगंज और मल्लावां नकल के गढ़ माने जाते हैं । इन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा महाविद्यालय और परिषदीय विद्यालय हैं। गिनती के विद्यालयों को छोड़कर लगभग सभी विद्यालयों का हाल कमोबेश एक जैसा ही है । महाविद्यालयों की हालत तो और भी भयावह है । यहां श्रेणियों के आधार पर नकल का ठेका उठता है, जैसा सुविधा शुल्क उसी के अनुरूप श्रेणियां तय की जाती हैं ।

साधारण तौर पर नकल की दो पद्धतियों का सहारा लिया जाता है । पहला परीक्षार्थी अपनी-अपनी नकल सामग्री अपने साथ लेकर आएं और प्रश्नपत्र का हल ढूंढ़कर लिखें और दूसरा सामूहिक रूप से एक कक्ष निरीक्षक मौखिक रूप से इमला की तरह बोलकर सभी को उत्तर लिखाता है । ग़ौर करने योग्य तथ्य यह है कि शासन और प्रशासन द्वारा अधिकृत जांच दलों को पूरे कक्ष के परीक्षार्थियों के एक जैसे लिखे उत्तर दिखाई नहीं देते, न दिखाई देने का कारण परीक्षा केन्द्रों से मिलने वाली मोटी रकम है। करीब 70 फ़ीसदी महाविद्यालयों में और 50 फ़ीसदी माध्यमिक विद्यालयों में कक्षाओं का संचालन ही नहीं किया जाता है । जहां माध्यमिक विद्यालयों में नियमित शिक्षण का प्रतिशत 40 है, वहीं महाविद्यालयों में यह 20 फ़ीसद भी नहीं रह जाता । माध्यमिक से उच्च शिक्षा संस्थानों तक की यदि बात करें तो 20 प्रतिशत से ज्यादा परीक्षार्थी नकल विहीन परीक्षाओं में सफल नहीं हो सकते ।

परीक्षाओं के दौरान भ्रष्टाचार का आलम यह है कि केन्द्राध्यक्ष बनने के लिए अध्यापकों में प्रतिस्पर्धा रहती है। विद्यालय संचालकों और अध्यापकों से बात करने पर पता चला कि 20,000 रूपए से लेकर कई लाख रूपए केन्द्राध्यक्षों को दिए जाते हैं । परीक्षा जांच दल प्रत्येक ऐसे विद्यालय से औसतन 20,000 रुपए माध्यमिक स्तर पर और 50,000 रूपए महाविद्यालय स्तर पर वसूलते हैं। नकल का यह गोरखधंधा हरदोई जिले में 100 करोड़ से भी ज्यादा का है । इसमें ऊपर से नीचे तक हजारों जिम्मेदार बेईमानी में संलिप्त हैं । गुणवत्तायुक्त शिक्षा तो दूर यहां साधारण शिक्षा भी मृतप्राय दिखती है। प्रतिवर्ष परीक्षाओं के समय मीडिया द्वारा दिखावटी हो-हल्ला मचाया जाता है। और चांदी के जूते मिलने के बाद यह सब शान्त हो जाता है । स्थानीय मशीनरी भी पूरी तरह रिमोट संचालित नज़र आती है । कागज़ों पर उच्च शिक्षित हरदोई वास्तव में ढोल सरीखी अन्दर से पूर्णत: खोखली है और दिन-ब-दिन यह कमज़ोर होती जा रही है । वह दिन दूर नहीं जब यह नकल और सरकारी उदासीनता का गठजोड़ शिक्षा को लील जाएगा ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here