क्रिकेट महायुद्ध के बहाने

समूचे देश में विद्यालय और विश्वविद्यालयों की परीक्षायें चल रही है। विद्यालयों में प्रवेश का क्रम भी शुरू हो चुका है और इस बीच विश्व कप का जुनून सिर चकर बोल रहा है। क्रिकेट के चलते अनेक छात्र पाई की जगह क्रिकेट के ही जय पराजय में गोते लगा रहे हैं बिना यह सोचे समझे कि क्रिकेट का नशा उनके भविष्य पर भारी पड़ सकता है। जब से यह तंय हुआ है कि मोहाली में आगामी 30 मार्च को विश्व कप का सेमीफाइनल मुकाबला भारत और पाकिस्तान की टीमों के बीच खेला जायेगा दोनों देशों के क्रिकेट प्रेमी ही नही वरन सियासत करने वाले भी क्रिकेट के बाहर के मैदान में कूद पड़े हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और प्रधानमंत्री युसुफ रजा गिलानी को भी न्यौता दे दिया कि वे मोहाली आकर क्रिकेट मैच का आनन्द उठाये। भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लगता है कि शायद क्रिकेट मैच भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती का नया पैगाम लेकर आये। उनकी मंशा कितना सटीक उतरेगी यह तो नहीं पता किन्तु क्रिकेट मैदान से बाहर सियासी क्रिकेट का दौर शुरू हो चुका है।
इतिहास साक्षी है कि भारत और पाकिस्तान की क्रिकेट टीमे जबजब मैदान पर होती है तो ऐसा लगता है कि दोनों देशो के बीच युद्ध जैसा वातावरण हो। भारत के क्रिकेट प्रेमी चाहते हैं कि भारत की क्रिकेट टीम भले ही दुनियां के किसी भी टीम से हार जाय किन्तु पाकिस्तान के साथ पराजय उन्हें स्वीकार नही है। कमोवेश इसी प्रकार की मानसिकता पाकिस्तान पर भी लागू होती है। क्रिकेट खेल न होकर दोनों देशों के बीच एक निर्णायक संघर्ष जैसा होता है। करो या मरो की मानसिकता के बीच दोनों देशों के खिलाड़ी जहां योद्घा के रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं वहीं क्रिकेट टीमों के समर्थक मंदिर, मस्जिद और देवालयों का चक्कर लगाने से नहीं चूकते।
मोहाली में कौन सी टीम जीतेगी यह तो भविष्य के गर्भ में है किन्तु दोनों टीमों के खिलाड़ी अभी से हर हाल में जीतना है के दबाव की मानसिकता से जूझ रहें हैं। यह भाव और भाव भूमि अकारण नही है। भारत के अधिकांश जन मानस को लगता है कि पाकिस्तान उनकी देश की सुरक्षा और विकास के रास्ते में रोडा बना हुआ है। पाकिस्तान कभी आतंकवादी भेजकर तबाही मचवाता है तो आये दिन जाली नोट और मादक पदार्थ भारत में भेजकर भारत के सुख में खलल डालता ही रहता है। पाकिस्तान की जनता के मन में सियासतदानों ने यह मानसिकता विभाजन के बाद से ही भर दिया है कि भारत ही उनका प्रबल शत्रु है। इन भावों को व्यक्त करने का जब सहज अवसर नहीं मिल पाता तो दोनों देशों की जनता को प्रतीक्षा रहती है क्रिकेट मैंच की। इसी बहाने दोनों देशो की जनता अपनेअपने स्वभावगत भावों को अभिव्यक्ति देती है। अब मोहाली में केवल भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच मात्र नही होगा वरन उससे जुड़ेंगी खट्टीमीठी अनगिनत यादें। अनेक घाव रहरहकर उभरकर सामने आयेंगे। कभी कारगिल का धोखा तो कभी मुम्बई पर आतंकी हमला और न जाने कितने युद्घो से लहूलुहान दोनों देश क्रिकेट के बहाने अपने अतीत को जीवन्त करेंगे।
दोनों देशों के सियासी लोग मोहाली से बहुत उम्मीद लगाये हुये हैं। खिलाड़ी दबाव में हैं। बेहतर यही होगा कि दो देशो के क्रिकेट टीम से भारतपाकिस्तान की भावनाओं से सियासत को न जोड़ा जाय। खेल को खेल ही रहने दिया जाय तो बेहतर होगा। मैच में दोनों टीमें कभी नहीं जीतती। एक को तो पराजय का मुंह देखना ही होगा। माध्यम जगत जिस रूप में भारतपाकिस्तान के बीच होने वाले क्रिकेट मैंच को परोस रहा है उसे सुखद तो कदापि नही कहा जा सकता। मैल से मैल को नहीं धोया जा सकता। बेहतर हो कि क्रिकेट के बहाने दोनों देशों के बीच संवेदनहीनता और अविश्वास की दीवारे कमजोर हो। रिश्तों के हिमालय की बर्फ कुछ पिघले और फिज़ा में ऐसी बयार बहे कि हम नफरतों की दीवार को गिराकर कुछ कदम विश्वास के साथ चल सके।

2 COMMENTS

  1. इलाज अधूरा रह जाने की अवस्था में खुशवन्त सिंह, कुलदीप नैयर इत्यादि जैसे “पुराकालीन नॉस्टैल्जिक” वायरस का पुनः आक्रमण होने की आशंका है… 🙂 🙂

  2. “अमन की आशा” से ओतप्रोत लेख है… लेकिन नितांत कपोल-कल्पना, अत्यधिक आशावाद, ज़मीनी हालात से बेहद दूर है…।

    “अमन की आशा” के पैरोकार मैच देखने न ही जाएं तो बेहतर है, वरना मैच हारना तय है…
    यदि कोई “पाकिस्तान से दोस्ती” के सपने देखता है तो बेहतर होगा कि वह अपना “पूरा इलाज” करवाये… 🙂

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