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अंधेरे रास्तों पर - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
जीवन में क्यों कोई राह नजर नहीं आती है ? हर राह पर क्यों नई परेशानी चली आती है ? जब जब चाहा भूल जाऊं अपनी उलझनों को तब तब एक और नई उलझन मिल जाती है। खुलकर जीना और हंसना मैं भी चाहती हूं पर ज़िन्दगी हर बार…