अशिष्टता की हदें पार करते 16वीं लोकसभा चुनाव

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-निर्मल रानी-
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भारतवर्ष में सत्ता हथियाने के लिए अपने विरोधी दलों के नेताओं को नीचा दिखाना,ज़रूरत से ज़्यादा अपना महिमामंडन करना, व विपक्षी नेताओं को बदनाम करना तथा अपनी नाममात्र उपलब्धियों का बढ़ा-चढ़ा कर बखान करना हालांकि भारतीय राजनीति में इस्तेमाल होने वाले कोई नए हथकंडे नहीं हैं। परंतु 16वीं लोकसभा के लिए हो रहे आम संसदीय चुनाव आने वाले समय में कई नेताओं तथा स्टार प्रचारकों के कटु वचनों तथा उनके द्वारा किए गए अनैतिक व अशिष्ट बदकलामियों के लिए हमेशा याद किए जाएंगे। इतना ही नहीं बल्कि सत्ता हथियाने के लिए इस बार सांप्रदायिक आधार पर मतों के ध्रुवीकरण का जो बेशर्मीपूर्ण प्रयास किया गया है वह भी देश की राजनीति में पर्याप्त ज़हर घोल गया है। संभव है ऐसे दूषित व ज़हरीले राजनैतिक वातावरण की गूंज देर तक इस देश में सुनाई दे। अपने मुंह से ज़हरीले वचन निकालकर यह पेशेवर नेता अपने-अपने राज्यों में व अपने घरों में वापस चले जाते हैं। परंतु इनके कड़वे बोल समाज में बहस का मुद्दा बने रहते हैं और इन्हीं बहस-मुबाहिसों के परिणामस्वरूप सांप्रदायिक ध्रुवीकरण होता है। ऐसे $गैरजि़म्मेदार नेता व स्टार प्रचारक यह भी नहीं महसूस करते कि उनके कारनामे $कानून की नज़र में कितना बड़ा जुर्म हैं तथा किस प्रकार उनके मुंह से निकलने वाले शब्द भारत की एकता और अखंडता पर प्रहार कर रहे हैं।

ताज़ातरीन घटना भारतीय जनता पार्टी के स्टार प्रचारक तथा स्वयं को योगगुरु के रूप में प्रचारित करवाने वाले बाबा रामदेव के अभद्र व अशिष्ट बयान से जुड़ी है। उन्होंने कांग्रेस पार्टी खास तौर पर नेहरू-गांधी परिवार पर अपनी व्यक्तिगत भड़ास निकालते हुए यहां तक कह दिया कि राहुल गांधी दलितों के घरों में हनीमून मनाने के लिए जाते हैं। रामदेव के इस वक्तव्य के विरुद्ध देश में कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन किए गए। इतना ही नहीं, बल्कि उनके विरुद्ध देश में कई स्थानों से एफआईआर दर्ज होने का भी समाचार है। पूरा देश जानता है कि मात्र दो दशक पूर्व तक साईकल की सवारी करने वाले रामकृष्ण यादव उर्फ बाबा रामदेव ने मात्र अपनी चतुराई के बल पर योग विद्या की आड़ में किस प्रकार अपने राजनैतिक संबंधों का विस्तार किया तथा इन्हीं राजनैतिक संबंधों के आधार पर खासतौर पर कांग्रेस पार्टी से ही सबसे अधिक लाभ व सहायता प्राप्त कर योग विद्या के नाम पर अपने निजी व्यापारिक साम्राज्य में कितना इज़ाफा किया। परंतु जबसे इन्हें रामलीला मैदान से पुलिस द्वारा खदेड़ दिया गया व इन्हें अपनी जान बचाने के लिए एक महिला के कपड़े पहनकर लुकछुप कर भागना पड़ा उस समय से बाबा रामदेव गोया कांग्रेस पार्टी व गांधी-नेहरू परिवार को अपना निजी दुश्मन समझने लगे। रही-सही कसर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने पूरी कर दी जिन्होंने रामदेव को भाजपा सरकार द्वारा आवंटित करोड़ों की भूमि का पट्टा निरस्त कर दिया। इन हालात में रामदेव को कांग्रेस व इसके नेताओं से बड़ा अपना दुश्मन कोई दूसरा नज़र नहीं आता। वे अक्सर अपनी एक आंख दबाकर कभी राहुल गांधी के कुंवारेपन पर बेतुकी व निरर्थक टिप्पणी करने लगते हैं तो कभी अपना मुंह टेढ़ा कर सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर सवाल खड़ा करने लगते हैं।

