संस्कृति से सर्वनाश की और……………………..

आज विश्वभर में खतरे का बिगुल भयंकर नाद कर रहा है उसका सन्देश है की हम सावधान हो जाये तथा संसार की अनित्यता के पीछे जो महान सत्य अंतर्निहित है उसे पहचान ले आज चारो और अशांति असंतोष स्वार्थ और सकिर्नता का भयंकर रूप प्रकट हो गया है मानव की पाशविक प्रवृत्ति को सिनेमा अखबार व् कुछ फ्रायड की मानसिक्ताओ के आधार पर निरंतर बढ़ावा दिया जा रहा है संस्कृति व् संस्कारो को लगातार उपेक्षित किया जा रहा है उसी का परिणाम आज हमारे सामने है जीवन में काम , क्रोध कलह असंतोष संताप अशांति उच्छ्र्खलता और शत्रुता का महाभयानक वातावरण छा गया है इस वातावरण को बनाने का श्रेय अगर किसी को दिया जाये तो वो है पश्चमी संस्कृति के पर्ती हमारा लगाव या भारतीय संस्कृति के पर्ती उपेक्षा  का भाव भारतीय संस्कृति एक विशुद्ध विज्ञानं है जिसका उद्देश्य मनुष्य जीवन के बाहरी और भीतरी आनंद का परिपूर्ण विकास करना है इस विज्ञानं को जब हम जानते थे तब यह भारतभूमि “स्वर्गादपि गरीयसी ” थी तब हम चकर्वर्ति शांतिरक्षक और संसार की अतृप्त आत्माओ को  अमरत पिलाने वाले जगदगुरु थे आज उसकी उपेक्षा करके हम दिन हिन् हो गए है अपनी दीनता को मिटाने के लिए इधर उधर ओस चाटते फिरते है पर अपने ही आँगन में बने हुए सुधा सरोवर की और ध्यान नहीं देते है यही कारन है की जिसे भी देखिये वह अशांत असंतुष्ट अभावग्रस्त दिखाई पड़ता है किसी को चैन नहीं है किसी को प्रसन्नता नहीं है किसी को उल्लास नहीं धनि से लेकर गरीब तक और  विद्वान से लेकर मुर्ख तक सभी एक सी बेचेनी से पीड़ित दिखाई पड़ते है

भारतीय संस्कृति में वह सब कुछ मोजूद है जिससे मनुष्य सचे अर्थो में सुखी बन सकता है कुछ समय पहले तक यह विश्वास किया जाता था की भोतिक विज्ञानं की उन्नति से मनुष्य जाती के सुखो में वर्दी होगी रेल तार जहाज बिजली आदि नाना प्रकार के अविष्कार करने वालो का यही अनुमान था पर परिणाम विपरीत निकला सुविधाए तो जरुर बढ़ी पर उन सुविधाओ से बचे हुए समय का सदुपयोग करने वाले ज्ञान के आभाव में ये सब अभिशाप साबित हुआ धनि अधिक धनि हो गए गरीब अधिक गरीब हो गए श्रम की उपेक्षा होने लगी और एश आराम की परवर्ती ने चरित्र और स्वास्थ्य का सत्यानाश कर डाला तथा अस्पतालों ओश्धालयो न्यायलयो जेलखानो के द्वारो पर भीड़ खड़ी कर दी यह भोतिक विज्ञानं आज भस्मासुर की तरह प्रलय तांडव करने को तेयार खड़ा है परमाणु बम हाइड्रोजन बम मर्त्यु किरण पोइजन गैस और कीटाणु बम की आड़ में खड़ा हुआ हिरण्याक्ष देत्य आज फिर अट्टहास कर रहा है लोग उस पोरानिक कथा पर विश्वास नहीं करते जिसमे कहा गया है की हिरण्याक्ष देत्य प्रथ्वी को चुरा ले गया था परमाणु बमों और हाइड्रोजन बमों से सजा हुआ हिरण्याक्ष आज प्रथ्वी को निगल जाने के लिए चूर्ण विचूर्ण कर देने के लिए कैसा विकराल रूप बनाये खड़ा है इसे हम आज प्रत्यक्ष देख रहे है उस पोरानिक कथा की पुनरावर्ती होने में बहुत देर दिखाई नहीं पड़ती यह असंभवनहीं की उन्नति की चरम सीमा पर पंहुचा हुआ विज्ञानं समस्त मानव जाती को ही नहीं प्रथ्वी गृह को ही भस्म कर दे यह नई बात नहीं है भूतकाल में भोतिक विज्ञान के अत्यधिक विकास के परिणामो का परिक्षण हो चूका है उनसे चकाचोध उत्पन करनेवाली सुविधाए मिलती है पर वे सुविधाए अंततः घातक परिणाम ही उपस्तिथ करती है रावन आदि वैज्ञानिको ने भोतिक आधार पर चमत्कारी शक्तिया प्राप्त की थी और कितने ही तपस्वियों ने योग और तंत्र के आधार पर चमत्कारी रिद्धि सिद्धियों का रास्ता निकाला था पर दोनों अंततः अनुपयोगी ठहराए गए और उनका सार्वजनिक उपयोग बंद करने के लिए कठोर प्रतिबंध लगाये गए लंका का सारा विज्ञान प्रदेश हनुमान के द्वारा जलवा दिया गया ताकि वे प्रयोगशालाय वही नष्ट हो जाये इसी प्रकार तंत्र का वाममार्ग अनेतिक ठहराकर उसकी साधनाओ का बहिष्कार किया गया कापालिक अघोरी वैतालिक आदि को समाज से बहिष्कृत करके अछूत घोषित किया गया रिद्धि सिद्धियों के चमत्कार न दिखाने की प्रतिज्ञा और शपथ लेने पर ही कोई गुरु अपने शिष्य को योग विधा सिखाये ये नियम बनाये गए कहने का तात्पर्य यह है की हर प्रकार से भोतिक विज्ञान की अनावश्यक उन्नति को रोका गया ऋषि जानते थे की मनुष्य जाती की दशा बालको जैसी है ये बच्चे बारूद से खेलेंगे तो जल मरने के अतिरिक्त और किसी परिणाम पर नहीं पहुचेंगे मनुष्य के सुख की अभिलाषा अकेले विज्ञानं से अकेले धन से अकेले बुद्धि चातुर्य से पूर्ण कदापि नहीं हो सकती यह सब भी जरुरी है पर इसकी जरुरत एक सिमित मात्रा में ही है सुखो की वास्तविक सम्भावना किस मार्ग में है इस संबध में भारतीय तत्व्वेताओ ने दीर्घकालीन अन्वेषण किये है और उन्होंने वह मार्ग ढूंढ़ निकाला है जिस पर चलकर कोई भी मनुष्य निश्चित रूपसे सुख शांति आशा उन्नति और आनन्द उल्लास का अवश्यमेव आस्वादन कर सकता है इस सुख शांति की वैज्ञानिक पद्धति का नाम है भारतीय संस्क्रती दुर्भाग्य से आज इसे भी मजहबो की पक्ति में पटक दिया गया पर जब वास्तविकता को पहचाना जायेगा तब सोने और पीतल को आसानी से अलग किया जा सकेगा

