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दोहे / क्षेत्रपाल शर्मा - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
हाथ जेब भीतर रहे, कानों में है तेल नौ दिन ढाई कोस का वही पुराना खेल . छिपने की बातें सभी, छपने को तल्लीन सच मरियल सा हो गया झूट मंच आसीन. बचपन- पचपन सब हुए रद्दी और कबाड़, आध - अधूरे लोग हैं करते फ़िरें जुगाड़ . क्या नेता…