बड़े आश्चर्य की बात है कि इतनी हल्की, ओछी तथा अत्यंत निम्रस्तरीय टिप्पणी करने वाला यह व्यक्ति इस $गलत$फहमी का शिकार भी रहता है कि पूरा देश उसके साथ है। यहां यह बात एक बार फिर से दोहराना ज़रूरी है कि कुछ समय पूर्व यही व्यापारी रामदेव बिहार में सार्वजनिक रूप से यहां तक कह चुके हैं कि मुझे देश का प्रधानमंत्री बनने की क्या ज़रूरत है, क्योंकि देश के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री तो मेरे चरणों में आकर बैठते हैं। यहां यह बताने की ज़रूरत नहीं कि इनके दाहिने हाथ बालकृष्ण नेपाली मूल के नागरिक हैं तथा जाली दस्तावेज़ों के आधार पर उनका पासपोर्ट बनवाया गया है। स्वयं रामदेव के ऊपर टैक्स न देने संबंधी कई मामले विचाराधीन हैं। यहां तक कि रामदेव के गुरु के लापता होने जैसी रहस्यमयी घटना में भी रामदेव पर ही संदेह व्यक्त किया जा रहा है। ऐसे व्यक्ति का संतरूपी वेश तथा मुंह से निकलने वाले ऐसे कटु वचन और विदेशों से काला धन वापस लाने जैसा शोर-शराबा करना यह अजीबो$गरीब विरोधाभासी बातें हैं। रामकृष्ण यादव उर्फ़ बाबा रामदेव, बाबा रामदेव का असली नाम रामकृष्ण यादव, नेहरू-गांधी परिवार, भारतीय जनता पार्टी के स्टार प्रचारक। उधर नरेंद्र मोदी ने तो गोया इस बार ठान ही लिया है कि प्रधानमंत्री बनने के लिए उन्हें जो भी करना पड़े और जिस स्तर तक भी जाना पड़े सबकुछ मंज़ूर है। मोदी ने 2002 के गुजरात दंगों के बाद से ही अपने सिपहसालारों की जिस विशेष टीम पर अपनी नज़र-ए-इनायत रखनी शुरु की थी उसी से पता लगने लगा था कि मोदी के इरादे क्या हैं? चाहे वह माया कोडनानी को अपने मंत्रीमडल में शामिल करना हो या बाद में अमित शाह जैसे अपराधी व्यक्ति को उत्तर प्रदेश का चुनाव प्रभारी बनाना हो। उनके यह सभी $कदम इस बात का स्पष्ट संकेत दे रहे थे कि मोदी आख़िर चाहते क्या हैं?

आख़िरकार अमित शाह ने दंगों से झुलस चुके मुज़फ़्फ़रनगर क्षेत्र में चुनाव अभियान के दौरान बहुसंख्यक समाज को बदला लेने की बात कहकर यह बता दिया कि वे यूपी के प्रभारी क्यों बने हैं और वे क्या चाहते हैं? उनके विरुद्ध उनके इस अत्यंत आपत्तिजनक बयान को लेकर मु$कद्दमा दर्ज हो गया है। क्या देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने वाले व्यक्ति का दहिना हाथ समझे जाने वाले अमित शाह जैसे नेता को ऐसी टिप्पणी करनी चाहिए जिससे कि सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण को बढ़ावा मिले? स्वयं नरेंद्र मोदी द्वारा उत्तर प्रदेश व बिहार में जनभावनाओं को भड़काने के लिए बार-बार कथित गुलाबी क्रांति का जि़क्र करना कितना बेमानी है। जबकि मांस के निर्यात के व्यापार में बहुसंख्य हिंदू समाज के लोग अधिकांश रूप से शामिल हैं। कल तक ममता बनर्जी को अपने साथ एनडीए में शामिल करने की जुगत में लगे रहे नरेंद्र मोदी को जब ममता बनर्जी ने कोई रास्ता नहीं दिया तो वही ममता बनर्जी अब मोदी की आंखों में इतनी खटकने लगी हैं कि मोदी ने उन्हें बांग्लादेशी घुसपैठियों के लिए लाल क़ालीन बिछा रखने वाला नेता बता डाला। और यदि वह साथ आ जाती तो निश्चित रूप से बंगाल में बंगलादेशियों की घुसपैठ का नरेंद्र मोदी जि़क्र ही न करते? अब उन्हें ममता बनर्जी बांग्लादेशियों की हमदर्द तथा भ्रष्टाचार में संलिप्त भी नज़र आने लगी हैं?