भारतीयता वस्तुत मानवता का प्रतीक है इसलिए भारतीय संस्क्रती का वास्तविक अभिप्राय मानव संस्क्रती से है यह संस्क्रती एक विसुद्ध विज्ञानं है जिसका आधार प्रक्रति के जड़ परमाणु नहीं वर प्राणी के गहन अन्तराल में रहनेवाली वह चेतना है जो यदि स्वस्थदिशा में विकसित हो जाय तो आनन्द के फव्वारे की तरह फुट पड़ती है और चारो और पवित्रता शांति स्नेह सोंदर्य और सुख ही सुख फैला देती है यह संस्क्रती एक व्यवस्थित जीवन पद्धति है एक विशुद्ध शास्त्र है ब्रम्हा बोध तत्व बोध शुद्ध द्रष्टि जीवन शास्त्र  व धर्म धारना भी इसी को कहते है इसके अंग प्रत्यंग का विवेचन करने के लिए अनेक ग्रन्थ मोजूद है वेद शास्त्र उपनिषद दर्शन पुरान स्मरति आदि में भारतीय संस्क्रती की एक एक बात की पुरे विस्तार से विवेचना की गयी है भारतीय तत्वज्ञान से लाभ उठाने की इच्छा रखनेवालो के लिए भी यह आवश्यक है की वे इस विधा के कारण, विज्ञान ,रहस्य ,विधान और प्रयोग को समझे बिना आवश्यक जानकारी हासिल किये हमारा बहुमूल्य विज्ञानं हमारे लिए  आज निरर्थक ही नहीं बल्कि अनुपयोगी एंव भाररूप भी सिद्ध हो रहा है

2 COMMENTS

  1. भारतीय संस्कृति किया है? भारतीय संस्कृति है – “हिंदुत्व” जिसको कुछ तथाकथित धर्मनिरपेक्ष विचारकों और राजनीतिज्ञों ने हाशिये पर पहुंचा दिया है. जो भी तत्त्व भारतीय संस्कृति की पहचान हैं वो सब हिंदुत्व की देंन हैं. पर वोट बैंक की राजनीती ने राम का नाम लेना भी धर्म निरपेक्षता पर कुठाराघात बता दिया है.

    जो व्यक्ति सबसे पहले खुद से (धर्म से), फिर परिवार से, फिर राज्य से लगाव नहीं कर सकता, वो देश से भी प्यार नहीं कर सकता…..धर्म ही लगाव की मूलभूत इकाई है

    हिंदुत्व पूजा पाठ के तरीके और कट्टर धार्मिक आचरण से ज्यादा और ऊपर एक जीवन शैली है जो बताती है हमें कैसे सहनशील, सोम्य एवं सवास्थ जीवन का आचरण करना है.

    इसी सोम्यता का लाभ उठाकर मुगलों अंग्रेजो, और फ्रंसिस्यों ने हमारी संस्कृति को नेस्तनाबूद किया है जो अपना मूलभूत स्वरुप छोड़ पश्चिम का रास्ता पकड़ चुकी है. आज का युवा अपनी संस्कृति का ज्ञान न रखते हुए पश्चिम सभ्यता को अपनाने की होड़ में लगा है. पर इससे क्या हासिल होगा? जब पश्चिम देश हमारी संस्कृति को श्रेस्ठ जान उसको अपनाने में लगे हैं.. हम पश्चिम की और देख रहे हैं. क्या हमारे जींस रातों रात बदल कर अमेरिकेन हो जायेंगे.. ?

    न खुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे …

    या यों कहें..

    धोबी का कुत्ता घर का रहेगा न घाट का..

    भगवन सब को सदबुद्धि दे !!

    जय हिंदुस्तान,
    नमस्कार

  2. शायद संस्क्रती के प्रति उपेक्षा ही आज की अतृप्ति का मुख्य कारन है

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