दलित -महादलित और चोरों के साधू सरदार नीतीश

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नीतीश के विकास रथ के पहिये तले बिहार का सामाजिक , राजनैतिक व आर्थिक तानाबाना लहुलुहान हो जान की भीख मांग रहा है । १५ वर्षों के लालूराज की मरुभूमि में नीतीश नाम का पौधा खिला तो लोगों को लगा विकास पुरूष नाम से प्रचारित ये महाशय सब ठीक कर देंगे । आज भी बहुतायत बिहारवासी सुशासन बाबु की ओर बड़ी उम्मीद और भरोसे से तकते रहते हैं । बिहार के अंधेरे में विकास के जीरो वाट का बल्ब जल रहा है तो जाहिर सी बात है कि उजाला दिखेगा ही ! पिछले चार साल में विकास की लुकाछिपी के बीच सूबे में लूट -खसोट मची है । हत्या-अपहरण -घूसखोरी जैसे अपराध कमोबेश हो रहे हैं ।हाँ , इसकी ख़बर मीडिया में दबाने की कला नीतीश ने भी बखूबी सीख ली है । आज सिक्के का एक ही पहलु प्रचारित और प्रकाशित हो रहा है ।
सत्ता की भूख और लालू-पासवान को जल्दी निपटने की सनक ने नीतीश को धृतराष्ट्र बना दिया है । सालों तक जिस राजद -लोजपा के विधायकों , मंत्रिओं , नेताओं को गलियाते रहे ,जिनके दामन के दागों को गिन-गिन कर बताते रहे , आज वो सब के सब उन्ही के वफादार सैनिक हैं । कल के (वैसे आज भी नही सुधरे हैं ) चोरों के भरोसे जनता को विकास का सब्जबाग दिखाया जा रहा है । केवल सेनापति के सहारे जंग जीत पाना कठिन है जब सैनिक अपने स्वार्थ में लडाई छोड़ सकता हो । वैसे चोर ह्रदय वालों के सम्बन्ध में एक बात कही गई है ; ‘ चोर चोरी से जाए तुम्बाफेरी से न जाए ‘। मुंह में तिनका लगाये घूम रहे इन भेड़ियों की एक लम्बी -चौडी सूची है , कितनो का नाम गिनाया जाए ? ०५ में नवनिर्वाचित विधानसभा रद्द होते हीं २० से ज्यादा बंगले के पहरेदार तीर के शरणागत हो गए थे । तब से अब तलक राजद- लोजपा के सैकडों छोटे -बड़े नेता नीतीश की विकास गंगा में डुबकी लगा अपने पापों का बोझ कम कर चुके हैं । परन्तु जिसे गंगा समझने की भूल की जा रही है वो तो बरसाती नदी है । नीतीश , लालू-पासवान के भ्रष्ट -दागी लोगों को अपने खेमे में लाकर सत्ता में बने रहने की सोच रहे हैं । अफ़सोस होता है कि पढ़े-लिखे नीतीश यह बात क्यूँ भूल जाते हैं कि जनता ने इन्ही के विकास विरोधी कार्यों के ख़िलाफ़ उनको जनमत सौंपा था । वैसे भी राजनीति की बिसात पर एक ही मोहरे बार -बार नही काम नही आते । अगर ऐसा होता तो लालू अभी जाने वाले नही थे ।
सुशासन के इन चार सालों में मीडिया मेनेजमेंट की बदौलत नीतीश ने जनता को खूब भरमाया । राजनीति में भी कुछ नया कर पाने के बजाय बने -बनाये लीक पर चलने और घिसे पिटे दागदार चेहरों को कंधे पर चढा कर आगामी चुनावी सफर तय करने में जुटे हुए हैं । सामाजिक तौर पर अगडे -पिछडों में बिखरा बिहार अब दलित- महादलित के टकराव की आशंका से जूझ रहा है। अभी तो सबको मजा आ रहा है पर , निकट भविष्य में सामाजिक अलगाव की ये कोशिश संघर्ष का रूप ले लेगी । बिहार के कई समाजशास्त्रियों के मुताबिक लालू की जातिगत राजनीति को नीतीश ने और भी जटिल बना दिया है ।
वरिष्ठ समाजसेवी चंदर सिंह राकेश कहते हैं -” महादलित आयोग जैसी चीज दलितों के भीतर एक नव ब्राह्मणवाद को जन्म देगा । दरअसल दलितों को आपस में बाँट कर उनका वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है । पिछले ६० सालों में न जाने कितनी जातियों -उपजातियों को चिन्हित किया गया है लेकिन उनकी स्थिति वहीँ की वहीँ है-शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछडी । इस देश में केवल मुसलमानों के लिए न जाने कितनी पृथक योजनाये बने गई वो भी उनको मुख्यधारा से जोड़ने के नाम पर ।अभी एकाध साल पहले आई सच्चर समिति की रपट में मुसलमानों की जो स्थिति बताई गई है उससे सब स्पष्ट हो जाता है । वैसे कोई इनका पिछडापन दूर करना भी नही चाहता । हाँ , महादलित होने का अहसास दिला कर अपनी रोटी जरुर सेकी जा रही है ।”

1 COMMENT

  1. लालू, पासवान और कोंग्रेस को नीतीश उन्ही की भाषा में निपट रहे हैं. आपका आलेख एक-तरफा है. लालू के भाषण जैसा लगता है.

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