भ्रष्टाचार मापक यंत्र

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मनोहर पुरी

कनछेदी अपनी गैरज़ में बनी प्रयोगशाला से बाहर निकला तो उसका चेहरा पके हुए आलू बुखारे जैसा चमचमा रहा था। इतनी प्रसन्नता तो न्यूटन को पेड़ से गिरे सेब को देख कर भी नहीं हुई होगी जितनी प्रसन्नता कनछेदी के मुख मण्ड़ल पर सरसों के तेल सरीखी तैर रही थी। मैं समझ गया कि अवश्‍य ही कुछ खासम-खास हुआ है जो कनछेदी का हमेशा सड़े आम जैसा रहने वाला चेहरा अचानक आलूबुखारा बन कर फटने को हो रहा है। कनछेदी के एक हाथ में कोई यंत्रनुमा चीज थी जिसे वह अपने दूसरे हाथ से वैसे ही सहला रहा था जैसे गांव में दूध दोहने से पहले वह अपनी भैंस के पुट्ठों को सहलाया करता था। मुझे देख कर उसकी गर्दन मुकाबला जीते हुए मुर्गे जैसी तन गई थी।

मैंने पूछा,” क्या बात है कनछेदी जो कलफ लगे हुए कुत्तो जैसे अकडे पड़ रहे हो। लगता है चुनाव में बूथ कैप्चर करने का कोई नया फार्मूला हत्थे चढ़ गया है।”

”कुछ ऐसा ही समझ लो भैया। अरे! बूथ कैप्चरिंग में अब क्या रखा है। वह काम तो हमने लौंड़े लपाड़ों पर छोड़ दिया है। अब तो हमारे हाथ ऐसी गीदड़ सिंगी लगी है कि बिना कुछ किए ही चुनाव अपनी जेब में होंगे। जिसे हम चाहेंगे वही जीत पायेगा और जो हमसे टकरायेगा वह हारेगा और खड़ा खड़ा पछतायेगा।”

”ऐसा क्या खोज निकाला है कनछेदी!” हमारी जिज्ञासा आयकर विभाग के इन्सैक्टर के सवालों जैसी उछल कर बाहर आने को हो रही थी।

”खोजना क्या है बन्धु। समझ लो बस हाथ लग गई। लाटरी निकल आई अपनी तो।”कनछेदी नन्हीं चिड़िया सा चहका।

”कुछ बताआगे भी या यूं ही नोट्स देख कर पढाने वाले विष्वविद्यालय के प्राध्यापकों जैसी शेखी ही बघारते रहोगे।”

”जानते हो आज कल किस बात का चारों ओर शोर है। सामने दिखता है परन्तु जिसे खोजने के लिए पूरा देष बावला हुआ पड़ा है। सारी सरकारी मशीनरी उसमें लिप्त होते हुए भी निर्लिप्त भाव से खोज रही है। भगवान का भजन छोड़ कर साधु सन्यासी भी जिसके गीत दिन रात गा रहे हैं। जिसके काबू में आते ही सारे देश का कायाकल्प हो जायेगा। देश का हर एक कोना विकास की रोशनी से जगमगायेगा।” कनछेदी पर अर्थशास्त्र सवार था जैसे।

”ऐसा क्या है कनछेदी! पहेलियां मत बुझाओ। हुआ क्या है साफ-साफ बताओ। लगता है तुमने कोई बहुत बड़ी खोज कर डाली है। इसमें कुछ सच्चाई है तो मैं तुम्हें विश्‍वास दिलाता हूं कि तुम्हारा नाम नोबल पुरस्कार के लिए भिजवाने में कोई कसर नहीं छोडूंगा।”

”अरे आप नाम भिजवाने की बात कर रहे हैं। नोबल वाले तो मेरे पीछे पीछे भागेंगे। मैडम क्यूरी ने भी क्या खोज की होगी जो आपके इस कनछेदी लाल ने की है।”

”अच्छा अब मंहगाई की तरह भाव मत खाओ। सड़े प्याज के छिलकों के भीतर कुछ शेष बचा हो तो खोल कर दिखाओ। यह तुम्हारे हाथ में क्या है जिसे घंघूट में दुल्हन की तरह से छिपा रहे हो। लगता है किसी घोटले का स्टिंग किया हुआ प्रिन्ट है जिसे लेकर मीडिया की तरह इतरा रहे हो।”

”हां लगता है अब थोड़ी थोड़ी बात आपको समझ आ रही है , आपकी खोपड़ी देर से सही योजना आयोग सी खुजा रही है।”

