राजनीति के मंच पर,
कुछ भी संभव हो सकता है,
सबसे बड़ा परिवार,
तिनकों सा बिखर सकता है।
यहाँ किसका कौन दोस्त है ,
कौन है रिश्तेदार,
बाप बेटे की तकरार है,
कोन संभाले पतवार।
चाचा भतीजे लड़पड़े,
ज़बान की तकरार थी,
अब हाथ पैर तक चल पड़े।
राजनीति में परिवारवाद का दंश,
यदि ऐसे ही मिटना है तो,
अगली बार राम करे ,
लालू पुत्र भी लड़ पड़े,
राजनीति से विदा ले,
एक और परिवार।
विदा कहाँ होते हैं पर,
सत्ता के ठेकेदार,
नये रूप नये वेश मे,
वही आते है हर बार।