जहाँ रचा गया इतिहास – डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

kumbhइस महाशिवरात्रि को प्रयागराज का महाकुम्भ समाप्त हो गया । कहा जाता है ग्रह नक्षत्रों का ऐसा योग अब लगभग १५० साल बाद आयेगा । दुनिया का शायद ही कोई ऐसा कोना होगा , जहं से कुम्भ में भाग लेने के लिये कोई न आया हो । भारतीय संस्कृति का ऐसा अनूठा संगम सचमुच अभिभूत कर देने वाला है । प्रयाग राज अपने आप में सहस्रों साल का जीवन्त इतिहास है । यहाँ की धरती पर पैर रखते ही कहीं न कहीं उससे स्वत: ही जुड़ने का एहसास होता है । इस बार के कुम्भ में ऐसा ही एक स्थान विशेष आकर्षण का केन्द्र रहा । एक ऐसा स्थान जो इतिहास की धारा को मोड़ देने वालों की स्मृति को समर्पित है । प्रयागराज में अहियापुर में स्थित यह तपस्याओं “पक्की संगत” के नाम से प्रसिद्ध है । इस स्थान पर मध्यकालीन भारतीय दशगुरु परम्परा के नवम गुरु श्री तेगबहादुर जी विक्रमी सम्वत १७२३ में ( ईस्वी सन् १६६६) में पधारे थे । यहाँ वे छह मास और नौ दिन रहे । गुरु जी की चरण रज और तप साधना से यह स्थान पावन हो गया ।

जब गुरु जी यहाँ पधारे तो उनके साथ उनके माता जी , उनकी धर्मपत्नी गुज़री जी , गुज़री जी के भाई कृपालु चन्द्र जी के अतिरिक्त भाई मतिदास जी , भाई सतिदास जी, भाई दयाला जी , भाई गुरुबख्श सिंह जी , बाबा गुरुदित्ता जी व अन्य अनेक श्रद्धालु थे ।

सूरज प्रकाश में गुरु जी के आगमन का अति सुन्दर वर्णन किया गया है ।

प्रथम गुरु जी मज्जन कीना । हुते हु दिज ढिग दान सु कीना ।

सुनि सुनि बिप्र आये समुदाय । सो भी लैकर दान सिधाये ।

तिस दिन सगरे गुरु भगवान । देते रहे दिजनि कहु दान ।

गुरु जी समेत त्रिवेणी स्नान करने के पश्चात गुरु जी ने अनेक प्रकार से दान दिया । प्रयागराज के लोगों को जैसे पता चला कि पंजाब क्षेत्र से कोई सिद्ध तपस्वी साधक पधारे हैं , भीड़ बढ़ने लगी । लोगों ने गुरु जी से कुछ समय प्रयागराज में ही रहकर धर्मोपदेश देने की प्रार्थना की । तब गुरु जी कुछ मास इस स्थान पर ठहरे थे , जो अब पक्की संगत के नाम से विख्यात है । कहा जाता है यहीं श्री गोविन्द सिंह जी ने अपनी माँ के उदर में प्रवेश किया था । गुरु गोविन्द सिंह जी ने अपनी आत्मकथा “बिचित्र नाटक” में इसका उल्लेख भी किया है ।

मुर पित पूरब कीयसि पयाना । भाँति भाँति के तीर्थ नाना ।

जब ही जात त्रिवेणी भये । पुन्य दान दिन करत बितए ।

तही प्रकाश हमारा भयो । पटना शहर विखै भव लयो ।

इस स्थान की एक अन्य कारण से भी प्रसिद्धि है । कहा जाता है , जिसके संतान नहीं होती , यदि वह यहाँ आकर सेवा करता है तो उसके संतान प्राप्ति हो जाती है ।

महाकुम्भ में श्रद्धालुओं के लिये गुरु जी का यह स्थान विशेष आकर्षण का केन्द्र था । प्रतिदिन बहुत बड़ी संख्या में भक्तजन पक्की संगत के दर्शन करने के लिये आते थे । यहां गुरु जी के समय की तीन वस्तुएं , उनकी चौकी के पाय , कृपाण और शंख दर्शनों के लिये रखी गईं हैं । गुरु तेगबहादुर जी और गुरु गोविन्द सिंह जी , पिता- पुत्र का देश धर्म के लिये बलिदान भारतीय इतिहास की ऐसी स्वर्णिम गाथा है , जो मुर्दाबाद दिलों में भी जान फूँक देती है । इसी गाथा की धर्म ध्वजा संगम पर फहरा रही हो तो किसका ह्रदय उल्लसित नहीं होगा ? संगम पर स्नान करने आये बहुत लोगों ने पक्की संगत में गुरुओं को स्मरण कर अपनी तीर्थ यात्रा सम्पूर्ण की ।

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