”मेरी खोपड़ी तो तुम गरम कर रहे हो। जल्दी से बोलो नहीं तो यहीं रामलीला मैदान बना दूंगा या फिर पत्रकारों के जूते खाने के लिए तुम्हें किसी संवाददाता सम्मेलन में बिठा दूंगा।”

”ऐसा मत करना भैया बड़ी मुश्किल से तो अंधे के हाथ में बटेर लगा है। इसी के सहारे अब हाई कमान को प्रसन्न करना होगा और देष में दिन रात फैलने वाले भ्रष्टाचार को कम करना होगा।”

”तो तुम भ्रष्टाचार की बात कर रहे हो और अपने नेताओं को इसके बारे में बताने से डर रहे हो।”

”नहीं। मैं तो उन्हें भ्रष्टाचार के चंगुल से बचाना चाहता हूं। उसके लिए मैंने यह भ्रष्टाचार मापक यंत्र बनाया है।” कनछेदी ने छोटा सा यंत्र हाथ में वैसे ही लहराते हुए दिखाया जैसे कुछ सांसदों ने पिछले दिनों संसद में नोटों को लहराते हुए दिखाया था। उस समय मीडिया के साथ साथ बड़े नेताओं को भी पसीना आ गया था। मुझे भी पसीना आ गया। मैंने हाथ बढ़ा कर उस यंत्र को छूना चाहा तो कनछेदी जोर से चिल्लाया,” इसे छूना मत। इसे केवल वही छू सकता है जिसने कभी भ्रष्टाचार न किया हो। भ्रष्टाचार का दूध तो क्या पानी तक न पीया हो।”

मैंने कहा,” कनछेदी! तुम्हें कैसे पता लगेगा कि किसने भ्रष्टाचार नहीं किया। और तुम इसे हाई कमान को कैसे सौंपोगे वहां तो एक से एक भ्रष्ट बैठा है। तुम स्वयं ही बता रहे थे कि हर बार तुम लाखों रुपये दे कर पार्टी का टिकट प्राप्त करते हो। उस टिकट के दाम भी दूध की भांति तेजी से बढ़ रहे हैं, क्योंकि अब तुम उसके लिए करोड़ों रुपए जुटाने की बात कर रहे थे।”

”अरे! मैं कहां यह यंत्र सीधे उन्हें दे रहा हूं। उन्हें तो तब दूंगा जब देष से भ्रष्टाचार को समाप्त कर दूंगा। इसीलिए मैं भ्रष्टाचार को नीचे से समाप्त करूगां। आप ही तो कहते थे न कि भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे की ओर आता है इसलिए मैं इसे नीचे से आजमाना चाहूंगा और सीढ़ी दर सीढ़ी इसकी सहायता से ऊपर का भष्टाचार मिटाऊंगा।”

”हां! यह बात ठीक है। वैसे भी तुम सीधे राष्ट्रपति तक तो जा नहीं सकते। प्रधान मंत्री तक भी तुम्हारी पहुंच नहीं है। कुछ मंत्रियों तक है तो वे पहले ही जेल के भीतर हैं अथवा उसके आस पास घूम रहे हैं।”

”अच्छा आप बताओ कि हमारे देश में सबसे ईमानदार कौन सा वर्ग है। वहीं से षुरू करते हैं। उस वर्ग में जो थोड़े बहुत भ्रष्ट होगें उन्हें हम इस यंत्र की सहायता से पहचान कर पुलिस के हवाले कर देंगे। इस प्रकार धीरे धीरे दूसरे वर्गों की भीतरी सफाई भी वैसे ही कर देगें जैसे बाबा रामदेव वमन क्रिया से षरीर की करते हैं।”

”पहले यह तो बताओं की यह यंत्र काम कैसे करता है । जब इसके बारे में जान लूंगा तभी तो तुम्हें कोई परामर्ष दे सकूंगा। मैं कोई आई.ए.एस अधिकारी तो हूं नहीं जो हर विषय में विषेषज्ञ होता है और किसी भी समस्या का हल तुरन्त सुझा देता है। मैं तो एक अदना सा व्यंग्यकार हूं। भ्रष्टाचार के हिज्जे तक नहीं जानता और तुम हो कि मुझे यह यंत्र छूने तक नहीं दे रहे हो।”

