दाऊद पर दांव ……!!

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तारकेश कुमार ओझा
…दाऊद के दिन पूरे … अब नहीं बच पाएगा डान और उसकी डी. कंपनी , खुफिया एजेंसियों की है पैनी नजर… , रिश्तेदारों पर भी रखी जा रही नजर…। एक राष्ट्रीय चैनल पर दिखाया जा रहा इस आशय का विशेष समाचार पता नहीं क्यों मुझे अच्छा नहीं लगा। एक तरह से यह एक और बचकानी हरकत थी, जिससे कुख्यात डी . कंपनी को बचने का एक और मौका मिल सकता था। क्योंकि सवाल एक अंतर राष्ट्रीय अपराधी का था। मन में सवाल उठा कि यदि सचमुच देश की खुफिया एजेंसियां दाऊद को पकड़ने की कोशिश कर भी रही हो, तो क्या इस तरह की खबरों का प्रसारण उनका खेल नहीं बिगाड़ देगा। बेशक इस समाचार को दिखाए जाने से कुछ घंटे पहले देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने अक्लमंद को इशाऱा काफी है… जैसा कुछ बयान दिया था। जिससे लगने लगा कि शायद सरकार डी. कंपनी के काफी करीब पहुंच चुकी है। लेकिन एेसे दावे तो पहले भी हुए हैं। लेकिन दाऊद बड़े आराम से पाकिस्तान में पूरे कुनबे के साथ ऐश की जिंदगी बिताता रहा। बेटे – बेटियों की शादियां करवाता रहा। बालीवुड में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर अपनी कथित आपराधिक जिंदगी का महिमामंडन करवाता रहा। लेकिन सरकार उसे पकड़ना तो दूर कभी ऐसी कोशिश करती भी नजर नहीं आई। सुना है कि यूपीए -2 सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम दौर में दाऊद को पकड़ कर जनता में अपनी छवि सुधारना चाहती थी। लेकिन एेसा नहीं हो सका। पूर्व गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे इस पर बड़बोलापन जरूर दिखाते रहे। शिंदे के बड़बोलेपन के दौरान भी मुझे लगा था कि यदि खुफियां एजेंसियां सचमुच उसे पकड़ने की कोशिश करे भी तो ऐसे बयान उनकी कोशिशों पर पानी फेर देगी। दाऊद जैसे अंतर राष्ट्रीय अपराधी के मामले में सरकार ही नहीं मीडिया को भी काफी सूझ – बूझ का परिचय देना चाहिए। क्योंकि एक सामान्य अपराधी को भी यदि भनक लग जाए कि उसके खिलाफ कहीं कुछ हो रहा है तो वह तुरंत अपने बिल में घुसने में देर नहीं लगाता। दाऊद तो फिर अंतर राष्ट्रीय स्तर का अपराधी और मानवता का दुश्मन है। जिसे पाकिस्तान समेत कई देशों का समर्थन हासिल है। साधारणतः पेशेवर अपराधियों को सिर्फ अपनी सुरक्षा और स्वार्थ से मतलब होता है। लेकिन दाऊद ऐसा अपराधी है जिसने उस देश को लहुलूहान करने से भी गुरेज नहीं किया, जहां उसने जन्म लिया। देशद्गोहियों के साथ मिल कर अपने देश के बेकसूर लोगों की जानें लेने में वह पिछले दो दशकों से बढ़ – चढ़ कर हिस्सा लेता आ रहा है। यह भी समझना होगा कि दाऊद को एक राष्ट्र का संरक्षण हासिल है। दुनिया के कई देशों में उसके शुभचिंतक है। अब बुढ़ापे में उसकी गिरफ्तारी भी रपट पड़े तो हर – हर गंगे… वाली कहावत को ही चरितार्थ करेगी, फिर भी उस पर शिकंजा कसने से जुड़ी गतिविधियों के मामले में हर किसी को विवेक का परिचय देना होगा। देश में श्रेय लेने की भोंडी होड़ ने इस मानवता के दुश्मन को कानून के शिकंजे से बचने में पहले भी सहायता प्रदान की है। लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि समाज का हर वर्ग अब इससे बचने का संकल्प लेगा।

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  1. दाउद इब्राहीम हों या उनके जैसे अनेक राष्ट्रद्रोही …आपको यह मालुम होगा की पिलखुआ गाजियाबाद का टुंडा ,अनेक
    विस्फ़ोटों में उसका हाँथ था । वह भारत का देशद्रोही अभियुक्त है ।पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी जब सब उससे निचोड़ लेती है तब वह किसी बहाने से भारत को सौंपे जाने हेतु अभियुक्त की निगरानी कम करने लगती है । अपरोक्ष में
    भागने की सहायता करती है ।
    इसी प्रकार दाउद अब पाकिस्तान के लिए सफेद हांथी साबित हो रहा है ।अब उसका समय आ रहा है खा नहिन् जा सकता ।
    भारत की विधि ब्यवस्था में अनेकों ऐसे छिद्र है की अपराधी अपराध कर अपने परिवार को तीन पीढी को कमाकर व् उसकी पूर्ण ब्युव्स्था कर जाने का समय देता है ,और उसमे पेंच मारने वाले स्वयं लाभ कमाते हैं या बचाव में उतर आते हैं। यह सबअभियोजन पक्ष की ओर से होता आया है।
    अब दाउद के विषय में कहा जा रहा है , मेरा कहना है कि अपराधी को 12-20 वर्ष का बचने का समय क्यों…….?
    लालू यादव को इतना समय दिया गया की वह रेल मंत्री तक रहे अरबों रूपए कमाकर भीख मांगने वाले अपने परिवार के लिए नौ पीढ़ियों को धन इकठ्ठा कर देश के धन को जो बर्बाद किया उसकी क्षतिपूर्ति कहाँ से होगी वह तो जेल चला जाएगा किन्तु उस रिक्त कोष का क्या होगा जो देश भुक्तेगा ……?
    यमुना पाण्डेय,,

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