फेलिन: अभी एक परीक्षा और बाकी है..

failinहमेशा कुप्रबंधन, संवेदनहीनता, लापरवाही और अदूरदर्शिता के लिए विरोधियों से आलोचना और झाड़ खाने वाली सरकारों ने इस बार जिस तरह समुद्री चक्रवात से लाखों लोगों की जिंदगियां बचाईं, उसके लिए ओड़िसा तथा आंध्र की राज्य सरकारों के साथ साथ आपदा प्रबंधन में पूर्ण सतर्कता बरतने के लिए केंद्र सरकार की भी प्रशंसा की जानी चाहिए| पिछले कुछ वर्षों में देश में ऐसा बहुत कुछ घटित हुआ है, जिसके चलते सरकारों के ऊपर से आम लोगों का भरोसा और विश्वास कम हुआ है| यही कारण है की कुछ कोनों से दबी दबी सी आवाजें सुनाई आयीं कि फेलिन रुपी आपदा को केंद्र और राज्य सरकारों ने ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ा कर लोगों को दिखाया| दरअसल किसी भी प्राकृतिक आपदा के विध्वंस के परिणाम उस आपदा के समाप्त हो जाने के बाद ही सामने आते हैं| यह हमने उत्तराखंड में हाल ही में देखा है| यदि कुछ देर के लिए इसे सच ही मान लिया जाए कि चक्रवात उतना भीषण नहीं था, जितना सरकारों और मीडिया ने उसे बताया या नाटकीय रूप से देश के सामने रखा, फिर भी प्रत्येक आपदा के समय यह सरकार का दायित्व होता है कि वो अपने नागरिकों में से किसी एक की भी जान न जाए, इसके लिए समुचित कदम उठाये| इस लिहाज से केंद्र और आंध्र तथा ओड़िसा की सरकारें अपने दायित्व को निभाने में सफल हुईं हैं|

आंध्र प्रदेश फेलिन के प्रकोप से करीब करीब अछूता ही रहा है| ओड़िसा में भी जिन 9 लोगों की मृत्यु हुई है, वह चक्रवात के ओड़िसा तट पर पहुँचने के पहले हुई बारिश और चली तेज हवाओं में पेड़ों के उखड़ने से उनके नीचे दब कर हुई है| करीब 9 लाख लोगों को प्रभावित क्षेत्रों से निकालकर सुरक्षित स्थानों में पहुंचाना और उनके ठहरने, खाने का प्रबंध करना आसान काम नहीं था, पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन , सेना और स्थानीय पोलिस के जवानों ने इसे जिस खूबी से अंजाम दिया है, वह बताता है कि यदि एक बार सरकारें तय कर लें कि उन्हें देशवासियों की मदद या रक्षा करना है तो फिर उनके लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है|

भारतीय मौसम विभाग ने इस बीच अपनी कार्य पद्धति में काफी सुधार किया है और इस बार वो एक एक क्षण की पूर्व सूचना हमें दे रहा था| एक पहलू और है, जो न केवल महत्वपूर्ण है, बल्कि उसे रेखांकित किया जाना भी जरुरी है| हमारी सरकारों या हम ये कहें कि हमारे सिस्टम ने उत्तराखंड की त्रासदी  के बाद शायद मौसम विभाग की मौसम के बारे में दी जा रहीं चेतावनियों और सूचनाओं पर भरोसा करना शुरू कर दिया है| मौसम विभाग ने उत्तराखंड में भी उत्तराखंड सरकार को समय रहते चेताया था, पर उस पर ध्यान नहीं दिया गया, जिससे हजारों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा| हमारी पूरी प्रशासनिक व्यवस्था में एक लापरवाही और जड़ता है, जो सरकारों के पूरे कामों और व्यवहार से उजागर होती है| प्राकृतिक आपदाओं को रोका नहीं जा सकता, ये तो भगवान की मर्जी है, जैसे जुमलों की आड़ में इस महत्वपूर्ण बात को झुठलाने की कोशिश होती है कि प्रबंधन यदि सही हो तो किसी भी प्राकृतिक आपदा का सामना कम से कम जान माल के नुकसान के साथ किया जा सकता है| यह बात केवल मौसम विभाग के संबंध में ही नहीं, बल्कि केन्द्रिय गृह मंत्रालय की उन सूचनाओं के संबंध में भी सच है, जिनमें राज्यों को आतंकी हमलों के बारे में सतर्कता बरतने की चेतावनी रहती है, पर उसे राज्य सरकारें और उनके विभाग अनदेखा करके रद्दी की टोकरी में डाल देते हैं| मगर, इस बार ओड़िसा के मुख्यमंत्री, ओड़िसा सरकार के अधिकारियों की कार्य पद्धति इस बात की आशा दिलाती है कि हमारे विभिन्न विभागों के द्वारा जारी की गईं चेतावनियों पर सरकारें और अधिकारी भविष्य में चुस्ती दिखाएँगे|

ओड़िसा में अभी तक प्राप्त जानकारी के अनुसार 13 से ज्यादा बिजली सप्लाई के टावर गिरे हैं| 9 लाख से ज्यादा वृक्ष टूटकर रास्तों और बिजली के तारों पर गिरे हैं| यद्यपि बिजली सप्लाई चक्रवात शुरू होने के बहुत पहले ही एतिहातन बंद कर दी गयी थी, लेकिन अब उसे शुरू करने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है| इसके पहले जो चक्रवात ओड़िसा में आया था, हमें मालूम है कि उसके बाद निजी कंपनियों ने हाथ खड़े कर दिए थे और महिनों तक ओड़िसा के कोस्टल इलाकों में बिजली नहीं थी|

दरअसल, केंद्र और राज्य की सरकारों की असली परीक्षा अब शुरू हो रही है| ओड़िसा में ही लगभग 5 लाख हेक्टेयर कृषि भूमी को चक्रवात से नुकसान पहुंचा है और उसे फिर से खेती के लायक बनाने के लिए कृषकों को बेतहाशा सरकारी सहायता की जरुरत पड़ेगी| केंद्र सरकार को इसमें राज्य सरकार की मदद करनी होगी, जिसके बिना राज्य सरकार कुछ ज्यादा नहीं कर पायेगी| सुरक्षित स्थानों पर लाये गए लोगों को उनके ठिकानों पर पहुंचाने का काम भी बहुत अहं है ताकि जल्दी से जल्दी लोग सामान्य जीवन को शुरू करके पूरे राज्य में नार्मलसी पुनर्स्थापित कर सकें| अब शायद वो काम शुरू होना है, जिन के ऊपर ही सरकार की पूरी छवि निर्भर करेगी, क्योंकि वो आम आदमी के जीवन से सीधे सीधे जुड़े काम होंगे कि सरकार कितनी जल्दी बिजली और संचार के माध्यमों को पुन: खड़ा करती है? कितनी जल्दी लोगों के टूट चुके और गिर चुके मकानों तथा बिल्डिगों को पुन: बहाल करवा पाती है? सरकारों के ऊपर तथा ओड़िसा के स्वास्थ्य विभाग के उपर ये भी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है कि अब लोगों को पानी से होने वाली बीमारियों से बचाया जाए और उन्हें समुचित चिकित्सा उपलब्ध करायी जाए, अन्यथा वो लोग जो अभी तक चुप बैठे हैं, अपनी आलोचनाओं की तलवारें लेकर खड़े हो जायेंगे|

 

अरुण कान्त शुक्ला

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