”यह मेरी मजबूरी है। यदि कोई भ्रष्ट व्यक्ति इसे छू लेगा तो उसके सारे गुण उसी प्रकार से समाप्त हो जायेगे जैसे गंदे नाले गिरने के बाद गंगा के हो चुके हैं।”

”तो हमारे देष में श्रमिक वर्ग सबसे गरीब है। वह बेचारे रोज कमाते हैं और रोज ही खाते हैं। वे चाहें तो भी उन्हें भ्रष्ट होने का अवसर प्राप्त नहीं हो सकता। जानते हो आज कल समाज में वही ईमानदार बचा है जिसे भ्रष्ट होने का कोई अवसर प्राप्त नहीं हुआ हो।”

”हां यही ठीक है। तो पहले मजदूरों के पास चलते हैं और भ्रष्टाचार मापक यंत्र को उनके बीच रख कर देखते हैं कि कौन कितने पानी में है।”

” लो सामने ही रेलवे स्टेषन है। वहां कुलियों और यात्रियों का जमघट भी है। पास में ही भ्रष्टाचार मापक यंत्र रख दो और माप लो भ्रष्टाचार कितना है और कैसा है।” मैंने सुझाव दिया।

ज्यों ही कनछेदी ने भ्रष्टाचार मापक यंत्र नीचे रखा उसकी सूई आर्थिक संकट में फंसी भारतीय अर्थ व्यवस्था की तरह डगमगाने लगी।

मैंने कहा,” कनछेदी तुम्हारा यह यंत्र नकारा है। भला यहां कौन भ्रष्टाचार का मारा है। कुली तो कुली यहां पर यात्री तक बेचारा है। यहां भ्रष्टाचार की बात तक किसे सूझ रही होगी।”

कनछेदी बोला,” जरा गौर से सुनो। कुली क्या कह रहा है। वह दस किलो भारी अटैची उठाने के सौ रुपये मांग रहा है। ऊपर से यात्री को डांट रहा है। कह रहा कि अटैची मैं ही उठाऊंगा ,सौ रुपये ले कर भी इसे प्लेटफार्म तक ले कर जाऊंगा। डिब्बे के भीतर इसे तुम्हें स्वयं ले जाना होगा। कोई दूसरा उठायेगा तो उसके हाथ तोड़ दूंगा अथवा कुलियों की यह यूनियन ही छोड़ दूगां।”

”पर इसके लिए तो दर पहले से ही तय हैं। कोई भी कुली तय दरों से अधिक मजदूरी नहीं ले सकता। यात्री चाहे तो इसकी षिकायत अधिकारियों से कर सकता है।”

”पर अधिकारी यात्री नहीं कुली की बात सुनते हैं क्योंकि हर कुली प्रति फेरे के हिसाब से 25 प्रतिषत कमीशन देता है। यह दोहरा भ्रष्टाचार है इसलिए सूई इतनी तेजी से हिल रही है।”

”अच्छा कुलियों से पूछते हैं कि वे इस प्रकार का भ्रष्टाचार क्यों करते हैं।” इतना कह कर मैंने एक कुली को पास बुलाया और उससे पूछा,” भैया आप तय दर से अधिक पैसा मांग कर यात्रियों को हैरान क्यों करते हो। यह तो साफ भ्रष्टाचार है। इसीलिए हमारी सूई एक स्थान पर ठहर ही नहीं रही।”

”आपकी सूई की तो आप जाने साहब, परन्तु इसमें भ्रष्टाचार कहां है। यात्रियों ने पैसा कौन सा ईमानदारी से कमाया है। भ्रष्टाचार की कमाई तो भ्रष्टाचार में ही जायेगी न। फिर आप क्या चाहते हैं कि जैसे हम कुली हैं वैसे ही हमारे बच्चे भी कुली ही बनें। पढ़ने लिखने से वंचित रह जायें। हम भ्रष्टाचार नहीं करेंगे तो बच्चे कैसे पढ़ेंगे। पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया।”

”इसके लिए सरकार ने इतने स्कूल बनाये हैं। वहां मुफ्त में षिक्षा दी जाती है। खाना और कपड़ा तक मिलता है। किताबें और कापियां भी देते हैं तो फिर उन्हें वहां पढ़ने के लिए क्यों नहीं भेजते।”

कुछ भेजते हैं साहब। पर मैं तो अपने बेटे को अंग्रेजी वाले पब्लिक स्कूल में भेजता हूं। कई लाख रुपये डोनेषन दे कर दाखिल करवाया है। मैं तय रेट लूंगा तो उसकी फीस कहां से दूंगा।”

