अँधेरे तले चिराग

ललित कुमार कुचालिया

“कौन कहता है आसमान में छेद नहीं होता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो”,

“जिनके हौसलो में जान होती है, उन्हें पंखों की जरुरत नहीं होती”….

आपने इस तरह के जुमले अक्सर सुने होगे लेकिन अँधेरे का यह चिराग अपनी रोशनी से आस-पास के लोगो कों उजाला दे रहा है। हाल ही में कुछ दिनों के लिए देहरादून की यात्रा पर था। तभी मेरी मुलाकात देहरादून से मात्र बीस किलोमीटर दूरी पर स्थित दूधली गाँव के अजय कुमार बर्त्वाल से हुई जिसको वास्तव में कीचड़ में खिलने वाले कमल के फूल की संज्ञा दी जानी चाहिए। दूधली गाँव का यह चिराग गाँव के ही एक छोटे से प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई करने के बाद हमेशा औरो से हट कर काम करने की सोच रखता है और बचपन से ही पर्यावरण प्रेमी, समाजसेवी और शिक्षा के प्रति सुधार में अनेक कार्य किये।

बचपन की जो उम्र एक बच्चे के खेलने कूदने की उम्र हो, पिता का साया बचपन में सिर उठ जाये, विकलांग बहन तथा दो छोटे भाइयों कि जिम्मेदारी अपने कंधो पर लेने के बाद इस नौजवान ने समाज में एक मिशाल कायम की है। अजय एक ऐसे गाँव से तालुक रखता है, जो उत्तराखंड की राजधानी से मात्र बीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ पर आज भी शिक्षा के नाम पर एक स्कूल सही हालत में नहीं है। जहां पर बच्चे पढाई सही से कर पाये और सड़के तो बस राम भरोसे है। सत्तारूढ़ सरकार वादे तो बड़े-२ करती है, लेकिन उनके सारे वादे सिर्फ खोखले साबित होते है। राज्य की राजधानी से सटे इस गाँव का यह हाल है। तो बाकि जगह का क्या हाल होगा? ये तो आप इसी से अंदाजा लगा सकते है। आज़ादी के 63 साल बाद भी देश अपने आपको स्वतंत्र मानता है, लेकिन राज्य के कुछ हिस्सों की स्थिति बही भी जस की तस बनी हुई है। लेकिन इतनी विषम परिस्थितियों के बावजूद भी अजय अपने कर्तव्यों को नहीं भुला। गाँव से पढ़ाई करने के बाद राजधानी के डिग्री कालिज से स्नातक की पढाई कर रहा है। और अपने गाँव की समस्याओ कों दूर करने के लिए तमाम जन प्रतिनिधियों मंत्रियों, शासन प्रशासन के संज्ञान में इन समस्याओ की डाल रहा है।

गाँव के विद्यालय से निकलने के पश्च्यात अजय ने पंद्रह अगस्त २०१० को विद्यालय के निर्धन बच्चो को विद्यालय गणवेश, जूते आदि संस्था के माध्यम से बटवाए अब इनकी इक्छा मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, तथा डॉ. ए.पी जे अब्दुल कलाम से मिलने की है। अजय अपने इस साहसी कार्य की बदौलत भारत के पूर्व राष्टपति डॉ ए. पी. जे. अब्दुल कलाम और उत्तराखंड सरकार द्वारा अनेक पुरस्कारों से पुरस्कृत किया जा चुका है। अजय को वन विभाग दुवारा एक प्रमाण पत्र भी दिया जा चुका है जो की पर्यावरण के क्षेत्र में उत्‍कृष्‍ट कार्य के लिए दिया जाता है और वन्य जीव सुरक्षा में सरहनीय कार्य करने पर वन्य जीव संस्थान ने 2006 में मुख्य सचिव उत्तराखंड दुवारा एक प्रमाण पत्र भी दिया गया, जिसको भारत के तत्कालीन राष्टपति अब्दुल कलाम द्वारा हस्ताक्षरित किया गया है ….इसी दोरान अजय कों दो वर्ष के लिए वाईल्ड लाइफ वार्डन भी नियुक्त किया गया।

वर्ष 2007 में वन्य जीव सुरक्षा संरक्षण तथा वनों को अग्नि से बचाने के लिए वन विभाग दुवारा एक प्रशसत्रि पत्र और 22 अप्रैल 2007 को उत्तराखंड सरकार ने पृथ्वी दिवस के अवसर पर पर्यावरण जागरूकता के प्रति रैली निकालने पर एक पत्र भी अजय को दिया। सरकारी स्कूल में पढाई के दोरान शिक्षा प्रणाली को बदलने के संबंध में कम्प्यूटर पर आधारित “लिट्रेसी प्रोग्राम प्रोजेक्ट” बनाया, जिसको विश्व प्रसिद्ध कंपनी इंटेल कंपनी एजूकेशन को भेजा गया। वर्ष 2005 -06 में अजय गढ़वाल मंडल का प्रथम विजेता भी रहा। एन.एस.एस. कैम्प के द्वारा मात्र 250 रुपए की लागत से अपने गुरु जगदम्बा प्रसाद डोभाल के साथ मिलकर बडकली गाँव में शोचालय एवं स्नान घर भी बनवाया।

इतनी प्रतिभा का धनी अजय बर्त्वाल आज भी अपने गाँव की बदहाल सूरत को देखकर परेशान है, क्‍योंकि उसके दूधली गाँव कों वो मूलभूत सुविधाए नहीं मिला पा रही है, जो वास्तव में मिलनी चाहिए। इसकी अर्जी लेकर अजय आज भी तमाम मंत्रियों और प्रशासनिक अधिकारियो के पास जाता है।लेकिन उसकी कोई सुनने वाला नहीं है। यह कहानी अकेले उत्तराखंड के अजय की नहीं है, बल्कि देश के बाकि हिस्सों में न जाने कितने अजय अपने अर्जी लेकर घूम रहे है। इतनी विषम परिस्थितियों के बावजूद भी अपने लक्ष्य को पाने की कोशिश में लगा है लेकिन किसी का इसकी और ध्यान बिलकुल भी नहीं है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here