बेटी ने बदला परिवार का जीवन

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पवन वैष्णव

किसानों का देश कहा जाने वाला भारत, जहाँ देश का अन्नदाता आज खुद अन्न को तरस रहा है और बदहाल जीवन जी रहा है। बीते कुछ दिनों में किसानों की आत्महत्या के बहुत से मामले सामने आए हैं। किसानों की आत्महत्या की अहम वजह उनका बढ़ता कर्ज़, गरीबी और भुखमरी है। एक ओर जहाँ कुछ लोग जीवन की जद्दोजहद से तंग आकर अपनी जान दे रहे हैं। वहीँ दूसरी ओर राजस्थान के उदयपुर में प्रसिद्ध ऐतिहासिक जैसामंद झील के पास चटपुर गांव के एक किसान की 17 वर्षीय बेटी ‘जमना मीणा’ जिसने कई लोगों को जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रेरित किया।
जमना केवल 5 वीं कक्षा तक पढ़ी है। उसकी पढ़ाई के दौरान उसके पिता की मृत्यु हो गई जिससे उसे परिवार की खराब परिस्थीती के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा। जमना के पिता अपने पीछे 5 सदस्यों का परिवार छोड़ गये। परिवार में उसकी मां, 2 भाई और एक बड़ी बहन है। केवल उसकी बड़ी बहन की शादी हुई है। एक साल पहले उसके बड़े भाई ने किसी कारणवश आत्महत्या कर ली थी, इसलिए परिवार के सभी सदस्य उस पर निर्भर हैं। इस खराब परिस्थिति से लड़ने और घर का खर्च चलाने के लिए जमना ने दूसरों के खेतों और मनरेगा में भी मजदूरी की। वह अपना स्वयं का रोजगार शुरू करना चाहती थी लेकिन इसके लिए कोई हुनर नहीं था इसलिए उसने अपने गांव के किसी बुद्धिजीवी से संपर्क किया। उन्होंने जमना को उद्योगियनी के कौशल विकास प्रशिक्षण केंद्र के बारे में बताया।
उल्लेखनीय है कि उद्योगिनि राजस्थान कौशल एवं आजीविका विकास निगम (आरएसएलडीसी) की सहायता से कृषि और कौशल विकास प्रशिक्षण केन्द्र पर 2009 से काम कर रही है। जमना इस केंद्र में गई और विभिन्न पाठ्यक्रमों के बारे में जानकारी ली। और अपनी रूचि के अनुसार उसने सिलाई ऑपरेटर प्रशिक्षण के लिए आवेदन किया और 49 दिनों के सिलाई कार्य का प्रशिक्षण पूरा करने के दोरान ही अपनी बचत राशि से 2000 / – रुपये की एक सिलाई मशीन खरीदी।  अब वह कुर्ता, ब्लाउज, लाहाँगा, पेटीकोट, फ्रोक और महिलाओं के अन्य वस्त्रों की सिलाई करने में माहिर हैं। जमना सिलाई के काम से प्रति माह 2,000/- से 2500/- रुपये कमाती है। उसने कपड़ों के लिए नए डिजाइनों को अपनाया और सफलता के लिए स्वयं का रोजगार शुरू करके   अच्छा पैसा कमा रही है और अपने परिवार के खर्चों को पूरा करती है। अब उसे तेजी से काम करने के लिए पैडल वाली सिलाई मशीन की आवश्यकता है। वह अपने गांव की अन्य लड़कियों को भी कौशल प्रशिक्षण के लिए प्रेरित कर रही हैं ।
जमना के चचेरे भाई श्री नारायण लाल मीणा का कहना है कि “जमना सिलाई का कम सिखने के बाद अपना घर अच्छी तरह चला रही है, महीने भर में 3000 रूपये के लगभग कमा लेती है, परिवार की हालत  में सुधार आया है। पैसे के लिए अब तकलीफ नही उठानी पड़ती हैं।”
इस सम्बंध में जमना की माँ कहती हैं कि “मेरी बेटी बहुत समझदार है उसने मेरा और मेरे परिवार का जीवन सुधार दिया है। जमना सिलाई का काम करके कुछ पैसा कमा लेती है इससे हमारे घर का गुजारा चल जाता है, उसने मेरे बेटे का फर्ज़ निभाया है।”

पड़ोसी सज्जन मीणा के अनुसार “जमना कपड़े बहुत अच्छे सिलती है, मै भी उसके पास कपड़े सिलाती हूँ। पहले वह मजदूरी कर के कमाती थी अब सिलाई करके अपने घर का गुजारा करती है। अब उसका जीवन बेहतर हो गया है।”
जन प्रतिनिधि नाथू लाल मीणा इस सम्बंध में कहते है कि “सरकार और संस्था वाले प्रशिक्षण तो दे देते हैं पर मशीन नही देते ! इसलिए काम सीख कर भी कई लडकियां घर पर ही बैठी रहती हैं, उन्हें मशीन भी मिलनी चाहए ताकि वो भी कमा कर खा सके।”
जमना कहती है कि “मैं अपने परिवार के सभी खर्चों को उठाने में सक्षम हूँ मैं अपनी माता जी और सिलाई की ट्रेनिंग देने वाली संस्था, उद्योगिनी और आरएसएलडीसी को धन्यवाद देती हूँ इन्ही सब लोगों की सहायता से मै आज इस लायेक बनी हूँ”
अपने क्षेत्र में जमना आय में बढ़ोतरी के अलावा, लिंग समानता और महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों पर भी मिसाल बनी है। जमना ने अपनी मेहनत और परिश्रम से यह साबित किया है कि महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरषों से कम नही हैं वो अपने हुनर और क़ाबलियत से अपने परिवार का भरन पोषण कर सकती हैं। नियमित रूप से बैठकों में भाग लेने और उद्यमशीलता के बारे में उद्योगीनि सूचना सत्र में भाग लेने से, वह परिवार या कार्य से संबंधित मुद्दों को हल करने में सक्षम है। जमना, जो घर चालाने के लिए काम करती है, अब परिवार के कार्यों के बारे में अपने भाई को निर्देश भी देती है। भविष्य में वह महिलाओं के वस्त्रों के लिए नए डिजाइन सीखना जारी रखना चाहती है और अपने गांव और पड़ोसी गांवों में अन्य महिलाओं के साथ अपने ज्ञान को साझा करना चाहती है। क्युकि बहुत सी जमना गरीबी और जीवन के संघर्ष से लड़ रही हैं यदि उन्हें कौशल प्रशिक्षण और कुछ शुरुआती समर्थन मिलता है तो वे भी अपने जीवन में बदलाव ला सकती हैं।

 

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