”तुम भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में क्यों नहीं भेजते।” मैंने पूछा।

”वहां का मिलावटी खाना खा कर हर दूसरे दिन बच्चे बीमार हो जाते हैं। जितने पैसे नहीं बचते उससे ज्यादा ईलाज पर खर्च हो जाता है।” उस कुली ने बताया।

”सरकार ने तो अस्पताल भी खोले हुए हैं जहां मुफ्त में ईलाज होता है। प्राइवेट डाक्टर के पास क्यों जाते हो।”

”हर हस्पताल में रेलवे स्टेषन से भी ज्यादा भीड़ रहती है। रोज वहां जायें तो रोटी कब कमायें। फिर नकली डाक्टरों, नकली नर्सों और नकली दवाइयों से भला कभी ईलाज होता है।”

”तुम्हारा कहना है कि वहां भी भ्रष्टाचार का राज है।”

”यह मषीन वहीं ले जाओं तब पता लगेगा कि इसकी सूई चक्करघिन्नी की तरह घूमने लगेगी।”

”उनकी रिपोर्ट पुलिस में दर्ज क्यों नहीं करवाते।” मैंने सुझाव दिया। तब तक कई कुली और यात्री हमारे चारों ओर एकत्र हो गये थे।

एक बोला,” पुलिस की क्या बात करते हो साहब। देष का भ्रष्टतम महकमा है वह तो। रक्षक ही भक्षक बने हुए हैं। पुलिस के कारण ही तो हमारा देश भ्रष्टाचार के मामले में दुनिया के अव्वल नम्बर के देषों में है। लगता है आप अखबार नहीं पढ़ते।”

”आप लोग पुलिस की षिकायत मीडिया से कर सकते हो।” कनछेदी ने सुझाया। ”आखिर माडिया से तो बड़े बड़े नेता भी डरते हैं।”

”तो आप लोग मीडिया के भ्रष्टाचार से वाकिफ नहीं दिखते। तभी यह यंत्र लिए घूम रहे हो। एक बार किसी अखबार के दफ्तर में रख कर देखो। मीडिया इसे ऐसा घूमायेगा कि यह अपनी दिशा भूल जायेगा और मीडिया के सुर में सुर मिलायेगा।”

”फिर तो न्यायालय के अतिरिक्त और कोई स्थान नहीं बचता जहां पर भ्रष्टाचार के लिए शिकायत की जा सके।” मैंने कहा।

लाल कमीजों से घिरे एक काले कोट ने उतार दिया। ”वहां घुस कर तो देखो ऐसे ऐसे दफा लगवा कर जेल भिजवाऊंगा कि यह यंत्र वंत्र बनाना सब भूल जाओगे। हमने पुलिस और न्यायाधीशों के साथ मिल कर पूरी न्याय प्रक्रिया को ही अपनी मुट्ठी में कर रखा है। इससे न तो कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई आवाज उठा सकता है और न ही कोई किसी भ्रष्टाचारी को कोई सजा दिलवा सकता है। प्रैसीडेंट से लेकर पिऊन तक सभी एक ही शृंखला की कडियां हैं। कोई भी इन कडियों को तोड़ने का प्रयास करेगा तो वह खुद ही टूट जायेगा। अदालतों में इतनी लंबी अवधि तक भटकेगा कि उसकी उमर की सांस छूट जायेगी। इसलिए यह यंत्र वंत्र बनाना छोड़ कोई काम धन्धा करना सीखो। कोषिष करके किसी सरकारी कार्यालय में नौकरी प्राप्त कर लो फिर मजे ही मजे हैं। कोई काम काज नहीं करना पड़ेगा लोग घर बैठे ही नोट पकड़ा जायेंगे। फिर इस भ्रष्टाचार मापक यंत्र की तुम्हें कोई जरूरत ही नहीं होगी। यूं ही भ्रष्टाचार की टांग तोडने की बात करोगे तो अपनी ही तुडवा बैठागे।”

मैंने देखा कनछेदी का चेहरा बुरी तरह से मुर्झा गया था।

वह बोला,” भाई साहब जब हमाम में सभी नंगे हैं तो हम ही कपड़े क्यों पहने और नकटों के बीच नक्कू क्यों बने। चलो इस यंत्र को कहीं और आजमाते हैं। रिश्‍वत कैसे मिलती है उसका ‘साफ्टवेयर’ इसमें ‘फिट’ करवाते हैं।

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