लोकसभा 2014 के चुनाव में बदज़ुबानी, बदतमीज़ी, अशिष्ट व अनैतिक बयानबाज़ी तथा आपत्तिजनक वक्तव्यों का सेहरा किसी एक दल या विचारधारा के सिर पर हरगिज़ नहीं बांधा जा सकता। कमोबेश सभी पार्टियों के किसी न किसी नेता द्वारा इस बार चुनाव अभियान के दौरान ऐसी बातें की गई हैं जो स्वयं नेता, लोकसभा प्रत्याशी कहने वालों के मुंह से शोभा नहीं देतीं। सहारनपुर से कांग्रेस पार्टी के लोकसभा प्रत्याशी इमरान मसूद ने नरेंद्र मोदी की बोटी-बोटी कर देने जैसी हिंसा फैलाने वाली बात कहकर अत्यंत गैरज़िम्मेदारी का सुबूत दिया। उसके विरुद्ध कार्रवाई भी की गई। इस अभद्र एवं $गैर$कानूनी भाषा के इस्तेमाल के बाद बजाए इसके लिए ज़िम्मेदार राजनेता इस बयानबाज़ी की निंदा कर तथ ऐसी बात करने वाले के विरुद्ध $कानूनी कार्रवाई की मांग कर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश करते, परंतु ऐसा नहीं हुआ। बजाए इसके राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को इस गुमनान से लोकसभा प्रत्याशी का सार्वजनिक मंच से एक जनसभा में जवाब देने के लिए मजबूर होना पड़ा। वसुंधरा राजे ने इसके जवाब में कहा कि चुनाव होने के बाद स्वयं पता चल जाएगा कि कौन किस की बोटी-बोटी करता है। इसी प्रकार आज़म खां जैसे समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता ने कारगिल युद्ध में मुस्लिम भारतीय सैनिकों की भूमिका को रेखांकित करते हुए सर्वधर्म संभाव का प्रतीक समझी जाने वाली भारतीय सेना को सांप्रदायिकता का जामा पहनाने की अनावश्यक कोशिश की। इसके अतिरिक्त भी आज़म खां द्वारा कई जगहों पर बड़े ही गैर जि़म्मेदाराना भाषण दिए जाने के समाचार प्राप्त हुए हैं। उनके विरुद्ध भी चुनाव आयोग ने मामला दर्ज किया है। लोकसभा चुनाव 2014 में अनैतिक आचरण की इससे बढक़र दूसरी मिसाल और क्या हो सकती है कि स्वयं प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पर चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने संबंधी मामला पिछले दिनों अहमदाबाद में चुनाव आयोग द्वारा दर्ज किया गया। क्या प्रधानमंत्री पद के दावेदार को यह मालूम नहीं था कि चुनाव प्रचार समाप्त होने के पश्चात कोई भी व्यक्ति अपने चुनाव निशान का प्रदर्शन करते हुए चुनाव प्रचार नहीं कर सकता? इस मामले में दो वर्ष की सज़ा होने का भी प्रावधान है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि लोकसभा 2014 के वर्तमान चुनाव अशिष्टता,अनैतिकता तथा छल-कपट, पाखंड व स्वार्थसिद्धि के लिए सबकुछ कर गुज़रने की सभी हदें पार कर चुके हैं। ऐसे लक्षण देश की एकता व अखंडता तथा विकास के लिए शुभ संकेत $कतई नहीं हैं।

2 COMMENTS

  1. कहाँ गए हमारे इकबाल भाई जो धर्मनिरपेक्षता का दम भरते थे…. क्या अब भी वे कहेंगे की फैजान चेन्नई आतंकी घटना में शामिल नहीं है …ये इस कौम की फितरत है… …. जुर्म… और इंसानियत के कातिल हैं ये लोग ….

  2. देश में नेता तो अब नहीं,सड़कों पर फिरने वाले अपराधी अब इन पदों पर अपनी जातिवादिता ,बाहुबल शक्ति व धरम की आड़ ले चुनाव जीत कर पहुँच रहे हैं उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है. चाहे वे किसी भी दाल के क्यों न हो.

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